इस तुगलकी फरमान से पाखंडियों की असल मंशा जान आप के भी होश फाख्ता हो जाएंगे. मथुरा मंदिरों का शहर है। यही वहां का प्रमुख धंधा, उद्योग और रोजगार भी है। यह शहर चौबीसों घंटे पूजामय रहता है। सार्वजनिक स्थलों पर स्थानीय और बाहरी लोग तथाकथित भगवान के जयकारे करते नजर आते हैं।

रोजाना हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं और करोड़ों रुपए चढ़ा कर चले जाते हैं, एवज में मोक्ष प्राप्ति का झूठा आश्वासन ले कर और फिर अगले साल किसी धार्मिक स्थल और मंदिरों में दक्षिणा चढ़ाने के लिए जीतोङ मेहनत में जुट जाते हैं। इन भक्तों की आस्था मंदिरों में बनाए रखने के लिए पंडेपुजारी कोई कसर नहीं छोड़ते। वे रोज कोई न कोई नया टोटका दुकान बनाए और बढ़ाए रखने के लिए करते रहते हैं, जिस से लोगों का ध्यान मंदिरों की तरफ जाए।

ऐसा ही एक नया टोटका जो इन दिनों देशभर में आजमाया जा रहा है वह है पंडेपुजारियों द्वारा ड्रैस कोड लागू करने का।

बीती 22 जून को बरसाने के मशहूर लाडलीजी महाराज मंदिर के बाहर भी एक चेतावनी की तख्ती लटका दी गई जिस पर लिखा था-

सभी महिलाएं एवं पुरुष मंदिर में मर्यादित कपङे पहन कर ही आएं। छोटे वस्त्र, हाफपैंट, बरमूडा, मिनी स्कर्ट, नाइटसूट, कटीफटी जींस आदि पहन कर आने पर बाहर से ही दर्शन कर सहयोग करें, धन्यवाद।

दान दक्षिणा और सौंदर्य

यहां सहयोग करें का मतलब बाहर से ही दानदक्षिणा दें। इस पर पंडेपुजारियों को कोई एतराज नहीं, रही बात पत्थर की मूर्तियों के दर्शन की तो 6 साल का बच्चा भी जानता है कि कणकण में भगवान है, वहां बिना कपड़ों के भी दर्शन किए जा सकते हैं। लेकिन मंदिरों की अपनी अलग मर्यादा होती है, पवित्रता होती है जो खासतौर से औरतों के छोटे या तंग कपड़ों से भंग हो जाती है। इस से पूजापाठ और दोनों हाथों से दक्षिणा बटोरने के कारोबार में तल्लीन पंडेपुजारियों का ध्यान भी भंग होता है और हो भी क्यों न आखिर वे भी तो सभी की तरह हाङमांस के पुतले हैं.

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