हर देश अपने सैनिकों की इज्जत के प्रति बहुत सतर्क रहता है. सेना में सैनिकों के साथ चाहे कैसा भी बरताव किया जा रहा हो लेकिन जनता के मन में यह छवि बैठाई जाती है कि देश सैनिकों के लिए बहुतकुछ कर रहा है क्योंकि वे ही देश को दुश्मनों से बचाते हैं. इसीलिए जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चीनियों द्वारा भारतीय सैनिकों के साथ मुठभेड़ का विषय उठाते हुए ‘पिटाई’ शब्द का इस्तेमाल किया तो भारतीय जनता पार्टी की सरकार को राहुल गांधी की आलोचना करने का अवसर मिल गया.

राहुल गांधी असल में बात कर रहे थे कि जब भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों से ठंड के दिनों में हिमालय की ऊंची सरहदों में मुठभेड़ कर रहे थे, उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-20 सम्मेलन के दौरान इंडोनेशिया में चीनी नेता शी जिनपिंग के साथ फोटो खिंचा रहे थे, भारत-चीन मुद्दे को उठाने की हिम्मत नहीं कर रहे थे.

जब से नरेंद्र मोदी ने कहा है कि चीन न भारत में घुसा है, न कभी घुसेगा, तब से वे चीन के बारे में आमतौर पर चुप रहते हैं. भारत-चीन झड़पों पर सरकार ने टिकटौक ऐप को तो बंद कर रखा है पर इस के अलावा चीन के खिलाफ कोई और मोरचा खोला हो, ऐसा नहीं लगता. चीनी सामान के बहिष्कार के नाम पर एकदो साल चीन की बिजली की लडिय़ों को कम इस्तेमाल किया गया वरना तो उस का आयात बढ़ ही रहा है, घट नहीं.

चीन के साथ दोस्ती और शत्रुता 1947 से ही चलती आ रही है क्योंकि उत्तरी सीमा पर विवाद रहा है. भारत का तिब्बत पर सीधा शासन कभी नहीं रहा. हालांकि, कुछ समय तक भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने वहां अपने सैनिक तैनात किए थे. लेकिन इस तरह तो भारतीय सैनिक ब्रिटिश सरकार के राज के कारण चीन में काफी सालों तक जमे रहे. इस का मतलब यह नहीं था कि भारत का चीन पर कब्जा था. तिब्बती राजा समयसमय पर उत्तर में हमले करते रहे थे, इसलिए हमारी सीमा वहां है और कैसी है, यह कभी पक्का नहीं रहा. चीन ने 1962 में भारी हमला कर काफी जमीन, जिसे ब्रिटिश भारत के दौरान से भारत अपनी मानता रहा है, हथिया ली और आज तक वह विवाद नहीं सुलझा है.

लाइन औफ ऐक्चुअल कंट्रोल को अब सीमा मान लिया गया. पर यह भी बिना निशानदेही वाली 3,500 किलोमीटर की सीमा है. सो, जाहिर है इस पर विवाद होगा ही. इस विवाद के बारे में हर सरकार को देश की जनता को पूरा व सही जवाब देने में कठिनाई हुई है. जहां पाकिस्तान का नाम ले कर भारत में वोट बटोरे जा सकते हैं वहीं चीनी सेना भारतीय शासकों के लिए सिरदर्द रही है. यह भारत में हमेशा सत्ताधारी पार्टी के लिए राजनीतिक कमजोरी बनी रही है.

नरेंद्र मोदी की ‘ताकतवर’ छवि बनाने में जो मेहनत की गई है, उसे राहुल गांधी पंचर करने की कोशिश करेंगे, तो भारतीय जनता पार्टी को बेचैनी होगी ही. कभी लद्दाख, कभी सिक्किम और अरुणाचल में चीनी घुसपैठ का जवाब देना सेना के लिए चाहे आसान हो या मुश्किल, यह भारतीय नेता की छवि पर गहरा घाव जरूर करता रहता है.

सरकार को चिंता सीमा की कम, वोटों की ज्यादा रहती है. यह नरेंद्र मोदी के राज्यों तक के चुनावों से पहले सब कामधाम छोड़ कर चुनावी सभाओं में व्यस्त हो जाने से स्पष्ट है. राहुल गांधी ने इस मामले को अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान बारबार उठा कर मोदी को परेशान तो कर ही दिया है.

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