जैसी आशा थी, उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए सरकार की खुराफाती सीयूईटी (सैंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रैस टैस्ट) में लगातार अफरातफरी और कुप्रबंध की शिकायतें मिल रही हैं और टैस्ट देने वालों को बारबार परीक्षाओं में बैठना पड़ रहा है जबकि अभी तो शुरुआत है. जल्दबाजी में शुरू की गई अंगूठा काटने की द्रोणाचार्य के षड्यंत्र जैसी जटिल परीक्षा का उद्देश्य एक तरफ कोचिंग व्यवस्था को एक नई जान देना है तो दूसरी तरफ मनचाहे क्षेत्रों में छात्रों के लिए उच्च केंद्रीय व चुनिंदा संस्थानों को ही प्रवेश के लिए खुला रखना है.
यूजीसी के चेयरमैन जगदीश कुमार ने माना कि परीक्षा केंद्रों पर प्रश्नपत्र समय पर तुरंत डाउनलोड नहीं हुए. कुछ केंद्रों ने प्रश्नपत्र पहले ही डाउनलोड़ कर लिए और उन्हें बाजार में बेच दिया गया. दोबारा परीक्षा ली जाएगी पर यह बताने पर कि पिछली परीक्षा क्यों नहीं दी जा सकी. कुछ जगह तो पिछली परीक्षा के दिन पर्यवेक्षक पहुंचे ही नहीं.
बात यह नहीं है कि इस बड़ी परीक्षा के प्रबंध में चूक क्यों रही, बात तो यह है कि 12वीं की बोर्ड की परीक्षा लेने के बाद यह परीक्षा लेने की आवश्यकता क्यों? यह क्यों थोपी गई है. इस से जो शिक्षा सत्र जुलाई में शुरू होना था, अभी सितंबर में उस में प्रवेश प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो सकी. इस में नुकसान न तो मोदीशाह जोड़ी का होगा, न नीति आयोग का, न यूजीसी का. यूजीसी के चेयरमैन जगदीश कुमार कह रहे हैं कि सीयूईटी की परीक्षा में जानबूझ कर षड्यंत्र के तहत गड़बड़ी की गई. यह कैसे संभव है जब सर्वज्ञाता, सर्वज्ञानी, उच्चवर्गीय, योग्य, राष्ट्रप्रेमी लोगों ने दिव्य दृष्टि से इस परीक्षा की कल्पना की थी और इसे एक अतिरिक्त परीक्षा के रूप में लाखों छात्रों पर इस वर्ष और आने वाले हर वर्ष के लिए थोपा गया? इस परीक्षा प्रणाली के लिए न संसद में चर्चा की गई, न व्यापक विचार लिए गए. कृषि कानूनों, नोटबंदी और अग्निपथ योजनाओं की तरह इस का संदेश स्वयं ईश्वर ने, वेदों की तरह, ज्ञानियों को दिया और अब इस पर सवाल उठाने वाला हर कोई षड्यंत्रकारी, देशद्रोही हो गया.
छात्रों की जो मानसिक वेदना इस परीक्षा के कारण हुई है, जिस तरह उन्हें सैंटर से सैंटर भटकना पड़ा है, इस परीक्षा में होगा क्या, यह जानने के लिए न जाने क्याक्या कयास लगाने पड़े. इन का अंदाजा छात्र, उन की मांएं और पिता ही लगा सकते हैं, शीर्ष सत्ता में बैठे लोग नहीं क्योंकि उन्हें तो विपक्षी सरकारें गिराने से फुरसत नहीं है.
जांच करना, नए सिरे से परीक्षाएं लेना, दोषियों को सजा देना कहना आसान है पर जो जख्म इस बेसिरपैर की परीक्षा ने छात्रों को दिए हैं, उन की व्यापकता का अनुमान भी लगाना कठिन है. सरकार को इस की चिंता नहीं है क्योंकि वह तो वाहवाही के शोर में सुन नहीं सकती और तालियां बजाने के लिए लाखों कोचिंग संस्थान हैं जिन्हें अतिरिक्त आय बैठेबिठाए इस साल में इस परीक्षा के कारण मिलनी शुरू हो गई है. जैसे पिंडदान में खुशी दान लेने वाले को होती है, कुछ वैसे ही शासन और कोचिंग संस्थान मृतकों के संबंधियों के दुख में अपना सुख देख रहे हैं. जो इस परीक्षा प्रणाली के खिलाफ बोलेगा वह नए भारत के निर्माण में अड़चन डालने का पापी है.