हमारा मन विचारों की बौछार करता रहता है. हम एक के बाद दूसरा सपना दिन में ही देखने लगते हैं. इस के बावजूद डेड्रीमिंग को परिभाषित करना कठिन है. तात्कालिक स्थिति से इतर जो भी विचार मन में आते हैं, मनोवैज्ञानिक उन्हें दिवास्वप्न या डेड्रीमिंग कहते हैं.
मन का भटकना दिन में सपने देखने का प्रमुख रूप है. हम रोज, कुछ देर के लिए ही सही, जो कर रहे होते हैं उस से भिन्न दिशा में खो जाते हैं. यह खोना अपनी कल्पना में रमना भी हो सकता है और स्मृतियों में गोता लगाना भी. यह तब भी होता है जब हम पढ़ या सुन रहे होते हैं. यह अकस्मात खो जाना अपने ही भीतर होता है, जिस में हम अपनेआप को ही देखते हैं और एक नई ताकत से भर उठते हैं.
कोई कार्य करते समय, जिस में अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है, हमारा मन पुरानी बातों की छानबीन में खो जाता है. हम किसी इंटरव्यू की कल्पना करते हैं, किसी खास तारीख की कल्पना करते हैं और उस अनुभव में खो जाते हैं जो घटित हो चुका है या होने वाला है. दिवास्वप्न में अकसर मनोभावों का योग होता है. कभी वे सुखद होते हैं, कभी डरावने, कभी गुस्सा दिलाने वाले.
ज्यादातर दिवास्वप्न मामूली चीजों के बारे में होते हैं, जैसे किराया देना, बाल कटवाना, सहकर्मी का व्यवहार, किसी खास दोस्त को ले कर किसी समस्या का समाधान आदि. इस किस्म के विचारों का तांता लगा ही रहता है. हम दिवास्वप्न कभी भी देख सकते हैं. जब दाढ़ी बनवा रहे हों, कोई योजना बना रहे हों या चिंतन कर रहे हों. हमारे दिवास्वप्न आगे की चीजों की याद दिलाने का भी काम करते हैं.
फ्रायड ने दिवास्वप्न को फैंटेसी माना है. उन का कहना है कि हर आदमी को फैंटेसी की आवश्यकता पड़ती है. मनुष्य को आनंद, जिस में सैक्स एंजौयमैंट भी शामिल है, को छोड़ना पड़ता है. किंतु यह त्याग उसे बुरा लगता है. सो, उसे उस के कम्पंसेशन की आवश्यकता होती है. इस हेतु व्यक्ति एक मैंटल ऐक्टिविटी डैवलप कर लेता है, जिस से आनंद के छोड़े गए सोर्स बने रहते हैं.
वास्तविक आनंद की प्राप्ति में बाधा देख कर मनुष्य मानसिक आनंद की सृष्टि करना चाहता है. यह मानसिक आनंद फैंटेसी से संभव होता है. जो वास्तविक जीवन में प्राप्त नहीं होता, वह फैंटेसी से प्राप्त हो जाता है. यह फैंटेसी हमारे आवेगों और इच्छाओं के नैराश्य की क्षतिपूर्ति करती है. यह क्षतिपूर्ति एक प्रकार का दिवास्वप्न यानी डे ड्रीमिंग है.
ज्यादातर दिवास्वप्न अपनेआप घटित होते हैं. किंतु कभीकभी आदमी जानबू?ा कर भी दिवास्वप्न देखता है. ऐसे दिवास्वप्नों द्वारा वह स्वयं को मजबूत बनाता है. लड़ाई में जाते समय सैनिक दुश्मन के कुकृत्यों की कल्पना कर अपनेआप को उत्तेजित करता है. उबा देने वाले काम करने वाला कारीगर दिवास्वप्न का जाल बुनता है. दिवास्वप्न व्यक्तियों में भिन्न होते हैं पर प्रकारों में समानता भी होती है. दोतिहाई दिवास्वप्न व्यक्ति की तात्कालिक जरूरतों या कामों से संबंधित होते हैं. बाकी का संबंध रोजमर्रा के कामों, भूत, भविष्य तथा रिश्तों से होता है.
दिवास्वप्नों के बारे में आम धारणा यह है कि वे रोमांटिक, कामुक या हिंसक होते हैं, पर ऐसा है नहीं. अध्ययनों से पता चला है कि इस कोटि के दिवास्वप्न मात्र 5 प्रतिशत होते हैं. डेड्रीमिंग एक व्यक्ति के अनेक पहलू दर्शाता है. जो लोग डरावने सपने देखते हैं, वास्तविक जीवन में उन के अनुभव नकारात्मक होते हैं. ऐसे लोगों को अनिद्रा रोग भी हो जाया करता है. सकारात्मक अनुभव सुखद डेड्रीम के जनक होते हैं. स्त्रीपुरुषों के डेड्रीम में एकजैसी बारंबारता होती है.
हम दिन में सपने क्यों देखने लगते हैं और उन की विषयवस्तु क्या होती है, इस पर अभी भी प्रश्नचिह्न लगा है. अब तक हुए अध्ययनों से पता चला है कि व्यक्ति उन्हीं मुद्दों से संबंधित डेड्रीम करता है जिन का सरोकार तात्कालिक बातों से होता है. नैतिक मूल्य, अपेक्षाएं, चेतावनियां, कुंठाएं जैसी स्थितियां हमारा ध्यान सब से ज्यादा आकर्षित करती हैं. लगता है जैसे मनोभाव ही वह सूत्र है जो हमारे विचारों को प्रभावित करता है.
मनोभावों को उत्तेजित करने वाले शब्दों या घटनाओं का प्रभाव हमारी मानसिक प्रक्रिया पर सर्वाधिक पड़ता है. एक तरह से मनोभावों और तात्कालिक सरोकारों का अंत: संबंध अत्यधिक है. इन्हीं का संबंध दिन के सपनों से भी है. हमारी खुशियां, भय, क्रोध, निराशा, उदासी आदि लक्ष्य प्राप्ति या अप्राप्ति से उत्पन्न प्रतिक्रियाएं ही हैं. लक्ष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता तथा उसे पाना हमारे मनोभावों को नियंत्रित करता है और इसी माध्यम से हमारे सपने भी नियंत्रित होते हैं.
दिवास्वप्न कोई रोग नहीं है. अनुसंधान बताते हैं कि डेड्रीम के बारे में पुरानी धारणाएं पूर्णतया गलत हैं और ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता जिस से लगे कि दिन में सपने देखने से व्यक्ति खंडित मानसिकता वाला हो सकता है या उस में मनोवैज्ञानिक उल?ानें पैदा हो सकती हैं.
ज्यादातर अध्ययन बताते हैं कि दिन में सपने देखने से खंडित मन व्यक्ति या अन्य व्यक्तियों में कोई अंतर नहीं आता. इस के विपरीत, ऐसे प्रमाण अवश्य मिलते हैं कि जो लोग स्वप्न चित्रों यानी फैंटेसी में रुचि रखते हैं, उन में विशेष मानसिक क्षमता होती है. जो बच्चे आमतौर पर कल्पनाशील होते हैं वे अधिक सजग आकर्षक, कुंठामुक्त, निर्भय और विनोदप्रिय देखने में आते हैं. अकसर मुग्धकारी रात को सपने देखने वाले लोग उन लोगों से बेहतर पाए गए हैं जो दिन में कम सपने देखते हैं.
इस प्रकार दिवास्वप्न अपनेआप में बुरे नहीं होते हैं, पर कुछ मामलों में वे बुराई का आधार जरूर बन सकते हैं. भय की मानसिकता वाला व्यक्ति जब सड़क दुर्घटना की कल्पना करता है तो दिन के सपने में अपनेआप को दुर्घटनाग्रस्त पा कर वह अपने भय को और पुख्ता बना सकता है. अपनी विपत्तियों की कल्पना करते रहने वाला विषाद अवसाद की मानसिकता से ग्रस्त आदमी दिवास्वप्नों द्वारा अपना विषाद और अधिक बढ़ा सकता है.
जो लोग औसत से ज्यादा दिवास्वप्न देखते हैं, अकसर औसत से ज्यादा मानसिक ताकत वाले होते हैं और वे संकेत देते हैं कि दिन में सपने देखना वास्तव में लाभदायक हो सकता है. तात्कालिक बातें याद आना, समस्या का पुनरीक्षण, अतीत से सीखना और भावी व्यवहार में परिष्कार की पूर्व तैयारी दिवास्वप्न द्वारा होती है. अनेक साहित्यिक कृतियों की रचना या गणित की गुत्थियां सुल?ाने का रास्ता दिवास्वप्नों या दिवास्वप्न जैसी स्थितियों से हासिल हुआ है.
मनोचिकित्सकों तथा व्यवहारविदों ने निदेशित दिवास्वप्नों द्वारा अपने मरीजों की व्यक्तिगत समस्याओं का निदान किया है. मानसिक कल्पना के माध्यम से व्यक्तिगत अंतर्दिवष्टि प्राप्त की जा सकती है. ऐसे भी प्रमाण मिले हैं कि स्वप्न चित्र में शारीरिक या सामाजिक कुशलता के अभ्यास द्वारा वास्तविक कार्य, व्यापार में सुधार लाया जा सकता है.
हमारे मस्तिष्क का गठन ही ऐसा है कि हम दिन में सपने देखते हैं, काल्पनिक चित्र निर्मित करते हैं जो हमारे कार्यरत आंतरिक मनोवैज्ञानिक पहलुओं को प्रतिबिंबित करते हैं. जब हम अपने मन में दृश्य चित्रों का निर्माण करते हैं तो हम उन्हीं दिमागी प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं जिन से अपने आसपास की दुनिया का अनुभव करते हैं. गतिशील कल्पना चित्रों में दिमाग और शरीर की उन्हीं प्रक्रियाओं का उपयोग होता है जिन का संबंध दिन में सपने देखने वाले की अभिप्रेरणा की स्थितियों से भी होता है.
दिन में सपने देखना दिमाग की प्राकृतिक शक्ति का फलदायी उपयोग करना है. ये अकसर अपनेआप शुरू हो जाते हैं और हमारा दिमाग जो हम कर रहे होते हैं उस से हमारा ध्यान हटा कर, स्वचालित रूप से तात्कालिक बातों की ओर चला जाता है. दिवास्वप्न हमारे मन को सक्रिय बनाए रखते हैं और तालमेल व सृजन में सहायता करते हैं.