55 साल के संदीप सरकारी नौकरी करते थे. 2 साल पहले उन की पत्नी का निधन हो चुका था. संदीप अपनी बेटी की शादी कर चुके थे. बेटा कालेज में पढ़ाई कर रहा था. संदीप के पास वेतन और जायदाद दोनों ही थी. सोशल मीडिया के जरिए उन का रेखा नाम की महिला से संपर्क हुआ. उस का एक बेटा था. 10 साल पहले वह विधवा हो चुकी थी. बेटा कैंसर से पीडि़त था. मां उस की देखभाल करती थी. इस के बाद भी वह बेटे को कैंसर से बचा नहीं पाई.

बेटे के बाद वह अकेली हो गई. संदीप के साथ वह अपनी पूरी बातें शेयर करती थी. संदीप और उस के बीच 5 साल की उम्र का फर्क था, पर देखने में वह 35 साल से अधिक की नहीं लगती थी. दोनों ने आपस में बात की और फिर शादी कर ली.

रेखा ने अपनी एक सहेली को ही यह बताया था. वह समाज के लोगों को बताने में हिचक रही थी. ऐसे में उस की सहेली ने रेखा और संदीप के गले में फूलों की माला वाली फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी, जिस से सब को यह पता चला कि इन की शादी हो चुकी है.

धीरेधीरे फेसबुक पर ही बधाई का सिलसिला चल पड़ा. अब सभी को पता चल गया है. बिना बैंडबाजा और बरात के इन की शादी हो गई. उन की शादी को हुए 2 साल बीत चुके हैं. दोनों नए पतिपत्नी सा जीवन जी रहे हैं. दोनों ही मिल कर संदीप के बेटे की शादी की तैयारी भी कर रहे हैं. वे अपने पुराने और विधवा और विधुर के जीवन के बारे में बात नहीं करते. उन को देख कर ऐसे लगता है जैसे इन की शादी पहले वाली ही है.

पहली शादी जैसे नहीं होते रस्मरिवाज

आज समाज में विधवा और विधुर ही नहीं, सिंगल रहने वाले लोगों के बीच भी विवाह होने लगे हैं. इस के 2 प्रमुख कारण हैं- पहला यह है कि आज महिला और पुरुष दोनों ही अपनी हैल्थ और फिटनैस का पहले से ध्यान रखते हैं. समय के हिसाब से फैशन और लाइफस्टाइल में भी बेहतर दिखते रहते हैं.

महिला और पुरुष दोनों ही अधिक उम्र में पहले जैसे जवान बने रहते हैं. इस कारण से दोनों के ही दिलों में पहले जैसी हसरतें उमड़ती रहती हैं. ज्यादातर लोग अपने गांवघर से दूर रहते हैं. ऐसे में उन के ऊपर अपने समाज व नातेरिश्तेदारों का दबाव नहीं रहता है. इस वजह से वे अपने फैसले खुद करते हैं.

इन में से कई ऐसे होते हैं जिन के बच्चे स्कूलकालेज में पढ़ने वाले होते हैं. वे होस्टल में होते हैं. उन का भी मांबाप के जीवन में दखल नहीं रहता. दोनों में से कोई एक भी अगर आर्थिक रूप से मजबूत है तो उन का दोस्त ही उन का समाज होता है.

ये लोग अपने जीवन में दूसरों का दखल कम ही रखते हैं. ये ज्यादातर बिना विवाह के साथसाथ रहते हैं. अगर विवाह करते भी हैं तो यह पहली शादी जैसा नहीं होता है. ऐसे लोग शादी कर के सोशल मीडिया के जरिए ही समाज को यह बता देते हैं कि उन्होंने शादी कर ली है. उस के बाद दोनों अपने बेहद करीबी लोगों को होटल में पार्टी दे कर, केक काट कर शादी की रस्म को बेहद सादगी से पूरा करते हैं.

न बैंड न बाजा न कोई पंडित

विधवाविधुर से विवाह में न कोई बैंड बजता है न बाजा और बरात होती है. इन के रिश्ते घरपरिवार के लोगों की जगह पर ये खुद खोजते हैं. इस में पंडित का रोल भी नहीं होता. कारण यह कि कुंडली देख कर इन की शादी नहीं होती है.

शादी में भी अग्नि के सामने 7 फेरे नहीं होते हैं. ज्यादातर लोग दो फूलों की माला पहन कर केक काट लेते हैं. पतिपत्नी जैसी जयमाला वाली फोटो खिंचवा लेते हैं. बहुत हुआ तो अपनी आस्था के अनुरूप किसी धार्मिक स्थल में हो आते हैं.

अधिकतर लोग तो पहले लोगों को बताते ही नहीं हैं. धीरेधीरे लोगों को उन को देख कर ही सम?ा आता है. वही विधवा और विधुर शादी कर पाते हैं जिन के जीवन में नातेरिश्तेदार और समाज का दखल कम होता है. जिन के जीवन में ऐसे दखल होते हैं वे कभी शादी नहीं कर पाते हैं.

बहुत सारे ऐसे विधवाविधुर हैं जो एकदूसरे से शादी तो करना चाहते हैं पर वे समाज और नातेरिश्तेदारों के दबाव में होते हैं. उन को लगता है कि घरपरिवार और समाज के लोग क्या कहेंगे, यह सोच कर ऐसे लोग शादी करने का कदम नहीं उठा पाते हैं.

पहली शादी घरपरिवार के लोगों की मरजी और पहल पर होती है. लेकिन यह शादी विधवाविधुर की अपनी मरजी पर होती है. घरपरिवार के लोगों का कम ही मन होता है कि ये लोग शादी करें.

इस में जायदाद और दूसरी जिम्मेदारियां अधिक होती हैं. घरपरिवार के लोगों को लगता है कि जो भी नया व्यक्ति आता है वह अपने हित देखता है. ऐसे में वे ऐसी शादी की पहल नहीं करते हैं, लेकिन जब विधवाविधुर शादी कर ही लेते हैं तो वे अपनी मौन सहमति दे देते हैं.

वर्किंग स्पाउस से बन गए स्पाउस

फैशन फोटोग्राफर रहे अमित की पत्नी का निधन 40 साल की उम्र में हो गया था. वह अकेले ही जीवन गुजार रहा था. ऐसे में नीता नामक एक औरत मौडलिंग के लिए फोटो शूट कराने उस के पास आती है. धीरधीरे दोनों के बीच दोस्ती होती है. फिर नीता अमित के बिजनैस में मदद देने लगती है.

नीता पढ़नेलिखने में होशियार थी. उस ने फोटोग्राफी को एक बिजनैस का रूप दे दिया. अब दोनों के बारे में कोई पूछता तो दोनों ही कहते कि वे वर्किंग स्पाउस हैं. एकसाथ काम करते करीब 4 से 5 साल निकल गए.

एक दिन दोनों ने तय किया कि अब वे शादी कर लेंगे. 45 साल की उम्र में नीता और अमित वर्किंग स्पाउस से स्पाउस बन गए. नीता का बेटा अब दोनों के साथ रहता है. कम उम्र में दोनों पहले पतिपत्नी जैसे दिखते हैं. लेकिन इन की भी शादी फोटो शूट से शुरू होती है और होटल की पार्टी में केक काट कर पूरी हो जाती है.

ऐसे उदाहरण एकदो नहीं हैं. आज के समय में 50 से 65-70 साल तक आदमी की शादी किसी को चौंकाती नहीं है. 65 साल की औरत भी खुद को इस तरह से मेंटेन कर के रखती है कि वह 55 साल की लगती है. ऐसे में जिन के बच्चे या तो होते नहीं या जिन के बच्चे अलग अपनी गृहस्थी बसा लेते हैं, वे अपनी शादी के फैसले करने लगे हैं.

बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिन के बच्चे विदेशों में रह रहे हैं. वे वहां के हिसाब से सोचते हैं. वे भी ऐसी शादी का विरोध नहीं करते, जिस की वजह से विधवाविधुर को शादी करने का फैसला करने में दिक्कत नहीं होती है.

पूरी होती हैं कानूनी जरूरतें

इस उम्र में अकेलापन बहुत होता है. विधवाविधुर के बारे में लोगों को लगता है कि बुढ़ापे में इन की शारीरिक जरूरतें तो होती नहीं, फिर शादी की क्या जरूरत? असल में इस उम्र में शादी शारीरिक जरूरत नहीं, मानसिक जरूरत होती है. अकेलापन दूर करने के लिए होती है.

बुढ़ापे में अपने ही बेटाबेटी साथ नहीं देते. सब की निगाह बूढ़े होते मातापिता की जायदाद पर लगी होती है. ऐसे में विधवाविधुर शादी उन की अपनी जरूरत की वजह से होती है. दोनों ही पहली शादी जैसे रस्मरिवाज भले ही नहीं करते पर कानूनी अधिकार और जिम्मेदारी की लिखापढ़त पूरी करते हैं जिस से कि दोनों में से किसी के अकेले होने के बाद उन को जायदाद में हक मिल सके.

कई बार यह होता है कि विधवाविधुर की शादी में भले ही कोई विरोध न करे, लेकिन जैसे ही दोनों में से किसी एक की मौत होती है, उस के घरपरिवार के लोग हिस्सा और अधिकार मांगने आ जाते हैं.

विधवाविधुर की शादी में भले ही पहली शादी जैसा माहौल न रहता हो पर कानूनी लिखापढ़त जरूर होती है. धीरेधीरे विधवाविधुर की शादी कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गई है. अब समाज के लोग भी इस का विरोध नहीं करते. पहले ऐसी शादियों की बड़ीबड़ी खबरें छपती थीं, समाज में चर्चा का विषय होती थीं लेकिन अब लोग इस को मुद्दा नहीं बनाते.

उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले में ऐसी ही एक शादी के दूसरे दिन दूल्हा अपना काम करता मिला. उस के लिए कुछ नया नहीं होता. बस, जरूरत इस बात की होती है कि लोग अपना फैसला खुद करें. तभी यह हो सकता है. पहली शादी की तरह विधवाविधुर की शादी में समाज और घरपरिवार पहल नहीं करता है.

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