‘लखनऊ हम पे फिदा और हम फिदाए लखनऊ’ कुछ ऐसा है लखनऊ. केवल पर्यटक इस शहर पर फिदा नहीं होते, यह शहर भी पर्यटकों पर फिदा हो जाता है. लखनऊ  का नाम आते ही अदब और तहजीब की एक रवायत सी महसूस होने लगती है. नवाबी और आधुनिक दौर की कला व संस्कृति का अद्भुत नमूना यहां आज भी देखने को मिलता है. अब नवाब तो लखनऊ में रहे नहीं पर बातचीत का मधुर और तहजीबभरा लहजा आज भी सुनने को मिलता है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ घूमने के लिहाज से  ऐतिहासिक जगह है. नवाबी शासनकाल और अंगरेजी शासनकाल में बनी यहां की इमारतें वास्तुकला का बेजोड़ नमूना हैं. 1775 से 1875 तक लखनऊ अवध राज्य की राजधानी था. नवाबीकाल में अदब और तहजीब का विकास हुआ. लखनऊ की रंगीनियों और शानोशौकत के किस्से भी खूब चटखारे ले कर सुने व सुनाए जाते हैं.

लखनऊ में पश्चिमी खाने से ले कर देशी खाने तक का निराला स्वाद लिया जा सकता है. यहां पर बहुत तेजी के साथ बड़े रेस्तरां और मिठाइयों की दुकानें खुली हैं. मधुरिमा और छप्पन भोग इन में से बेहद खास हैं. यहां पर लखनवी अंदाज की मिठाइयां जैसे इमरती, मलाईपान, और लड्डू खूब लुभाती हैं. खाने के लिए चाट, समोसे, कचौड़ी, पूरी और कुल्फी का आनंद लिया जा सकता है. टुंडे कबाब के यहां कबाब और बिरयानी का स्वाद लिया जा सकता है. फलों में लखनऊ दशहरी आम और मिठाई में गुलाब रेवड़ी के लिए भी मशहूर है.

हजरतगंज बाजार बहुत ही मशहूर है. इस के अलावा अमीनाबाद, चौक, आलमबाग, महानगर और गोमती नगर के बाजार भी बहुत अच्छे हैं. लखनऊ की चिकनकारी की पूरी दुनिया दीवानी है. लखनऊ की खरीदारी में सब से अच्छी बात यह है कि यहां हर बजट में सामान मिल जाता है. ऐसे में कम बजट में भी जरूरत की सामग्री मिल जाती है. अब तो यहां पर बहुत सारे शौपिंग मौल हैं जहां हर ब्रैंड उपलब्ध हैं. मनोरंजन के लिए सिंगल स्क्रीन सिनेमा के साथ ही साथ मल्टीपलैक्स में भी फिल्में देखी जा सकती हैं.

घूमने के हिसाब से ड्रीम वर्ल्ड एम्यूजमैंट पार्क, आनंदी और ड्रीम वर्ल्ड वाटर पार्क, ड्रीम वैली, जनेश्वर मिश्र पार्क, लोहिया पार्क, चिड़ियाघर जैसी जगहें भी हैं, जो पर्यटकों को प्रकृति का सुखद एहसास कराती हैं. अंबेडकर पार्क और कांशीराम पार्कआधुनिक कला के बड़े उदाहरण हैं. ये लखनऊ को अलग दुनिया में ले जाते हैं. गोमती रिवर फ्रंट अपनी तरह का अलग निर्माण है जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का सब से बड़ा केंद्र है. दूसरे शहरों के मुकाबले लखनऊ में ट्रांसपोर्ट सस्ता है. आटो रिक्शा, साइकिल रिक्शा, बैटरी रिक्शा, टैक्सी, कैब, सिटी बस और अब लखनऊ मैट्रो भी आवागमन की सुविधा को बढ़ाने को तैयार हैं. पर्यटकों के रुकने के हिसाब से देखें तो लखनऊ में पांचसितारा होटलों से ले कर छोटे बजट के तमाम होटल हैं. ये चारबाग रेलवेस्टेशन और मुख्य बाजारों के आसपास ही बने हैं. अमौसी हवाईअड्डा मुख्य शहर से 12 किलोमीटर ही दूर है. चारबाग में ही प्रमुख बसअड्डा है. अब साधारण बसों के साथ ही साथ एसी सुविधा वाली बसें भी समयसमय पर उपलब्ध हैं. ऐसे में लखनऊ से किसी भी प्रमुख पर्यटक शहर तक पहुंचा जा सकता है.

घूमने की जगहें

लखनऊ घूमने जो भी आता है वह सब से पहले बड़ा इमामबाड़ा (भुलभुलैया) जरूर देखना चाहता है. यह लखनऊ की सब से मशहूर इमारत है. चारबाग रेलवेस्टेशन से लगभग 6 किलोमीटर दूर बना इमामबाड़ा वास्तुकला का अद्भुत नजारा है. बड़ा इमामबाड़ा और छोटे इमामबाड़ा के बीच के रास्ते में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं. इन को पिक्चर गैलरी, घड़ी मीनार और रूमी दरवाजा के नाम से जाना जाता है. इन सब जगहों पर जाने के लिए टिकट बड़े इमामबाड़े से ही एकसाथ मिल जाता है. इमामबाड़े से थोड़ी ही दूर पर शहीद स्मारक बना हुआ है.

लखनऊ का चिड़ियाघर बहुत ही आकर्षक बना हुआ है. जानवरों और पक्षियों के अलावा सापों व मछलियों के रहने के लिए उन के अलगअलग घर बने हुए हैं. बच्चों को घुमाने के लिए छोटी रेलगाड़ी का इंतजाम किया गया है. यहां एक राज्य संग्रहालय भी है जिस में ऐतिहासिक सामानों को संग्रहित किया गया है. लखनऊ को बागों और पार्कों का शहर भी कहा जाता है. बोटैनिकल गार्डन में गुलाब सहित तमाम दूसरे पौधों की कई किस्में देखने को मिल जाती हैं. इस के अलावा हाथी पार्क, गौतम बुद्धा पार्क, नदिया किनारे पार्क, पिकनिक स्पौट, लोहिया पार्क और डा. अंबेडकर पार्क भी घूमने के लिहाज से अच्छी जगहें हैं.

अमीनाबाद में इमरती और पूरीकचौड़ी अमीनाबाद लखनऊ का सब से मशहूर बाजार है. यहां पर्यटक किफायती खरीदारी कर सकता है. अमीनाबाद की चाट, कुल्फी के साथ इमरती और पूरीकचौड़ी मशहूर हैं. मधुरिमा मिठाई शौप में देशी घी की इमरती और पूरीसब्जी सब से ज्यादा पसंद की जाती हैं.

छप्पनभोग का जलेबा और चाट : चाट खाने वालों को लखनऊ बहुत पसंद आता है. यहां के सदर बाजार का छप्पन भोग का जलेबा, कुल्फी और चाट बहुत मशहूर है.

बास्केट चाट और बाजपेयी की पूरीकचौड़ी :  लखनऊ के मशहूर हजरतगंज में रौयल कैफे और मोती मिलन में बास्केट चाट और बाजपेयी की पूरीकचौड़ी का मजा लिया जा सकता है.

संगमनगरी इलाहाबाद

इलाहाबाद उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक नगर है. इस का जिक्र मशहूर चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रावृत्तांत में भी मिलता है. उस समय इस को प्रयाग के नाम से जाना जाता था. यह शहर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर बसा है. यहां एक रेतीला मैदान है जहां पर कुंभ का मेला लगता है. इलाहाबाद में कई ऐतिहासिक इमारतें बनी हैं.

इन में से कुछ का निर्माण मुगलकाल में हुआ तो कुछ का निर्माण अंगरेजी शासनकाल में किया गया था. संगमतट पर बना अकबर का किला ऐतिहासिक इमारत है. इस किले में भूमिगत पातालपुरी मंदिर और प्राचीन अक्षय वट हैं. किले के सामने एक अशोक स्तंभ भी बना है. इस के बारे में कहा जाता है कि लौर्ड कर्जन द्वारा कहीं और से ला कर इस को यहां पर स्थापित किया गया था. किले में जोधाबाई का रंगमहल भी बना हुआ है.

इलाहाबाद में संगम के पास घूमते समय पंडों और पुजारियों से सावधान रहने की जरूरत होती है. ये पर्यटकों से संगम दर्शन के बहाने गंगा के बीच में ले जा कर उन से मनमाना चढ़ावा चढ़ाने को कहते हैं.

खुसरो बाग बड़ेबड़े पत्थरों की चारदीवारी से घिरा मुगलकाल की अद्भुत कला का नमूना है. लकड़ी के विशाल दरवाजे वाला खुसरो बाग जहांगीर के पुत्र खुसरो द्वारा बनवाया गया था. इस में अमरूद और आंवले के पेड़ों का  बगीचा है. खुसरो और उस की बहन सुलतानुन्निसा की कब्रों पर बना ऊंचा मकबरा भी मुगलकालीन स्थापत्यकला का अद्भुत नमूना है.

आजाद पार्क को कंपनी बाग के नाम से भी जाना जाता है. फूलों से सजा यह पार्क देखने लायक है. पार्क में लगी मखमली घास बैठने वालों को आरामदायक लगती है. आनंद भवन इलाहाबाद की जानीमानी इमारत है. यह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पैतृक आवास था. इस को अब एक संग्रहालय का रूप दे दिया गया है. इस में एक भव्य तारामंडल बना हुआ है. इस इमारत को गांधीनेहरू परिवार की स्मृतियों की धरोहर के रूप में देखा जाता है.

घाटों और साड़ियों का शहर वाराणसी

बनारस की साड़ियों जितनी मशहूर है बनारस की कचौड़ी गली. बनारस में कचौड़ी नाश्ते में सब से अधिक पसंद की जाती है. देश में बहुत ऐसे शहर हैं जिन के नाम से साड़ियां मशहूर हैं. वाराणसी ऐसा ही शहर है. यहां की बनारसी साड़ियां पूरी दुनिया में मशहूर हैं. हर तरह के बजट में ये साड़ियां मिलती हैं. साड़ियों के साथ ही साथ वाराणसी की पहचान गंगा के किनारे बने बहुत सारे घाट भी हैं. सुबह के समय सूर्य की किरणें जब नदी के जल पर पड़ती हैं तो घाटों की शोभा देखते ही बनती है. वाराणसी की सुबह मशहूर है, इसलिए उत्तर प्रदेश में शामेअवध यानी लखनऊ के साथसाथ सुबहेबनारस भी मशहूर है. अर्द्धचंद्राकार गंगा के किनारे लगभग 80 घाट बने हुए हैं. यह शहर वरुणा और अस्सी नदियों के बीच बसा हुआ है, इसलिए इस को वाराणसेय कहा जाता था. जो बाद में वाराणसी हो गया. अस्सी और वरुणा नदियां तो अब यहां नहीं दिखतीं लेकिन इन की यादें यहां रहने वालों के दिलों में बसी हुई हैं.

वाराणसी भी कला, संस्कृति और शिक्षा का केंद्र है. संगीत इस शहर को विरासत में मिला हुआ है. शास्त्रीय संगीत के बड़े कलाकार यहीं के रहने वाले हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए विदेशों से भी छात्र आते हैं. पंडोंपुजारियों का आतंक यहां भी कायम है. पर्यटकों को इन से बचने की जरूरत है.

बनारस की कचौड़ी गली

बनारस आएं और यहां की कचौड़ी गली न जाएं, यह हो नहीं सकता. कचौड़ी गली विश्वनाथ मंदिर और मणिकर्णिका घाट के बीच पड़ती है. काफी समय पहले यह वैसी ही थी जैसे दिल्ली में परांठे वाली गली है. पहले यहां पर 40 से 50 कचौड़ी की दुकानें होती थीं. अब कचौड़ी गली में केवल 4 से 5 दुकानें ही बची हैं. यहां कचौड़ी के साथसाथ क्राफ्ट और बनारसी साड़ियों की दुकानें खुल गई हैं. इस के बाद भी कचौड़ी गली बहुत मशहूर है. यहीं पास के गणपति गैस्ट हाउस के शंभूनाथ त्रिपाठी कहते हैं, ‘‘देशी पर्यटक ही नहीं, विदेशी पर्यटक भी कचौड़ी गली के प्रशंसक हैं.’’

कत्थक आर्टिस्ट गुजंन शुक्ला कहते हैं, ‘‘कचौड़ी गली से जुड़ी कई और गलियां हैं. कुंज गली में बनारसी साड़ी के साथ कचौड़ी भी बिकती है. इस में राम भंडार, बाबूलाल और भरतशाह की कचौड़ी की दुकानें हैं.’’ अब कचौड़ी के साथ ही साथ यहां की आलू की टिक्की, पानी के बताशे और टमाटर चाट मशहूर हैं. कचौड़ी बनारस का सब से पंसद किया जाने वाला नाश्ता है. ऐसे में हर पर्यटक को यहां की कचौड़ी गली पसंद आती है.

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