Hindi Story : शहीद शेखर की पत्नी पारुल अपनी आकर्षक सास पर पति के ही दोस्त संदीप को उपहार लुटाते देख अंदर तक जलभुन गई थी. सास और संदीप आखिर क्या गुल खिलाने की तैयारी कर रहे थे? पारुल ने मां से कहा, ‘‘मां, आप से मैं ने कह दिया कि मैं शादी करूंगी तो सिर्फ शेखर से. आप लोग मेरी बात क्यों नहीं मानते,’’ और रोंआसी हो कर सोफे पर बैठ गई. ‘‘पारुल बेटी, अभी तू छोटी है, अपना बुराभला नहीं सोच सकती,’’ मां बोलीं, ‘‘अजय में क्या बुराई है? अच्छा, पढ़ालिखा और स्मार्ट लड़का है, खातापीता घर है और उस का अपना करोड़ों का बिजनैस है.

तू वहां रानी बन कर रहेगी.’’ ‘‘मां, शेखर में क्या बुराई है?’’ पारुल ने कहा, ‘‘वह सेना में है. मैं मानती हूं कि उस की मां अध्यापिका हैं, पिता की मौत हुए बरसों बीत गए हैं, उस के पास करोड़ों रुपया नहीं है, फिर भी वह मुझे जीजान से प्यार करता है और उस की मां को तो मैं बचपन से ही जानती हूं. मुझे कितना प्यार करती हैं. आप भी तो यह जानती हैं कि वे लोग मुझे खुश रखेंगे.’’ मां बोलीं, ‘‘बेटी, तू मेरी बात समझ क्यों नहीं रही है? हम तेरे भविष्य के बारे में अच्छा ही सोचेंगे. तू क्यों इतनी जिद कर रही है?’’ पारुल ने कहा, ‘‘मां, आप ने भैया की पसंद की शादी की है और वह लड़की गरीब घर की ही है.

ये भी पढ़ें- कसौटी: जब झुक गए रीता और नमिता के सिर

जब मैं अपनी पसंद की शादी करना चाह रही हूं तो यह लड़की और लड़के का भेद कैसा? जब आप लोग गरीब घर की लड़की ला सकते हैं तो अपनी लड़की की शादी गरीब घर में क्यों नहीं कर सकते? मुझे धनदौलत का बिलकुल लालच नहीं है. मैं तो इतना चाहती हूं कि मेरा होने वाला पति मुझे प्यार करे और दो वक्त की रोटी खिला सके.’’ पारुल की जिद के आगे घरवालों की एक न चली. उस के पिता रमेश ने कहा, ‘‘ठीक है, हम अपनी बेटी की शादी उस की मरजी से ही करेंगे,’’ पारुल और शेखर की शादी धूमधाम से हो गई. शेखर की मां ने पारुल की मां से कहा, ‘‘बहनजी, हमें आप की बेटी मिल गई, बस, हमें और कुछ दानदहेज नहीं चाहिए. हमारे लिए तो पारुल ही सब से बड़ा दहेज है.’’ पारुल की मां कांता ने कहा, ‘‘बहनजी, हम अपनी बेटी को दानदहेज तो देंगे ही.

आप बताइए, आप को और क्या चीज पसंद है, हीरे का सैट या कुंदन का, वह भी हम आप को देंगे. आखिर हम लड़की वाले हैं.’’ शेखर और पारुल यह सब सुन रहे थे. शेखर ने हाथ जोड़ कर पारुल की मां से कहा, ‘‘मम्मी, मैं और मेरी मां दानदहेज लेने और देने दोनों के खिलाफ हैं, इसलिए हम आप से क्षमा चाहते हैं. अगर आप की बेटी पारुल कुछ लेना चाहती हैं तो हमें कोई आपत्ति नहीं, लेकिन हमें कुछ नहीं चाहिए.’’ पारुल ने अपनी मम्मी से कहा, ‘‘मां, जब आप जानती हैं कि शेखर का परिवार दानदहेज लेना नहीं चाहता तो आप जिद मत कीजिए. आप जानती हैं कि मुझे भी गहने पहनने का शौक नहीं है, इसलिए मुझे भी कुछ नहीं चाहिए.’’ यह सुन कांता चुप रह गई. पारुल अपनी ससुराल आ कर बहुत खुश थी. शेखर और उस की मां पारुल को बहुत प्यार करते थे और उसे किसी चीज की कमी नहीं होने देते थे.

ये भी पढ़ें- बड़ा चोर: प्रवेश ने अपने व्यवहार से कैसे जीता मां का दिल?

शेखर की मां सरोजिनी जिस कालेज में पढ़ाती थीं वहां के सभी अध्यापकों और कर्मचारियों को अपने यहां दावत पर बुलाया, अपनी बहू से मिलवाया और उस की खूब तारीफ की. सरोजिनी भी बहुत हिम्मत वाली महिला थीं. शेखर जब छोटा था तभी उन के पति की दुर्घटना में मौत हो गई थी. तब से उन्होंने शेखर को मांबाप दोनों का प्यार दिया और स्वयं को भी अकेले जीवनपथ पर साहसपूर्वक आगे बढ़ने के लिए तैयार किया. वे लगभग 45 साल की होंगी, लेकिन उन्होंने अपनेआप को इतना फिट रखा हुआ है कि कोई कह नहीं सकता कि वे शादीशुदा बेटे की मां हैं. कालेज के सभी छात्रछात्राएं उन्हें बहुत पसंद करते हैं. उन का चेहरा हमेशा खिला रहता है और फुरती इतनी है कि कालेज के हर कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं. पति के अभाव का गम तो उन्हें है ही परंतु उस गम के आगे झुकना उन्हें कतई पसंद नहीं. उन के पति पुलिस विभाग में थे और शादी के समय उन्होंने वचन लिया था कि मुझे कुछ हो गया तो तुम मेरे बाद इसी तरह मुसकराती रहना.

सरोजिनी को अपने पति को दिया हुआ वचन हमेशा याद रहता है और हर हाल में खुश रहती हैं. कालेज की सभी अध्यापिकाएं उन के रूप की चर्चा करते थकती नहीं और जिस दिन वे कालेज नहीं जातीं, उन्हें अच्छा नहीं लगता. अगर कभी 2-4 दिन न गईं तो छात्राएं उन के घर भी पहुंच जाती हैं यह कह कर कि आप के स्वास्थ्य के बारे में हमें चिंता हो रही थी इसलिए हम पूछने आए हैं. आप के बगैर पढ़ने को हमारा मन ही नहीं करता. सरोजिनी हर बार उन्हें चायनाश्ता करातीं और प्यार से विदा करतीं. पारुल अपने मम्मीपापा के यहां कभीकभी मिलने चली जाती. वहां वह सास और शेखर की खूब तारीफ करती. उस के मम्मीपापा को लगा कि उन्होंने बेटी की पसंद की शादी कर के अच्छा किया, क्योंकि वह बहुत खुश है. उस से पूछते कि किसी चीज की जरूरत हो तो बताना. लेकिन पारुल का हमेशा यही उत्तर रहता, ‘‘नहीं मां, मेरी सासुमां मेरा इतना खयाल रखती हैं, जैसे मैं एक दूध पीती बच्ची हूं.

हमेशा कहती हैं कि तुम्हारी अभी खेलनेखाने की उम्र है. मां, सचमुच ऐसी सास पा कर मैं धन्य हो गई हूं.’’ कांता और रमेश अपनी बेटी को इतना खुश देख कर फूले नहीं समाते. एक दिन शेखर अपने दोस्त संदीप को ले कर घर आया और मां तथा पारुल से मिलवाया. संदीप पारुल से मिल कर बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘यार शेखर, यह तो मेरे कालेज में पढ़ती थी. मैं इस से सीनियर था.’’ पारुल भी संदीप से मिल कर खुश हुई. संदीप ने बताया कि वह डाक्टर बन गया है और अपनी प्रैक्टिस करता है. संदीप को सरोजिनी अपने बेटे शेखर की तरह प्यार करती थीं. संदीप की मां नहीं थी और वह अकसर बचपन में शेखर के साथ उस के घर आताजाता रहता था. शेखर और संदीप दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे. पारुल इन की दोस्ती को देख कर बहुत प्रसन्न थी कि इन की बचपन की दोस्ती आज भी वैसी ही कायम है. एक दिन शेखर ने मां से कहा, ‘‘मां, आजकल पाकिस्तानी फौज ने कारगिल में गड़बड़ मचा रखी है.

हमारी यूनिट को भी कारगिल जाने का आदेश हो गया है.’’ सरोजिनी और पारुल ने जब शेखर को कारगिल जाने से मना किया तो वह बोला, ‘‘आप दोनों नहीं चाहतीं कि मैं एक सैनिक का कर्तव्य निभाऊं और एक बहादुर की तरह दुश्मनों को खदेड़ूं?’’ शेखर ने जाते समय संदीप से कहा, ‘‘यार, कभीकभी तुम घर पर आते रहना और मां तथा पारुल का ध्यान रखना.’’ शेखर चला गया. कारगिल की लड़ाई में बड़ी बहादुरी से लड़ा और शत्रुओं को खदेड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया. सरोजिनी और पारुल को शेखर की मौत का समाचार मिला तो वे दुख के मारे पागल हो गईं. पारुल को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि 2 दिनों पहले फोन पर शेखर से बात हुई थी तो उस ने कहा था कि कारगिल का युद्ध हम जीत चुके हैं और वह शीघ्र ही घर लौट आएगा. उसे लग रहा था कि मानो कोई उस के साथ मजाक कर रहा है. सरोजिनी की हालत पागलों जैसी हो रही थी और पारुल भी मारे गम के दुखी थी.

जब शेखर का शव लाया गया तो मानो पूरा हिंदुस्तान ही उन के घर में उमड़ आया हो. कालेज के सारे लोग तथा बच्चेबूढ़े, जिसे भी पता चलता सब दौड़े चले आते. दोस्त के जाने का गम संदीप भुला नहीं पा रहा था, लेकिन सरोजिनी और पारुल को उसे ही संभालना था. सो, अपने दुख को दबा कर उस ने दोनों से कहा कि हमारा शेखर देश के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ है. कितने लोग उसे श्रद्धांजलि देने आए हैं. हमें हिम्मत से काम ले कर उसे अंतिम विदाई देनी चाहिए. सेना के जवानों ने बड़ी धूमधाम से पूरे सैनिक सम्मान के साथ तोपों की सलामी से शेखर का अंतिम संस्कार किया. पारुल और सरोजिनी घर में अकेली रह गईं. अब सरोजिनी को ही पारुल को हिम्मत बंधाने का काम करना पड़ा, वे बोलीं, ‘‘बेटी, जाने वाला तो चला गया, तुम अब इस दुख से बाहर निकलने की कोशिश करो और स्वयं को मजबूत बनाओ.

मैं मां हूं और मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटी इस तरह गुमसुम बनी रहे. जो होनी को मंजूर था, वह हो गया, उस के आगे किसी का बस नहीं चलता.’’ सरोजिनी ने पारुल को अपनी बांहों में भर कर सीने से चिपटा लिया और कहा, ‘‘बेटी, मैं चाहती हूं तुम कुछ करो. घर में खाली बैठे रहने से तुम्हारा मन और भी उदास हो जाएगा. तुम्हारी पढ़ाई बीच में रह गई थी. अब तुम एमए की परीक्षा की तैयारी करो.’’ इस बीच पारुल के मातापिता उसे लेने के लिए आए तो सरोजिनी के कुछ बोलने से पहले पारुल बोल पड़ी, ‘‘डैडी, शेखर ने जाते समय इन की देखभाल की जिम्मेदारी मुझे सौंपी थी. सो, मैं इन्हें अकेले छोड़ कर नहीं जा सकती.’’ दोनों मायूस हो कर चले गए. सरोजिनी ने पारुल को अपने ही कालेज में दाखिला दिला दिया. पारुल की मेहनत का नतीजा यह हुआ कि उस ने एमए प्रथम श्रेणी से पास करने के बाद बीएड की परीक्षा भी पास कर ली. धीरेधीरे समय बीतने लगा. पारुल में भी आत्मविश्वास आने लगा और उस की नौकरी भी उसी कालेज में लग गई जहां सरोजिनी पढ़ा रही थीं. इन सालों में संदीप उन के घर आताजाता रहता था और समयसमय पर आवश्यकता प़ने पर घर का जरूरी काम भी कर दिया करता था.

सरोजिनी ने महसूस किया कि संदीप पारुल में दिलचस्पी ले रहा है. वह किसी न किसी बहाने दोनों को अकेला छोड़ कर चली जातीं. संदीप सरोजिनी को मां की तरह बहुत प्यार करता था और दोनों ऐसे बातें करते जैसे कोई दोस्त हों. संदीप एक दिन सरोजिनी को साडि़यां दिखाने ले गया और बोला, ‘‘यह सब आप को पसंद आएंगी और आप इन में बहुत सुंदर लगेंगी.’’ पारुल को यह अच्छा नहीं लगा. वह मन ही मन अपनी सास से चिढ़ने लगी. फिर एक दिन संदीप एक हीरे का सैट लाया और बोला, ‘‘मैडम सरोजिनी, आप को यह सैट पहना हुआ देखने का मन है. यह आप पर बहुत जंचेगा.’’ सरोजिनी बोलीं, ‘‘अरे, संदीप, जो तुम्हें पसंद है वह हमें भी पसंद है.’’ यह सुन कर पारुल मन ही मन सोच रही थी कि इस बुढि़या को तो मैं देवी समझती थी और यह अब अपना असली रंग दिखा रही है. अपने शहीद बेटे शेखर की कमाई वह इन साडि़यों और हीरे के हारों में उड़ा रही है. पारुल ऊपर से तो कुछ न कहती, लेकिन उस के चेहरे को देख कर सरोजिनी साफ समझ रही थीं कि यह बात पारुल को पसंद नहीं आ रही है.

सरोजिनी ने कहा, ‘‘अरे, पारुल बेटी, मुझे कुछ काम याद आ गया. तुम संदीप को चाय पिलाओ, मैं अभी 2-3 घंटे में कालेज के काम को निबटा कर आती हूं,’’ इतना कह कर वे चली गईं. संदीप ने पारुल से कहा, ‘‘पारुल, तुम बहुत सुंदर हो, अपनी सेहत का खयाल रखा करो. शेखर को शहीद हुए आज 4 साल बीत गए हैं. देखो, तुम्हारी सासुमां तुम्हारे बारे में कितना सोचती हैं.’’ पारुल मन ही मन संदीप को चाहने लगी थी और गुस्से को दबा कर बोली, ‘‘हां, वह तो मुझे दिखाई दे ही रहा है.’’ पारुल उठ कर संदीप के लिए चाय बनाने जाने लगी तो कारपेट में उस का पांव फंस गया और वह संदीप की गोद में जा गिरी. संदीप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. पारुल को लगा मानो वह कुछ पलों के लिए ही सही शेखर की बांहों में आ गई हो. उधर सरोजिनी एक पंडित को ले कर दाखिल हुई तो पारुल एकदम सिटपिटा कर खड़ी हो गई.

सरोजिनी ने कहा, ‘‘सदीप, पंडितजी ने 20 तारीख को शादी का मुहूर्त निकाला है.’’ पारुल दंग रह गई. इस उम्र में मांजी शादी करेंगी तो लोग क्या कहेंगे, परंतु मन मसोस कर रह गई. शादी के कार्ड छप कर आए तो सरोजिनी ने पारुल से कहा, ‘‘बेटी, यह कार्ड देख लो, मैं ने और संदीप दोनों ने मिल कर इसे चुना था. देखो, तुम्हें पसंद है या नहीं?’’ पारुल ने उत्तर दिया, ‘‘मम्मी, मेरे देखने न देखने से क्या फर्क पड़ता है? करनी तो आप को अपने मन की है.’’ थोड़ी देर बाद जब किसी काम से सरोजिनी अंदर चली गईं तो पारुल ने कार्ड उठा देखा और पढ़ा तो संदीप और पारुल के नाम छपे थे. यह देख कर वह दंग रह गई और रोने लगी. रोते हुए पारुल अंदर गई और सरोजिनी से लिपट कर बोली, ‘‘मम्मी, मैं तो न जाने आप के बारे में क्याक्या सोच रही थी. आप मुझे माफ कर देना.’’ सरोजिनी बोलीं, ‘‘बेटी, मैं सब जानती हूं कि संदीप तुम्हें चाहता है और तुम भी संदीप को पसंद करने लगी हो.

अरे पगली, संदीप तो मेरे बेटे की तरह है और यह सारा नाटक मैं ने और संदीप ने तुम्हारे मन का भाव जानने के लिए किया था. मैं तुम दोनों को इसलिए अकेला छोड़ कर चली जाती थी कि तुम दोनों एकदूसरे को जान लो.’’ पारुल सरोजिनी के पैरों पर गिर पड़ी और बोली, ‘‘मैं ने एक मां पर शक किया, मैं क्षमा के योग्य कभी नहीं हो सकती.’’ सरोजिनी बोलीं, ‘‘बेटी, दुनिया में तुम्हारे सिवा मेरा और कौन है. तुम तो मेरी बेटी भी हो और बेटा भी. यह मेरी तरफ से तुम्हारे नए जीवन के लिए एक छोटी सी भेंट है. शेखर की मौत के बाद उसे वीर सम्मान के साथ जो 20 लाख रुपए मिले थे, उन का ड्राफ्ट मैं ने तुम्हारे नाम से बनवाया था.’’ पारुल को इस बात का बिलकुल पता नहीं था. वह तो मन ही मन सोच रही थी कि सास उन्हीं पैसों से सबकुछ खरीद रही हैं जो उस के पति के मरने के बाद उन्हें मिले थे.

आज उसे अपनी गलत सोच पर बहुत पछतावा हो रहा था. पारुल और संदीप का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ. विवाह के बाद दोनों खुशीखुशी रहने लगे. पारुल ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने शिखा रखा. उन का घर सरोजिनी के घर के पास ही था और दिनरात सरोजिनी से मिलते रहते थे. पारुल ने अपनी बेटी अपनी मां सरोजिनी के कदमों में डाल दी और बोली, ‘‘मां, मैं चाहती हूं कि इसे आप अपनी छत्रछाया में रखें और अपने जैसा बनाएं.’’ सरोजिनी ने आगे बढ़ कर शिखा को अपने गले से लगा लिया और उस पर चुंबनों की बौछार करने लगीं.

लेखिका- सुनीता कालरा 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...