वैज्ञानिक, पादप सुरक्षा, कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार, गोरखपुर धान की नर्सरी की तैयारी करने के लिए हलकी व उर्वरक भूमि को चुनते हैं, जिस से पौधों का विकास अच्छी तरह से हो सके और इस से रोपाई के लिए उखाड़ते समय जड़ें कम खराब होती हैं. रोपाई करने से 20-25 दिन पहले नर्सरी तैयार करनी चाहिए. देर से पकने वाली प्रजातियों की नर्सरी मई के आखिरी हफ्ते से जून के पहले हफ्ते तक और जरूरी पकने वाली प्रजातियों की नर्सरी 15 जून के आसपास तैयार करते हैं. बीज शोधन * नर्सरी डालने से पहले बीज शोधन जरूर कर लें.

* जीवाणु झुलसा या जीवाणुधारी झुलसा रोग की समस्या हो, तो वहां पर 30 किलोग्राम बीज के लिए 6 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसीन सल्फेट या 40 ग्राम प्लांटोमाइसीन को मिला कर पानी में रातभर के लिए भिगो दें. दूसरे दिन छाया में सुखा कर नर्सरी डालें. यदि इन की समस्या नहीं है, तो 25 किलोग्राम बीज को रातभर पानी में भिगोने के बाद दूसरे दिन निकाल कर फालतू पानी निकल जाने के बाद 75 ग्राम थीरम या 60 ग्राम कार्बंडाजिम को 5-8 लिटर पानी में घोल कर बीज में मिला दिया जाए. इस के बाद छाया में अंकुरित कर के नर्सरी में डाला जाए. * बीज शोधन के लिए 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज ट्राईकोडर्मा का इस्तेमाल करें.

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नर्सरी – एक हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई के लिए 700-800 वर्गमीटर क्षेत्रफल में महीन धान का 30 किलोग्राम, मध्यम धान का 35 किलोग्राम और मोटे धान का 40 किलोग्राम बीज पौध तैयार करने के लिए काफी होता है.

* ऊसर भूमि में यह मात्रा सवा गुना कर दी जाए.

* एक हेक्टेयर नर्सरी से तकरीबन 15 हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई होती है.

* समय से नर्सरी में बीज डालें और नर्सरी में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन व 50 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

* ट्राईकोडर्मा का एक छिड़काव नर्सरी लगने के 10 दिन के भीतर कर देना चाहिए.

* बोआई के 10-14 दिन बाद एक सुरक्षात्मक छिड़काव रोग व कीटों के बचाव के लिए करें.

* खैरा रोग के लिए एक सुरक्षात्मक छिड़काव 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट का 20 किलोग्राम यूरिया या 2.5 किलोग्राम बुझे हुए चूने के साथ 1,000 लिटर पानी के साथ प्रति हेक्टेयर की दर से पहला छिड़काव बोआई के 10 दिन बाद और दूसरा 20 दिन बाद करना चाहिए.

* सफेदा रोग के नियंत्रण के लिए 4 किलोग्राम फेरस सल्फेट का 20 किलोग्राम यूरिया के घोल के साथ मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

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* झोंका रोग की रोकथाम के लिए 500 ग्राम कार्बंडाजिम 50 फीसदी डब्लूपी का 700 से 800 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें.

* भूरे धब्बे के रोग से बचने के लिए 2 किलोग्राम मैंकोजेब एम. 45 फीसदी डब्लूपी का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* नर्सरी में लगने वाले कीटों से बचाव के लिए 1.25 लिटर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें. नर्सरी में पानी का तापक्रम बढ़ने पर उसे निकाल कर दोबारा पानी देना तय करें. समय से रोपाई

* 130-140 दिन में पकने वाली धान की प्रजातियों की रोपाई जून के तीसरे हफ्ते से जुलाई के मध्य तक जरूर कर लेनी चाहिए, वरना उस के बाद उपज में लगातार कमी होने लगती है. यह कमी 30-40 किलोग्राम प्रतिदिन प्रति हेक्टेयर होती है.

* जल्दी पकने वाली प्रजातियों की रोपाई जून के तीसरे हफ्ते से जुलाई के आखिरी हफ्ते तक की जा सकती है.

* देर से पकने वाली प्रजातियों की रोपाई जुलाई के आखिरी हफ्ते तक की जानी चाहिए.

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* ज्यादा उपज देने वाली सुगंधित किस्मों की रोपाई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिए. क्वारी और कार्तिकी धान की बौनी प्रजातियों को 21-25 दिन की पौध की रोपाई के लिए सही होती है.

* देशी और देर से पकने वाली प्रजातियों को 30-35 दिन की पौध रोपाई के लिए सही होती है.

* ऊसर में रोपाई के लिए 35 दिन की पौध का इस्तेमाल करें और एक जगह पर 2 से 3 पौधे लगाएं और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 15 सैंटीमीटर रखी जाए.

* जल्दी, मध्यम व देरी से पकने वाली प्रजातियों की नर्सरी की रोपाई उलट हालात में क्रमश: 30-35, 40-45 व 50-55 दिनों में की जा सकती है. स्वर्णा, सोना महसूरी व महसूरी की रोपाई मई के आखिरी से 15 जून तक कर देनी चाहिए. देरी से रोपाई करने से फूल आने में मुश्किल होती है. उचित गहराई व दूरी पर रोपाई

* पौध की रोपाई 3-4 सैंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए. साधारण उर्वरा भूमि में पंक्तियों व पौधों की दूरी 20×10 सैंटीमीटर और 20×15 सैंटीमीटर रखें. एक जगह पर 2-3 पौध लगाने चाहिए.

* यदि रोपाई में देर हो जाए, तो एक जगह पर 3-4 पौध लगाना उचित होगा. साथ ही, पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी 5 सैंटीमीटर कम कर देनी चाहिए.

* प्रति वर्गमीटर क्षेत्रफल में सामान्य हालात में 50 हिल जरूर होना चाहिए, वहीं ऊसर और देर से रोपाई के हालात में 65-70 हिल होना चाहिए. मैट टाइप नर्सरी उगाना

* धान की नर्सरी उगाने के लिए 5-6 सैंटीमीटर गहराई तक की खेत की ऊपरी सतह की मिट्टी एकत्र कर लेते हैं. इसे बारीक कूट कर छलनी से छान लेते हैं.

* जिस क्षेत्र में नर्सरी डालनी है, उस में अच्छी तरह पडलिंग कर के पाटा कर दें. उस के बाद खेत का पानी निकाल दें और एक या 2 दिन तक ऐसे ही रहने दें, जिस से सतह पर पतली परतें बन जाएं.

* एक मीटर चौड़ाई में जरूरत के मुताबिक लंबाई तक लकड़ी की पट्टियां लगा कर मिट्टी की 2 से 3 सैंटीमीटर ऊंची मेंड़ बनाएं और इस क्षेत्र में नर्सरी के लिए तैयार की गई छनी हुई मिट्टी के एक सैंटीमीटर ऊंचाई तक बिछा कर समतल कर दें और इस के ऊपर अंकुरित बीज 700 से 800 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से छिड़क दें.

* इस के ऊपर थोड़ी छनी हुई मिट्टी इस प्रकार डालें कि बीज ढक जाएं. उस के बाद नर्सरी को पुआल घास से ढक दें. 4-5 दिन तक पानी का छिड़काव करते रहें. नर्सरी में किसी तरह के उर्वरक का इस्तेमाल न करें. रोपाई

* 15 दिन की पौध रोपाई करने के लिए स्क्रेपर की मदद से (20-50 सैंटीमीटर के टुकड़ों में) पौध इस प्रकार निकाली जाए, ताकि छनी हुई मिट्टी की मोटाई तक का हिस्सा उठ कर आए.

* इन टुकड़ों को पैडी ट्रांसप्लांटर की ट्रे में रख दें. मशीन में लगे हत्थे को जमीन की ओर हलके झटके के साथ दबाएं. ऐसा करने से ट्रे में रखी पौध की स्लाइस 6 पिकर काट कर 6 जगहों पर खेत में लगा दें.

* फिर हत्थे को अपनी ओर खींच कर पीछे की ओर कदम बढ़ा कर मशीन को उतना खींचें, जितना पौध से पौध की (आमतौर पर 10 सैंटीमीटर) रखना चाहते हैं.

* हत्थे को दोबारा जमीन की आरे हलके झटके से दबाएं. इस तरह का दोहराव करते जाएं. इस से पौध की रोपाई का काम पूरा होता जाएगा. ज्यादा जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार, गोरखपुर के वैज्ञानिकों से संपर्क करें.

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