सरकारी आंकड़ों का भरोसा इस देश में कोई नहीं करता और इसलिए जब श्रम मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान 5,15,363 श्रमिक ही अपने घरों को लौटे तो संबद्ध संसदीय समिति ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया. उन्होंने अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा तो है पर जिस तरह सरकारी काम चलता है, यह कभी पता चलेगा ही नहीं. अधिकारी आराम से कह सकते हैं कि जिस ने अपने को पंजीकृत कराया वे तो उसी को मिलेंगे.

दूसरी शहर के दौरान चूंकि रेलें और बसें चलती रही थीं, मजदूरों को पैदल घरों को नहीं लौटना पड़ा था. वे रेलों में भर कर गए थे और कोविड भी साथ उपहार में ले गए थे. उन के द्वारा फैलाया गया कोविड सिर्फ खांसी और सांस की बिमारी की तरह दिखा और उसी में कितने मरे पता नहीं चल पाएगा पर जो आंकड़े अफसर दे रहे हैं वे पत्थर की लकीर बन गए हैं.

मजदूरों को आज भी भाग्य का शिकार मानने की जो आदत हमारी सरकार में है, यह ही हमारी दुर्गति का कारण है. हमारे मजदूर जब भी देश से बाहर जाते हैं जहां वे धर्म व जाति के चुंगल से निकल जाते हैं वे भरभर कर कमाने लगते हैं. जिसे विदेशी मुद्रा के भंडार पर देश बैठा है और जिस के बल पर हथियारों से ले कर पटेल की मूॢत को इंपोर्ट किया जाता है, वह इन मजदूरों द्वारा पेट काट कर विदेश से भेजा गए पैसे के कारण है. देश को 90 अरब डौलर (लगभग 63 लाख करोड़ रुपए) इन मजदूरों से विदेशी मुद्रा से मिलता है जिन की गिनती करने में हमारे अफसरों को हिचकिचाहट होती है.

अगर दूसरी लहर में गांवों में लौटे मजदूरों की सही गिनती बताई जाएगी तो पूछा जाएगा कि क्या इन का टैस्ट हुआ था? जाहिर है लाखों का टैस्ट न तो करना आसान था न किसी की मंशा थी. दूसरी लहर ने जिस बुरी तरह से देश को लपेटा था उसका एक बड़ा कारण जनता का बेमतलब में इधर से उधर जाना था जिस में पश्चिमी बंगाल के चुनाव और कुंभ शामिल हैं. अगर मजदूर लाखों में गांवों में पहुंचे तो लाखों तीर्थ यात्रि व भाजपा चुनाव प्रचारक चुनाव क्षेत्रों से अपनेअपने घरों में कोविड को लिए पहुंचे थे.

सही आंकड़े हरेक की पोल खोलते हैं और अफसरों को यह मालूम है कि आंकड़ों को छिपाना और बढ़ाचढ़ा कर पेश करना कितना आसान है क्योंकि कोई चैक नहीं कर सकता. मजदूरों का आज देश में फिर कोई हित देखने वाला नहीं बचा है, पहले लगा था कि वोट के अधिकार के कारण मजदूर अपने नेता चुन कर भेज करेंगे. पर अब जाति और धर्म का परदा उन की आंखों पर चढ़ा दिया गया है और उन्हें अपनी हालत तक की ङ्क्षचता नहीं रह गई है.

मजदूर देश की अर्थव्यवस्था की रीढ की हड्डी हैं और उन के बिना हमारा आधाअधूरा औद्योगिकरण भी मिट जाएगा और भयंकर बेरोजारी फैल जाएगी. लेकिन गिनती ही न करो तो एक चंगा है.

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