लेखक- परमादत्त झा
पटना अहमदाबाद ऐक्सप्रैस ट्रेन अपनी पूरी गति से चली जा रही थी. पटना रेलवे स्टेशन पर इस ट्रेन पर सवार जितेंद्र अपनी बेटी मालती के साथ अहमदाबाद जा रहे थे. वहां उन्हें बेटी को मैडिकल ऐडमिशन के लिए टैस्ट दिलवाना था.
एक प्राइवेट फर्म के क्लर्क जितेंद्र के लिए यह एक अच्छा अवसर था. सो, वे खुशी से जा रहे थे. वहीं उन की 17 वर्षीया बेटी मालती की खुशी का ठिकाना नहीं था. स्टेशन पर उन की पत्नी और बाकी बच्चे उन्हें छोड़ने आए थे. वे गाड़ी पर चढ़ गए. उन के सामने की बर्थ पर
2 लड़के विराजमान थे, 24-25 वर्ष के रहे होंगे, जींसपैंट व शर्ट में कम के ही लग रहे थे.‘‘पापा, आजकल किसी ने कुछ उलटीसीधी हरकत की तो एक मैसेज रेलमंत्री को करने से अपराधी फौरन पकड़ा जाता है,’’ मालती शायद इन बातों से अपना डर कम कर रही थी या उन युवकों को सुना रही थी.
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‘‘हां बेटा, आप ठीक कह रहे हो, हम अब पूरी तरह सुरक्षित हैं,’’ पिता बेटी की हां में हां मिला रहे थे.‘‘परंतु पापा, क्या वास्तव में कार्रवाई होती है या फिर नाम कमाने के लिए...’’ वह शायद बात को लंबा खींचना चाहती थी.
‘‘बेटा, कार्रवाई वास्तव में होती है और कई पकड़े भी जा चुके हैं,’’ यह पिता का स्वर था. इधर, ये दोनों युवक अपनी पुस्तक पढ़ने में लगे थे. एक बार भी उन की बातों की ओर ध्यान नहीं दिया था.
‘‘क्यों, आप दोनों का क्या मत है?’’ इन्होंने उन दोनों युवकों से प्रश्न किया. ‘‘जी, आप ने मु झ से कुछ कहा,’’ एक युवक बोला.‘‘हां, कार्य के संबंध में पूछा था,’’ जितेंद्र ने बात प्रारंभ करने की गरज से कहा. ‘‘सौरी, मैं सुन नहीं पाया था,’’ कहते वह इन की बात सुनने की मुद्रा में आ गया.
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