लेखिका -कविता वर्मा
प्रिया ने मुनीश को समझाने की बहुत कोशिश की, उसे घर वालों के विश्वास और उन के मानसम्मान की दुहाई दी, समाज के नियमों से बंधी ऊंचनीच समझाई. लेकिन मुनीश पर तो जैसे भूत सवार था. वह हर हाल में इस न्यू ईयर पार्टी में प्रिया के साथ जाना चाहता था. कलीग्स के सामने पोजिशन का सवाल बन गई थी यह पार्टी उस के लिए. बहुत सारी बातचीत, डिस्कशन के बाद भी जब प्रिया नहीं मानी तब उस ने अंतिम अस्त्र फेंका, “तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है.” अचानक हुए इस प्रहार से प्रिया अचकचा गई. लेकिन उस के पास इस का कोई स्पष्ट उत्तर न था.
उस का दिल कहता कि मुनीश कतई गलत नहीं कर सकता लेकिन दिमाग कहता यही सोच कर हजारोंलाखों लड़कियां अपने प्रेमियों पर भरोसा करती हैं और धोखा खाती हैं. प्रिया रोज अखबार, इंटरनैट पर ऐसे किस्से पढ़ती थी और आश्चर्य करती थी कि कैसे पढ़ीलिखी, नौकरीपेशा, शादीशुदा, बालबच्चेदार लड़कियांऔरतें इस तरह आंखें बंद कर भरोसा करती हैं. आखिरकार, प्रिया को भी फैसला करना पड़ा, फैसला क्या करना पड़ा बल्कि झुकना पड़ा, मुनीश की बात मानना पड़ा. पता नहीं यह मुनीश ने खुद के लिए जो विश्वास दिलाया था उस का नतीजा था, उस की खुद की भावुकता से उपजा भरोसा था या उस के रूठने व उसे खो देने का डर था कि प्रिया मान गई. उस ने किसी को कुछ नहीं बताया न अपने घरवालों को न सहेलियों को न ही औफिस के साथियों को. बस, मन के एक कोने में धुकधुकी लिए हुए कभी दिमाग को समझाते, कभी दिल पर भरोसा करते वह मुनीश के साथ चली गई.
अलीबाग के खूबसूरत बीच पर समुद्र की लहरों के बीच पैरों के नीचे से फिसलती रेत से लड़खड़ाती प्रिया मुनीश की मजबूत बांहों का सहारा पा कर खुद को एक अनूठी दुनिया में पा रही थी. अपनी कमर के इर्दगिर्द मुनीश की बांहों के साथ वे दोनों कब लो टाइड के साथ समुद्र के अंदर तक चले गए, पता ही न चला. वे दोनों भी तो एकदूसरे में गहरे तक खोए थे. कितने घंटे बीत गए थे, बाकी लोग बाहर जा चुके थे. सभी अपनेआप में खोए थे तो उन के बारे में कौन सोचता.
जब हाई टाइड की लहरों के थपेड़ों ने उन्हें चेताया, तब किनारे पर बने रैस्तरां की दूरी देख कर उन दोनों को अपनी स्थिति का एहसास हुआ. किनारे पर कुछ लोगों ने आवाज लगा कर उन्हें आगाह किया. लहरें तेज होती जा रही थीं जो कुछ ही देर में सिर से ऊपर जाने लगीं. प्रिया को तैरना नहीं आता था, वह बुरी तरह घबरा गई. लेकिन मुनीश ने उस का हाथ नहीं छोड़ा. वह उसे अपने आगे किए तेज लहर पर तैरता रहा. उस ने तेज लहरों के थपेड़े अपनी पीठ पर झेल लिए ताकि प्रिया को उन से चोट न लगे, वह उन से घबराए न. इस घटना ने प्रिया का मुनीश पर विश्वास पुख्ता किया.
सभी जोड़ों के लिए एकएक रूम बुक था, मुनीश और प्रिया के लिए भी. हाई टाइड से घबराए उन दोनों ने तब इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया. नहा कर तैयार होने तक वे क्या अनहोनी हो सकती थी, इस की आशंका से कांपते एकदूसरे को तसल्ली देते रहे. दिन में खाना खा कर दोनों ही सो गए ताकि शाम की पार्टी के लिए तरोताजा रहें.
नए साल की अगवानी करते और फिर खातेपीते एकदूसरे की बांहों में डांस करते करीब ढाई बजे वे अपने कमरे में पहुंचे. गुडनाइट करने के पहले मुनीश के कलीग ने आंखों से इशारा करते जब तिरछी चितवन से अपनी पत्नी को देखा तो प्रिया और मुनीश बुरी तरह झेंप गए. कमरे में आ कर एक बार फिर प्रिया का विश्वास डगमगा गया. वह पानी लाने के बहाने बाहर का एक चक्कर लगा आई जहां वह सो सके. वहां एक खुले हौल के सिवा कुछ नहीं था जहां पार्टी का बचा खाना, ड्रिंक्स, प्लेट, गिलास, बैलून, रिबन यहांवहां लुढ़क रहे थे. कमरों के बीच एक कौरीडोर था जो पीछे किचन में खुलता था और उस में होटल के वेटर हो सकते थे. इस से ज्यादा सुरक्षित तो वह मुनीश के साथ कमरे में है, उस ने सोचा और वह वापस कमरे में आ गई. तब तक मुनीश उस की कशमकश समझ कर कपड़े बदल कर चादर तान कर लेट गया था. प्रिया को आया देख बोला, “प्रिया, परेशान मत हो, विश्वास करो मेरा, दरवाजा बंद करो और सो जाओ.” प्रिया जब तक कपड़े बदल कर आई, मुनीश के खर्राटे कमरे में गूंज रहे थे.
“जो लड़की शादी के पहले किसी पराए लड़के के साथ एक कमरे में रात बिता सकती है, उस के संस्कारों के बारे में बात करना ही बेकार है. आप खुद ही सोचिए भाईसाहब, क्या आप ऐसी किसी लड़की को अपने घर की बहू बनाना पसंद करेंगे?” मुनीश के पापा की इस बात पर कमरे में सन्नाटा छा गया.
प्रिया को समझ नहीं आया कि उन्हें उस के और मुनीश के साथ बाहर जाने और एक कमरे में रुकने की बात आखिर पता कैसे चली? जरूर मुनीश ने ही बताया होगा लेकिन क्यों, क्या वह भी ऐसा ही सोचता है? नए साल की पार्टी से आने के बाद प्रिया पर एक अपराधबोध सा हावी होने लगा था. इस समय में न जाने कितनी ही बार उस के मन में आशंकाओं ने सिर उठाया. न जाने कितनी बार अकेले में उस ने मुनीश पर अपने भरोसे को टटोला. हालांकि दुनिया की नजरों में जो गलत था वह हो चुका था लेकिन यह सिर्फ वह और मुनीश जानते थे कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था.