राज्यसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने अपने विदाई भाषण में कहा, ‘मैं उन खुश किस्मत लोगों में से हूं जिनको कभी पाकिस्तान जाने का मौका नहीं मिला. जब मैं पाकिस्तान में परिस्थितियों के बारे में पढ़ता हूं, तो मुझे एक हिंदुस्तानी मुसलमान होने पर गर्व महसूस होता है.’ जिससे साफ जाहिर है कि गुलाम नबी को आजाद को आखिरी दिन भी भारत के प्रति अपनी वफ़ादारी साबित करनी पड़ रही हैं.
भारत में मुसलमानों की आबादी लगभग 17 करोड़ की है. लेकिन इस सबके बावजूद माहौल ऐसा बना दिया गया है कि मुसलमान यानी ऐसा व्यक्ति जिसकी इस देश के प्रति निष्ठा संदिग्ध है. 1947 में पाकिस्तान जाने का विकल्प होने के बावजूद, ये वतन से मुहब्बत ही तो थी और हिंदुओं पर विश्वास था कि लाखों-लाख लोग पाकिस्तान नहीं गए.
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आज हालात ऐसे है कि जब भी कोई बड़ी घटना होती है तो उस घटना के पीछे हाथ किसका है ये जानने से ज्यादा महत्वपूर्ण ये जानना हो जाता है कि उसका धर्म क्या है? और बात इतने तक ही नहीं रूकती बल्कि कोशिश कि जाती है कि उस घटना को अंजाम देने वाला कोई मुस्लिम ही हो. इसके लिए राजनीतिक पार्टियों से लेकर कुछ मीडिया चैनलों तक सब अपनी-अपनी विचारधारा के अनुसार मुसलमानों को निशाना बनाते हैं. हम आपको ये बात हाल ही में हुए कुछ घटनाओं से समझाते हैं.
कोरोना वायरस का जिम्मेदार तबलीगी जमात
दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में तबलीगी जमात की धार्मिक सभा के दौरान बड़ी तादाद में लोग जुटे थे और इनमें से कई लोगों में कोरोना के मामले पाए गए. इसके बाद भारत में फैल रहे कोरोना वायरस के मामलों का जिम्मेदार मुस्लिम समुदाय को ठहराया जाने लगा. इस पूरे मामले में कोरोना वायरस के चलते एक धर्म को टारगेट किया जा रहा थी जबकि तब महत्वपूर्ण सवाल ये होने चाहिए थे कि कोरोना वायरस से सीधे लड़ रहे डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को संक्रमण से सुरक्षा के लिए कितने पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) और अन्य ज़रूरी सामान उपलब्ध हैं? या कोविड-19 की जांच के लिए क्या हमारे सभी अस्पतालों में डायग्नोस्टिक टेस्ट किट्स उपलब्ध हैं?
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इस पूरे मामले तबलीगी जमात को बरी कर दिया गया है. 36 तबलीगियों को और उन आठ दूसरे लोगों को ‘क्लीन चिट’ दे दी गई है जिन पर लगाए गए आरोपों को अगस्त में ही रद्द कर दिया गया था.
हाथरस गैंगरेप
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में कथित गैंगरेप की घटना के बाद एक तरफ हाथरस की बेटी को न्याय दिलाने की लड़ाई जारी थी. तो दूसरी तरफ इस पूरे मामले में राज्य सरकार पर उंगली उठने और राजनीतिक दबाव बढ़ने के कारण पूरे मामले में कभी दंगा भड़काने की तैयारी और इस साजिश के पीछे पीएफआई के रोल के दावे तो कभी मुस्लिम एंगल देने की कोशिश की गई.
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इस मामले में केरल के एक पत्रकार सिद्दीक कप्पन और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के तीन मुस्लिम सदस्यों को बीच रास्ते से उठाकर गैरकानूनी गतिविधि अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार करने के कुछ दिनों बाद हाथरस पुलिस ने उनका नाम राजद्रोह के एक और मामले और अन्य गंभीर मामलों में दर्ज किया.
हाथरस के चंदपा पुलिस थाने में इन चारों पर हिंसा भड़काने की साजिश रचने और 19 साल की दलित युवती के कथित बलात्कार और हत्या को लेकर राज्य सरकार को बदनाम करने से जुड़ा मामला दर्ज किया गया.
लव जिहाद
दूसरे धर्म में शादी करना और शादी ना चल पा लेने पर अलगाव हो जाना वैसे तो आम बात है लेकिन मुस्लिम लड़का किसी लड़की से शादी करता है और अगर शादी ना चल पाने पर अलग हो जाए तो उस केस में कथित तौर पर कुछ हिन्दू संगठनों द्वारा इसे लव जिहाद का नाम दे दिया जाता है. जिसमें उन संगठनों के मुताबिक लड़का किसी हिन्दू लड़की से शादी इसलिए करता है क्योंकि उसे उस लड़की का धर्म परिवर्तन करवाना है. साथ ही अगर लड़की के घर वालो को शादी से इंकार हो तो वो मामले को लव जिहाद का नाम दे देते हैं.
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हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार के नए लव-जिहाद के खिलाफ एक कानून बनाया गया था जिसमें धर्म परिवर्तन की मंशा से शादी करने पर 10 साल तक की सजा हो सकती है. इस कानून के नाम पर हुए उत्तर प्रदेश में उत्पीड़न की कहानियां अब जांच में दम तोड़ रही हैं. इस कानून पर धर्म विशेष के लोगों को टारगेट करके उत्पीड़न करने का इल्जाम भी है. इस कानून के तहत अब तक कुल दर्ज हुई 16 एफआईआर में 86 लोगों को आरोपी बनाया जा चुका है. मगर एक के बाद एक कई मामलों में अदालत में पुलिस को फजीहत झेलनी पड़ रही है. मुरादाबाद, बरेली, बिजनोर और मुजफ्फरनगर के कई मामले में अदालत के फैसलों ने इस कानून के पैरोकारों को करारा झटका दिया है.
इन फैसलों के बाद के बाद से लव जिहाद के दर्ज हो रहे मामलों में भी गिरावट आई है. इस सबके बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायालय में अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा है कि उसका नया धर्मातरण कानून धर्म विशेष को निशाना बनाने के लिए नहीं है. हालांकि, आरोपी बनाए गए 86 लोगों में 79 एक ही धर्म विशेष से आते हैं. जिन चार मामलों में अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को आईना दिखाया है, उन सभी में पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई को झूठा बताया गया है.
लोगों के बीच ये माहौल बनाया जा रहा है कि भारत के मुसलमान नौजवान उस अंतरराष्ट्रीय साज़िश में शामिल हैं, जिसके तहत हिंदू लड़कियों को बहलाकर उन्हें मुसलमान बनाकर आतंकवादी गतिविधियों में शरीक किया जा रहा है.
हिंदू दक्षिणपंथी इसे ‘लव जिहाद’ कहते हैं. ऐसे संगठनों से जुड़े लोगों ने युवा जोड़ों पर खुलेआम हमले किए हैं और मुस्लिम मर्दों से शादी करने वाली हिंदू लड़कियों के ख़िलाफ़ ये कहकर केस दर्ज करा दिए हैं कि इन महिलाओं को कथित तौर पर ‘जिहादी फैक्ट्री’ ने बहला-फुसला दिया है.
जय श्री राम ना बोलेने पर मुस्लिमों की पिटाई
राम-राम एक दूसरे से हिंदू और ग़ैर-हिंदू भी करते रहे हैं. किसी मुसलमान ने शायद इस पर ऐतराज़ न किया हो. वैसे ही जैसे हिंदू-मुसलमान दोनों ही एक दूसरे को आदाब कहते रहे हैं. सलाम भी धर्मनिरपेक्ष सा ही रहा है. लेकिन जब ये किसी दूसरे धर्म के व्यकित से जबरदस्ती बुलवाया जाए तो इस नारे का राम से और राम के प्रति श्रद्धा से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं होता.
जय श्री राम का नारा ना लगाने पर कभी कैब ड्राइवर को पिटना तो कभी रिक्शा चालक को. मुस्लिमों में जय श्री राम बुलवाना और जय श्री राम ना बोलने पर पिटना तो आज मुस्लिमों के खिलाफ बढ़ रहें अपराधों में सबसे उपर है. आखिर आज जय श्री राम बोलना देशभक्ति का पर्याय कैसे हो सकता है?
देशभक्ति का सर्टिफ़िकेट
अब ये बात जानने वाली है कि आखिर ये देशभक्ति का सर्टिफ़िकेट बाँट कौन रहा है?
दरअसल हिंदुओं के नेतृत्व का दम भरने वाले संगठनों ने देशभक्ति का प्रमाणपत्र बाँटने का ज़िम्मा अपने ऊपर ले लिया है, दाढ़ी रखने वाला, नमाज़ पढ़ने वाला, टोपी पहनने वाला मुसलमान अपने-आप अयोग्य घोषित हो जाता है. क्योकि उसे तो एपीजे अब्दुल कलाम के खाँचे में फिट होने वाला मुसलमान चाहिए जो गीता बाँचे और वीणा बजाए लेकिन अपने धर्म की कोई भी चीज का पालन ना करें.
तो वहीं दूसरी ओर, भजन, कीर्तन, तीर्थयात्रा, धार्मिक जयकारे और तिलक आदि लगाने को देशभक्ति का लक्षण बनाया जा रहा है यानी जो ऐसा नहीं करेगा वो देशभक्त नहीं होगा, ज़ाहिर है मुसलमान अपने-आप किनारे रह जाएँगे. इस बात का सबूत तो हम गणतंत्र दिवस के मौके पर निकलने वाली झाकियों में ही देख चुके हैं.
देशभक्ति साबित करना क्यों जरूरी?
ये बात बड़ी गौर करने वाली है कि आखिर आज देशभक्ति साबित करने की क्यों जरूरत पड़ रही है? दरअसल जब भी सरकार की किसी नाकामी से पर्दा उठता है तो किसी दुश्मन की तलाश की जाती है और सरकार प्रायोजित राष्ट्रवाद उसको हवा देने लगता है. ताकि एक दुश्मन खोज जनता को उसके ख़िलाफ़ आसानी से लामबंद किया जाएं
इस तरह की देशभक्ति और राष्ट्रवाद हर उस व्यक्ति या संगठन को दुश्मन के रूप में पेश करता है जिसके बारे में शक हो जाए कि वह सरकार को किसी रूप में चुनौती दे सकता है. वह कोई ट्रेड यूनियन, कोई छात्र संगठन, कोई एनजीओ, जन आंदोलन या कोई अन्य संगठन कोई भी हो सकता है.
इसी खाँचे में मुसलमानों को सरकारी राष्ट्रवादी जमातों ने फिट कर दिया है. टीवी चैनलों पर होने वाली बहसों में यह बात लगभग रोज़ ही साबित हो रही है. साफ़ नज़र आ जाता है कि लक्ष्य की पहचान करके निशानेबाज़ी की जा रही है जिसके कारण मुसलमान होना और चैन से रहना मुश्किल होता जा रहा है.
इस सिलसिले में महात्मा गांधी की बातों को गौर से पढ़ना और उन बातों को समझने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘हमारा राष्ट्रवाद दूसरे देशों के लिए संकट का कारण नहीं हो सकता क्योंकि जिस तरह हम किसी को अपना शोषण नहीं करने देंगे, उसी तरह हम भी किसी का शोषण नहीं करेंगे. स्वराज्य से हम सारी मानव-जाति की सेवा करेंगे.’
इन बातों से साफ जाहिंर होता है कि महात्मा गांधी अच्छी तरह समझते थे कि देशभक्ति का आधार धर्म नहीं हो सकता. माहौल में इतनी नफ़रत से लोगों की खीझ बढ़ रही है लेकिन इस माहौल को बदलने के लिए मुख्यधारा की मौजूदा सियासत में बहुत बड़े बदलाव की ज़रूरत है. साथ ही आम भारतीय को भी अपने ज़हन और दिल में बदलाव करने की ज़रूरत है.