Crime : भारतीय मध्यवर्गीय, खासतौर से उच्च मध्यवर्गीय, घरों के माहौल का आलम तो यह है कि रहने वाले चारपांच लोग मेहमानों और अजनबियों की तरह रहते हैं. पैसों के अलावा किसी से किसी को कोई खास सरोकार नहीं. बेटा रात 2 बजे के करीब या अलसुबह घर वापस आता है, बेटी उस से चारछह घंटे पहले आ जाती है. डाइनिंग टेबल पर रखा खाना ये बच्चे यानी युवा, जितना खाना हो, खा लेते हैं. खाना पसंद न आए तो भी दिक्कत नहीं, स्वीगी और जोमैटो रातभर पेट भरने को तैयार रहते हैं. घर की धुरी कही जाने वाली मां टीवी और मोबाइल देख कर 12 बजे के लगभग अपने बैडरूम में लुढ़क जाती है. पतिदेव के आनेजाने का भी कोई ठिकाना नहीं.

जरूरी नहीं कि सभी घरों में ऐसा माहौल हो लेकिन ऐसा तो लगभग सभी घरों में है कि संवादहीनता और एकदूसरे के प्रति अविश्वास निर्णायक रूप से पसर चुके हैं जिस का खमियाजा हरेक को अलगअलग तरीके से भुगतना पड़ता है. पेरैंट्स को शिकायत है कि बच्चे उन की सुनना तो दूर की बात है, उन से बातचीत ही नहीं करना चाहते. जबकि युवा होते बच्चों की शिकायत यह है कि पेरैंट्स उन्हें सम झना ही नहीं चाहते, वे आजकल के हिसाब से फिट नहीं हैं.

ऐसी कई बातें और शिकायतें हरेक को हैं जिन का कोई हल नहीं. आज लोग जमीनी हकीकतों से बहुत दूर हो चले हैं जिस का बड़ा जिम्मेदार वह स्मार्टफोन है जिस ने पढ़नापढ़ाना छुड़ा दिया है. नतीजतन पेरैंट्स को नहीं मालूम कि संतान को आने वाले कल और चुनौतियों के लिए कैसे प्रशिक्षित किया जाना है. उन्हें पढ़ने के लिए पत्रपत्रिकाएं दिया जाना कितना अहम और जरूरी हो चला है जिस से वे वह सीखें जो हम से सीखने को तैयार नहीं या हम सिखा ही नहीं पा रहे.

पत्रपत्रिकाओं का फायदा यह है कि नाश्ते के समय किसी भी प्रकाशित लेख और कहानी पर सभी बात कर सकते हैं क्योंकि एकएक कर के सभी ने उसे पढ़ लिया होगा. अब मोबाइल में कौन क्या देखसुन रहा है, यह दूसरेतीसरे को कैसे मालूम होगा. मोबाइल के दुराज्ञान पर भी कोई चर्चा करने का माहौल नहीं बनता.

उधर संतानें हवा में उड़ रही हैं क्योंकि उन के हाथ में गूगल गुरु के अलावा अब एआई भी जो है. दिक्कत तो बड़ी यह भी है कि इस वर्ग के युवाओं के सामने आर्थिक चुनौतियां न के बराबर बची हैं. जो पीढ़ी आधी रात को 400-500 रुपए के कोल्डड्रिंक के साथ सोयाचाप और सैंडविच मंगा कर पेट भरती हो उस से यह उम्मीद करना बेकार है कि वह जीवन की कठिनाइयों से वाकिफ होगी. यह उन्हें बताने वाला कोई नहीं कि जीवन की कठिनाइयां, चुनौतियां और उन के हल स्क्रीन पर नहीं बल्कि प्रिंट पेजेज में मिलते हैं.

सोनम रघुवंशी की अपराध गाथा

अब बात इंदौर की सोनम रघुवंशी की जिस की उम्र महज 24 साल है. सोनम इन दिनों जेल में है और उम्मीद है, आने वाले 15-20 साल भी वह जेल में ही रहेगी. वह जब जेल से बाहर आएगी तब कोई उसे लेने फूल या गुलदस्ता ले कर जेल के दरवाजे पर नहीं खड़ा होगा. उस के सामने तब भी एक पहाड़ सी जिंदगी पड़ी होगी, एक स्याह दुनिया और भविष्य होगा और उस के हाथ में उतना ही पैसा होगा जो जेल मैन्युअल के हिसाब से जेल में की गई मेहनत के एवज में उसे मिला होगा.

लेकिन यह युवती अभी इन से भी कड़वे और भयावह सच नहीं सम झ पाएगी. दरअसल, सोचनासम झना तो उस ने सीखा ही नहीं और पेरैंट्स ने सिखाया भी नहीं. अगर उस ने कहीं से भी सीखा होता या पेरैंट्स ने सिखाया होता तो वह पति राजा रघुवंशी की हत्या करने के बजाय उसे स्वीकार लेती.

आजकल की युवतियों के लिए अपने प्यार और शादी के फैसले के बारे में घर वालों को बता देना कोई मुश्किल काम नहीं रह गया है जो वे 70-80 के दशक की हिंदी फिल्मों की नायिका की तरह सिर झुकाए चुन्नी या साड़ी का पल्लू उंगलियों में लपेटते-हकलाते हुए मां या बाप को बताएं कि एक लड़का मु झे पसंद आ गया है. अब वे दोटूक फैसला सुनाती हैं और पेरैंट्स के पास उन से सहमत होने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह जाता. वे मानसिक और सामाजिक तौर पर इस बात के लिए तैयार भी रहते हैं कि बेटा या बेटी इंटरकास्ट मैरिज का फैसला कभी भी सुना सकते हैं. यह एक अच्छी बात है क्योंकि हर किसी को अपनी मरजी से शादी करने का हक है जिस का इस्तेमाल नई पीढ़ी कर भी रही है. आजकल हर दूसरी शादी इंटरकास्ट होती है, इस से सहज सम झा जा सकता है कि इस बदलाव को सहज स्वीकार कर लिया गया है.

जाति थी वजह

सोनम के मामले में हरकोई पूछ और कह रहा है कि जब वह राज कुशवाह को इतना चाहती ही थी तो उस ने उस से ही शादी क्यों नहीं कर ली. बेचारे निर्दोष और मासूम राजा की हत्या करने से क्या मिला उसे. इस सवाल का आसान जवाब जो हर किसी को नहीं सू झ सकता वह यह है कि राज जाति से कुशवाह यानी काछी था जिस की गिनती धर्म के हिसाब से सछूत शूद्रों और संविधान के हिसाब से ओबीसी यानी अन्य पिछड़े वर्ग में होती है.

देश में जो ऊंची जातियां हैं उन में रघुवंशियों की गिनती क्षत्रियों में होती है. यह जाति खुद को राम का वंशज मानती है. रघुवंशियों का अपना एक अलग रुतबा, मुकाम, आनबानशान और ठसक होती है. ये आमतौर पर अपने उसूलों, रीतिरिवाजों और परंपराओं से किसी भी कीमत पर कोई सम झौता नहीं करते. मध्य प्रदेश में इन की आबादी सब से ज्यादा है. रघुवंशी बाहुल्य जिलों में विदिशा, रायसेन, गुना, होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम), नरसिंहपुर और जबलपुर के अलावा रीवा, सतना व पन्ना की गिनती होती है. इस जाति के लोग बड़े पैमाने पर खेतीकिसानी के लिए मशहूर हैं लेकिन अब ये गांवों से निकल कर शहरों में आ कर व्यवसाय भी करने लगे हैं.

शहरों में आ कर रघुवंशी समुदाय के लोग रहनसहन, पहनावे वगैरह से तो आधुनिक हो गए और शिक्षित भी होने लगे लेकिन दिलोदिमाग में बसी अपनी जमींदारी, ठसक, चौधराहट और ऊंचे ठाकुर होने का गुमान व गरूर पूरी तरह नहीं छोड़ पाए.

अब दूसरा सवाल जो बेहद आम है कि सोनम राज के साथ भाग क्यों नहीं गई जो उम्र में भले ही उस से 5 साल छोटा था लेकिन बालिग तो था, लिहाजा कोई अड़ंगा इस शादी में पेश न आता. यह बहुत अहम और दिलचस्प सवाल है जिस के कई जवाब सटीक जान पड़ते हैं. उन में सब से ऊपर यह है कि सोनम अव्वल दर्जे की ऐसी मूर्ख युवती है जो खुद को स्मार्ट, बुद्धिमान और चालाक होने की गलतफहमी पाले बैठे थी. प्रेमी यानी बौयफ्रैंड छोटी जाति का हो, ऊपर से गरीब भी तो बात ‘एक तो करेला, ऊपर से नीम चड़ा’ जैसी हो जाती है. राज कुछ दिनों पहले तक देवी सिंह के करोड़ों के प्लाईवुड के कारोबार में, अदना सा लेकिन, भरोसेमंद मुलाजिम हुआ करता था.

राजकपूर निर्देशित फिल्म ‘प्रेमरोग’ की याद दिलाती सोनम की दास्तां के बारे में एक सच यह भी है जो फिल्म में पद्मिनी कोल्हापुरे की मां बनी नंदा के मुंह से एक दृश्य में बतौर हकीकत उगलवाया गया है. उस का सार यह है कि इन ठाकुरों को औलाद से ज्यादा अजीज अपने उसूल होते हैं. फिल्म 43 साल पुरानी है पर अप्रासंगिक नहीं हुई है. उलटे, दिनोंदिन और प्रासंगिक होती जा रही है. सोनम का मामला उस की ही कड़ी है.

‘प्रेमरोग’ तो सोनम को लग गया लेकिन वह समाज और परिवार से बगावत नहीं कर पाई. शायद उस के मन में यह डर था कि अगर भाग कर राज से शादी की तो घर वाले छोड़ेंगे नहीं. आएदिन ऐसी खबरें मीडिया की सुर्खियां भी बनी रहती हैं जिन में लड़की और लड़के वालों में तलवारें खिंच जाती हैं.

इस के लिए कहीं बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं. 10 जून को जब मीडिया, सोशल मीडिया और घरोंचौराहों में सोनम की चर्चा हो रही थी तब मध्य प्रदेश के ही गुना की एक अदालत में इंटरकास्ट मैरिज के विरोध में जम कर हंगामा मच रहा था. इत्तफाक से इस मामले में भी 23 वर्षीया युवती का नाम सोनम था जिस ने एक विजातीय हमउम्र युवक अजय से कोर्ट मैरिज कर ली थी. दोनों अपनी शादी के सिलसिले में ही बयान देने आए थे. अजय यादव जाति का है जबकि सोनम मीणा जाति की है. बस, इसी बात पर दोनों के घर वाले आपस में भिड़ पड़े. खबर के मुताबिक सोनम के घर वालों ने अजय के घर वालों को ज्यादा कूटा. अगर वक्त पर कोर्ट परिसर में भारी पुलिस बल तैनात न किया जाता तो यहां भी लाशें बिछ जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.

प्यार की गरीबी

दूसरे, रईसी में पली सोनम राज के साथ लो प्रोफाइल जिंदगी जीने से भी कतरा रही थी. जिस घर में कारें न हों, एसी न हों, दूसरे शानशौकत और सहूलियतों वाले लग्जरी आइटम व गैजेट्स न हों, और तो और जो घर ही झुग्गी झोंपड़ी सरीखा लगे उस में भला वह कैसे रह पाती.

सोनम ने ‘जिस्म’ फिल्म की बिपाशा बसु बनना पसंद किया जो अपने करोड़पति पति गुलशन ग्रोवर की हत्या के लिए गरीब वकील प्रेमी जौन अब्राहम को राजी कर लेती है. हत्या करने के बाद जौन को पता चलता है कि उसे तो मोहरा बनाया गया है. दरअसल बिपाशा पैसों से प्यार करती है. फिल्म की कहानी चूंकि महेश भट्ट जैसे प्रयोगवादी लेखक ने लिखी थी इसलिए अंत में बिपाशा और जौन दोनों एकदूसरे को गोली मार देते हैं. लेकिन सोनम ने राज को मोहरा नहीं बनाया क्योंकि उसे अपने पिता की नाक और खानदान की इज्जत की भी चिंता थी.

लगता तो ऐसा है कि राज ने उसे मोहरा बनाया था जो राजा की हत्या के बाद विधवा सोनम से शादी कर बैठेबिठाए करोड़पति बन जाता. सोनम की उस के प्रति चाहत और मुहब्बत इस बात से भी सम झ आती है कि पूरे हनीमून (कथित) के दौरान उस ने राजा को सहवास की इजाजत नहीं दी थी. कोई न कोई बहाना बनाती रही थी, कभी कामख्या देवी के दर्शन का तो कभी थकान का.

सोनम के पकड़े जाने के बाद उस के घर वालों ने एक बार भी यह नहीं कहा कि एक बार कहती तो हम उस की शादी राज से करवा देते. उलटे, वे संस्कारों की दुहाई देते फुजूल का बचाव उस का करते रहे. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कम से कम सोनम की मां को तो उस के और राज के प्रेमप्रसंग की मालूमात थी. लेकिन उसे घर की इज्जत का हवाला दे कर जाति वाले राजा से ही शादी करने को मजबूर किया गया था.

संपत्ति का लोभ

सोनम का प्लान तो यही लगता है कि राजा के मरने के बाद पैतृक जायदाद में से पति का जो हिस्सा मिलेगा उस से शान से जिंदगी गुजारी जा सकती है. दूसरे, अपने पिता की जायदाद में से भी हिस्सा मिलता. इस के लिए जरूरी था कि कुछ दिन विधवाओं सी जिंदगी जी जाए, फिर सहानुभूति बटोर कर राज या किसी और से शादी कर ली जाए. हर कोई उस का वैधव्य देख कर यही कहता कि अभी उम्र ही क्या है, इतनी बड़ी पहाड़ सी जिंदगी कैसे अकेले काटेगी बेचारी. कोई ठीकठाक लड़का देख शादी कर देना ठीक रहेगा.

काम न आई कुंडली

आजकल तो विधवा विवाह होने लगे हैं. कोई न कोई जरूरतमंद हाथ थाम ही लेगा. अपने समाज में न मिले तो किसी और जाति का भी चलेगा. लेकिन यह कहने की बात है वरना ऊंची जातियों में विधवा की शादी आसानी तो क्या मुश्किल से भी नहीं होती. इसलिए नीची जाति वाले राज कुशवाह के नाम पर मंजूरी मिल सकती थी.

न भी मिलती तो करोड़ों की मालकिन बन जाने के बाद वह किसी को भी चुनने को आजाद रहती. लेकिन दूसरी शादी उस की जन्मकुंडली में है या नहीं, यह बताने को अब कोई पंडित तैयार नहीं. इंदौर के जिस पंडित एन के पांडेय ने दोनों की जन्मकुंडली मिलाई थी उस ने यह नहीं बताया था कि राजा की जिंदगी मरने की हद तक खतरे में आ जाएगी. उस ने तो यह कहा था कि चूंकि दोनों की ही जन्मकुंडली में मंगल दोष है इसलिए शादी हो सकती है और दोनों का जीवन सुखशांति से बीतेगा.

मंगलअमंगल का धंधा

मंगल के चक्कर में कितने अच्छे मैच शादी में तबदील नहीं हो पाते. इस का तजरबा हिंदुओं को है जो यह नहीं सोचते कि बिना जन्मकुंडली मिलाए जो शादियां होती हैं वे ज्यादा टिकाऊ होती हैं. भोपाल की एक प्राइवेट कंपनी के अधिकारी की मानें तो उन के परिवार में जन्मकुंडली मिलाने का रिवाज ही नहीं है. पिछले 40 वर्षों में 5 शादियां उन के खानदान में हुई हैं और सभी सफल हैं. इन अधिकारी के मुताबिक, सालों पहले उन के दादाजी की बहन की कुंडली गांव के पंडित ने 32 गुणों के साथ मिलाई थी. लेकिन शादी के दूसरे साल ही दादाजी के बहनोई एक सड़क हादसे में चल बसे तो उन का भरोसा इन पाखंडों से उठ गया.
मंगलअमंगल का धंधा चलता रहेगा क्योंकि कोई कानून ऐसा नहीं है जो एन के पांडेय जैसे पंडितों को अभियुक्त बना कर कठघरे में खड़ा करे. तरस तो उस मीडिया पर आता है जो सोनम के मामले को और चटपटा बनाते टीआरपी बढ़ाने में जी जान से लगा रहा. इस होड़ में आजतक नाम के न्यूज चैनल के संवाददाता ने उक्त पंडितजी का भी इंटरव्यू लिया जो उच्च और नीच के मंगल का राग अलापते रहे.

इस चैनल की हिम्मत पंडित से यह पूछने की नहीं हुई कि आप ने जब कुंडलियां देखी थीं तो यह कहीं क्यों नहीं दिखा था कि शादी के चंद दिनों बाद ही इतना भयानक हादसा हो सकता है. आप ने तो वरवधू को आशीर्वाद दिया था.
इस मामले से कई सबक मिलते हैं, मसलन यह कि युवाओं को अपने फैसले खुद लेने की हिम्मत जुटानी चाहिए. पेरैंट्स की जायदाद के लालच में सम झौता नहीं कर लेना चाहिए. अलावा इस के, वैवाहिक जीवन की गंभीरता सम झते हुए उस की जिम्मेदारियां उठाने के लिए भी उन्हें तैयार रहना चाहिए. दांपत्य के सफर में कई उतारचढ़ाव आते हैं. उन का सामना पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे का हाथ भरोसे और मजबूती से पकड़ कर करना चाहिए. सोनम-राजा रघुवंशी का मामला अब अपवाद नहीं रह गया है. मीडिया ने छांट कर ऐसे मामले दिखाए और छापे जिन में शादी के कुछ दिनों बाद ही पति या पत्नी की मौत यानी हत्या हुई थी.

रही बात सोनम की, तो वह किराए के तीनों हत्यारों और प्रेमी राज सहित सजा भुगतेगी, वहीं, वह एक अवसाद, डर और अविश्वास समाज में फैला गई है जो पहले से ही बहुत थे. ऐसे मामले तो उसे और बढ़ाते हैं.

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