सुब्रमण्यम स्वामी अकसर अपनी ही सरकार पर चढ़ बैठते हैं. खूब किरकिरी करते हैं. लेकिन अब की बार वे सरकार के खासमखास पर चढ़ बैठे हैं. सरकार मौन है. ऐसा लगता है जैसे इस मौन में सरकार की स्वीकृति समाहित है. केंद्र की भाजपा सरकार के फायरब्रैंड नेता सुब्रमण्यम स्वामी अकसर बागी हो जाते हैं. अपनी ही सरकार पर चढ़ बैठते हैं. धमकियां देने लगते हैं. सरकार के सब से बड़े आलोचक दिखने लगते हैं और अपने बयानों से सरकार को कठघरे में खड़ा कर देते हैं.

यह बात और है कि सरकार की सेहत पर उन की धमकियों का असर नहीं होता और अकसर उन के विवादास्पद बयान सोशल मीडिया पर चुटकुला बन कर रह जाते हैं. स्वामी ने ट्वीट किया, ‘‘चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी ने एलएसी के पास 30 आधुनिक टैंक खड़े कर रखे हैं ताकि वह हमारी सेना पर हमला कर सके. कोरोना वैक्सीन के उत्साह में इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. आखिर हमें अपनी ही जमीन को वापस लेने में किस बात की िझ झक है. हम क्यों डर रहे हैं?’’ स्वामी ने सरकार को डरपोक कहा. जबकि मोदी सरकार यह कहती है,

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‘‘हमारी इंचभर जमीन भी किसी के कब्जे में नहीं है.’’ सरकार में बैठे स्वामी ने यह खुलासा किया कि चीन हमारी जमीन दाबे बैठा है. लेकिन उन के इस ट्वीट का सरकार की सेहत पर असर नहीं दिखा. किसी ने ट्वीट का जवाब तक देना गवारा न किया. स्वामी भाजपा आईटी सैल के सर्वेसर्वा अमित मालवीय के पीछे हाथ धो कर पड़े रहे. उन्हें वहां से खदेड़ कर बाहर करने की बात करते रहे. लेकिन किसी ने उन की बात पर कान नहीं धरा. कोरोना की देशी वैक्सीन की जगह विदेशी वैक्सीन को पहले मंजूरी मिलने पर उन्होंने कह दिया कि, ‘‘पीएमओ में भ्रष्ट अफसरों की भरमार है.’’

मगर सरकार ने उफ तक न की. अभी हाल में चेन्नई में एक कार्यक्रम में सुब्रमण्यम स्वामी ने देश की गिरती अर्थव्यवस्था के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की जम कर आलोचना की. इस से पहले वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी नेताओं में शुमार रहे दिवंगत अरुण जेटली से वित्त मंत्रालय छीन लेने की बातें किया करते थे. अरुण जेटली को तो वित्त मंत्री रहते सुब्रमण्यम स्वामी ने पानी पीपी कर कोसा. लेकिन हैरत की बात यह है कि अरुण जेटली जब तक जीवित रहे, मंत्रालय के मंत्री रहे और प्रधानमंत्री ने स्वामी के खिलाफ कभी कुछ न बोला. ताजा मामला प्रधानमंत्री मोदी के चहेते उद्योगपति गौतम अडानी का है. अडानी की दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती संपत्ति और बैंक का कर्जा न चुकाने को इंगित करते हुए स्वामी उन पर चढ़ बैठे हैं. स्वामी ने ट्वीट किया है,

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‘‘कलाबाज अडानी पर अब बैंकों का 4.5 लाख करोड़ रुपए का एनपीए है. मु झे सही कीजिए यदि मैं गलत हूं. 2016 से अब तक उन की वैल्थ हर 2 साल में दोगुनी हो रही है. वे बैंकों को पुनर्भुगतान क्यों नहीं करते? हो सकता है कि 6 हवाई अड्डों को खरीदने के बाद वे जल्द ही उन सभी बैंकों को खरीद लें जिन से उन्होंने पैसे लिए हैं.’’ स्वामी के इस ट्वीट के बाद भी सरकार में कोई हलचल नहीं है. बस, अडानी के दफ्तर से अपनी सफाई में कुछ ट्वीट्स आए हैं. कुछ समय पहले रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने बैंकों के एनपीए यानी नौन परफौर्मिंग असेट्स को ले कर रैड फ्लैग जारी किया था. माना जा रहा है कि सितंबर 2021 तक बैंकों का कुल एनपीए 13.5 फीसदी पर पहुंच जाएगा, जो सितंबर 2020 तक केवल 7.5 फीसदी था.

यही वजह है कि गवर्नर शक्तिकांत दास बैड बैंक बनाने पर विचार कर रहे हैं. उद्योगपति गौतम अडानी एनपीए को ले कर काफी चर्चा में हैं. स्वामी का कहना है कि अडानी की जवाबदेही तय की जानी चाहिए. बैंकों का उन पर करीब 4.5 लाख करोड़ रुपए का एनपीए है. जब वे देश के बड़ेबड़े हवाई अड्डे खरीद रहे हैं तो बैंक का कर्ज क्यों नहीं लौटा रहे हैं? इस से पहले मार्च 2018 में भी स्वामी ने अडानी को सब से अधिक एनपीए वाला औद्योगिक समूह बताया था. उन्होंने उस समय गौतम अडानी पर 72 हजार करोड़ रुपए का एनपीए होने का दावा किया था और कहा था कि इस संबंध में उन्हें सूचना मिली है और इस का खुलासा सिर्फ जांच के आधार पर ही हो सकता है. स्वामी के उस दावे में दम था, जिस की पुष्टि प्रमुख वित्तीय संस्थानों के डाटा से भी हुई थी.

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ब्लूमबर्ग के सितंबर 2017 के डेटा के अनुसार, अडानी पावर पर कुल 47,603.43 करोड़, अडानी ट्रांसमिशन पर 83,56.07 करोड़ और अडानी इंटरप्राइजेज पर 22,424.44 करोड़ रुपए का कर्ज था. उस समय अडानी के पास 11 बिलियन डौलर की संपत्ति थी और वे देश के 10वें सब से धनी व्यक्ति थे. बीते सवा तीन सालों में अडानी की संपत्ति ढाई गुना बढ़ गई है. सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया है, ‘‘सरकारी क्षेत्र में एनपीए के सब से बड़े कलाकार गौतम अडानी हैं. यह वक्त उन्हें जवाबदेह बनाने का है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे अडानी के खिलाफ जनहित याचिका दायर करेंगे.’’ स्वामी ने कहा, ‘‘कई ऐसी चीजें हैं जिन से अडानी दूर भाग रहे हैं. कोई उन से सवाल भी नहीं पूछ रहा है. अडानी सरकार के करीबी होने की छवि बना रहे हैं. वे सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकते हैं.’’

गौतम अडानी आज मोदी सरकार के लिए वाकई शर्मिंदगी का कारण बन चुके हैं. देश के कृषि क्षेत्र पर कब्जा जमाने की अडानी की हवस मोदी सरकार के गले की फांस बन गई है. एक ओर देश का किसान है जो अडानी और उन की कंपनियों से अपनी जमीन व फसल बचाने के लिए डेढ़ महीने से हाड़ कंपाती ठंड व बारिश में दिल्ली की सीमाओं पर खुले आसमान के नीचे बीवीबच्चों के साथ बैठा है कि मोदी सरकार अडानी के दबाव में बने कृषि कानूनों को वापस ले ले, किसान का हक न मारे, किसानों को आत्महत्या करने को मजबूर न करे व दूसरी ओर मोदी के बेहद करीबी गौतम अडानी हैं जिन्होंने कृषि कानून बनने और संसद में पास होने से कहीं पहले देशभर में अनाज भंडारण के लिए करोड़ों रुपए मूल्य के भंडारणगृह स्थापित कर लिए, करोड़ों रुपए इस क्षेत्र में निवेश कर दिए और अब किसी भी सूरत में सरकार को कृषि कानून वापस नहीं लेने दे रहे हैं.

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देशभर का किसान आंदोलनरत है. दुनियाभर में भाजपा सरकार की भद्द पिट रही है. अडानी और किसान के बीच सरकार के मंत्री फुटबौल बने हुए हैं. किसानों के साथ 10 दौर की बेनतीजा बातचीत हो चुकी है. कृषि मंत्री के चेहरे का रंग उतर चुका है. भाजपा का वोटबैंक खतरे में है. मगर अडानी का दबाव सरकार पर किसी तरह कम नहीं हो रहा है. ऐसे वक्त में सुब्रमण्यम स्वामी का गौतम अडानी पर बैंकों के एनपीए को ले कर चढ़ बैठना और उन्हें कोर्ट में घसीटने की धमकी देना सरकार को जरूर थोड़ी राहत प्रदान कर रहा होगा. सुब्रमण्यम स्वामी बात भी ठीक कह रहे हैं. अडानी बैंकों का लोन, जो वे अपने राजनीतिक रसूख से एनपीए करा ले रहे हैं, चुका क्यों नहीं देते? आज किसानों की कर्जमाफी की बात होती है तो सरकार और उस के अर्थविशेषज्ञ इस पर सरकार को राय देने लगते हैं कि ऐसे कर्जमाफी से न केवल अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा बल्कि बैंकों की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा.

ऐसे में अडानी, अंबानी, माल्या, नीरव मोदी जैसे बड़ेबड़े उद्योगपतियों द्वारा उधार लिया गया लाखों करोड़ रुपया वापस क्यों नहीं मांगा जा रहा है? जो बैंकों को अरबों की चपत लगा कर देश से रफूचक्कर हो गए, उन की बात छोडि़ए, लेकिन जो मौजूद हैं उन से तो वसूली कीजिए. सुब्रमण्यम स्वामी की यह बात भी बिलकुल सही है कि अडानी, जब हर 2 साल में अपनी संपत्ति दूनी कर रहे हैं, तो उन्हें बैंकों का ऋण तो वापस कर ही देना चाहिए. लेकिन अडानी ऐसा नहीं करेंगे. उन पर प्रधानमंत्री की विशेष अनुकंपा रही है. प्रधानमंत्री हर विदेश यात्रा में उन्हें साथ लिए घूमे हैं.

अपने ही देश में नहीं, बल्कि कई अन्य देशों में उन को बड़ेबड़े प्रोजैक्ट दिलाए हैं. उपकार दोनों तरफ से हुए हैं और इन उपकारों तले आज सरकार दबीदबी सी दिख रही है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी और गौतम अडानी की दोस्ती तब से है जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान गौतम अडानी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करीबी सब ने देखी. लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी को अडानी समूह के हवाई जहाज का इस्तेमाल करते देखा गया. सरकार बनी, तो गौतम अडानी के कारोबार ने बुलेट ट्रेन सी रफ्तार पकड़ी.

2017 में भारत के कारोबारियों में गौतम अडानी की संपत्ति सब से तेजी से बढ़ी. और अडानी ने रिलायंस के चेयरमैन मुकेश अंबानी को भी पीछे छोड़ दिया. अडानी की संपत्ति में 124.6 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि अंबानी की संपत्ति 80 फीसदी बढ़ी. 2016 के बाद जिस तरह से अडानी ग्रुप की रुचि खेती सैक्टर में बढ़ी और उस के बाद जिस तरह से जून 2020 में मोदी सरकार ने 3 नए कृषि कानूनों को ले कर अध्यादेश जारी किया व जिस तरह तमाम संवैधानिक मर्यादाओं और नियमकानूनों को दरकिनार कर के राज्यसभा में उन्हें पारित, फिर घोषित कर दिया गया,

उस से साफ था कि इन नए कृषि कानूनों का लाभ किसानों के बजाय अडानी को ही अधिक मिलेगा. किसान भी सम झ गया है कि उस के हित की आड़ में सरकार ने उस की जमीनों और अनाज का सौदा अडानी के साथ पक्का कर दिया है. इसीलिए किसान आज सड़क पर बैठा है. इन कानूनों की समीक्षा में लगभग सभी कृषि अर्थशास्त्री भी इस मत पर दृढ़ हैं कि ये कानून केवल और केवल कौर्पोरेट को भारतीय कृषि सैक्टर सौंपने के लिए लाए गए हैं. किसानों से दर्जनभर वार्त्ताएं कर के भी सरकार अब तक देश व किसानों को नहीं सम झा पाई है कि इन कानूनों से किसानों का कौन सा, कितना और कैसा हित सधेगा. मगर जो कानून किसानों को चाहिए ही नहीं, उस को वापस लेने की हिम्मत वह नहीं जुटा पा रही है. आखिर क्यों? क्या मजबूरी है? क्या डर है? क्या दबाव है?

इन सवालों का सिर्फ एक जवाब है – अडानी कितनी हैरान करने वाली बात है कि देश को रोटी देने वाले अन्नदाता हर साल बड़ी संख्या में आत्महत्या कर लेते हैं क्योंकि वे बढि़या फसल पैदा कर के भी गरीबी और कर्ज से नहीं उबर पाते. उन की हाड़तोड़ मेहनत से उगाई फसल कौढि़यों के दाम खरीदी जाती है, इतनी कम आमदनी कि खाद और बीज तक के पैसे नहीं निकल पाते. सरकार उन को न्यूनतम समर्थन मूल्य तक नहीं देती. कर्ज का बो झ इतना बढ़ जाता है कि फिर जान दे कर ही छुटकारा पाने का रास्ता सू झता है. साल 2019 में 10,281 कृषि से जुड़े लोगों ने आत्महत्या की है, जो देश में कुल हुई आत्महत्याओं का 7.4 फीसदी है. 2019 में देशभर में कुल 1,39,516 लोगों ने आत्महत्या की थी. यह आंकड़ा, एनसीआरबी (नैशलन क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो) के ऐक्सिडैंटल डैथ एंड सुसाइड इन इंडिया अध्याय से लिया गया है.

साल 2019 में हुई आत्महत्याओं की संख्या साल 2018 में हुई आत्महत्याओं की संख्या 10,348 से थोड़ी ही कम है. यह भी आश्चर्यजनक तथ्य है कि आत्महत्या करने वाले किसानों में 86 फीसदी किसान वे हैं जिन के पास भूमि है और शेष 14 फीसदी भूमिहीन किसान हैं. सरकार द्वारा अडानी के दबाव में किसानों पर थोपे जा रहे 3 नए कृषि कानूनों के बाद तो किसानों की स्थिति और बदतर हो जाएगी. यही वजह है कि किसान दिल्ली की सीमा पर सरकार को घेरे बैठे हैं और सरकार को कोई रास्ता नहीं सू झ रहा है. अडानी ग्रुप द्वारा कृषि सैक्टर में भारीभरकम निवेश और गौतम अडानी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बेहद करीबी होना दुनियाभर में मोदी व उन की सरकार की किरकिरी करा रहा है, जो बूढ़े और गरीब किसानों तक की कराह नहीं सुन पा रही है.

मोदी सरकार इस कदर अडानी के दबाव में है कि आंदोलनरत किसानों की मौतों पर अपनी संवेदना तक व्यक्त नहीं कर पा रही है. मोदी बड़े धर्मसंकट में घिरे हैं. एक तरफ दोस्त है, दूसरी तरफ वोट है. ऐसे कठिन वक्त में सुब्रमण्यम स्वामी का एनपीए को ले कर गौतम अडानी पर चढ़ बैठना प्रधानमंत्री को कुछ राहत तो जरूर पहुंचा रहा होगा.ं स्वामी की किसी हरकत पर, किसी बयान पर मोदी खफा नहीं हैं. स्वामी सरकार को घेर रहे हैं. स्वामी मोदी के खासमखास उद्योगपति को आईना दिखा रहे हैं, उन्हें धमकी दे रहे हैं, उन्हें कोर्ट में घसीटने की बात कर रहे हैं, मगर मोदी मौन हैं. क्या मोदी डरते हैं स्वामी से? नहीं. स्वामी तो तारणहार हैं.

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