आज कोरोना वायरस की वजह से लोगों की जीवनशैली में काफी बदलाव आया है. हालात ये हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण के डर से लोग सुबह और शाम की सैर के लिए भी घर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. ऐसे में मध्यम वर्ग के साथ अफसर, डाक्टर भी परंपरागत लोकमन, शरबती गेहूं की जगह काले गेहूं की रोटियां खाना पसंद कर रहे हैं.

बताया जाता है कि काले गेहूं की रोटियां सेहत के लिए फायदेमंद होती हैं, इसलिए काले गेहूं की मांग बाजार में बढ़ने लगी है. किसान भी इस बढ़ती मांग का फायदा उठा कर काले गेहूं की खेती कर के मुनाफा उठा सकते हैं.वैसे तो खेती में नएनए प्रयोग करने वाले किसान काले गेहूं की फसल अपने खेतों में लेते आए हैं. नरसिंहपुर जिले के करताज गांव के किसान राकेश दुबे ने अपने कृषि फार्म पर इसी रबी मौसम में काले गेहूं की फसल तैयार की है.

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उन्नत खेती कर रहे किसान राकेश दुबे बताते हैं कि सामान्य गेहूं के मुकाबले काला गेहूं महंगा बिकता है और जैविक खेती से इस का उत्पादन भी ज्यादा मिलता है. एक एकड़ खेत में 50 किलोग्राम बीज, गोबर की खाद, कृषि यंत्रों और मजदूरी मिला कर 18,000 से 20,000 रुपए का खर्चा आता है.काला गेहूं बाजार में 8,000 हजार से 10,000 रुपए क्विंटल तक बिकता है. उत्पादन भी एक एकड़ में 14 से 16 क्विंटल तक मिल जाता है. किसानों के बीज भी तैयार कर रहे हैं.

मध्य प्रदेश की गाडरवारा तहसील के रंपुरा गांव के किसान नरेंद्र चौधरी 2 साल से काले गेहूं की खेती कर रहे हैं. इस बार 2 एकड़ खेत में इस को लगाया था, जिस में 32 क्टिंवल काले गेहूं का उत्पादन किया है.
नरेंद्र चौधरी जैविक तरीके से खेती करते हैं, इसलिए इस गेहूं की डिमांड भोपाल में सब से ज्यादा होती है. वे कहते हैं कि लौकडाउन में इस बार गेहूं की मांग ज्यादा रही है और उन का गेहूं घर से ही लोग खरीद कर ले गए. वे कहते हैं कि परंपरागत खेती घाटे का सौदा हो गई है. जैविक तरीके से की गई खेती में लागत कम मुनाफा ज्यादा मिलता है.

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गाडरवारा तहसील के सासबहू बांसखेड़ा गांव के किसान सुरेंद्र गुर्जर ने भी अपने खेतों में काले गेहूं की खेती कर अपने लिए नई राह बनाई है. उन्होंने अपने खेत में उगे काले गेहूं को फिल्म ऐक्टर आशुतोष राणा को भेंट कर उस की खासीयत बताई, तो उन्होंने इसे बड़े पैमाने पर उगाने की सलाह दी. मोहाली में ईजाद किया गया काला गेहूं पंजाब के मोहाली में 7 सालों की रिसर्च के बाद गेहूं की इस नई किस्म को नैशनल एग्री फूड बायोटैक्नोलौजी इंस्टीट्यूट (नाबी) ने विकसित किया है. नाबी के पास इस का पेटेंट भी है. इस गेहूं की खास बात यह है कि इस का रंग काला है. डाक्टरों की मानें, तो काले गेहूं में कैंसर, डायबिटीज, तनाव, दिल की बीमारी और मोटापा जैसे बीमारियों को रोकने की क्षमता है.

नाबी की साइंटिस्ट और काले गेहूं की प्रोजैक्ट हैड डा. मोनिका गर्ग के अनुसार, इस गेहूं की बालियां भी आम गेहूं जैसी हरी होती हैं. पकने पर दानों का रंग काला हो जाता है.उन्होंने बताया कि नाबी ने काले गेहूं के अलावा नीले और जामुनी रंग के गेहूं की किस्म भी विकसित की है.इस गेहूं के अनोखे रंग इस गेहूं के अनोखे रंग के बारे में कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि फलोंसब्जियों और अनाजों के रंग उन में मौजूद प्लांट पिगमैंट या रंजक कणों की मात्रा पर निर्भर होते हैं. काले गेहूं में एंथोसायनिन नाम के पिगमैंट होते हैं. इस की अधिकता से फलों, सब्जियों, अनाजों का रंग नीला, बैंगनी या काला हो जाता है.

यह नैचुरल एंटीऔक्सीडैंट भी हैं. इसी वजह से यह सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है. आम गेहूं में एंथोसायनिन की मात्रा 5 से 15 प्रति मिलियन तक होती है, लेकिन काले गेहूं में यह 40 से 140 प्रति मिलियन के आसपास होती है.एंथोसायनिन के अलावा काले गेहूं में जिंक और आयरन की मात्रा में भी अंतर होता है. काले गेहूं में आम गेहूं की तुलना में 60 फीसदी आयरन ज्यादा होता है. हालांकि, प्रोटीन, स्टार्च और दूसरे पोषक तत्त्व समान मात्रा में होते हैं.

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गाडरवारा अस्पताल के डाक्टर राकेश बोहरे बताते हैं कि काला गेहूं खाने से कैंसर, डायबिटीज जैसी बीमारियां नहीं होतीं. अपनी एंटीऔक्सीडैंट खूबियों की वजह से इनसानों के लिए काला गेहूं सेहतमंद होता है. इम्यूनिटी बढ़ाने और कोरोना जैसी बीमारियों की रोकथाम के लिए भी काला गेहूं को सेहतमंद माना जा रहा है.

कैमिकल के इस्तेमाल से पैदा किए जा रहे परंपरागत गेहूं की किस्मों से भले ही किसान खूब उत्पादन ले रहे हैं, लेकिन सरकारी खरीद और फसल का सही मूल्य समय पर न मिलने की समस्याओं से भी जूझ रहे हैं. ऐसे में नवाचारी तौरतरीकों से काले गेहूं का उत्पादन कर किसान मुनाफा भी कमा सकते हैं.
किसान भाई काले गेहूं और चने की खेती की विस्तार से जानकारी के लिए नरेंद्र चौधरी के मोबाइल नंबर 9589233818 और राकेश दुबे के मोबाइल नंबर 9425438313 पर संपर्क कर सकते हैं.

ठ्ठकाला चना भी है गुणकारी

काले चने की खेती काफी समय से होती रही है. काला चना लगभग हर घर में बहुत आसानी से मिल जाता है. कुछ लोग इस की सब्जी बना कर खाना पसंद करते हैं, कुछ उबाल कर खाना, कुछ अंकुरित, तो कुछ भून कर. आप चने को चाहे जिस रूप में खाएं, लेकिन इसे खाना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है. इस में भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, मैग्नीशियम और दूसरे मिनरल्स होते हैं.
हालांकि चने का इस्तेमाल हर तरह से फायदेमंद है, लेकिन अंकुरित काला चना खाना सब से अधिक फायदेमंद होता है. इसे खाने से क्लोरोफिल, विटामिन ए, बी, सी, डी और के के साथ ही साथ फास्फोरस, पोटैशियम, मैग्नीशियम की जरूरत भी पूरी हो जाती है. इस के साथ ही काले चने के और भी कई फायदे हैं :
* चना फाइबर से भरपूर होता है. इस लिहाज से ये पाचन क्रिया के लिए विशेष फायदेमंद होता है. रातभर भिगो कर रखे गए चने को खाने से कब्ज की समस्या में फायदा होता है. साथ ही, जिस पानी में चने को भिगोया गया हो, उस पानी को फेंकने के बजाय पीने से भी फायदा होगा.
* चना खाने से ऊर्जा मिलती है. आप चने को गुड़ के साथ लेते हैं तो ये और फायदा करेगा.
* डायबिटीज के मरीजों के लिए भी चने का सेवन करना बहुत ही फायदेमंद होता है.
* अगर आप एनिमिक हैं, तो चने को अपनी आदत में शुमार कर लें. एनीमिया के मरीजों के लिए यह बहुत ही फायदेमंद होता है.

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गेहूं की नई प्रजाति कुदरत 9 : कम पानी में भी मिले अच्छी उपज

छोटा पौधा तकरीबन 85 सैंटीमीटर, बाल की लंबाई तकरीबन 10 इंच, एक बाल में तकरीबन 70-80 दाने होते हैं. इस का दाना मोटा, लंबा व चमकदार है. 1,000 दाने का वजन तकरीबन 70-75 ग्राम है, तो वहीं जिंक आयरन की मात्रा 48 प्रतिशत है.रबी सीजन की फसल गेहूं की नई प्रजाति कुदरत 9 शुगर और दूसरी बीमारियों में काफी लाभदायक है. इस की खूबी यह है कि पौधा छोटा होने के कारण तेज आंधीतूफान आने पर भी गिरता नहीं है. इतना ही नहीं, नई प्रजाति कुदरत 9 में प्रचलित प्रजातियों से डेढ़ गुना अधिक उत्पादन क्षमता होती है.

पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात के लाखों किसान इस प्रजाति को लगा कर बीज से बीज बना रहे हैं. इस की फसल अच्छी जा रही है. यह किस्म तकरीबन 110-120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इस की बोआई में प्रति एकड़ 40 किलोग्राम बीज लगता है और यह फसल 2-3 पानी में पक जाती है.किसान भाई खेत में गेहूं की फसल देख कर गेहूं बीज की और्डर बुकिंग कर रहे हैं. 4 से 5 गुना मुनाफा मिल रहा है. घर बैठे किसान भाई स्वरोजगार पा रहे हैं.

अधिक जानकारी के लिए कुदरत कृषि शोध संस्था, टडि़या, वाराणसी, उत्तर प्रदेश से भी संपर्क कर सकते हैं. बीज उत्पादन का प्रशिक्षण प्राप्त कर इस प्रजाति को पौधा किस्म प्राधिकरण संस्था, दिल्ली के प्रकाश सिंह रघुवंशी के नाम रजिस्टर्ड किया है. 4 बार इन्हें प्रथम राष्ट्रपति पुरस्कार व लाइफटाइम एचीवमैंट पुरस्कार से सम्मानित किया है.नैशनल इनोवेशन फाउंडेशन, अहमदाबाद, गुजरात इन बीजों को देश के कई कृषि विश्वविद्यालयों जैसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, जबलपुर, मध्य प्रदेश, चंद्रशेखर कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर, उत्तर प्रदेश व नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश गेहूं अनुसंधान, करनाल, हरियाणा, डा. राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर, बिहार में वितरित कर रहा है.
अधिक जानकारी के लिए प्रकाश सिंह रघुवंशी के मोबाइल नंबर 9580246411, 7020307801, 9415643838 पर संपर्क करें.

 

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