भोपाल निवासी शर्मा जी के बेटे की जब से शादी तय हुई है उनकी रातों की नींद हराम हो गयी है. कारण शादी करने के लिए किसी समुचित स्थान का प्रबंध न हो पाना. सितंबर माह में शादी तय होने के बाद पंडितजी ने दिसंबर के प्रथम सप्ताह में तीन मुहूर्त बताए. पंडित जी के अनुसार इसके बाद 6 माह तक कोई मुहूर्त नहीं है, अब इन तिथियों में भोपाल, इंदौर और उज्जैन तक में भी कोई होटल या समुचित स्थान  उन्हें नहीं मिल पा रहा है सो इसी बात को लेकर शर्मा जी और उनका परिवार हैरान परेशान हैं उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि इस मुहूर्त में वे कैसे बेटे का विवाह संपन्न करें और यदि शादी अभी  नहीं हुई तो 6 माह तक रुकना पड़ेगा.

रजिस्ट्रार आफिस में अधिकारी सुनयना ने जब अपना घर खरीदा तो उनके पंडित जी ने रजिस्ट्री करवाने के लिए शनिवार शाम 4 बजे का मुहूर्त बड़ा अच्छा बताया. गुरुवार और शुक्रवार को आफिस अवकाश होने के बावजूद सुनयना ने बरसते पानी में जाकर शनिवार 4 बजे ही घर की रजिस्ट्री करवाई भले ही इसके लिए उसे क्लर्क को कुछ रिश्वत भी देनी पड़ी.

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एक कंपनी में सी. ए. रेणु नेअपने पंडित जी के बताए शुभ मुहूर्त में डिलीवरी करवाने के लिए जबर्दस्ती ऑपरेशन करवाया जब कि डॉक्टर के अनुसार उसकी नॉर्मल डिलीवरी होने के शत प्रतिशत चांस थे परंतु रेणु के दिमाग में तो मुहूर्त ने डेरा डाल रखा था.

स्कूल टीचर पारुल के पंडित जी ने उसके नए घर के गृहप्रवेश के लिए जून माह की तारीख बताई जब कि पारुल का घर फरवरी में बनकर तैयार हो गया था. मुहूर्त के चक्कर में तीन माह का अतिरिक्त किराया देना पड़ा ऊपर से भरी गर्मी में मेहमानों के लिए कूलर ऐसी की व्यवस्था करनी पड़ी सो अलग.

ये हमारे शिक्षित भारतीय समाज के कुछ उदाहरण हैं जो बताते हैं कि किस प्रकार पूर्ण शिक्षित और नौकरी पेशा लोग भी अपनी शिक्षा और तार्किक क्षमता को दरकिनार करके मुहूर्त के चक्कर में फंसकर अनेकों समस्यायें उत्पन्न कर लेते हैं. इस मुहूर्त के चक्कर में वे अपना सुख, शांति और धन को भी दांव पर लगा देते हैं.

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क्या है मुहूर्त का चक्कर

युवा पंडित राहुल शर्मा के अनुसार मुहूर्त दो प्रकार के होते हैं शुभ और अशुभ मुहूर्त. शुभ मुहूर्त अर्थात ग्राह्य समय और अशुभ मुहूर्त अथवा अग्राह्य समय. पंडित जी के अनुसार शुभ अर्थात ग्राह्य समय में किये गए कार्य सफल होते हैं क्योंकि यह कार्य को प्रारम्भ करने का वह समय होता है जब तमाम ग्रह नक्षत्र शुभ परिणाम देने वाले होते हैं. मुहूर्त निकालते समय पंडित वक़्त, तिथि, वार, नक्षत्र, पक्ष, चौघड़िया और लग्न आदि का ध्यान रखते हैं. पंडितों के अनुसार मांगलिक कार्यों को शुभ मुहूर्त में करने से वे भविष्य में सफल और सुखद परिणाम देने वाले होते हैं.

कितना कारगर हैं मुहूर्त

इसे समझने के लिए हम कुछ उदाहरणों पर नजर डालते हैं-

कर्नल सिंह ने अपनी इकलौती बेटी की शादी सितंबर माह में की क्योंकि उनका दामाद उन्हीं दिनों अवकाश लेकर अमेरिका से भारत आया था. भारतीय पंडितों के अनुसार उस समय देव सोये रहते हैं इसलिए शुभ कार्यो को अंजाम नहीं दिया जा सकता परन्तु कर्नल सिंह ने अपनी उन्नत सोच के चलते इन दकियानूसी विचारों को नकारते हुए धूम धाम से अपनी बेटी की शादी की. बेटी के विवाह को आज 10 वर्ष हो चुके हैं और वह अपने दो प्यारे बच्चों के साथ सुखद दाम्पत्य जीवन का आनंद ले रही है. वहीं त्रिपाठी जी ने अपने बेटे का विवाह अपने खानदानी पुरोहित की राय के अनुसार जन्म कुंडली और गुण मिलाकर शुभ मुहूर्त और शुभ घड़ी में सम्पूर्ण विधि विधान से  किया था परंतु विवाह के दो वर्ष बाद ही उनका दाम्पत्य तलाक की प्रक्रिया में कोर्ट में लंबित है.

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हमारे पड़ोसी रश्मि ने अपने घर की रजिस्ट्री करवाने से लेकर गृहप्रवेश तक सारे कार्य पंडित जी की सलाह के अनुसार शुभ मुहूर्त में किये यहां तक कि बनारस से भोपाल आकर 5 पंडितों ने 10 दिन तक घर मे नियमित पूजा, हवन आदि करके गृहप्रवेश करवाया परंतु उसी घर में से हरदम पति पत्नी के चीखने चिल्लाने और लड़ाई झगड़ों की आवाजें आती रहतीं हैं. माता पिता के हरदम होने वाले कलह से बच्चे भी परेशान रहते हैं. रश्मि के विपरीत नीता ने अपने घर में प्रवेश के लिए किसी पंडित से मुहूर्त निकलवाने के स्थान पर केवल रविवार का दिन और अपने परिवार के सदस्यों की सहूलियत को प्राथमिकता दी और बिना किसी पूजा पाठ और पंडित जी के घर में शिफ्ट हो गई. आज उसे घर में रहते 3 साल हो गए हैं पर आज तक कभी किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा. उसके अनुसार घर में आने के बाद उसे बेटे की नौकरी लगने, बेटी की शादी तय होने और पति के प्रमोशन जैसी तमाम खुशियां प्राप्त हुईं हैं.

उपरोक्त उदाहरण बताते हैं कि विवाह, गृहप्रवेश, जन्म और जीवन को भली भांति चलाने के लिए किसी विशेष मुहूर्त या शुभ घड़ी की नहीं बल्कि समझदारी की आवश्यकता होती है. विवाह की सफलता पति पत्नी की परस्पर समझ, त्याग,समर्पण, और सहयोग पर निर्भर करती है. कितने भी शुभ मुहूर्त में खरीदे और प्रवेश किये घर में यदि परिवार के सदस्य आपस में लड़ते झगड़ते और मारते पीटते रहेंगे तो इसमें घर का क्या दोष ? शुभ मुहूर्त में जन्म लिए बच्चे की परवरिश यदि ढंग से नहीं की जाएगी तो बच्चा एक अच्छा और सफल इंसान कैसे बन पाएगा ? वास्तव में किसी भी रिश्ते और कार्य की सफलता कभी मुहूर्त से नहीं बल्कि इंसान के प्रयास पर निर्भर होती है. शुभ अशुभ मुहूर्त और घड़ी केवल पंडितों के बनाये चोचले और अपनी कमाई करने का जरिया मात्र हैं क्योंकि उनकी रोजी रोटी का एकमात्र साधन ही इसी प्रकार के कर्म कांड हैं. आजकल तो पंडितों ने दीवाली, दशहरा, मकर संक्रांति, होली और रक्षाबन्धन जैसे पर्वों पर भी पूजा करने का मुहूर्त बताना प्रारम्भ कर दिया है जिससे आम जनता भी सुखद फल की चाह में उसी शुभ घड़ी में पूजा करके पंडितों को भरपूर दान दक्षिणा से नवाजती है.

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वास्तव में मुहूर्त, शुभ अशुभ घड़ी जैसे शब्द पंडे पुजारियों के फैलाये हुए जाल हैं आवश्यक है कि उनके इस जाल में फंसने के बजाय दिमाग से काम लिया जाए. विचारणीय प्रश्न है कि जब सभी दिन और घंटे एक भौगोलिक प्रक्रिया है इसमें शुभ और अशुभ कैसे हो सकता है. मुहूर्त वाले दिनों में जहां स्थान,केटरिंग, पार्लर जैसी सर्विसेज बहुत महंगे दामों पर प्राप्त होती हैं वहीं बिना मुहूर्त के दिनों में इनकी उपलब्धता बहुत सुगम्य होती है जिससे बहुत अधिक आर्थिक बचत हो जाती है. आज के तकनीक के युग में इस प्रकार कीविचारधारा से मुक्ति पाना अत्यंत आवश्यक है तभी सच्चे मायनों में उन्नतिशील कहलाने के हकदार हो पाएंगे.

 

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