बड़ा बनने के लिए बड़े कद की नहीं ,कड़ी मेहनत और लगन की जरूरत होती है.बड़े कद वाले लोग छोटे कद काठी का भले ही मजाक उड़ाते हैं, लेकिन जब यही छोटे कद की प्रतिभाएं बड़े पदों पर जिम्मेदारी निभाती हैं तो पूरा समाज उन्हें सलाम ठोकता है.
आज भी बहुत से लोग लड़कियों को बोझ समझते हैं. यैसे में यदि लड़की शारीरिक रूप से कमजोर हो तो समाज उसे हिकारत भरी नज़र से देखना शुरु कर देता है. आरती नाम की लड़की की कहानी भी कुछ इसी तरह है , जो शारीरिक रूप से छोटी कद की होने पर समाज के ताने सुनती रही और एक दिन इतनी बड़ी बन गई कि उसने सबके मुंह बंद कर दिए.
हाल ही मैं राजस्थान के अजमेर में जिलाधिकारी (डीएम) की कमान संभालने वाली आरती डोगरा की ऊंचाई तो 3 फुट 6 इंच है, लेकिन जिले के सबसे बड़े पद पर आसीन होकर उन्होंने साबित कर दिया है कि बड़े कद से बड़ा पद नहीं मिलता.
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मूल रूप से उत्तराखंड के देहरादून निवासी आरती के पिता कर्नल राजेन्द्र डोगरा सेना में अधिकारी हैं और मां कुमकुम एक निजी स्कूल में प्रिसिंपल हैं. आरती के जन्म के समय डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि उनकी लड़की सामान्य स्कूल में नहीं पढ़ पाएगी. बस फिर क्या था समाज में रहने वाले लोग भी कहने लगे कि यह लड़की असामान्य है ,पर उनके माता-पिता ने आरती को सामान्य स्कूल में डाला. लोगों के कहने के वाबजूद उनके माता-पिता ने किसी और बच्चे के बारे में न सोच कर अपना पूरा ध्यान आरती पर ही केन्द्रित कर लिया.
आरती की स्कूलिंग देहरादून के वेल्हम गर्ल्स स्कूल में हुई . जहां भी साथ पढ़ने वाली लड़कियां उनके कद का मजाक उड़ाती थी.आरती ने इन सब की परवाह न करते हुए अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर क्रेंदित किया. स्कूली पढ़ाई के बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया है.
आरती की जुबानी : सफलता की कहानी
आरती के कर्नल पिता को ऐसा जुनून था कि बिटिया को उन्होंने खेलकूद के अलावा घुड़सवारी तक सिखाई. इसके लिए उन्होंने अलग से जीन तक बनवाकर उन्हें घोड़े पर बैठना सिखाया.आरती डोगरा बताती हैं कि सिंगल चाइल्ड के रूप में माता-पिता ने मेरी परवरिश की. उन्होंने इतना हौसला प्रदान किया कि कभी किसी प्रकार की कमी नहीं महसूस हुई.स्कूल से निकल कर दिल्ली के श्रीराम लेडी कॉलेज से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन करने के दौरान उन्होंने जमकर छात्र राजनीति में भी भाग लिया और छात्र संघ का चुनाव भी जीतीं. वह कॉलेज की सांस्कृतिक गतिविधयों से लेकर डिबेट तक में खुद भाग लेकर अपने व्यक्तित्व को निखारती रहीं.
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यूपीएससी के समय उन्होंने जमकर मेहनत की और उम्मीद के विपरीत लिखित परीक्षा पास कर ली. अब साक्षात्कार में जाना था. साक्षात्कार के लिए कमरे में प्रवेश करने से पूर्व बुरी तरह से नर्वस हो चुकी थीं.अंदर पहुंचीं तो इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों ने माहौल को कुछ हल्का बनाया तो हिम्मत आ गई इसके बाद 45 मिनट तक सवाल-जवाब की दौर चला. आर्मी व अर्थशास्त्र का बैकग्राउंड होने के कारण अधिकांश सवाल इसी से जुड़े होने के कारण वह अपने पहले ही प्रयास में आईएएस सेलेक्ट हो गईं.
आरती डोगरा ने अपनी सफलता की राह में कभी अपने कद को बाधक नहीं बनने दिया.आरती डोगरा अपने जीवन के अनुभव साझा करती हुई बताती हैं कि आईएएस अधिकारी का पद कभी महिला और पुरुष में भेद नहीं करता है.ऐसे में उनको तो कभी इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि वे एक महिला हैं. इस पद पर रहते हुए किसी अधिकारी से जिस काम की अपेक्षा की जाए, वह एक महिला भी आसानी से निभा सकती है. कलेक्टर रहने के दौरान कई बार उन्होंने रात को दो बजे पुरुष अधिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी ड्यूटी निभाई है. उन्हें अपने अब तक के जीवन को लेकर किसी प्रकार का अफसोस नहीं है. वह मानती हैं कि यह नकारात्मक सोच है और वह कभी ऐसा नहीं सोच सकती हैं.
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आईएएस मनीषा से मिला प्रोत्साहन
दिल्ली से ग्रेजुएशन करने के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए वो वापस देहरादून चली आयीं. उसी समय उनकी मुलाकात देहरादून की तत्तकालीन डीएम आईएएस मनीषा पंवार से हुई. जिन्होने उसकी सोच को पूरी तरह बदल किया.आरती उनके विचारों और सोच से इतनी प्रेरित हुई कि उनके अंदर भी आइएएस बनने का जुनून पैदा हो गया. आरती ने इसके लिए जमकर मेहनत की और उम्मीद से भी बढ़कर अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी 2006 की लिखित परीक्षा और इंटरव्यू भी पास कर लिया. आरती ने साबित कर दिया कि दुनिया चाहे कुछ भी कहे, कुछ भी सोचे हम काबिलियत के दाम पर सबकी सोच बदल सकते हैं.
आरती डोगरा आज राजस्थान कैडर की आईएएस अफसर हैं. आरती का कद भले छोटा है लेकिन आज वो देशभर की महिला आईएएस के प्रशासनिक वर्ग में मिसाल बनकर उभरी हैं और ये कहना भी गलत नहीं होगा कि उन्होंने समाज में बदलाव के लिए कई मॉडल पेश किए हैं , जिन्हें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सराहा है.
आरती ने अपने कार्यकाल में बड़े-बड़े काम किए हैं.फिलहाल उन्हें राजस्थान के अजमेर की नई जिलाधिकारी के तौर पर नियुक्ति मिली हैं.इससे पहले भी वे अजमेर में एसडीएम के पद पर भी रह चुकी हैं. आरती राजस्थान के बीकानेर और बूंदी जिलों में भी कलेक्टर रह चुकी हैं.
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बीकानेर की जिलाधिकारी के तौर पर 2013 में आरती ने “बंको बिकाणो” नामक अभियान की शुरुआत की थी, जिसमें लोगों को खुले में शौच ना करने के लिए प्रेरित किया जाता था. इसके लिए प्रशासन के लोग सुबह गांव जाकर लोगों को खुले में शौच करने से रोकते थे. उनके कार्यकाल में ” स्वच्छ भारत अभियान” के तहत गांव-गांव पक्के शौचालय बनवाए गए थे.
इस अभियान की मॉनीटरिंग मोबाइल सॉफ्टवेयर के जरिए की जाती थी. यह अभियान 195 ग्राम पंचायतों में सफलता पूर्वक चलाया गया. बंको बिकाणो की सफलता के बाद आस-पास के जिलों ने भी इस पैटर्न को अपनाया था. आरती डोगरा को उनके द्वारा किए गए कामों के लिए अब तक राष्ट्रीय और राज्य स्तर के कई पुरस्कार मिल चुके हैं.
फिजूल खर्ची, बिजली बर्बादी रोकने किया काम
आरती जोधपुर में विजली वितरण करने वाली कंपनी *डिस्कॉम* के प्रबंध निदेशक के पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला आईएएस अधिकारी रही हैं.आरती डोगरा ने पद ग्रहण करने के बाद जोधपुर डिस्कॉम में फिजूल खर्ची, बिजली बर्बादी पर नियंत्रण के लिए जूनियर इंजीनियर से लेकर चीफ इंजीनियर तक की जिम्मेदारी तय की कर दी थी. दूरदराज में जहां बिजली नहीं थी, वहां बिजली पहुंचाने के सभी प्रयास किए उनके द्वारा किये गए.
इसके अलावा बिजली बचत को लेकर जोधपुर डिस्कॉम में एनर्जी एफिशियेंसी सर्विस लिमिटेड (EESL) द्वारा उन्होंने करीब 3 लाख एलईडी बल्ब (LED Bulb) का वितरण भी करवाया था, जिससे बिजली की खपत को काफी हद तक नियंत्रित किया गया था.