राजस्थान सूबे के जोधपुर जिले के खारियामीठापुर गांव के 60 साला किसान हेमाराम के पास 20 बीघे जमीन है. हेमाराम वैसे तो पढ़ेलिखे नहीं हैं, लेकिन खेती का काम बहुत लगन व मेहनत से करते हैं. वे नई तकनीक व नवाचारों में आगे रहते हैं. खेती में सौंफ, मिर्ची, धनिया, मेथी, कपास और रिजका की बोआई करते हैं. उन्हें खरीफ में कपास की खेती में नवाचारों से अधिक लाभ मिला है. वे आजकल बीटी कपास बोते हैं, इस में लट कीट का प्रकोप नहीं होता है. उन्होंने कपास की सहभागी परियोजना से संपर्क कर के कपास की नई किस्म बायर सरपास 7007 की बोआई मई महीने में की. वे हर साल 6-7 बीघे में कपास की बोआई करते हैं. जमीन में पीएच बढ़ रहा है, खारच की वजह से छोटी उम्र में पौधे ज्यादा मरते हैं, इसलिए सब से पहले बोआई में नवाचार किए और डोलियां बना कर डोलियों पर बीज की बोआई की जिस से खारे पानी से छोटे पौधों पर असर कम हो व पौधे कम से कम मरें. जहां कहीं पौधे मर गए वहां उसी उम्र के पौलीथीन थैलियों में उगाए पौधे लगा कर पौधों की संख्या बराबर रखी.
वे गरमियों में ट्रैक्टर से खेत की तैयारी कर देते हैं. बोआई से पहले गोबर की खाद देते हैं. वे घर पर ही 6-7 पशु रखते हैं. उन से प्रति दिन 20 लीटर दूध सुबह और 20 लीटर दूध शाम को मिल जाता है. पशुओं से मिले गोबर की खाद डालने से फसलें अच्छी होती हैं. बोआई के समय डीएपी और यूरिया खाद डालते हैं और बाद में यूरिया पहली सिंचाई पर और फिर कलियां बनते समय देते हैं. इस प्रकार कुल उर्वरक 75 किलोग्राम नाइट्रोजन और 35 किलोग्राम फास्फोरस देते हैं.
कपास की खड़ी फसल पर सफेद मक्खी और हरातेला कीट (रस चूसक कीट) का प्रकोप बहुत होता है. रोकथाम के लिए कोन्फिडोर का छिड़काव करते हैं. हेमाराम ने कीट नियंत्रण में भी नवाचार किए. कपास की पत्तियों पर 2 से अधिक हरातेला कीट या 6 से 8 सफेद मक्खी दिखने पर छिड़काव किया. ज्यादातर किसान अंधाधुंध छिड़काव करते हैं जिस से खर्चा अधिक होता है और कीटों की रोकथाम सही नहीं होती. दूसरे छिड़काव में टेमरान गोल्ड कीटनाशी के इस्तेमाल से फसल स्वस्थ रही. फसल पर फूल आते समय इफको के एनपीके 19:19:19 घुलनशील उर्वरक के 1 फीसदी घोल (यानी 15 लीटर पानी में 150 ग्राम उर्वरक) का छिड़काव किया और प्लानोफिक्स 4 मिलीलीटर प्रति 15 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव किया. इस से फल गिरने की शिकायत बिलकुल नहीं रही और फसल पर अधिक फूल और डोडे खिले. संतुलित उर्वरक से सूखने की बीमारी भी नहीं लगी. कपास खिलने पर चुगाई में खास ध्यान दिया और कपास को मिलावट से बचाया. उन्हें 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर कपास का उत्पादन मिला, जो एक रिकार्ड है. जोधपुर जिले में कपास का अधिक उत्पादन लेने वाले हेमाराम को भारतीय वस्त्र उद्योग परिसंघ और कपास विकास एवं अनुसंधान संगठन द्वारा नागोर जिले के सोथला गांव में विशाल किसान मेले में नकद राशि व प्रशस्तिपत्र दे कर सम्मानित किया गया. हेमाराम पिछले 40 सालों से कपास की खेती करते हैं. वे उन्नत तकनीक के लिए तमाम गोष्ठियों और मेलों में भाग लेते हैं. उन्हें प्रति हेक्टेयर 70 हजार रुपए से ज्यादा शुद्ध लाभ कपास की खेती में नवाचारों से मिला है. हेमाराम बताते हैं कि उन्हें उन्नत तकनीक से पैदावार बढ़ाने की प्रेरणा कृषि वैज्ञानिकों से मिली है. वे पढ़ेलिखे नहीं है, लेकिन खेती का तजरबा हासिल कर के किसानों को लाभ देते रहे हैं.
अधिक जानकारी के लिए किसान हेमाराम के फोन नंबर 9983119750 और लेखक के फोन नंबर 9414921262 पर संपर्क कर सकते हैं.