भारत के किसान अपनी खेती को ले कर हमेशा परेशान रहते हैं कि कब उन की फसल पर मौसम और बीमारियों की मार पड़ जाए और खूनपसीने से तैयार की गई फसल बरबाद हो जाए. यही नहीं किसानों को खादबीज पानी और खेती के यंत्रों की समस्याएं भी झेलनी पड़ती हैं. कुछ ऐसा ही हाल पशुपालन व बागबानी वगैरह का भी है. किसानों को अन्नदाता कहा जाता है. यह कहने और सुनने दोनों में बहुत अच्छा लगता है. लेकिन देश के 1 अरब से भी ज्यादा लोगों का पेट भरने वाले ये किसान सरकारी कामकाज में ढील व खेतीकिसानी की योजनाओं में गोलमाल के चलते बदहाली का शिकार होते जा रहे हैं. इन किसानों की बदहाली किसी से भी छिपी नहीं है.

ऐसे में किसानों को अच्छी खाद, बीज, सही मशीनों के चयन व बाढ़ या सूखे से निबटने के तरीकों की जानकारी होना जरूरी हो जाता है. खेतीकिसानी की इन्हीं समस्याओं से निबटने के लिए सरकार ने केंद्र व राज्य लेवल पर अलगअलग महकमे बना रखे हैं. इन में से कुछ महकमों का काम खेतीकिसानी से जुड़ी योजनाओं का प्रचारप्रसार करने व ट्रेनिंग देने का भी है. खेतीकिसानी से जुड़े महकमों में कृषि, पशुपालन, बागबानी, डेरी, मछलीपालन वगैरह खास हैं. इन्हीं खास महकमों द्वारा किसानों के लिए सैकड़ों अनुदान व ट्रेनिंग की योजनाएं भी चलाई जा रही हैं, जिन के लिए केंद्र व राज्य सरकारें हर साल अरबों रुपए खर्च करती हैं.

सरकार द्वारा किसानों के लिए चलाए जा रहे ट्रेनिंग कार्यक्रमों का हाल बहुत ही बुरा है, क्योंकि ज्यादातर ट्रेनिंग योजनाएं भ्रष्ट अधिकारियों व संस्थाओं के गोलमाल का शिकार हो कर सिर्फ उन्हीं का पेट भर रही हैं. ऐसे में ट्रेनिंग के अभाव में किसानों को खेती, बागबानी, पशुपालन वगैरह पर सही जानकारी न मिलने से तमाम तरह की परेशानियों से गुजरना पड़ता है. कभीकभी भारी नुकसान के चलते किसान आत्महत्या करने पर भी मजबूर हो जाते हैं.

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