चना, मटर, मसूर और राजमा रबी सीजन की प्रमुख दलहनी फसलें?हैं और देश के अलगअलग हिस्सों में पैदा की जाती?हैं. देश में कुल पैदा होने वाली दलहन में करीब 64 फीसदी रबी की फसलें होती हैं. विश्व दलहन उत्पादन के करीब 36 फीसदी रकबे के साथ भारत दुनिया का सब से बड़ा दलहन उत्पादक देश है, मगर अफसोस कि फिर भी हमें दलहनी फसलों को भारी मात्रा में विदेशों से आयात करना पड़ रहा है. एक अनुमान के मुताबिक हमारी जरूरत का करीब 70 फीसदी चना आयात करने के बाद मिल पाता है.

दलहनी फसलों का खास महत्त्व इन के पोषण मूल्य को ले कर है. ये फसलें जड़ों में गांठों के पाए जाने की वजह से वायुमंडल की 78 फीसदी नाइट्रोजन को खेतों में इकट्ठा करने का काम करती हैं. दूसरी ओर ये शाकाहारी लोगों के लिए प्रोटीन का बड़ा जरीया हैं. विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक एक शाकाहारी वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन 104 ग्राम दलहन अपनी प्रोटीन जरूरत के लिए चाहिए, मगर आर्थिक समीक्षा 2012-13 के मुताबिक 104 ग्राम के मुकाबले यह केवल 39.4 ग्राम ही मिल रहा है.

पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को रबी दलहनी फसलों के लिए सही प्रबंधन करना चाहिए, इस प्रबंधन में सब से जरूरी है संतुलित उर्वरकों का इस्तेमाल. संतुलित उर्वरकों से न केवल पैदावार बढ़ाई जा सकती?है, बल्कि खेती की लागत भी घटाई जा सकती है.

संतुलित उर्वरक : फसल की जरूरत या मिट्टी की जरूरत के हिसाब से पोषक तत्त्वों का सही अनुपात संतुलित उर्वरक कहलाता है. वास्तव में संतुलित उर्वरकों की पूर्ति मिट्टी की जांच के बाद जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल करने पर हो सकती?है.

संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन

संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन की बात की जाए, तो मिट्टी की सेहत को बनाए रखने और भरपूर पैदावार के लिए सभी पोषक तत्त्वों के स्रोतों जैसे रासायनिक उर्वरकों और खादों (हरी खाद, कंपोस्ट, गोबर की खाद व जैव उर्वरक वगैरह) का सही इस्तेमाल होना चाहिए.

कार्बनिक खाद : कार्बनिक खादों में गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट, नैडप कंपोस्ट, बायोगैस स्लरी, मुरगी की बीट, तिलहन

फसलों की खलियां, शुगरमिल की प्रेसमड आदि शामिल होती हैं. अलगअलग फसलों में इन का इस्तेमाल कर के रासायनिक उर्वरकों की मात्रा कम की जा सकती है. इस के अलावा

इन खादों के इस्तेमाल से हम मिट्टी की

जीवांश कार्बन और फास्फोरस की मात्रा को बढ़ा सकते?हैं.

गोबर की खाद का रासायनिक उर्वरकों के साथ इस्तेमाल करने से मिट्टी का गठन, पानी सोखने की कूवत, बनावट और हवा संचार कूवत में सुधार होता?है. इस से मिट्टी में सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रियाशीलता बढ़ती है.

हरी खाद : इस में खासतौर से लोबिया, सनई, ढैंचा, जंगली नील व करंज वगैरह की पत्तियां शामिल होती हैं. हरी खाद का इस्तेमाल करने से नाइट्रोजन की मात्रा में 30 फीसदी की कमी की जा सकती है. यह मिट्टी में मौजूद पोषक तत्त्वों के भंडार को गतिशील बनाती है. इस से मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्म जीवों के लिए मुनासिब माहौल बनता है, जिस से दलहनी फसलों की गांठों द्वारा मिट्टी में नाइट्रोजन फिक्स करने में मदद मिलती है.

फसल अवशेष : इस में धान, गेहूं,?ज्वार, बाजरा, मक्का, अरहर, चना व अन्य दलहनी फसलों और गन्ना के अवशेष (ठूंठ और पत्तियां) शामिल होते हैं. मिट्टी में फसल के अवशेष को मिलाने से मिट्टी की उत्पादकता, पोषक तत्त्वों की आपूर्ति, सूक्ष्म जीव और एंजाइम की गतिविधियां बढ़ती हैं. इस से मिट्टी की भौतिक बनावट, नाइट्रोजन इस्तेमाल की कूवत और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के इस्तेमाल में सुधार होता है.

जैव उर्वरकों का इस्तेमाल : दलहन से संबंधित 2 प्रकार के जैव उर्वरक होते हैं. पहला अलगअलग दलहनी फसलों के लिए खास राइजोबियम कल्चर, जो कि दलहनी फसलों की जड़ों की गांठों में नाइट्रोजन बढ़ाने में मदद करता?है. दूसरा फास्फोरस साल्बुलाइजिंग बैक्टीरिया (पीएसबी कल्चर), जो मिट्टी में न घुलने वाली फास्फोरस को घुलने लायक रूप में मुहैया कराता है.

ध्यान देने वाली बात है कि जैव उर्वरकों

के इस्तेमाल से 15-25 फीसदी तक फसल की बढ़ोतरी होती है, करीब 10-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाट्रोजन की बचत हो जाती?है और 20-30 फीसदी प्रति हेक्टेयर फास्फेट मिल जाती है.

रासायनिक उर्वरकों का सही इस्तेमाल : इस के तहत मिट्टी की जांच के बाद मिली हिदायत के मुताबिक किन उर्वरकों को कितनी मात्रा में, किस प्रकार से, किस जरीए से और किस समय इस्तेमाल करना होगा जैसी बातों का ध्यान रखना चाहिए. हालांकि मात्र रासायनिक उर्वरकों से फसलों की सभी तत्त्वों की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते हैं. यही वजह है कि कार्बनिक खाद, हरी खाद, फसल अवशेष व जैव उर्वरकों वगैरह का भी इस्तेमाल किया जाता है.

उर्वरकों व खादों वगैरह

का इस्तेमाल

* कार्बनिक खादों, हरी खादों और फसल अवशेषों को बोआई से 1 या डेढ़ महीने पहले खेत की तैयारी के समय इस्तेमाल करना चाहिए.

* सभी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों और कार्बनिक खादों का इस्तेमाल मिट्टी की जांच की रिपोर्ट के मुताबिक ही करना चाहिए.

* बीज उपचार के लिए 200 ग्राम जैव उर्वरक (खास दलहन फसल के लिए राइजोबियम कल्चर और पीएसबी कल्चर) का आधा लीटर पानी में घोल बनाएं. घोल को 10 किलोग्राम बीजों के ढेर पर धीरेधीरे डाल कर हाथों से मिलाएं, ताकि जैव उर्वरक अच्छी तरह से बीजों पर चिपक जाए. इस के बाद उपचारित बीजों को छाया में सुखा कर तुरंत बोआई करें.

* मिट्टी के उपचार के लिए जैव उर्वरक के 10 पैकेटों की प्रति एकड़ के हिसाब से जरूरत पड़ती है. जैव उर्वरक के 10 पैकेटों को 25 किलोग्राम मिट्टी या 25 किलोग्राम कंपोस्ट में अच्छी तरह मिलाएं. इस तरह तैयार मिश्रण को बोआई के समय या 24 घंटे पहले 1 एकड़ रकबे में समान रूप से छिड़कें.

* बीजों की मात्रा घटने या बढ़ने की हालत में जैव उर्वरकों को उसी के मुताबिक घटा या बढ़ा लेना चाहिए.

* खेत में जैव उर्वरकों का इस्तेमाल सुबह या शाम के वक्त करें.

कुछ और खास बातें

* दलहनी फसलों में फास्फोरस की पूर्ति के लिए डीएपी का बारबार इस्तेमाल न करें. अच्छा होगा कि फास्फोरस की पूर्ति सिंगल सुपर फास्फेट यानी एसएसपी के जरीए करें.

* दलहनी फसलों में सल्फर, जिंक और मोलीबिडनम की भूमिका बहुत अहम होती है, इसलिए इन का इस्तेमाल कृषि वैज्ञानिकों से सलाह ले कर करना चाहिए.

* चने में असिंचित या देर से बोआई की दशा में 2 फीसदी यूरिया के घोल का पर्णीय छिड़काव करना चाहिए.

* बची हुई यूरिया की टापड्रेसिंग बोआई के 25-30 दिनों के बाद करनी चाहिए.

* सल्फर की कमी की दशा में 2-3 फीसदी घुलनशील सल्फर का पर्णीय छिड़काव करना चाहिए. इस से एक ओर जहां सल्फर की पूर्ति होगी, वहीं दूसरी ओर सर्दी में चूर्णिल आसिता रोग व पाले से भी बचाव हो जाएगा. ठ्ठ

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