डाॅक्टर जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की जान बचाता है तो वह उसे एक नया जीवन ही देता है. लेकिन धरती में अकेले डाॅक्टर ही नहीं है जो किसी को जीवनदान दे सकता है. एक साधारण इंसान भी चाहे तो जीवन में एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों लोगों को जीवनदान दे सकता है. जी, हां! ये जीवनदान रक्तदान करके दिया जा सकता है. एक स्वस्थ व्यक्ति अपने 70 साल के जीवन में कम से कम 200 से 250 यूनिट रक्तदान कर सकता है. यूं तो कोई भी व्यक्ति एक महीने बाद ही फिर से रक्तदान कर सकता है, लेकिन अगर उसे इतनी जल्दी रक्तदान करने में किसी किस्म का मानसिक डर सताता हो तो वह रक्तदान करने के तीन महीने बाद आंख मूंदकर रक्तदान कर सकता है. इस तरह से कोई भी इंसान एक साल में 4-5 बार रक्तदान कर सकता है. अगर 4-5 बार रक्तदान करना जीवनशैली के चलते संभव न हो तो कोई भी साधारण आदमी एक साल में कम से कम 2 बार एक यूनिट खून तो आंख मूंदकर दान कर सकता है.

यह इसलिए जरूरी है क्योंकि दुनिया में हर दिन करीब 3700 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. इनमें से करीब 2000 लोग बचाये जा सकते हैं, लेकिन वे इसलिए नहीं बच पाते; क्योंकि दुर्घटना के बाद तुरंत होने वाले इलाज के समय उनमें खून चढ़ाने की जरूरत होती है और खून समय पर मिल नहीं पाता. हर साल दुनिया में जो 13 लाख 50 हजार लोग रोड दुर्घटनाओं के चलते मारे जाते हैं, उनमें से कई लाख बच सकते हैं अगर समय पर खून मिल जाए. सिर्फ सड़क दुर्घटनाओं में ही नहीं तमाम दूसरी बीमारियों में भी रक्त अनुपलब्धता के कारण होने वाली मौतों को देखें तो यह आंकड़ा हैरान करने वाला है. दुनिया में हर दिन करीब 1 लाख 50 हजार लोगों की मौत होती है, जिसमें 40,000 से ज्यादा लोगों की मौत का कारण खून की अनुपलब्धता से जुड़ी होती है.

भारत में भी हर दिन करीब 2000 या इससे भी ज्यादा लोग तमाम तरह की बीमारियों से लेकर सड़क दुर्घटनाओं तक में इसीलिए असमय मौत का शिकार हो जाते हैं; क्योंकि उनके इलाज में जरूरत के समय रक्त नहीं मिल पाता. हिंदुस्तान में हर साल 1.50 लाख से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं या जीवनभर के लिए अपाहिज हो जाते हैं. इन हर तरह की मौतों में रक्तदान बड़े पैमाने पर कमी ला सकता है, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी देश में उतना रक्तदान नहीं हो पाता, जितने रक्त की हर समय जरूरत होती है. दुनिया में करीब 10 करोड़ लोग हर साल रक्तदान करते हैं. जबकि भारत में बमुश्किल 50 से 55 लाख लोग ही हर साल रक्तदान करते हैं. देश को हर साल तमाम तरह की बीमारियों और दुर्घटना में घायल लोगों को बचाने के लिए 1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा ब्लड यूनिट की जरूरत पड़ती है, लेकिन हर साल करीब 90 लाख यूनिट ही हमारे यहां रक्त एकत्र हो पाता है, जिसका साफ सा मतलब है कि हर साल करीब 30 लाख लोगों को खून की जरूरत के समय नहीं मिल पाता, इसमें से बड़ी संख्या में लोग मर जाते हैं.

सवाल है लोग रक्तदान क्यों नहीं करते? इसकी सबसे बड़ी वजह रक्तदान को लेकर फैली तमाम तरह की भूतियां हैं, मसलन इससे हम कमजोर हो जाते हैं, इससे हमारे शरीर में खून का बनन बंद हो जाता है, इससे हमें कई तरह की बीमारियां लग जाती हैं. ऐसे न जाने कितने भ्रम हैं जो रक्तदान के साथ जुड़े हुए हैं. जबकि हकीकत इसके बिल्कुल अलग है. रक्तदान से न केवल किसी किस्म का नुकसान नहीं होता बल्कि उल्टे इससे कई किस्म के फायदे होते हैं. मसलन जो स्वस्थ लोग साल में एक या दो बार रक्तदान करते हैं, उनको हार्टअटैक की आशंकाएं कम से कम होती हैं. यही नहीं रक्तदान करने से वजन भी कम होता है. रक्तदान करने से शरीर में एनर्जी आती है तथा लिवर से जुड़ी समस्याओं में राहत मिलती है. इससे आयरन की मात्रा को बैलेंस कर सकते हैं और कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है.

इस सबके बावजूद भी सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया के ज्यादातर देशों में लोग रक्तदान से उदासीन रहते हैं. मसलन भारत जहां महज 75 फीसदी ही खून की जरूरत को पूरी कर पाता है, वहीं श्रीलंका को भारत से भी कम अपनी जरूरत का महज 60 फीसदी रक्त ही रक्तदान से हासिल हो पाता है. नेपाल और थाइलैंड में भारत से ज्यादा रक्तदान होता है; क्योंकि नेपाल अपनी जरूरत का 90 फीसदी तथा थाइलैंड करीब 95 फीसदी अपनी जरूरत का रक्त, रक्तदान के जरिये हासिल कर लेता है. कहने का मतलब यह है कि दुनिया के बहुत कम ऐसे देश हैं, जहां जरूरत से ज्यादा रक्त एकत्र होता है. सवाल है इसकी सबसे बड़ी वजह क्या है? इसकी सबसे बड़ी वजह तमाम किस्म की भ्रंातियां तो हैं ही, एक बड़ी वजह आधी दुनिया को रक्तदान से दूर रखना भी समस्या है. गौरतलब है कि भारत में सिर्फ 10 फीसदी महिलाएं ही रक्तदान कर पाती हैं.

भारत में महिलाओं का बहुत कम रक्तदान कर पाना इसलिए भी चिंता का विषय है; क्योंकि भारत की ज्यादातर महिलाएं मेडिकली फिट नहीं हैं. ज्यादातर महिलाओं में हीमोग्लोबिन का स्तर 12 से कम होता है. अगर हीमोग्लोबिन ठीक भी होता है तो उनका वजन खतरनाक स्तर से कम होता है. इसलिए महिलाएं हिंदुस्तान में काफी कम योगदान रक्तदान में करती हैं. देश में रक्तदान को लेकर धारणा यह भी बनी हुई है कि गर्मियों में रक्तदान करने से शारीरिक समस्याएं बढ़ जाती हैं जबकि ऐसा कुछ नहीं है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि हिंदुस्तान जैसे देश में सबसे ज्यादा रक्त की जरूरत होती है. देश में कई वजहों से रक्तदान की बहुत जरूरत है. देश में हर साल 8,000 से ज्यादा बच्चे थैलीसिमिया जैसी बीमारी के साथ पैदा होते हैं. इनमें से कई बच्चों की असमय मौत हो जाती है क्योंकि इस बीमारी में लगातार खून बदलने की जरूरत होती है. यही नहीं भारत में करीब डेढ़ से दो लाख थैलीसिमिया के मरीज हैं, जिनमें बार बार रक्त बदलने की जरूरत पड़ती है. भारत में रक्तदान की दर बहुत ही कम है. 1000 में सिर्फ 8 लोग ही हैं जो स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं. भारत उन 70 से ज्यादा देशों में से है, जहां खून की जरूरत के समय लोग अपने करीबी रिश्तेदारों या खून बेचने वालों पर निर्भर रहते हैं. देश में कोई भी ऐसा हाॅस्पिटल नहीं है जहां बड़े पैमाने पर हर रोगी की जरूरत के लिए पहले से रक्त उपलब्ध हो.
ऐसे में जरूरी है कि हिंदुस्तान में रक्तदान को जितना ज्यादा हो सके प्रमोट करना चाहिए. तभी हम बड़े पैमाने पर होने वाली असमय की मौतों से बच सकते हैं.

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