एवरस्मार्ट युवा पीढ़ी अब हो ही जाए एवरस्मार्ट. दौर स्मार्टनेस का ही है. समाज में एक ओवरस्मार्ट (…) चहलकदमी कर रहा है. चूक हुई, दुर्घटना घटी. युवा भी सुरक्षित नहीं हैं. युवा भी उस के निशाने पर हैं.
दरअसल, आमतौर पर युवाओं और स्वस्थ लोगों में स्ट्रोक का ख़तरा कम होता है, लेकिन नोवल कोरोना वायरस ने युवाओं में स्ट्रोक का ख़तरा बढ़ा दिया है. सब से ज़्यादा ख़तरनाक बात यह है कि उन युवाओं पर भी स्ट्रोक का असर हो सकता है जिन में नोवल कोरोना वायरस से उभरी कोविड-19 बीमारी के लक्षण दिखाई भी न दें जबकि वे संक्रमित हों.
स्ट्रोक है क्या :
बहुत सारे लोग स्ट्रोक शब्द से भले ही वाकिफ न हों, लेकिन फालिज़ यानी लकवा के बारे में जानते होंगे. लकवा की स्थिति में शरीर का कोई हिस्सा या अंग काम करना बंद कर देता है. यह लकवा मारना ही स्ट्रोक कहलाता है. इसे पक्षाघात या पैरालिसिस या ब्रेनअटैक भी कहते हैं. दुनिया में करीब 85 फीसदी लोगों में दिमाग की खून की नली के अवरुद्ध होने यानी ब्लड क्लौटिंग होने पर व करीब 15 फीसदी में दिमाग में खून की नस फटने से लकवा होता है.
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जान लें कि फ़ालिज यानी लकवे में किसी की पूरी बौडी फ़ालिज का शिकार हो जाती है तो किसी की आधी बौडी इस की चपेट में आती है. कुछ लोगों के जिस्म के किसी विशेष अंग को फ़ालिज हो जाता है. फालिज़ होने की वजह साफ है. फालिज़ के चलते जिस्म का निचला हिस्सा यानी कमर से नीचे का भाग काम करना बंद कर देता है. कभीकभी व्यक्ति के पैर और पैरों की उंगलियां भी काम करना बंद कर देती हैं.
स्ट्रोक से जिस्म और दिमाग दोनों पर असर पड़ता है. पूरा जिस्म दिमाग के इशारों पर ही चलता है. सो, अगर दिमाग पर ही आघात लगे, तो जिस्म भी काम नहीं कर पाता. यों समझिए कि स्ट्रोक एक इमर्जेंसी कंडीशन है.
स्ट्रोक और हैमरेज का फर्क समझें :
न्यूरो सर्जन डा. अरुण सिंह का कहना है, “आमतौर पर लोग ब्रेन स्ट्रोक और ब्रेन हैमरेज को ले कर कन्फ्यूज्ड रहते हैं. दरअसल, ब्रेन की कोई नस फट जाती है तो उसे ब्रेन हैमरेज कहा जाता है. ब्रेन हैमरेज, हालांकि, ब्रेन स्ट्रोक का हिस्सा है. लेकिन, ब्रेन स्ट्रोक के तहत ब्लड क्लौटिंग यानी खून की नली का अवरुद्ध होना और हैमरेज यानी नस फटना दोनों आते हैं.
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युवा संक्रमितों पर फालिज़ अटैक :
अमेरिका के थौमस जेफरसन विश्वविद्यालय में हुए शोध में यह बात सामने आई है कि कोरोना वायरस के ज़रिए युवाओं में स्ट्रोक का ख़तरा बढ़ गया है. थौमस जेफरसन विश्वविद्यालय में कोविड-19 के ऐसे रोगियों पर 20 मार्च से 10 अप्रैल तक शोध किया गया जिन पर फालिज का हमला हुआ था और वह हमला असाधारण था. शोध में यह बात सामने आई है कि 30, 40 और 50 वर्ष की आयु के कोरोना संक्रमितों पर फालिज का हमला ज़्यादा हुआ था, जबकि इस तरह का हमला आमतौर पर 70 से 80 वर्ष की आयु के लोगों में ज़्यादा देखने को मिलता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने शुरुआती तौर पर 14 रोगियों पर शोध किया और ऐसे लक्षण पाए जो बहुत ही चिंताजनक हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यह भी हो सकता है कि युवाओं को यह पता ही न चले कि वे कोरोना वायरस से संक्रमित हैं जबकि उन के ख़ून में क्लोट्स और फालिज का ख़तरा हो सकता है.
रोगियों को नहीं पता, उन्हें रोग है :
इस शोध में शामिल किए गए 50 प्रतिशत रोगियों को यह पता ही नहीं था कि वे कोरोना वायरस का शिकार हैं, जबकि अन्य लोगों का दूसरी बीमारियों का इलाज हो रहा था और उन पर फालिज का हमला हो गया. शोध में यह भी कहा गया है कि अगर फालिज के लक्षण वाले रोगी कोरोना वायरस से संक्रमित होने के डर से अस्पताल जाने से बचेंगे तो उन के देर करने से उन की जान जा सकती है. यह बात भी शोध में सामने आई है कि कोविड-19 के बाद फालिज का शिकार होने वाले लोगों की मृत्युदर 42.8 फीसदी है जबकि आमतौर पर फालिज से मरने वालों की दर 5 से 10 फीसदी ही होती है.
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मोटे युवा भी टारगेट पर :
अमेरिका में कोरोना के सर्वाधिक संक्रमण के बीच वहां स्थित जौन हौपकिन्स यूनिवर्सिटी का एक महत्त्वपूर्ण अध्ययन सामने आया है. इस में दावा किया गया है कि युवा आबादी में कोरोना के संक्रमण की एक प्रमुख वजह मोटापा भी है. अमेरिका में कई लाख कोरोना संक्रमण मामले सामने आ चुके हैं जिन में बड़ी तादाद में युवा आबादी भी ग्रस्त है.
लांसेट पत्रिका में प्रकाशित शोधपत्र में कहा गया है कि 265 मरीजों पर अध्ययन करने के बाद यह नतीजा निकाला गया है. ये मरीज जौन हौपकिन्स अस्पताल के अलावा यूनिवर्सिटी औफ न्यूयौर्क, यूनिवर्सिटी औफ वाशिंगटन, फ्लोरिडा हेल्थ आदि से संबद्ध अस्पतालों में कोविड उपचार के लिए भरती थे.
जौन हौपकिन्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इन मरीजों के बौडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के आधार पर कोरोना संक्रमण की आशंकाओं का अध्ययन किया. इन में से सिर्फ 25 फीसदी युवा ही ऐसे थे जिन का बीएमआई कंट्रोल में था, बाकी लोग मोटापे से ग्रस्त थे.
शोधकर्ताओं ने कहा कि यह बात पहले भी सामने आई थी कि मोटापे से ग्रस्त लोग इस बीमारी की चपेट में ज्यादा आ सकते हैं लेकिन ताज़ा खतरा पहले जताई गई आशंका से कहीं खतरनाक है.
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एक अन्य अध्ययन के मुताबिक बच्चों, किशोरों और युवा वयस्कों को कोविड-19 से गंभीर जटिलताओं का पूर्व के अनुमान से कहीं ज्यादा खतरा है. अमेरिका के रटगर्स विश्वविद्यालय के इस अध्ययन के सह लेखक लौरेंस क्लेनमेन ने कहा, “यह विचार कि कोविड-19 बीमारी युवाओं को बख्श दे रही है, गलत है.”
इस प्रकार, यह साफ़ है कि कोरोना फेमिली का यह नया वायरस नोवल कोरोना पहले आए वायरसों से ओवरस्मार्ट है. यह तरहतरह से अपने टारगेट पर अटैक कर रहा है. ऐसे में युवाओं, जो अपनेआप को मजबूत इम्यूनिटी वाला मानते हुए सुरक्षित समझते हैं, को खासतौर पर एलर्ट होना है ताकि वे अपनी स्मार्टनेस से इस ‘ओवरस्मार्ट’ को मात दे सकें.