Film Review: कोविड 19 महामारी आई और हजारों लोगों को मार कर या संक्रमित कर चली गई. जिन दिनों यह महामारी दुनियाभर में फैल रही थी, अकेले अमेरिका में ही प्रतिदिन हजारों लोग अस्पतालों में भरती हो रहे थे. लाखों लोग मारे गए थे. यह बीमारी विश्वभर में 2019 में शुरू हुई थी. उस वक्त विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सार्वजनिक आपातकाल घोषित किया गया था.

सही इलाज करने और आननफानन विश्वभर में टीकों का उत्पादन बढ़ा कर उन्हें कोविड के मरीजों को लगाया गया. नतीजतन काफी अरसे बाद कोविड पर काबू पाया जा सका.

आज कोविड पूरी तरह खत्म तो नहीं हुआ है पर इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम का खतरा हर वक्त बना रहता है ‘चलती रहे जिंदगी’उसी कोविड 19 पर बनी है. हालांकि आज लोग कोविड 19 को भूलते जा रहे हैं, जिंदगी स्मूथली चल रही है, मगर जरा सी किसी वायरस की आहट सुनाई पड़ती है तो लोग घबरा उठते हैं.

यह फिल्म डराती नहीं है. जो बीत गया सो बीत गया, मगर फिर भी लौकडाउन के दौरान लोगों के अनुभवों, मानसिक और शारीरिक चुनौतियों व उन के बीच के तनाव को दर्शाती है. यह विकट परिस्थितियों में धैर्य की परीक्षा लेती है.

यह फिल्म महानगरों के दौरान एक आवासीय परिसर में रहने वाले 3 परिवारों और उन के ब्रेड सप्लायर की कहानी बताती है. जो कोविड 19 लौकडाउन के दौरान विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हैं. इस फिल्म को दिलों को छू लेने वाला ‘लौकडाउन ड्रामा’ बताया जाता है.

इस फिल्म की शुरुआत वहां से होती है जब कोविड 19 वायरस की रोकथाम के लिए देशभर में लौकडाउन लगाया जाता है. कहानी मुंबई की एक सोसाइटी में रहने वाले 3 परिवारों की है. ब्रैड, बिस्कुट सप्लाई करने वाला कृष्णा (सिद्धांत कपूर) आर्थिक समस्याओं से जू?ा रहा है. लौकडाउन से पहले आरु (बरखा सेनगुप्ता) को अपने पड़ोसी अर्जुन (इंद्रनील सेनगुप्ता) की पत्नी के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का पता चलता है. आरु की एक बेटी भी है.

एक अन्य परिवार में सुषमा (फ्लोरा जैकब) अपने टीवी पत्रकार बेटे गौरव और बेटी के साथ रहती है. सुषमा ने कृष्णा को 50,000 रुपए दिए थे. अब उस का बेटा उस पर पैसे वापस लेने का दबाव बना रहा है. तीसरे परिवार में बुजुर्ग लीला (सीमा बिस्वास) अपनी डांसर बहू नैना (मंजरी फडणवीस) और किशोर बेटी सिया (अनाया शिव) के साथ तनाव से जू?ा रही हैं. तीनों परिवार लौकडाउन के साथसाथ अपनेअपने दम पर स्ट्रगल्स का सामना कर रहे हैं.

इस बीच, कृष्णा काम न होने के कारण सपरिवार अपने गांव जाने का फैसला करता है ताकि जमीन बेच कर वह पैसों का इंतजाम कर सके. उस सफर में रेल की पटरी पर सोने के दौरान कृष्णा समेत 12 लोगों की मौत हो जाती है. दूसरी ओर नैना को अपनी 70 साल की सास को किसी दूसरे से बीमारी लगने का डर सताता रहता है. नैना की भी डांस क्लासेज बंद हो जाती हैं. दुनिया थम सी जाती है तो सभी अपनेअपने रिश्तों का पुनर्मूल्यांकन करते हैं.

इस फिल्म को महामारी के दौरान जटिल परिस्थितियों में शूट किया गया. शुरुआत में आरु और उस के बेटे गौरव को नहीं दिखाया गया. पात्रों के भीतर कहीं तनाव नहीं दिखता. फिल्म में पति की बेवफाई से आरु आहत दिखाई देती है लेकिन अर्जुन पर इस का असर नहीं होता. रेल की पटरी पर सोते कृष्णा की दर्दनाक मौत देख कर दर्शकों के रोंगटे खड़े नहीं होते. कहानी दिल को छू नहीं पाती. सीमा बिस्वास फिल्म का आकर्षण है.

इंद्रनील सेनगुप्ता और बरखा सेनगुप्ता का काम ज्यादा बढि़या नहीं है. टीवी एंकर बने रोहित खंडेलवाल का किरदार अच्छा है. आकाश की मां बनी फ्लोरा जैकब का बिल्डिंग सारी औरतों की खबर रखने का किरदार दिलचस्प है.

बीचबीच में कोरोना की आहट आजकल भी सुनाई पड़ जाती है. लोगों को लगता है कि एक तो महंगाई, ऊपर से लौकडाउन लग गया तो उन का क्या होगा. फिल्म की कहानी रोंगटे खड़े करने वाली है. फिल्म का गीतसंगीत साधारण है. सिनेमेटोग्राफी अच्छी है. Film Review.

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