लेखक-शामी एम् इरफान

मुम्बई की धड़कन को उर्जा प्राप्त होती है कटिंग चाय और वड़ा – पाव से। चाय पर ज्यादा चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप सभी चाय के गुण – अवगुण से भली – भांति परिचित हैं. चाय- काॅफी ऐसा गर्म पेय पदार्थ है, जिस पर गरीब और अमीर दोनों अपने – अपने स्तर से चर्चा करते रहते हैं. इससे लाभ और हानि को लेकर न सिर्फ़ पत्र – पत्रिकाओं में कुछ न कुछ छपता रहता है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी चाय – काॅफी को लेकर बहुत कुछ देखने – सुनने व पढ़ने को मिलता है.

सर्वत्र चाय और काॅफी का सम्मान है. चाय थोड़ी – सी गरीब जरूर है और काॅफी तो शुरू से ही अमीर है लेकिन काॅफी से ज्यादा चाय ही मशहूर है. बिलकुल उसी तरह जैसे दुनिया में अमीरों से अधिक गरीब लोग हैं. यह गरीब ही हैं, जो सबसे ज्यादा चाय का सेवन करते हैं.

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चाय की चुस्की के लिए मेरे एक मित्र कहीं भी जा सकते हैं. उनका कहना है कि ‘चा, चु के लिए मुझे बुलाओ और मैं न आऊँ, ऐसा हो नहीं सकता.’ और कसम से वह चाय की चुस्की के लिए कभी भी कहीं भी बुलाने पर आ जाते हैं और उनकी इस कमजोरी का फायदा उनके अपने लोग बड़ी आसानी से उठाते हैं. या यूँ कहें कि, लोग उनको चाय पिलाकर अपना काम करा लेते हैं और काम निकलने के बाद पहचानते भी नहीं. ऐसे में काम का वाजिब मेहनताना कौन देता है. बस, वह चाय की चुस्की लेकर ही खुश रहते हैं.

देश और दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या करोड़ों में है, जो चाय-काॅफी और वड़ा – पाव के आदी हो चुके हैं और इनकी सही – सही जनसंख्या बता पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. चाय के चहेतों की तरह वड़ा – पाव के शौक़ीनो की कमी नहीं है. वड़ा – पाव महाराष्ट्र का फेमस खाद्य पदार्थ है. इसको यूँ भी कह सकते हैं कि, वड़ा सब्जी यानी भाजी है और पाव रोटी यानी चपाती. आप मानो या न मानो, मगर यह सच है कि, भाजी – रोटी की जगह समतुल्य है वड़ा  – पाव और यकीनन इसे खाने से सम्पूर्ण भोजन की फीलिंग्स आती है. वड़ा- पाव खाने से तन-मन को संतुष्टि मिलती है और परम आनंद की अनुभूति होती है.

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वड़ा – पाव देश के कई जगहों में मिलता है. लेकिन जो स्वाद मुम्बई के वड़ा  – पाव में है, वह टेस्ट कहीं और नहीं. मुम्बई में कोलाबा, नारीमन पाॅइन्ट, वी टी, चर्चगेट से कल्याण, विरार तक वड़ा – पाव खाने का अपना अलग ही स्वाद है. सेंट्रल रेलवे पर चलने पर वड़ा का स्वाद ज्यादा मजेदार नहीं होता, पता नहीं क्यों? वहीं जब वेस्टर्न रेलवे पर मुम्बई के नगर – उपनगर में वड़ा – पाव खाते हैं तो, जायका इतना मजेदार होता है कि, मन करता है और खाओ. बस, खाते जाओ. यहाँ पर यह बता देना अपना फर्ज समझता हूँ कि, रेलवे से मुम्बई देश के कई शहरों से जुड़ा है और हर शहर में वड़ा – पाव रेल का सफर करके पहुंच गया है. महाराष्ट्र से सटा प्रदेश गुजरात हो या दूर-दराज बसे शहर जम्मू, कोलकाता या कन्याकुमारी सब जगह जिस तरह चाय मिलती है, बिलकुल उसी तरह वड़ा – पाव भी खाने को मिल जाता है. मगर वह स्वाद, वह टेस्ट उनमें कहाँ जो मुम्बई के टेस्टी-टेस्टी वड़ा – पाव का होता है.

और सब लोग वड़ा – पाव बड़ी चाव से क्यों न खायें? इसके खाने से पेट की भूख शांत हो जाती है. बड़े-बुजुर्ग फरमाते थे कि, भूखे पेट भजन नहीं होता और मेरा मानना है कि, भूखे पेट कामकाज नहीं होता. कामकाज भी तो लोग पेट की भूख मिटाने के लिए ही करते हैं. यह पेट की भूख अपनी खुद की होती है और अपने परिवार की होती है. अगर पेट की भूख ना हो तो, लोग बाग कामकाज ही ना करें. ‘कोरोना’ संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश में इक्कीस दिनों का लाॅक डाउन किया गया है. ऐसे समय में सबको अपने घरों में रहने का सख्त आदेश है. माॅल, सिनेमाहाल, कल-कारखाने, ऑफिस – दुकानें सब बंद है. सभी अपने घरों में या जहाँ पर वे रहते हैं बंदी की तरह हैं. यहाँ पर वड़ा – पाव खाने के लिए कहाँ से कैसे मिलेगा, मार्केट में जब दुकानें  बंद हो, कमाई रुक गई हो और घरों में राॅशन-पानी की किल्लत चल रही हो?

अनुमानतः मुम्बई की तीन चौथाई आबादी उन कामगार लोगों की है, जो किसी दूसरे देश-प्रदेश, शहर-नगर से यहाँ रोटी- रोज़ी कमाने आये हैं. इनमें से हजारों वड़ा – पाव ही खाकर अपना एक वक्त पेट भरते हैं. हालांकि, रगड़ा-पाव भी खाकर बहुत से लोग अपने पेट की भूख शांत कर लेते हैं. लेकिन रगड़ा पाव खाने वालों की तादाद कम है. बिलकुल उसी तरह जैसे झुणका भाखर खाने वाले बहुत सीमित संख्या में हैं. और इसकी एक वजह यह भी है कि, वड़ा – पाव की तरह यह सब जगह मिलते नहीं.

खाने-पीने की छोटी – बड़ी दुकानों पर, ठेला – स्टालों पर बिकता है गरमागरम ताजा-ताजा वड़ा – पाव और खाने वाले दस – बारह रूपये का एक वड़ा – पाव लेकर खा लेते हैं. कोई अपने घर में वड़ा – पाव नहीं बनाता. सस्ता है, स्वादिष्ट है और सभी को प्रिय भी है. लेकिन लाॅक डाउन में पूरे देश में तालाबंदी है. छोटे-बड़े होटल, खाने-पीने की सारी दुकानें बंद हैं. इस देशबंदी में काम की भी पूरी तरह से बंदी है. जो कोरोना संक्रमण से प्रभावित हाॅटस्पाट क्षेत्र नहीं है, उधर आने-जाने की थोड़ी सी छूट है. इसके बावजूद कहीं जायें भी तो जाकर क्या करें? कहीं भी कुछ खाने को नहीं मिलने वाला.

वड़ा – पाव खाने की तीव्र इच्छा है. आदत पड़ चुकी है और लत से मजबूर हैं. घर में खाने-पकाने को नहीं है, जोड़-जाड़कर थोड़े पैसे बचाकर रखे भी हैं तो क्या? चाहकर भी पेट की भूख शांत नहीं कर सकते. जीभ से लार टपकती है और मुंह में वड़ा – पाव को सोच-सोचकर पानी आता है. कसम से तरस रहे हैं वड़ा – पाव खाने को. मुम्बई आये थे कमाने के लिए और लाॅक डाउन में फंस गये हैं सारे. राहत-मदद तो सब दिखावा है. कानों से सुनने में अच्छा लगता है, मगर सिर्फ सुनने से पेट नहीं भरता. हो सके तो, वड़ा – पाव वाली दुकानें ही खुलवा दो साहेब, हम वड़ा पाव ही खा लेंगे और लाॅक डाउन में भी घर के अंदर ज़िंदा रह लेंगे.

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