सचाई यह?है कि कुछ सालों से किसानों ने अरहर की खेती करना कम कर दिया है. इस बात को जानते हुए सरकार ने अरहर के समर्थन मूल्य को बढ़ाने का फैसला किया है, जिस से अरहर की खेती से किसानों को अब पहले से ज्यादा फायदा होगा. अरहर को ज्वार, बाजरा, उड़द व कपास वगैरह फसलों के साथ बोया जाता है. इस की फसल के लिए बलुई दोमट मिट्टी वाले खेत सब से अच्छे होते हैं. इस के अलावा अरहर की खेती के लिए ढलान वाले खेत सब से सही होते हैं. ढलान वाले खेतों में पानी रुकता नहीं है. अरहर बोने के लिए खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2 से 3 बार कल्टीवेटर से खेत की जुताई करनी चाहिए. अरहर बोने का समय : अगेती अरहर (टा 21) बोने का समय अप्रैल से मई के बीच में होता?है. जहां सिंचाई के अच्छे साधन हैं, वहां पर जून में और देर से पकने वाली अरहर की बोआई 15 जुलाई तक जरूर कर देनी चाहिए. बीजों का उपचार?: 1 किलोग्राम बीजों को 2 ग्राम थीरम और 1 ग्राम कार्बेंडाजिम से उपचारित करना चाहिए. बीज बोने से पहले अरहर का उपचार राइजोबियम से करना चाहिए. 1 पैकेट राइजोबियम कल्चर 10 किलोग्राम बीज के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है. जिस खेत में अरहर पहली बार बोई जा रही?हो, वहां पर कल्चर का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए.
बीज की मात्रा : अरहर के 1 हेक्टेयर खेत के लिए 12 से 15 किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है. अगर पानी का प्रभाव खेत में?है तो बहार किस्म वाली अरहर सितंबर महीने तक 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोनी चाहिए. अरहर की किस्म और मौसम के हिसाब से बीजों की मात्रा और पौधे से पौधे के बीच की दूरी रखनी चाहिए. अरहर की बोआई करने के लिए देशी हल का इस्तेमाल सही रहता है. अरहर की एक लाइन से दूसरी लाइन की दूरी 20 से 90 सेंटीमीटर के बीच रखी जाती है. दूरी बीज के हिसाब से रखते हैं. आईसीपीएल 151 की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर, टा 17 की दूरी 120 सेंटीमीटर, टा 21 की दूरी 75 सेंटीमीटर, टा 7 और आजाद की दूरी 90 सेंटीमीटर लाइन से लाइन के बीच रखनी चाहिए. अरहर की सभी किस्मों के लिए पौधे से पौधे के बीच की दूरी 20 से 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए.
खाद का प्रयोग : अरहर की अच्छी पैदावार के लिए 10 से 15 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 से 45 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम सल्फर का इस्तेमाल 1 हेक्टेयर खेत में करना चाहिए. अरहर के लिए सिंगल सुपर फास्फेट व डाई अमोनिया फास्फेट का इस्तेमाल फायदेमंद होता है. अरहर की फसल में सिंचाई का भी खास खयाल रखना चाहिए. टा-21, यूपीएएस 120, आईसीपीएल 151 को पलेवा कर के बोना चाहिए. दूसरे किस्म की अरहर को बोने के लिए बारिश में नमी होने पर बोना चाहिए. खेत में कम नमी हो तो फलियां बनते समय अक्तूबर के महीने में सिंचाई करनी पड़ती है. देर से पकने वाली किस्मों में अरहर को पाले से बचाने के लिए दिसंबर और जनवरी महीने में सिंचाई करना फायदेमंद होता है.
निराई व गुड़ाई : अरहर के खेत में पहली निराई बोआई के 1 महीने के अंदर होनी चाहिए. दूसरी निराई पहली निराई के 20 दिनों के बाद करनी चाहिए. घास और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नष्ट करने के लिए पेंडीमेथलीन 30 ईसी 3 लीटर और एलाक्लोर 50 ईसी 4 लीटर को 700 से 800 लीटर पानी में घोल कर बोआई के बाद पाटा लगा कर अरहर जमने से पहले छिड़काव करें.
कीट व बीमारियां : अरहर फसल में उकठा और बांझा किस्म के रोग होते हैं. इस के अलावा फली बेधक कीट व पत्ती लपेटक कीट, फलों की मक्खी भी अरहर के पौधों को नुकसान पहुंचाती हैं.
उकठा रोग में अरहर की पत्तियां पीली पड़ कर सूख जाती हैं और पौधा सूख जाता है. जड़ें सड़ कर गहरे रंग की हो जाती?हैं. छाल हटा कर देखने पर जड़ से तने तक की ऊंचाई में काले रंग की धारियां पाई जाती हैं. इस से बचाव के लिए इस रोग लगे खेत में 3 से 4 सालों तक अरहर की खेती नहीं करनी चाहिए. थीरम और कार्बेंडाजिम को 2:1 के अनुपात में मिला कर 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज को उपचारित कर के बोना चाहिए. अगर अरहर को ज्वार के साथ बोते हैं, तो यह रोग काफी कम हो जाता है. अरहर को बांझा रोग बहुत नुकसान पहुंचाता है. इस रोग में अरहर की पत्तियां छोटी हो जाती हैं. फूल नहीं आते?हैं. जिस से दाने नहीं बनते. यह रोग माइट द्वारा फैलता है. इस का कोई असरदार उपचार नहीं होता है. बहार, नरेंद्र और अमर किस्म की खेती कर के अरहर को इस रोग से बचाया जा सकता है.
इस के अलावा फलीबेधक कीट फलियों के अंदर घुस कर नुकसान पहुंचाते हैं. इस से बचाव के लिए फूल आने पर मोनोक्रोटोपास 36 ईसी 800 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या इंडोसल्फान 35 ईसी डेढ़ लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए. अगर जरूरत हो तो 15 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करना चाहिए.
पत्ती को लपेट कर खाने वाला एक कीड़ा पीले रंग का होता है. इस से बचाव के लिए मोनोक्रोटोपास 36 ईसी 800 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या इंडोसल्फान 35 ईसी सवा लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से जरूरत के मुताबिक पानी में डाल कर छिड़काव करना चाहिए.