यूपी में 3 मार्च 2020 को हाईस्कूल बोर्ड की परीक्षाएं खत्म हो गई और तीन दिन बाद यानी 6 मार्च 2020 को 12वीं की परीक्षाएं भी खत्म हो जाएंगी. हालांकि अभी तक अंतिम रूप से बोर्ड या शिक्षा विभाग द्वारा यह आंकड़ा जारी नहीं किया गया कि इस साल कुल कितने छात्र नकल करते पकड़े गये हैं. लेकिन हर दिन की आई अलग अलग संख्याओं को जोड़ें तो जो लमसम आंकड़ा बनता है, वह कोई 6,000 से ज्यादा छात्रों का नकल करते किसी न किसी रूप में पकड़े जाने का आंकड़ा बनता है.
यह आंकड़ा यूं तो दूसरे सालों को देखते हुए काफी कम लगता है लेकिन हमें इस आंकड़े में करीब 8,000 उन छात्रों को भी जोड़ देना चाहिए, जो तैयारी न होने या परीक्षाओं में नकल करने पर पकड़े जाने के डर से परीक्षाओं में ही नहीं बैठे.
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एक तरह से देखें तो कहा जा सकता है कि नकल रोकने की सख्ती के चलते इस साल दूसरे सालों के मुकाबले बहुत कम छात्रों ने नकल करने की कोशिश की या ऐसा करते हुए पकड़े गये. लेकिन अगर इसे इस नजरिये से देखें कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ परीक्षाओं के पहले कहा था और परीक्षाओं में बकायदा व्यवस्था की थी कि नकल करने वालों को इस साल सिर्फ शिक्षा विभाग के फ्लाइंग स्क्वायड के जरिये ही नहीं पकड़ा जायेगा बल्कि 18 फरवरी 2020 से शुरु हुईं बोर्ड परीक्षाओं में नकल करने वालों को पकड़ने के लिए खुफियातंत्र की भी मदद ली जायेगी.
इसके बाद भी अगर हजारों की तादाद में छात्र नकल करते पकड़े गये और उससे ज्यादा पकड़े जाने के डर से परीक्षाओं में बैठे ही नहीं तो कहा जा सकता है कि नकल न कर पाने के डर से रातोंरात छात्रों में कोई ईमानदारी नहीं आ गई, हां, इससे उनमें दहशत जरूर पैदा हुई.
उत्तर प्रदेश सरकार इस साल जिलाधिकारियों की देखरेख में पुलिस प्रशासन और जिला विद्यालय निरीक्षकों के जरिये बोर्ड परीक्षाओं को शून्य नकलवाली बनाने की कोशिश की थी, लेकिन कोशिश सफल नहीं रही.
सवाल है आखिर छात्र शासन प्रशासन के किसी भी कोशिश के बावजूद नकल करने की कोशिश क्यों करते हैं? वास्तव में हमें यह समझना होगा कि नकल किस तरह की समस्या है? दरअसल नकल महज परीक्षार्थियों की चतुराई या उनकी उदंडता भर नहीं है, नकल का अपना एक सामाजिक मूल्य है.
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समाज के आईने में नकल को बेईमानी और चरित्रहीनता की नजर से ही देखा जाता है, जो गलत भी नहीं है. लेकिन इस सबके बावजूद नकल को लेकर एक व्यवहारिक सच्चाई यह भी है कि सार्वजनिक तौरपर भले शायद ही कोई हो जो नकल के पक्ष में अपनी राय जताये. लेकिन अगर मौका मिले और विश्वास हो कि पकड़े नहीं जायेंगे तो शायद ही ऐसा कोई हो जो नकल न करे.
दरसअल नकल एक सहज मानवीय प्रवृत्ति है; क्योंकि नकल में यह लालच छिपा होता है कि बिना जरूरी मेहनत किये भी इसके जरिये योग्यता का सर्टिफिकेट हासिल हो सकता है. यही कारण है कि नकल सिर्फ भारत भर की समस्या नहीं है बल्कि आधुनिक परीक्षा प्रणाली जहां पर भी लागू की गई, उन सब जगहों में एक ऐसा दौर जरूर आया है, जब नकल परीक्षाओं का सिरदर्द साबित हुई है.
मौजूदा आधुनिक परीक्षा प्रणाली चीन में ईसा के पश्चात सन 605 में शुरु हुई. यह प्रणाली शुरुआत में कई शताब्दियों तक चीन में न सिर्फ खूब फूली-फली बल्कि इसने अपने आकर्षण से पूरी दुनिया को अपनी ओर खींचा. आज पूरी दुनिया में चीन में विकसित यही परीक्षा प्रणाली अलग अलग रूप और तरीकों से लागू है.
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गौरतलब है कि ईसा पश्चात सन 605 में शुरु हुई यह आधुनिक परीक्षा प्रणाली सन 1300 में चीन में खत्म कर दी गई. इसे चीन के शुई साम्राज्य ने खत्म कर दिया. इसके पीछे कारण सिर्फ और सिर्फ नकल की बहुत बड़ी समस्या का पैदा हो जाना था. चीन की तरह ब्रिटेन ने भी इस आधुनिक परीक्षा प्रणाली को अपने यहां सिविल सेवा के अधिकारियों को चयन करने के लिए सन 1806 में लागू किया. लेकिन करीब 100 सालों बाद वहां पर भी यह करीब करीब बंद कर दी गई या इसका पूरी तरह से ढांचा बदल दिया गया.
ब्रिटेन में भी इसका कारण नकल की समस्या का पैदा हो जाना ही था. साल 2016 में आयी एक रिपोर्ट के मुताबिक इंग्लैंड के कुछ छात्र नकल करने की कोशिश अब भी करते हैं, लेकिन इन छात्रों की संख्या महज 2 से 5 फीसदी होती है. हालांकि यह तथ्य निष्कर्ष के रूप में सामने नहीं आया, लेकिन कुछ शिक्षाशात्रियों द्वारा दबी जुबान यह भी कहा जाता है कि ब्रिटेन में नकल की आदत एशियाई छात्रों के चलते ही है, हालांकि यह बात सही नहीं है.
इंग्लैंड की तरह अमरीका में भी एक दशक पहले तक मिडिल और हाईस्कूल के छात्र नकल करने की कोशिश करते थे, लेकिन अब वहां नकल की कोशिश करीब करीब समाप्त हो गई है. तमाम अफ्रीकी देशों में भी जहां पर आधुनिक ढांचे की शिक्षा और परीक्षा व्यवस्था है, वहां भी नकल एक समस्या रही है. लेकिन दुनिया के भले किसी भी देश में नकल की समस्या बहुत बड़ा सच रही हो, लेकिन आज की तारीख में दुनिया के ज्यादातर देशों में नकल का वह तौर तरीका जो छात्रों द्वारा भारत में अपनाया जाता है, दुनिया के किसी और देश में नहीं अपनाया जाता. जबकि भारत में नकल आज भी एक बड़ी समस्या है. हालांकि इसका भूगोल बड़ा मजेदार है. क्योंकि पूरे देश में नकल एक जैसी समस्या नहीं है. हिंदुस्तान में नकल करीब 70 फीसदी तक अकेले उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार की समस्या है. इसे अगर और नजदीक से देखें तो नकल की 90 प्रतिशत तक समस्या उत्तर भारत की है.
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हालांकि इस तथ्य की विश्वसनीयता संदिग्ध है. विशेषज्ञों का मानना है कि यूं तो नकल पूरे देश की समस्या है, लेकिन उत्तर भारत के छात्र पश्चिम और दक्षिण भारत के छात्रों जितने नकल करने में शातिर या दक्ष नहीं हैं. कहने का मतलब यह है कि अगर उत्तर भारत में नकल करने वाले छात्रों के आंकड़े पश्चिम या दक्षिण भारत की तुलना में बड़े हैं, तो इसका एक कारण उत्तर भारत के नकलची छात्रों का पश्चिम और दक्षिण भारत के नकलची छात्रों जितना स्मार्ट न होना भी है.
बहरहाल एक मोटा अनुमान यह है कि हिंदुस्तान में हर साल करीब 4 लाख छात्र बोर्ड की परीक्षाओं में नकल करते पकड़े जाते हैं. ये उन छात्रों की संख्या है जिन्हें नकल के आरोप में दबोचा जाता है और अंत तक किसी भी वजह से छोड़ा नहीं जाता. जबकि बड़ी तादाद पर ऐसे छात्र भी होते हैं जिन्हें नकल के लिए पकड़े जाने के बाद भी किसी न किसी वजह से छोड़ दिया जाता है. इस तरह अगर देखें तो सच्चाई यह है कि नकल करने के आरोप में जितने छात्र पकड़े जाते हैं, वास्तव में उससे कहीं ज्यादा होते हैं.
सवाल है यह समस्या तमाम प्रचार माध्यमों और जागरूकता के बावजूद भी दिन पर दिन और बड़ी क्यों होती जा रही है? आखिर गुरुजनों के प्रवचनों, अखबारों के विज्ञापन और समाज के सम्मानित लोगों द्वारा नकल की, की गई आलोचना के बाद भी नकल रूकती क्यों नहीं? यह आखिर लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती ही क्यों जा रही है? इसका कारण महज छात्रों का चरित्रहीन या गैरईमानदार होना भर नहीं है बल्कि नकल की लत न छूटने के पीछे एक बड़ा कारण हमारी मौजूदा परीक्षा प्रणाली भी है.
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वास्तव में हिंदुस्तान में नकल की जो समस्या नासूर जैसी बन चुकी है, उसका बड़ा कारण परीक्षकों द्वारा कल्पनाशील प्रश्नपत्र न बना पाने की समस्या है. हमारे परीक्षक ऐसे प्रश्नपत्र बनाते हैं जिनका शब्दशः जवाब न केवल पढ़ाई जाने वाली किताबों में मौजूद होता है बल्कि अध्यपाकों द्वारा जो सवाल जवाब अभ्यास पुस्तिकाओं में कराये जाते हैं उनमें भी परीक्षा के प्रश्नों का सटीक जवाब मौजूद होता है. इसलिए छात्रों के पास यह सुविधा होती है कि वे अपनी किताबें और उत्तर पुस्तिकाओं में लिखे जवाबों को परीक्षा की कॉपी में हूबहू उतार दें. इस सुविधा के चलते ही सबसे ज्यादा नकल की संभावना बनी रहती है और वह होती भी है.
कहने का मतलब यह कि हिंदुस्तान में छात्रों द्वारा बड़े पैमाने पर नकल किये जाने का एक बड़ा कारण यह है कि हमारे परीक्षक उनसे ऐसे कल्पनाशील सवाल नहीं पूछ पाते, जिनका जवाब पढ़ाया या बताया तो गया हो, लेकिन परीक्षा में उसे शब्दशः लिखने की जरूरत न हो. अगर हमारे परीक्षक ऐसे सवाल बनाने में कामयाब हो जाएं जिनका जवाब छात्रों को पढ़ाया तो गया हो लेकिन वह उनकी अभ्यास पुस्तिकाओं में शब्दशः लिखा न हो. ऐसे में छात्रों के लिए नकल करने की सुविधा ही नहीं बचेगी क्योंकि किताबों से या उत्तर पुस्तिकाओं वे हूबहू जवाब उतारते है, तो यह गलत होगा.