पढ़ेलिखे और सम झदार लोगों को किन्नर, हिजड़े जैसे शब्द अब चुभते हैं. कानून भी अब इन्हें ट्रांसजैंडर मानता है. हर तरह के कानूनी अधिकार इन्हें प्राप्त हैं. अब ये हवाईजहाज से सफर करते हैं. सभ्य समाज के साथ कदम से कदम मिला कर चलने का प्रयास करते हैं. सरकार की तमाम योजनाओं के प्रचारप्रसार में अपना योगदान देते हैं. इन का व्यवहार भी अब पहले जैसा नहीं रहा.

किन्नर समाज के ऐसे लोग केवल समाज के साथ ही कदमताल नहीं कर रहे बल्कि अपने समाज में भी लोगों को बदल रहे हैं. यह भी देखा गया है कि जो किन्नर पढ़ेलिखे हैं वे ज्यादा सम झदार हैं. शिक्षा ही किन्नर समाज को आगे बढ़ने का रास्ता दिखा सकती है. ये फैशन के साथ कदमताल तो मिला ही रहे हैं, सोशल मीडिया पर भी पूरी तरह से अपने को अपडेट रखते हैं.

किन्नरों की दुनिया हमेशा से रहस्यमय नजर आती रही है. पहले ये खुद को समाज से जोड़ने का प्रयास नहीं करते थे, जिस की वजह से समाज भी इन से उपेक्षा का व्यवहार करता था. अब धीरेधीरे दोनों तरफ से एकदूसरे के करीब आने के प्रयास हो रहे हैं. ‘आओ साथ चलें हम’ कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए किन्नर समाज के प्रमुख लोगों से बात करने का मौका मिला.

किन्नर से ट्रांसजैंडर तक का सफर कैसे तय हुआ इस पर काजल मंगलमुखी से बातचीत करने का मौका मिला, जो वैसे तो चंडीगढ़ में रहती हैं पर रहने वाली मैसूर के एक गांव की हैं.

काजल जन्म से ही लड़की की तरह रहती थीं. परिवार गरीब था. परिवार में पैसे और शिक्षा दोनों का ही अभाव था. गांव के लोग अपने घरेलू कामों जैसे रसोई के बरतन साफ करना और नहाने के लिए नदी के पानी का प्रयोग करते थे. नदी गांव के पास थी. एक दिन काजल भी वहां अपनी सहेलियों के साथ नहा रही थी. ऐसे में उस ने अपनी सहेली के जननांगों को देखा तो उसे लगा कि उस की और उस की सहेली की शारीरिक बनावट में फर्क है.

यह बात उस ने अपनी मां को बताई तो उन्होंने चुप रहने के लिए कह कर बात को टाल दिया. धीरेधीरे काजल भी इस बात को भूल गई. समय बीतता गया. काजल को अब अपने अंदर अधिक बदलाव महसूस हो रहा था.

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बचपन में हुआ शारीरिक शोषण

जब वह कक्षा 8 में पढ़ रही थी तो उसे मोहन नाम के एक लड़के से प्यार हो गया. वह एक दिन लवलैटर लिख रहा था. काजल को लगा कि मोहन उस के लिए लवलैटर लिख रहा है. उसे लगा कि यह लैटर वह उसे देगा. जब मोहन ने लवलैटर उसे नहीं दिया तो पूछने पर मोहन ने कहा, ‘‘तु झ से प्यार क्यों करूंगा? तू तो खुद लड़का लगती है.’’

उस दिन काजल बहुत रोई. एक दिन रिश्ते के एक अंकल उसे बहलाफुसला कर अपने घर ले गए. वहां एकांत में जब उन्होंने काजल को लड़की नहीं पाया तो भी लड़कों की तरह उस का शारीरिक शोषण किया. जब यह बात काजल ने घर में बताई तो मां ने उसे ही बुराभला कहा.

इस घटना के बाद एक तरह से काजल अपने घरपरिवार और समाज से कट गई. उस के पिता ने घर की जमीन बेच दी. पूरा परिवार गरीबी में रहने लगा. ऐसे में काजल को एक दिन मां ने घर से निकाल दिया. वह बस स्टेशन पर बैठ कर रात काटने लगी.

इसी बीच काजल की मुलाकात एक महिला से हुई जो उसे कामधंधा दिलाने के नाम पर मैसूर से मुंबई ले आई. उस औरत ने काजल को कुछ रुपयों के बदले मुंबई के रैड लाइट एरिया में बेच दिया. यहां काजल का काम देहधंधे में आए लोगों से पैसे छीन कर भगा देने का था. सैक्स संबंधों की चाह में लोग किन्नर लड़कियों के पास आते थे. ये लोग उन के पैसे छीन कर उन्हें भगा देते थे.

मुंबई में देखी देहधंधे की दरिंदगी

काजल मुंबई में समाज के भूखे भेडि़यों से वाकिफ हुई. काजल जिस खोली में रहती थी वहीं पर एक बूढ़ी दादी भी रहती थीं. वह उन की सेवा करती थी. काजल को लोगों से पैसे छीनना बुरा लगता था. एक दिन यही बात वह उन बूढ़ी दादी को बता रही थी. तब उन्होंने बताया कि तुम तो गनीमत समझो हालत तो इन लड़कियों की खराब है जिन के मांबाप ने इन्हें देहधंधे के लिए बेच दिया.

7-8 साल की लड़कियों को इस बारे में कुछ भी पता नहीं होता, बावजूद इस के सैक्स के भेडि़ए इन के शरीर को नोचते. छोटी लड़कियों को सैक्स के लिए तैयार करने के लिए तमाम उपाय और मारपीट की जाती है. लड़कियों के अंगों को बड़ा करने के लिए उन्हें नोचा जाता है. उन के जननांगों में नीबू डाल दिया जाता है ताकि जगह बन सके और फिर आदमी सैक्स कर सके.

यह सुन कर काजल को लगा कि वह लोगों को लूट कर सही कर रही है. काजल यहां आने वालों के पर्स निकाल लेती थी. उन में केवल इतने पैसे छोड़ती थी कि वे अपने घर चले जाएं. काजल को अपने जैसे कुछ अच्छे लोग भी मिले, जिन्होंने सम झाया कि किन्नर 3 तरह से अपना जीवनयापन कर सकते हैं- एक देहधंधा कर, दूसरा भीख मांग कर और तीसरा बधाई दे कर. काजल को बधाई देने वाला धंधा पसंद आया.

इस के लिए उस ने बात की तो पता चला कि उसे औपरेशन कर के लड़की बनना होगा. औपरेशन 2 तरह से होता था-एक डाक्टर सर्जरी कर के करते थे और एक दुर्गा मां के सामने होता था. दोनों का खर्च अलगअलग था. डाक्टर 10 हजार रुपए लेता था और दुर्गा मां के सामने 3 हजार रुपए में होता था. दूसरे में मरने का खतरा होता था. यही वजह है कि दुर्गा मां के सामने पूजा के साथ एक अलग गड्ढा था. अगर कोई औपरेशन के बाद सैप्टिक होने से मर जाता था तो उसे उसी गड्ढे में दफन कर देते थे.

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मरने से बची तो आगे बड़ी

काजल दुर्गा के सामने औपरेशन को तैयार हो गई. काजल बताती है, ‘‘पूजा के समय मेरे सारे कपड़े उतार दिए गए. पूजा करने के लिए फूलमाला पहना कर तैयार किया गया. इस के बाद एक चाकू टाइप धारदार औजार से मेरे जननांग को काट दिया गया. दर्द की पीड़ा आज भी याद कर के शरीर कांप जाता है.

‘‘मरणासन्न अवस्था में देशी दवाओं के सहारे 40 दिन बीत गए. मेरी जान नहीं गई. इस के बाद जलसा हुआ और मु झे किन्नर समाज में शामिल कर लिया गया. अब मैं बधाई मांगने लगी थी. मु झे यह पता चल चुका था कि किन्नरों को कमाई के 3 रास्ते ही होते हैं – देहधंधा, अपराध और बधाई मांगना. मु झे बधाई मांगना ही सब से आसान रास्ता लगा. इस में गाने गा कर हम बधाई मांगने लगे. यहीं से मेरी जिंदगी भी बदली.

‘‘एक दिन हम लोग एक वकील साहब के यहां बधाई मांगने गए तो वहां उन की बूढ़ी मां मिलीं. उन्होंने कहा कि ऐसे मांगमांग कर कब तक काम चलाओगी. कोई नौकरीधंधा करो. हम ने उन से कहा कि हमें नौकरी कौन देगा? वे बोलीं कि पढ़ोलिखो, अपने अधिकार जानो, संविधान ने तुम्हें अधिकार दिए हैं. उस दिन हमें लगा कि अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए.

‘‘1995 से हम ने अपनी संस्था ‘मंगलमुखी ट्रांसजैंडर सोसाइटी’ का गठन किया और अपने अधिकारों की लड़ाई शुरू की. इस के बाद चंडीगढ़ में ‘चंडीगढ़ ट्रांसजैंडर वैलफेयर बोर्ड’ की सदस्य भी बनी. हम ने वहां लोगों को तैयार किया और कानूनी लड़ाई लड़ी. ‘भारतीय जन सम्मान पार्टी’ बनाई और 2019 में हरियाणा विधानसभा में चुनाव लड़ने के लिए अपने प्रत्याशी उतारे.’’

वे आगे कहती हैं, ‘‘बधाई मांगने जाने वाले अपने लोगों को मैं यह सम झाती हूं कि वे लोगों की आर्थिक हालत देख कर ही बधाई मांगें, जबरदस्ती बधाई न मांगें. बधाई देने वाले हमारे जजमान होते हैं. उन्हें कष्ट दे कर हम सुखी नहीं रह सकते हैं.

‘‘आज हम अपने समाज को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. हम भी चाहते हैं कि हमारे समाज के लोग भी पढ़लिख कर अफसर बनें. हम लोग बचपन में जिन मुसीबतों से गुजरे उन से किसी और को न गुजरना पड़े, इस के लिए हम अपने समाज को जागरूक कर रहे हैं. मैं बहुत सारे ट्रांसजैंडरों और सामान्य बच्चों को स्कूल में पढ़ा रही हूं.’’

बिहार सरकार की प्रचार योजना में सहभागिता

26 वर्षीय सुमन मित्रा बिहार के पटना जिले की रहने वाली है. स्कूल के दिनों में जैसेजैसे वह बड़ी होने लगी तो साथियों ने उस के हावभाव देख कर उसे चिढ़ाना शुरू कर दिया. सुमन अपने घर वालों को कुछ बता नहीं पा रही थी. जैसेजैसे वह बड़ी होती गई उसे यह लगने लगा कि वह नौर्मल लड़की नहीं है. स्कूल के साथी उसे ‘फिफ्टीफिफ्टी’ बुलाते थे. धीरेधीरे यह क्रम बढ़ता गया और ग्रैजुएशन तक आतेआते सभी को पता चल गया कि वह लड़की नहीं है.

सुमन के लिए यह खुशी की बात थी कि कम से कम उस के घर वाले साथ थे. घर वाले सुमन को ले कर चेन्नई के मैडिकल कालेज गए. वहां तमाम तरह के टैस्ट हुए. औपरेशन और हार्मोंस की दवाओं के बाद सुमन पूरी तरह से लड़की बन गई.

सुमन कहती है, ‘‘इस के बाद धीरेधीरे समाज ने मु झे स्वीकार कर लिया. जिन लोगों को दिक्कत है भी, उन की हम परवाह नहीं करते.’’

सुमन अपने परिवार के साथ रहती है. देखने में वह स्लिम और फिट, सांवले रंग वाली टैनिस खिलाड़ी दिखती है. सुमन को वैस्टर्न कपड़े पहनने पसंद हैं. इस के साथ ही वह बिहार सरकार की प्रचार योजनाओं में भी हिस्सा ले रही है. सुमन अपने गानों के जरिए नशामुक्ति, भ्रूण हत्या, दहेज और बालविवाह के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रही है.

सुमन कहती है, ‘‘अब ट्रांसजैंडरों को ले कर लोगों की राय बदल रही है. मैं हवाईजहाज से ले कर हर तरह का सफर कर रही हूं. हर बड़े होटल में रुकती हूं. समाज के हर वर्ग के साथ उठतीबैठती हूं पर मु झे कोई हिचक नहीं होती है. अगर हम तुलना करें तो स्कूल के दिनों में ज्यादा परेशानी होती थी. वहां मेरा नाम ही ‘फिफ्टीफिफ्टी’ पड़ गया था. अब मैं ब्यूटीशियन का काम करती हूं. मैं गाने गाती हूं, जिन में से कई गाने बिहार सरकार की प्रचार योजनाओं में बजते हैं. हम समाज को कुरीतियों के खिलाफ जागरूक करने के लिए नुक्कड़ नाटक भी करते हैं.’’

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शादी उस से जो हमें समझ सके

सुमन बताती है, ‘‘हर लड़की की तरह ही मेरे दिल में भी शादी को ले कर खयाल आता है. मैं शादी ऐसे लड़के से करना चाहती हूं जो मु झे सम झ सके. शादी एक जीवन का गुजरबसर करने का जरिया है. ऐसे में जब तक आपसी सहमति नहीं होगी, आपस में सामंजस्य नहीं होगा शादी सफल नहीं होगी. कुछ अरसा पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने 11 ट्रांसजैंडर जोड़ों की शादियां कराई हैं. इस तरह से हर सरकार और समाज को काम करना चाहिए ताकि ट्रांसजैंडर भी आपस में शादी कर साथ रह सकें.’’

सुमन 6 ट्रांसजैंडर बच्चों का पालनपोषण कर रही है. वे सभी लड़कियां ही हैं. वह कहती है कि हर काम के लिए सरकार से ही उम्मीद नहीं करनी चाहिए. समाज को खुद भी अपने काम करने चाहिए.

सुमन आगे कहती है,  ‘‘हमारे अंदर की फीलिंग्स लड़कियों वाली हैं. कई बार लोगों को यह लगता है कि ट्रांसजैंडरों में भावनाएं नहीं होती हैं, ऐसा नहीं है. ट्रांसजैंडर मेल या फीमेल जो भी होते हैं, उन में भी भावनाएं होती हैं.

‘‘आज मैडिकल युग में ट्रांसजैंडर भी मैडिकल सुविधाओं को ले कर समाज के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकते हैं. जरूरत केवल जागरूक होने की है. हम इस बात को बताने के लिए फैशन शोज, सोशल मीडिया हर जगह खुद को रखते हैं ताकि हमें देख कर हम जैसे दूसरे लोगों में भी आत्मविश्वास बढ़ सके. आज मु झे अपने जैसे तमाम लोग मिलते हैं जो ट्रांसजैंडर होते हुए भी समाज के साथ कदम से कदम मिला कर चल रहे हैं.’’

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