क्या लोगों का भगवान पर से भरोसा उठता जा रहा है? क्या भगवान के अस्तित्व पर यकीन कम हो रहा है? क्या इंसान अपने चारों ओर खींचे गये धर्म के दायरे से मुक्त होना चाहता है? अमेरिका में हुए एक सर्वे की मानें तो अमेरिका सहित दुनिया भर के देशों में नास्तिकों की आबादी में लगातार बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. अमेरिका में तो ईसाई धर्म को माननेवालों की संख्या में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है. ऐसे लोगों की संख्या वहां तेजी से बढ़ रही है जो किसी धर्म में यकीन नहीं रखते हैं. अमेरिका में नास्तिक और अनीश्वरवादियों की संख्या में जहां वृद्धि हुई है, वहीं रोमन कैथलिक मतावलंबियों की संख्या में काफी कमी आयी है. वहां ऐसे लोगों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है जो खुद को किसी एक धर्म से जुड़ा हुआ नहीं मानते हैं. खुद को ईसाई माननेवालों की संख्या में 1 दशक में 10% तक की कमी दर्ज की गयी है. यही नहीं अमेरिका में होने वाले धार्मिक आयोजनों में जानेवालों की संख्या में भी 7% तक की कमी देखी जा रही है.

उधर ब्रिटेन में भी बड़ी संख्या किसी भी धर्म को नहीं मानने वालों की है. ये ब्रिटेन की कुल आबादी के करीब आधे (49 फीसदी) हैं. वर्र्ष 1983 में ब्रिटेन में नास्तिक कुल आबादी के 31 फीसदी और एक दशक पहले कुल आबादी के 43 फीसदी थे. 1983 में ब्रिटेन में नास्तिकों की संख्या 1.28 करोड़ थी, जो 2014 में बढ़कर 2.47 करोड़ हो गयी. ब्रिटिश वयस्क काफी कम संख्या में चर्च ऑफ़ इंग्लैंड के अनुयायी बन रहे हैं. 1983 में 40 फीसदी लोग चर्च के अनुयायी थे, 2014 में इनका प्रतिशत घटकर 17 ही रह गया. चर्च औफ इंग्लैंड के अनुयायियों की संख्या में बीते एक दशक में सबसे ज्यादा नाटकीय परिवर्तन आया है.

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भारत की जनगणना जो वर्ष 2011 में हुई थी, के मुताबिक देश की आबादी में 2001 जनगणना के मुकाबले करीब 17.7 फीसदी की वृद्धि हुई है. जिसमें हिंदुओं में 16.8 फीसदी, मुसलमानों में 24.6 फीसदी, ईसाईयों में 15.5 फीसदी, सिखों में 8.4 फीसदी, बौद्धों में 6.1 फीसदी और जैनों में 5.4 फीसदी की वृद्धि हुई है. वहीं अन्य धार्मिक मत या अन्य मत मानने वालों (इसमें नास्तिक भी शामिल हैं) की संख्या में करीब 19 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गयी है. यह दूसरा सबसे तेजी से बढ़ता तबका है. दरअसल मतगणना में धर्म का उल्लेख न करने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक तरीके से करीब चार गुना (करीब 300 फीसदी) की जबरदस्त वृद्धि देखी गयी है. भले ही ये देश की कुल आबादी के महज 0.23 फीसदी हैं, 2001 में इनकी संख्या 7,27,588 थी जो 2011 में बढ़कर 28,67,303 हो गयी है. अब इस तबके में ऐसी तीव्र वृद्धि की वजह लोगों में धर्म से बढ़ती दूरी की भावना हो या फिर कुछ और धार्मिक ठेकेदारों के लिए यह चिंता की बात तो है ही. आखिर अपने धर्म का उल्लेख न करने वालों की इतनी तीव्र वृद्धि भला क्यों हो रही है!

हाल ही में अमेरिका में प्यू रिसर्च सेंटर की ओर से किये गये सर्वे के नये डेटा में अमेरिका में बढ़ते नास्तिकों की संख्या की जानकारी काफी चौंकाने वाली है. सर्वे के अनुसार, प्यू सेंटर का कहना है कि हालिया सर्वे में 65% अमेरिकन व्यस्कों ने माना है कि उनका धर्म ईसाई है. जबकि वर्ष 2009 में यह आंकड़ा 77% तक था. दूसरी तरफ खुद को नास्तिक या अनीश्वरवादी बताने वालों की संख्या में बड़ी वृद्धि हुई है. यह आंकड़ा 17% से 26% तक बढ़ गया है. इसमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने कहा कि वह किसी एक धर्म-विशेष में यकीन नहीं रखते हैं. कैथलिक ईसाई मतावलंबियों की संख्या में भी कमी आयी है. 2018 से 2019 के बीच टेलिफोन सर्वे के जरिए यह आंकड़े निकल कर आये हैं.

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अमेरिका में मुख्य रूप से रोमन कैथलिक और प्रॉटेस्टेंट दो मतों के ईसाई धार्मिक रहते हैं. रोमन कैथलिक लोगों की संख्या में पहले की तुलना में काफी कमी आयी है. 2009 में यह संख्या 51% तक थी जो अब घटकर 20% तक रह गयी है. दूसरी तरफ सर्वे के अनुसार 43% व्यस्कों ने खुद को प्रॉटेस्टेंट धर्म को मानने वाला बताया.

अमेरिका में ऐसे लोगों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है जो किसी एक धर्म विशेष में यकीन नहीं रखते हैं. वहां स्वघोषित तौर पर खुद को नास्तिक बताने वालों की संख्या 4% हो गयी है, जबकि वर्ष 2009 में यह 2% ही थी. अनीश्वरवादियों की संख्या एक दशक पहले 3% तक थी, जो बढ़कर अब 5% हो गयी है. 17% अमेरिकन ऐसे हैं जिन्होंने खुले तौर पर कहा है कि वह किसी एक धर्म-विशेष में यकीन नहीं रखते हैं. 2009 में यह संख्या 12% थी.

प्यू सर्वे रिपोर्ट का कहना है कि धार्मिक सेवाओं में शिरकत करनेवालों की संख्या में भी पिछले एक दशक में काफी कमी आयी है. पिछले एक दशक में महीने में एक या दो बार धार्मिक आयोजनों में जानेवालों की संख्या 7 फीसदी तक घट गयी है. अब ज्यादा अमेरिकी ऐसे हैं जिनका कहना है कि वह धार्मिक आयोजन में बहुत कम हिस्सा लेते हैं. महीने में एक या दो बार धार्मिक आयोजन में हिस्सा लेनेवालों की संख्या 2009 में 52% तक थी जो अब घटकर 47% हो गयी है.

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