यह कुदरती और वाकई अनोखी बात थी कि रूढि़वादी और धार्मिक मांबाप ने अपनी जिस लाड़ली बेटी का नाम विद्योत्तमा रखा था, उस के मंगेतर का नाम एक पुरोहित ने नामकरण के दिन कलुवा रख दिया था. लेकिन विद्योत्तमा के रिश्ते की बात जब कलुवा से चली तो उस चालाक पुरोहित ने मंगनी के समय झट कलुवा का नाम बदल कर उसे कालिदास बना दिया. विद्योत्तमा और कालिदास का विवाह भी कर दिया गया.
सुहागरात में प्रथम भेंट पर कालिदास को अपनी दुलहन का घूंघट उठाने की जरूरत ही नहीं पड़ी. कशिश से भरी, बड़ीबड़ी मोहक अंखियों और तीखे नयननक्श वाली, बेजोड़ खूबसूरती की मलिका विद्योत्तमा ने मुसकराते हुए अपने मांग टीके पर अटके नाममात्र के घूंघट को खुद ही उलट कर अपनी गरदन पर लपेट लिया. फिर उस के एक छोर को अपने दाएं हाथ की पहली उंगली में फंसाए शरारती अदा के साथ अपने लाल रसीले होंठों और चमकदार दंतुलियों से जैसे काट खाया. फिर कालिदास के सीने से अपनी पीठ को सटाते उस ने गरदन घुमा कर तिरछी नजरें अपने दूल्हे राजा के हैरतअंगेज चेहरे पर चुभाईं. तब बोली, ‘‘हाय, डियर क्यूट. आई लव यू सो वैरी मच.’’
कालिदास के माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं. प्रथम मिलन का ऐसा बेलिहाज नजारा तो शायद उस के बाप के बाप तक ने कभी सपने में भी नहीं देखा होगा. तभी लगभग हकलाता हुआ सा कलुआ बोल पड़ा, ‘‘जरा संभल कर ठीक से बैठो, प्रिये. चलो, कुछ देर प्यारभरी मीठीमीठी बातें हो जाएं. यह हमारे मधुर मिलन की पहली इकलौती घड़ी है, प्राणप्यारी.’’
‘‘मीठीमीठी बातें? ह्वाट नौनसेंस,’’ कहते हुए दुलहन बिदक कर दूर छिटक गई और बोली, ‘‘तुम्हें तो मुझ को देखते ही भूखे भेडि़ए की तरह झपटचिपट कर मेरे तनबदन को बेशुमार किसेज (चुंबनों) की झड़ी लगाते निहाल कर देना चाहिए था. अभी इतनी देर तक लबरलबर तो खूब करते रहे. क्या तुम मुझ को लव नहीं करते. डोंट यू लाइक मी? जो अभी भी मुझे अपनी बांहों में जकड़ने से हिचकते घबरा रहे हो.’’
बेचारा कालिदास सचमुच काफी घबरा गया था, लेकिन अब जल्दी ही वह अपने को हिम्मत के साथ संभालता हुआ बोला, ‘‘सुनो, मेरी प्यारी हंसिनी, मुझ को तो तुम अपने सामने एक बगले जैसा ही समझो क्योंकि मैं तो सिर्फ हाईस्कूल थर्ड डिविजन से पास हूं, जबकि तुम अंगरेजी साहित्य में फर्स्ट क्लास एम.ए. पास. मुझे ताज्जुब हो रहा है कि तुम ने मुझ जैसे चपरगट्टू भौंतर छोरे से शादी करने की बात भला कैसे मंजूर कर ली जबकि असल में मैं तुम्हारे काबिल और माफिक दूल्हा हूं ही नहीं. मैं…मैं…मैं तो…’’
दुलहन हंस पड़ी और बोली, ‘‘ओह, स्टौप आल दिस मैं मैं मिमियाना. अजी हुजूरेआला, तुम तो इन आल रिस्पेक्ट्स, हर हाल में मेरे ही काबिल हो. मैं आज भी उन ‘अधभरी गगरी’ जैसी छलकती छोकरियों में से नहीं हूं जो तितलियों की मानिंद इतराती अपने कालेज जाने में ही ऐसी अकड़ दिखाती हैं मानो वे पहले से ही डिगरीशुदा हों और अब सीधे कनवोकेशन में गाउन व हुड धारण करने की फौरमैलिटी निभाने जा रही हों. और जो आंखलड़ाऊ लव मैरिज के बाद अपने हसबैंड को लड़ाईझगड़े में सर्वेंट तक बोलने से नहीं चूकतीं.
‘‘डियर, मैं तो पहले से ही मान चुकी थी कि हम ‘मेड फौर ईच अदर’ यानी ‘इक दूजे के लिए ही बने’ हैं. तुम कम पढ़ेलिखे हो तो क्या, तुम नेक, खूबसूरत, तंदुरुस्त और उम्दा स्वभाव के नौजवान हो. फिर आजकल के योग्य लड़के तो भारीभरकम दहेज लिए बिना शादी को तैयार ही नहीं होते हैं जबकि तुम ने दहेज जैसे अशुभ नाम को अपनी जबान पर आने तक नहीं दिया. मैं तुम को उन दहेज के लालची लीचड़ों से सौगुना ज्यादा धनी मानती हूं.
‘‘तुम अपने हुनर में एक माहिर मोटर मेकैनिक हो और मुझ को पूरा यकीन है तुम बिगड़ती मोटरगाडि़यों की तरह अपने घरपरिवार रूपी गाड़ी की मेंटिनेंस में भी उस के ढीले पेचपुर्जों को सुधार कर उसे जिंदगी की खुशहाल राह पर कामयाबी के साथ दौड़ा सकते हो. तुम्हारे अंदर कोई बुरा व्यसन भी नहीं है, तो फिर यह नर्वसनेस क्यों? इनसान किताबें पढ़ कर और डिगरियां हासिल करने मात्र से विद्वान नहीं बन जाता. पढ़नेलिखने के साथ अगर इनसान उस से मिली नसीहतों को अपने जीवन में नहीं अपनाता तो वह किताबों के बोझ से लदे एक गधे जैसा ही होता है.’’
विद्योत्तमा के मुख से ऐसी बातें सुन कर कालिदास के मन में घिरे शकसंदेहों की सारी धुंध उड़नछू हो गई. वह बोला, ‘‘ओह डार्लिंग, मैं तो इस वजह से डरा हुआ था कि तुम्हारा नाम विद्योत्तमा और मेरा नाम भी कालिदास है तो कहीं तुम भी मुझे…’’
‘‘रिजेक्ट कर देती और लताड़ के साथ भगा देती. यही न?’’ खिलखिलाते हुए विद्योत्तमा बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘माई डियर साजन, तुम यह क्यों भूल गए कि वह पुराने जमाने की अपने ज्ञान के घमंड में चूर विद्योत्तमा थी लेकिन मैं तो 21वीं सदी की मौडर्न नवयुवती हूं. यानी मैं वह विद्योत्तमा हूं जो अपने पति को पति होने के नाते अपना दास, मतलब जोरू का गुलाम बना कर भले ही रख दूं, पर गुजरे वक्त की वह विद्योत्तमा कतई नहीं हूं कि हनीमून में ही अपने पति को बेइज्जत कर के घर से खदेड़ कर खुद को बगैर मर्द की (विधवा) औरत बना कर रख दूं और तब उस के लंबे अरसे के बाद अधेड़ विद्वान कालिदास हो कर लौट आने तक पलपल घुटतीसिसकती रहूं.
‘‘जब तक वह कालिदास बन कर आएगा तब तक उस की जवानी का जोशीला पोटाश तो संस्कृत के श्लोकों को पढ़नेरटने में ही खत्म हो चुका होगा. आने के बाद भी वह बजाय लंबी जुदाई से बढ़ी बेताबी के तहत रातों को मुझ से चिपट पड़ने के, ग्रंथ लिखने की खातिर कलम घिसने में मशगूल हो जाएगा और मैं अपने चेहरे पर पड़ती झुर्रियों को दर्पण में निहारती, कभी ऊंघती तो कभी उस कवि लेखक के लिए चाय बनाती बाकी बची उम्र को काटतीगुजारती रहूं.
‘‘फिर नाम में क्या रखा है, डियर. आंख के अंधे नाम नयनसुख की तरह भिखारियों में क्या कई लक्ष्मियां और धनपति नाम के औरतमर्द नहीं होते? छोड़ो इन यूजलेस बातों को अब. लम्हालम्हा गहराती मदमाती रात के साथ अब क्यों न हम भी अपने प्यार के समंदर की गहराइयों में खो जाएं? सो कम औन माइ लव, माइ स्वीट लाइफपार्टनर,’’ कहते हुए विद्योत्तमा ने कालिदास को अपनी सुडौल गोरी बांहों में बांध लिया. तब कालिदास ने भी उमड़ते प्रेम आनंद के एहसास के साथ उसे अपने दिल से सटा दिया. लग रहा था, कवि कालिदास के मेघदूतम वाले बेदखल किए गए, इश्क में तड़पते, यक्ष का भी अपनी प्यारी दिलरुबा से एक बार फिर मौडर्न मिलन हो रहा हो.