ग्राहकों को लुभाने के लिए कंपनियां जैसे नएनए प्रोडक्ट लौंच करती हैं वैसे ही धर्म के दुकानदार भी नएनए पाखंड परोसते रहते हैं. लेकिन यह शुद्ध ठगी है, इस से दूर रहने में ही भलाई है.
केवल मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति में बाबाओं, धर्मगुरुओं, महामंडलेश्वरों, तांत्रिकों और ज्योतिषियों सहित शंकराचार्यों का दखल बहुत बढ़ रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में धर्म के इन दुकानदारों ने तबीयत से चांदी काटी थी. लेकिन सब से ज्यादा चर्चाओं में मध्य प्रदेश रहा जहां लगातार 15 साल भाजपा का राज रहा था.
एक है स्वामी वैराग्यानंद गिरि जिस के बारे में लोग इतना ही जानते हैं कि वह भी दूसरे बाबाओं की तरह सिद्ध और चमत्कारी है. महामंडलेश्वर कहे जाने वाले इस बाबा के इन दिनों कहीं अतेपते नहीं हैं. भले ही उस की पोल खुल चुकी हो, लेकिन उस की पोल के खुलने से लोगों की आंखें खुल रही हों, ऐसा कतई नहीं लग रहा.
मिर्ची यज्ञ का ढकोसला
मिर्ची बाबा के नाम से मशहूर हो गए वैराग्यानंद को नाम के मुताबिक किसी किस्म का वैराग्य नहीं है बल्कि यह बाबा पूरे ऐशोआराम से भक्तों की दक्षिणा पर भौतिक सुखों का भोग करता है. सही मानो में कहें तो यह भोगानंद मानव जीवन की नश्वरता समझते उसे ऐशोआराम से जीने में यकीन करता है.
दूसरे बाबाओं की तरह यह भी मेहनतमजदूरी कर पेट नहीं भरता, बल्कि इस का पेशा तंत्रमंत्र की आड़ में लोगों को उल्लू बना कर अपना उल्लू सीधा करना है. यह बाबा भोपाल लोकसभा चुनाव के दौरान और उस के बाद तक सुर्खियों में रहा था. इस सीट से कांग्रेसी दिग्गज दिग्विजय सिंह के मुकाबले भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा सिंह को मैदान में उतारा था. उस समय सभी की निगाहें इस कड़े और दिलचस्प मुकाबले पर टिक गई थीं.
अपनी जीत के लिए दिग्विजय सिंह ने जिन सैकड़ों बाबाओं का डेरा, डंगर और लंगर भोपाल में डलवा दिया था, मिर्ची बाबा उन में से एक था जिस ने दावा किया था कि वह 5 क्ंिवटल मिर्ची का यज्ञ करेगा जिस के प्रभाव से दिग्विजय सिंह जीत जाएंगे. धर्म के इस नए आइटम को देखने के लिए हजारों लोग इकट्ठा हुए थे और मीडिया ने देशभर में मिर्ची यज्ञ की चर्चा या प्रचार कुछ भी कह लें, किया था.
मिर्ची यज्ञ एक नए किस्म का यज्ञ है जिस का आविष्कार शायद इसी बाबा ने किया है. इसीलिए लोगों की दिलचस्पी इस में और बढ़ गई. बड़े धूमधड़ाके से इस बाबा और इस की टीम ने मिर्ची यज्ञ संपन्न किया. बात में दम लाने के लिए इस बाबा ने यह घोषणा भी कर दी थी कि अगर इस अनूठे मिर्ची यज्ञ के बाद भी दिग्विजय सिंह नहीं जीते तो वह जल समाधि ले कर ब्रह्मलीन हो जाएगा.
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दिग्विजय सिंह नहीं जीते. उलटे, प्रज्ञा भारती के हाथों 3 लाख से भी ज्यादा वोटों से हारे तो यह बाबा नदारद हो गया, क्योंकि पोल खुल चुकी थी खुद की भी और यज्ञ की भी. जिन लोगों के पास इस का फोन नंबर था वे इसे फोन करकर के पूछते रहे कि बाबा जल समाधि कब ले रहे हो, तो उस ने फोन ही बंद कर दिया.
ड्रामे पे ड्रामा
बात आईगई होने लगी, लेकिन यह बाबा बेहतर जानता था कि धर्मांध लोग बेवकूफ होते हैं. इन से पैसा ? गटकने की संभावनाएं कभी खत्म नहीं होतीं. लिहाजा, जून के दूसरे सप्ताह में यह फिर प्रकट हो गया और जल समाधि लेने की घोषणा कर डाली.
चालाकी दिखाते यानी खुद को बचाने की गरज से मिर्ची बाबा ने एक वकील सैयद अली के जरिए कलैक्टर भोपाल तरुण पिथोड़े को एक चिट्ठी लिखी कि वह ब्रह्मलीन होना चाहता है, इसलिए प्रशासन इस की अनुमति दे.
यह ड्रामा भी कम दिलचस्प नहीं था. अपनी चिट्ठी में इस बाबा ने लिखा कि अभी वह तंत्रमंत्र के लिए मशहूर असम के कामाख्या मंदिर में तपस्यारत है और 16 जून की दोपहर 2 बज कर 11 मिनट पर समाधि लेना चाहता है. इस पत्र में उस ने माना कि चूंकि उस ने दिग्विजय सिंह की जीत के लिए यज्ञ किया था और उन के हारने की स्थिति में समाधि लेने की घोषणा की थी, इसलिए वह अपना संकल्प पूरा करना चाहता है.
चूंकि कानून में ऐसा कोई प्रावधान है नहीं कि प्रशासन किसी बाबा के विधिविधान से मरने का इंतजाम करे, इसलिए कलैक्टर ने इजाजत नहीं दी और यही इस बाबा की मंशा भी थी कि देखो, मैं तो मरने को तैयार था लेकिन सरकार ने नहीं करने दिया. मरने की इजाजत तो दूर की बात है, उलटे, प्रशासन को इस ढोंगी बाबा की जानमाल की सुरक्षा के इंतजाम भी करने पड़े.
दो कौड़ी की अक्ल रखने वाला भी कह सकता है कि जब ब्रह्मलीन होना ही था तो उस के लिए कलैक्टर की इजाजत की क्या जरूरत. तुम तो बाबा हो, जहां चाहे समाधि ले लो, किसे पता चलेगा. लेकिन मकसद पाखंड फैलाना और ड्रामा करना ही था, जो इस देश में कोई नई बात नहीं. हां, जिस दिन ऐसा कोई ड्रामा न हो, तो जरूर लगता है कि हम सांपसंपेरों और तंत्रमंत्र प्रधान देश के निवासी नहीं रहे.
फैल गया अंधविश्वास
साफ दिख रहा है कि अब यह बाबा जरूर किसी नए ड्रामे की तैयारी में है, क्योंकि यही इस का पेशा है. मिर्ची यज्ञ की पोल खुलने के बाद भी लोगों ने कोई सबक नहीं लिया. भोपाल में अब हर कहीं, छोटे स्तर पर ही सही, मिर्ची यज्ञ होने लगे हैं. हैरत तो इस बात की भी है कि लोग घरों में खुद मिर्ची यज्ञ करने लगे हैं. अब यज्ञ हवन के बाद दोचार मिर्चियां भी लोग हवन सामग्री के साथ हवन कुंड में डाल लेते हैं कि शायद इस से बिगड़ी बात बन जाए और कोई चमत्कार हो जाए.
मिर्ची यज्ञ धर्म की हाट का नया आइटम है, इसलिए इसे लोग खूब ट्राई कर रहे हैं. दतिया के नजदीक रतनपुर मंदिर में भी मिर्ची यज्ञ हुआ तो बिहार के गया में भी समारोहपूर्वक इसे संपन्न किया गया. इस नवीनतम यज्ञ का धुआं धीरेधीरे देशभर में फैल रहा है और लोग बेवकूफों की तरह मिर्ची आग में ?ोंक कर खांसते आंखें पोंछ रहे हैं. ऐसे में दिग्विजय सिंह और मिर्ची बाबा से ज्यादा तरस इन लोगों पर आता है.
मिर्ची जला कर बच्चों की नजर उतारने का रिवाज काफी पुराना है. फिर भी बच्चे बीमार पड़ते हैं. कुपोषण से और दूसरी बीमारियों से भी मर रहे हैं. लेकिन जब लोगों ने भी कसम खा रखी है कि वे नहीं सुधरेंगे, तो कोई क्या कर लेगा. जब बिलकुल जान पर आ जाती है, तो वे दौड़ते हैं डाक्टर के पास कि साहब, बचा लो, भगवान के बाद आप ही हो.
गुप्त नवरात्रि
मिर्ची यज्ञ हिट हो गया है. लेकिन जानकर हैरत होती है कि लोगों को मूंड़ने के लिए इन बाबाओं ने तरहतरह के पाखंड फैला रखे हैं. जुलाई के पहले सप्ताह में अखबारों में, न्यूज चैनल्स पर और उस से भी ज्यादा सोशल मीडिया पर जम कर प्रचार हुआ गुप्त नवरात्रि का. वायरल हुई एक पोस्ट में बीती 7 जुलाई को बताया गया कि गुप्त नवरात्रि के तहत आज सातवें दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है जिस से घरगृहस्थी खुशहाल बनी रहती है, छात्र उत्तीर्ण हो जाते हैं, बेरोजगारों को रोजगार मिल जाता है और विवाहयोग्य उम्मीदवारों की शादी हो जाती है.
इस पोस्ट के आखिर में एक तांत्रिक का नाम और नंबर दिया गया था. लोगों ने इस तांत्रिक से संपर्क किया और गुप्त नवरात्रि में खूब पूजापाठ कराया. फिर तो अकेले इसी ने ही नहीं, बल्कि सैकड़ों तांत्रिकों ने गुप्त नवरात्रि से खूब पैसा बनाया और सालभर के राशनपानी का इंतजाम कर लिया.
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भोपाल के एक प्रमुख समाचारपत्र की खबर पर गौर करें तो प्रकट नवरात्रि के अलावा 2 और गुप्त नवरात्रि भी होती हैं जो माघ और आषाढ़ के महीने में आती हैं. इन नवरात्रि में गुप्त साधनाएं करने से भक्तों और साधकों की तमाम मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस खबर में दुर्गा के 10 रूपों का वर्णन करते बताया गया था कि 10 जुलाई तक कब, किस देवी की साधना किस तरीके से करनी चाहिए.
इस प्रतिनिधि ने एक पंडेनुमा तांत्रिक से गुप्त नवरात्रि पर पूजा करने की बात कही तो वह सहर्ष तैयार हो गया. उस ने इस बाबत 11 हजार रुपए नकद मांगे और इतने के ही सामान की लिस्ट थमा दी. इस के बाद इस तांत्रिक से संपर्क नहीं किया गया तो उस ने तो पहले फोन किए और बाद में घर पर ही आ धमका. पूजा के बाबत मना करने पर इस ने तरहतरह के श्राप दिए और गुप्त नवरात्रि का डर दिखाया कि एक बार मन में बात आ जाने के बाद या संकल्प लेने के बाद पूजापाठ नहीं कराया तो इतने अनिष्ट होंगे कि फिर ब्रह्मा भी कुछ नहीं कर सकेगा.
बिलकुल मना कर देने पर यह तांत्रिक घर में धूनी रमा कर बैठ गया कि पूजा के 11 हजार रुपए दो नहीं तो भस्म होने के लिए तैयार हो जाओ. यह नजारा देख दिल्ली के चांदनी चौक की याद हो आई जहां के फुटपाथी दुकानदारों से किसी आइटम का भाव पूछ लो तो वे हाथ धो कर ग्राहक के पीछे पड़ जाते हैं कि अब तो लेना ही पड़ेगा. नहीं तो वे गालीगलौज और मारपीट तक पर उतारू हो आते हैं.
जब इस पंडे को पुलिस बुलाने की धौंस दी गई तो उस ने पहली बार सच बोला कि बुला लो, सभी पुलिस वाले हमारे यजमान हैं और घर तो घर, थानों तक में हम से ही यज्ञहवन करवाते हैं. पिछले साल फलां आईपीएस की लड़की चुपचाप भागी थी तो उन्होंने हम से ही अनुष्ठान करवाया था.
बहरहाल, जैसेतैसे यह पंडा टला लेकिन खोजबीन करने पर पता चला कि केवल गुप्त नवरात्रि में ही नहीं, बल्कि काफी लोग घरों में तांत्रिक अनुष्ठान करवाते रहते हैं और इन में तथाकथित सभ्य, शिक्षित, आधुनिक और संपन्न लोग ज्यादा होते हैं. किसी को संतान से समस्या है तो किसी की पत्नी बीमार रहती है, किसी को व्यापार में घाटा हो रहा है और किसी को शत्रु का नाश करवाना है. ऐसे सैकड़ों काम ये तांत्रिक करते हैं.
इन के पास होटलों की तरह बाकायदा एक मैन्यू कार्ड होता है जिस में शत्रु को मारने से ले कर वशीकरण यज्ञ तक का रेट लिखा रहता है. ऐसी क्रियाएं अकसर रात को की जाती हैं और गुप्त नवरात्रि में तो भोपाल जैसे शहर में पंडों और तांत्रिकों का टोटा पड़ जाता है.
कोई क्या कर लेगा
मिर्ची वाला बाबा हो या गुप्त नवरात्रि वाला, इन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता, क्योंकि इन के खिलाफ कार्यवाही का जिम्मा जिन लोगों के पास है वही इन के यजमान होते हैं. इन के विज्ञापन चैनलों पर, अखबारों में, पत्रपत्रिकाओं में और सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से चलते हैं.
मिर्ची वाले बाबा की बात करें तो बात कम हैरत की नहीं कि भोपाल कलैक्टर ने उस की ब्रह्मलीन होने की दरख्वास्त ली और उस की सुरक्षा में पुलिस बल तैनात कर दिया. अगर उसे यह कह दिया जाता कि यह काम भगवान का है, उस से पूछ लो, तो यह बाबा फिर दुम दबा कर भाग जाता या फिर कोई और नई दलील गढ़ लेता.
दरअसल, जब लोग यहां लुटने और बेवकूफ बनने को तैयार बैठे हैं तो इन बाबाओं का क्या दोष. उलटे, जब ये बाबा लोग तरहतरह से तंत्रमंत्र और चमत्कारों का प्रचार और ब्रैंडिंग करते हैं तो धर्मभीरु लोग इन के ?ांसे में क्यों नहीं आएंगे, जो दिमाग और तर्कों को ताक में रखते कुछ भी करवाने को तैयार हो जाते हैं. इन के दिमाग में तो सदियों से यह बात ठुंसी पड़ी है कि धर्मग्रंथों में वर्णित चमत्कार वास्तव में भी होते हैं.
कहने को ही यह युग विज्ञान का है वरना बोलबाला और दबदबा तो मिर्ची और अदरक वाले बाबाओं सहित सड़क छाप निठल्ले, निकम्मे और ठग तांत्रिकों का है जिन पर किसी का जोर नहीं चलता. राजनेता इन का सहारा लेते हैं और प्रशासन इन की हिफाजत करने के साथ इन्हें महिमामंडित करता है. ऐसे में कोई इन का क्या कर लेगा. देश का आर्थिक विकास जाए भाड़ में, धर्म का विकास होना चाहिए.