यह माना जाता था कि वायु प्रदूषण के कारण सिर्फ सांस के रोग ही होते हैं, मगर नई रिसर्च कहती है कि वायु प्रदूषण हमारे शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचाता है. यह कैंसर, मस्तिष्क सम्बन्धी रोग, त्वचा सम्बन्धी रोग, फेफड़े और किडनी से जुड़े रोगों के लिए उत्तरदायी है. जिस तेजी से भारत में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है, आने वाले वक्त में यह सरकार के सामने बड़ी चुनौती बन कर खड़ा होगा. भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जहां वायु प्रदूषण उच्चतम स्तर पर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में 13 भारत में हैं. भारत में हर साल करीब 11 लाख लोगों की मौत होती है और उसका कारण चौंकाने वाला है. इनमें से ज्यादातर मौतें सांस लेने से हो रही हैं. यूएस की दो संस्थानों ने मिलकर दुनिया भर में प्रदूषण से मरने वालों पर स्टडी की है. इस अध्ययन में पाया गया है कि वायुप्रदूषण से सबसे ज्यादा लोग भारत और चीन में मरते हैं. भारत की हालत चीन से भी गम्भीर है. स्टडी के मुताबिक चीन में प्रदूषण से मरने वालों की संख्या 2005 के बाद नहीं बढ़ी है, लेकिन भारत में यह आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. वायु प्रदूषण मृत्युदर को बढ़ाने वाली विभिन्न घातक बीमारियों जैसे कि फेफड़े के विभिन्न विकारों और फेफड़े के कैंसर के प्रसार में योगदान दे रहा है. हमारी सांस के साथ हवा में व्याप्त जहरीले सूक्ष्म कण शरीर में घुस कर कैंसर, पर्किन्सन, दिल का दौरा, सांस की तकलीफ, खांसी, आंखों की जलन, एजर्ली, दमा जैसे रोग पैदा कर रहे हैं. प्रदूषित वायु सांस के माध्यम से शरीर में घुसकर दिल, फेफड़े और मस्तिष्क की कोशिकाओं में पहुंच कर उन्हें क्षति पहुंचाती है.
फेफड़ों के रोग
वायु प्रदूषण से अस्थमा और क्रोनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज बढ़ती है, जिनमें क्रोनिक ब्रौन्काइटिस और एम्परसेमा जैसे रोग शामिल हैं. हवा में मौजूद एलर्जी और रासायनिक तत्व अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, त्वचा रोग, सीओपीडी, आंखों में जलन उत्पन्न करते हैं. बच्चों में फेफड़ों के रोगों का प्रमुख कारण वायु प्रदूषण ही है. इसके अलावा कई प्रकार की एलर्जी से भी लोग परेशान हो रहे हैं.
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कैंसर
वायु प्रदूषण से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है. प्रदूषित हवा से अस्थमा जैसे फेफड़ों के रोग बूढ़े और जवान सभी में देखे जा रहे हैं. तेजी से बढ़ता प्रदूषण फेफड़ों में कैंसर के फैलने का मुख्य कारक है. अध्ययनों से यह पता चला है कि वायु प्रदूषण, फेफड़ों के कैंसर और विभिन्न हृदय रोगों के बीच एक गहरा सम्बन्ध है. यद्यपि धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर के सबसे बड़े कारणों में से एक माना जाता है, लेकिन बहुत से लोग अपने आसपास के वातावरण में मौजूद प्रदूषण के कारण कैंसर का शिकार हो गये हैं. प्रदूषित हवा के कारण सांस लेने में दिक्कत होती है. हमारे देश मे फेफड़े के कैंसर, ट्यूमर और तपेदिक के प्रकोप में तेजी से वृद्धि के प्रमुख कारणों में धूम्रपान और वायु प्रदूषण शामिल है. फ्रिज से निकलने वाली क्लोरोफ्लोराकार्बन गैस पर्यावरण में ओजोन की सतह को नुकसान पहुंचा रही है, जिससे त्वचा कैंसर – मेलेबोमा का खतरा काफी बढ़ गया है.
हृदय रोग
लम्बे समय तक कार्बन मोनोऑक्साइड, नाट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड के सम्पर्क में रहने से दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है. यह खतरा जनसंख्या के 0.6 से 4.5 प्रतिशत तक को प्रभावित कर सकता है. छाती में दर्द, कफ, सांस लेने में दिक्कत, सांस लेते वक्त आवाज निकलना और गले का दर्द भी दूषित हवा में सांस लेने का लक्षण हो सकता है. वायु प्रदूषण का सम्बन्ध कोरोनरी स्ट्रोक में वृद्धि की घटनाओं के साथ भी जुड़ा हुआ है.
मस्तिष्क विकार
वायु प्रदूषण मस्तिष्क के कामकाज को प्रभावित करता है. इससे पहले वायु प्रदूषण को दिल और सांस के रोगों के लिए जिम्मेदार माना जाता था, लेकिन नये शोध में दस लाख मस्तिष्क टिश्यू में लाखों चुम्बकीय पल्प कण पाये गये हैं, जो मस्तिष्क को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. जब अल्जाइमर रोग से पीड़ित रोगियों के मस्तिष्क की जांच की गयी तो डॉक्टरों ने पाया कि वायु प्रदूषण से घिरे रोगियों के दिमाग में मैग्नेटाइट के मौजूद होने की मात्रा ज्यादा है. यह वायु प्रदूषण के कारण है.
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गर्भवती महिलाओं को खतरा
स्त्रीरोग विशेषज्ञ के अनुसार यदि गर्भवती महिलाएं प्रदूषित हवा में अपना जीवन बिताती हैं तो उनमें मस्तिष्क की विकृति, अस्थमा, टीबी जैसे रोग तो पनपते ही हैं, उनके होने वाले बच्चे में मस्तिष्क का विकास भी ठीक से नहीं होता. लगातार प्रदूषित हवा में सांस लेने वाली गर्भवती का बच्चा पेट में ही मर सकता है. डौक्टरों के मुताबिक ऐसी महिलाओं के बच्चों में निमोनिया आम है और उनमें बीमारियों से लड़ने की शक्ति भी बहुत कम हो जाती है.