शंकर सुबह जागा तो बिस्तर से उठ ही नहीं पाया. उसके जिस्म में ताकत ही महसूस नहीं हो रही थी कि वह करवट भी ले ले. पत्नी को आवाज लगानी चाही तो मुंह टेढ़ा सा हो गया और आंखों के आगे अंधेरा छा गया. घूं-घूं की आवाज गले से निकली और फिर वह बेहोश हो गया. इसके बाद उसकी आंखें अस्पताल में खुलीं. देखा कि पत्नी और बेटा उसके पैरों की मालिश कर रहे थे. शंकर ने कुछ बोलने की कोशिश की तो मुंह से आवाज नहीं निकली. पत्नी उसको देख कर रो पड़ी. बोली, ‘डॉक्टर लकवा बता रहे हैं. भर्ती कर लिये हैं. तुम ठीक हो जाओगे…’ कह कर वह सुबक पड़ी.
शंकर रिक्शा चलाता है. उम्र यही कोई तीस-पैंतीस साल होगी. दुबला-पतला शरीर. जिसने उसकी बीमारी के बारे में सुना हैरान हुआ कि इस उम्र में क्या किसी को लकवा मार सकता है? मगर शंकर पर पैरालिसिस का अटैक पड़ा था. डौक्टर की मानें तो यह तनाव की वजह से हुआ था. शंकर गरीब है, हमेशा पैसे की तंगी रहती है, इसकी वजह से वह काफी दुख, परेशानी और तनाव में रहता है. इसी तनाव ने आखिरकार उसे बिस्तर पर पटक दिया.
पैरालिसिस को आमतौर पर लकवा, पक्षाघात, अधरंग, ब्रेन अटैक या ब्रेन स्ट्रोक के नाम से जाना जाता है. हमारे देश में हर साल 15-16 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आते हें. सही जानकारी न होने या समय पर इलाज न मिलने से इनमें से एक तिहाई लोगों की मौत हो जाती है, जबकि करीब एक तिहाई लोग अपंग हो जाते हैं. अपंगता की हालत में मरीज जीवन भर के लिए अपने परिवार वालों पर आश्रित हो जाता है. लकवाग्रस्त करीब एक तिहाई लोग ही खुशकिस्मत होते हैं, जो वक्त पर सही इलाज मिलने से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं और पहले की तरह ही नौर्मल जिन्दगी जीने लगते हैं.
पैरालिसिस का अटैक पड़ने पर आमतौर पर शरीर का एक तरफ का हिस्सा काम करना बंद कर देता है. साथ ही उसी साइड की आंख और मुंह में भी टेढ़ापन आ जाता है. डौक्टर नीना बहल बताती हैं कि मनुष्य के दिमाग का दायां हिस्सा बाईं ओर के अंगों को कंट्रोल करता है और बायां हिस्सा दाईं ओर के अंगों को. पैरालिसिस स्ट्रोक पड़ने पर अगर हमारे दिमाग के दाएं हिस्से में दिक्कत हुई है तो हमारे बाएं हाथ-पैर पर इसका असर पड़ेगा और अगर बाएं तरफ दिमाग में गड़बड़ी हुई है तो दायां हाथ-पैर काम करना बंद कर देगा. आमतौर पर रात को खाना खाने के बाद और सुबह के वक्त पैरालिसिस का अटैक ज्यादा होता है. बोलने में अचानक समस्या हो, शरीर के एक तरफ के हिस्से में भारीपन महसूस हो, चलने में दिक्कत हो, चीजें उठाने में परेशानी हो, एक आंख की रोशनी कम होने लगे, चाल बिगड़ जाए तो फौरन डॉक्टर के पास जाएं. यह तमाम लक्षण पैरालिसिस स्ट्रोक के लक्षण हो सकते हैं.
पैरालिसिस यानी लकवा लाइलाज नहीं है. वक्त पर डौक्टर के पास पहुंच जाएं तो इस बीमारी का इलाज मुमकिन है और मरीज दूसरों पर आश्रित होने से बच जाता है.
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क्या हैं पैरालिसिस की वजहें
– हमारा मस्तिष्क शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है और पैरालिसिस का सीधा सम्बन्ध हमारे मस्तिष्क से है. हमारा दिमाग ही हमारे शरीर के सभी अंगों और कामकाज को नियंत्रित करता है. जब दिमाग की खून की नलियों में कोई खराबी आ जाती है तो ब्रेन स्ट्रोक होता है, जो पैरालिसिस की वजह बनता है.
– शरीर के दूसरे हिस्सों की तरह ही दिमाग में भी दो तरह की खून की नलियां होती हैं. एक जो दिल से दिमाग तक खून लाती हैं यानी धमनी, और दूसरी जो दिमाग से वापस दिल तक खून लौटाती हैं यानी शिरा. यों तो पैरालिसिस धमनी या शिरा दोनों में से किसी की भी खराबी से हो सकता है, लेकिन ज्यादातर लोगों में यह समस्या धमनी में खराबी के कारण होती है.
– हाई ब्लड प्रेशर, तनाव, गुस्सा, तेज बुखार आदि के कारण जब धमनी में खून का दबाव बहुत ज्यादा हो जाता है, तब या तो वह लीक करने लगती है अथवा फट जाती है, इससे खून बाहर निकलकर जम जाता है. जैसे-जैसे खून की मात्रा बढ़ती जाती है ‘क्लॉट’ यानी ‘खून के थक्के’ का साइज बढ़ता जाता है और जल्द ही यह थक्का खून की नली या उसके जख्म को बंद कर देता है, जिससे खून का निकलना तो बंद हो जाता है लेकिन यह नाड़ी में खून के आवाजाही के रास्ते को ब्लॉक कर देता है. बहुत से मरीजों में ब्रेन हेमरेज के वक्त इतना खून निकल जाता है कि सिर के अंदर दबाव बढ़ जाता है और इससे दिमाग काम करना बंद करने लगता है. इस बढ़ते दबाव की वजह से सिरदर्द या उलटी होने लगती है. ज्यादा दबाव बढ़ने पर बेहोशी, पैरालिसिस, सांस अटकने जैसी परेशानी हो जाती है.
– खून की नली के बंद होते ही दिमाग का वह हिस्सा औक्सीजन के अभाव में भूखा-प्यासा तड़पने लगता है और काम करना बंद कर देता है. अगर दिमाग के इस भाग को आसपास से भी खून नहीं मिल पाता या खून की नली का क्लौट ज्यों का त्यों पड़ा रहता है तो दिमाग के इस भाग को भारी नुकसान पहुंचता है. इस भाग की कोशिकाएं मरने लगती हैं. यह पैरालिसिस स्ट्रोक का मुख्य कारण है. ऐसे में दो काम अहम होते हैं.
– पहला, जहां नली के फटने के कारण खून बाहर निकला है, वहां जल्दी से जल्दी थक्के को हटाना और दूसरा, धमनी जहां खून लेकर जा रही थी, वहां जल्दी से जल्दी खून पहुंचाना. अगर मरीज को जल्दी अस्पताल न पहुंचाया गया और समय रहते उसका इलाज शुरू नहीं हुआ तो दिमाग और शरीर पर असर पड़ता है और समस्या बढ़ने पर रोगी की जान भी जा सकती है. यही वजह है कि पैरालिसिस के इलाज में टाइम बहुत अहम चीज हो जाती है. जल्दी इलाज मिल जाए तो ज्यादा नुकसान होने से बचा जा सकता है. खून के थक्के को हटाने के लिए दवाएं चढ़ायी जाती हैं, अथवा सर्जरी करके थक्के को जल्द से जल्द हटा दिया जाता है ताकि दिमाग में खून पहुंचाने वाली नाड़ियों का अवरोध समाप्त हो सके.
कैसे होता है पैरालिसिस
चाहे हेमरेज हो या स्ट्रोक, दिमाग का प्रभावित हिस्सा काम करना बंद कर देता है. दिमाग के अंदर बना क्लौट आसपास के हिस्से को दबाकर निष्क्रिय कर देता है. ऐसे में उस हिस्से का जो भी काम है, उस पर असर पड़ता है. इससे हाथ पांव चलने बंद हो सकते हैं, दिखने और खाना निगलने में दिक्कत हो सकती है, बोलने में परेशानी हो सकती है और बात समझने में मुश्किल आ सकती है. अगर दिमाग का बड़ा हिस्सा प्रभावित हो तो स्ट्रोक जानलेवा भी साबित हो सकता है.
पैरालिसिस अचानक होता है. अक्सर देखा गया है कि पीड़ित रात का खाना खाकर सोया, मगर सुबह उठने पर पता चलता है कि उसके हाथ पांव काम नहीं कर रहे हैं. वह खड़ा होने की कोशिश करता है तो गिर पड़ता है. कई बार दिन में ही काम करते या खड़े-खड़े अथवा बैठे-बैठे अचानक पैरालिसिस का अटैक पड़ जाता है. ब्रेन हेमरेज अक्सर तेज सिरदर्द और उलटी के साथ शुरू होता है.
फेशियल पैरालिस्सिस भी बहुत कॉमन है. यह चेहरे की मसल्स के कमजोर होने से होता है. यह वायरल इंफेक्शन या उसके बाद भी हो सकता है. मरीज में इस तरह का कोई लक्षण या हिस्ट्री नहीं होने के बावजूद यह हो सकता है. इसमें चेहरे के एक तरफ का हिस्सा टेढ़ा सा होने लगता है और वहां पर स्पर्श महसूस नहीं होता.
ब्रेन हेमरेज और स्ट्रोक में फर्क
ब्रेन हेमरेज में खून की नली दिमाग के अंदर या बाहर फट जाती है. अगर बहुत तेज सिरदर्द के साथ उलटी और बेहोशी छाने लगे तो हेमरेज होने की आशंका ज्यादा होती है. ब्रेन हेमरेज से भी पैरालिसिस होता है. इसमें दिमाग के बाहर खून निकल जाता है और इसे हटाने के लिए सर्जरी करके क्लॉट को हटाया जाता है. अगर किसी भी रुकावट की वजह से दिमाग को खून की सप्लाई में कोई रुकावट आ जाए तो उसे स्ट्रोक कहते हैं. स्ट्रोक और हेमरेज, दोनों से ही पैरालिसिस हो सकता है.
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लकवे के कारण
– हाई ब्लड पे्रशर
– डायबिटीज
– स्मोकिंग
– दिल की बीमारी
– मोटापा
– बुढ़ापा
कैसे खतरा कम करें
– हार्ट की बीमारी है तो उसकी उचित जांच और इलाज कराएं. 20-25 साल की उम्र से ही नियमित रूप से ब्लड प्रेशर चेक कराएं. डौक्टर की सलाह पर खाने में परहेज करें और एक्सरसाइज बढ़ाएं.
– अगर आपका ब्लड प्रेशर 120/80 है तो अच्छा है. ज्यादा है तो 135/85 से कम लाना लक्ष्य होना चाहिए.
– 40 साल के बाद साल में एक बार शुगर और कोलेस्ट्रॉल की जांच जरूरी रकराएं.
– वजन कंट्रोल में रखें. कोई बीमारी न हो तो भी 40 की उम्र के बाद ज्यादा नमक और फैट वाली चीजें कम खाएं.
– तनाव और गुस्से से दूर रहें. मन को हमेशा शान्त रखें.
मिथ और फैक्ट
मिथ – पैरालिसिस का कोई इलाज नहीं.
फैक्ट – पैरालिसिस का इलाज मुमकिन है, बशर्ते जल्द से जल्द सही इलाज मिल जाए.
मिथ – पैरालिसिस अपने आप ठीक हो जाता है.
फैक्ट – अक्सर ऐसा नहीं होता है. अगर होता भी है तो आगे ज्यादा घातक पैरालिसिस अटैक न पड़े इसके लिए जांच और इलाज जरूरी है.
मिथ – कबूतर खाने या उसका शोरबा पीने से यह ठीक हो जाता है.
फैक्ट – ऐसी कोई बात नहीं है. मेडिकल हिस्ट्री में ऐसा कोई सबूत नहीं है. डॉक्टर इसे फिजूल की बात कहते हैं.
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