प्रेसबायोपिया या लैंस के सामंजस्य की क्षमता का खत्म हो जाना उम्र के साथ होने वाला सामान्य परिवर्तन है. यह लोगों को 40 वर्ष की उम्र के बाद प्रभावित करता है. हालांकि, मोबाइल फोन और इसी तरह के गैजेट्स का प्रयोग करने से अब यह लक्षण उम्र से पहले ही नजर आने लगा है. यह नजदीक में नजर केंद्रित करने को कठिन बना देता है, खासकर छोटे अक्षरों और कम रोशनी में.
प्रेसबायोपिया के शुरुआती चरण में व्यक्ति फोन या किताब को कुछ दूर तक रख सकता है. व्यक्ति कुछ स्थितियों में, यहां तक कि लंबे हाथ वाले व्यक्ति भी, लंबे समय तक मैन्यू के छोटे अक्षरों को नहीं पढ़ सकते. साथ ही, नजदीक का काम करने जैसे कढ़ाई या हाथों से लिखने पर प्रभावित लोगों को सिरदर्द, आंखों पर दबाव या थकान महसूस हो सकती है. यह वह स्थिति होती है जब लोगों को मदद की या फिर नेत्ररोग विशेषज्ञ से मिलने की जरूरत हो जाती है.
ये भी पढ़ें- घरेलू नुस्खे हैं कितने कारगर
क्या हैं लक्षण
आमतौर पर प्रेसबायोपिया व्यक्ति के 40 वर्ष की उम्र की शुरुआत या मध्य में शुरू होता है, जब लोगों का ध्यान जाता है कि उन्हें मोबाइल पर नंबर टाइप करने या किताब पढ़ने में परेशानी महसूस हो रही है. जो लोग पास की चीजों को देखने की गतिविधि रोजाना करते हैं, उन्हें इस बात का पता जल्दी चल जाता है और वे जल्द ही इस की शिकायत करते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि आजकल मोबाइल फोन और टेबलेट्स के अत्यधिक इस्तेमाल करने से लोगों को जल्द ही सुधारात्मक चश्मे लग जाते हैं, यहां तक कि 37-38 साल की उम्र में ही.
बता दें कि एस्टीमैटिज्म (दृष्टिवैषम्य), नियरसाइटेडनैस (निकटदृष्टि दोष) और फारसाइटेडनैस (दूरदृष्टि दोष) के रूप में प्रेसबायोपिया में अंतर पाया जा सकता है, जोकि आंखों की पुतलियों के आकार से संबंधित हैं और आनुवंशिक व पर्यावरणीय कारणों से होते हैं. यदि पास की धुंधली नजर आप को पढ़ने, नजदीक के काम करने या अन्य सामान्य गतिविधियों को करने से रोक रही है तो आंखों के डाक्टर को दिखाएं.
क्या है इलाज
प्रेसबायोपिया को ठीक करने के लिए कोई भी बेहतर तरीका नहीं है. इस में सुधार का सब से सही तरीका आप की आंखों और आप की जीवनशैली पर निर्भर करता है. आप को अपने नेत्ररोग विशेषज्ञ से अपनी जीवनशैली के बारे में जरूर चर्चा करनी चाहिए, ताकि यह निर्णय लिया जा सके कि कौन सा सुधार आप के लिए सब से ज्यादा ठीक हो सकता है.
चश्मा : बायफोकल या प्रोग्रैसिव लैंस के साथ वाले चश्मे प्रेसबायोपिया में सुधार के लिए सब से आम होते हैं. बायफोकल का मतलब है जिस में 2 फोकस लैंस होते हैं. चश्मे के लैंस का प्रमुख भाग दूरदृष्टि दोष के सुधार के लिए होता है, जबकि लैंस का निचला हिस्सा निकटदृष्टि दोष की अत्यधिक परेशानी में निकट का काम करने के लिए होता है. प्रोग्रैसिव प्रकार के लैंस बायफोकल लैंस के समान होते हैं लेकिन दोनों सुधारों या उपचारों के बीच होने वाले लगातार बदलाव के लिए उपयुक्त होते हैं, जिस में उन के बीच कोई लकीर नजर नहीं आती. यदि आप कौन्टैक्ट लैंस लगाते हैं तो आप के नेत्ररोग विशेषज्ञ पढ़ने के लिए चश्मे की सलाह दे सकते हैं. इन्हें आप तब लगा सकते हैं जब कौन्टैक्ट लगे हुए हों, उन की जांच नियमित रूप से होती रहे, खासकर 50 वर्ष की आयु के बाद.
ये भी पढ़ें- आज टिफिन में क्या है ममा ?
सर्जरी : प्रेसबायोपिया का उपचार करने के लिए कंडक्टिव कैरेटोप्लास्टी या कौर्नियल इन लेज जैसे सर्जरी के विकल्प मौजूद हैं. इस के अलावा, लेजर का प्रयोग मोनोविजन तैयार करने के लिए किया जा सकता है, जिस में एक आंख के निकटदृष्टि दोष को ठीक किया जाता है, जबकि दूसरी आंख दूरदृष्टि के लिए मजबूत बनाई जाती है.
एक अन्य प्रभावशाली प्रक्रिया है जो रिफ्रैक्टिव लैंस एक्सचेंज के रूप में जानी जाती है. यह आंख के विजन को स्पष्ट बना सकती है लेकिन कड़े प्राकृतिक लैंस के साथ. यह एक कृत्रिम प्रेसबायोपिया सुधार लैंस है जो मल्टीफोकल विजन या बहुकेंद्रक दृष्टि के लिए होता है.
यह आवश्यक रूप से मोतियाबिंद की सर्जरी है. लेकिन यह उन लोगों पर की जाती है जिन्हें मोतियाबिंद तो न हो लेकिन सभी प्रकार के दूरदृष्टि दोष हों.
बहरहाल, आंख की किसी भी समस्या को नजरअंदाज न करें. जब भी आप को महसूस हो कि आप की आंखें सामान्य से कम कार्य कर रही हैं तो नेत्ररोग विशेषज्ञ को जरूर दिखाएं.
ये भी पढ़ें- हेपेटाइटिस बचाव ही इलाज
(लेखक नई दिल्ली स्थित सैंटर फौर साइट के निदेशक हैं)