उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ घूमने के लिहाज से मशहूर और ऐतिहासिक जगह है. नवाबी और अंग्रेजी शासनकाल में बनी यहां की इमारतें वास्तुकला का बेजोड़ नमूना हैं. 1775 से 1856 तक लखनऊ अवध राज्य की राजधानी था. नवाबी काल में अवध की अदब और तहजीब का विकास हुआ. लखनऊ घूमने जो भी आता है वह सब से पहले बड़ा इमामबाड़ा और यहीं बनी भूलभुलैया जरूर देखना चाहता है. यह लखनऊ की सब से मशहूर इमारत है. चारबाग रेलवे स्टेशन से लगभग 6 किलोमीटर दूर बना बड़ा इमामबाड़ा वास्तुकला का अदभुत नजारा पेश करता है.

1784 में इस को नवाब आसिफुद्दौला ने बनवाया था. इस इमारत का पहला अजूबा 49.4 मीटर लंबा और 16.2 मीटर चौड़ा एक हौल है. इस में किसी तरह का कोई खंभा नही है. इस के एक छोर पर कागज फाड़ने जैसी कम आवाज को भी दूसरे छोर पर आसानी से सुना जा सकता है. इस इमारत का दूसरा अजूबा इस के ऊपरी हिस्से में 409 गलियारे हैं. ये सब एकजैसे दिखते हैं और समान लंबाई के हैं. ये सभी एकदूसरे से जुडे़ हुए हैं. इन में घूमने वाले रास्ता भूल जाते हैं. इसीलिए इन गलियारों को भूलभुलैया कहा जाता है.

भूलभुलैया के पास नहाने के लिए एक बावली बनी है, जिस में गोमती नदी का पानी आता है. सुरक्षा की नजर से यह कुछ ऐसी बनी है कि इस के अंदर नहा रहा आदमी बाहर वाले को देख सकता है पर बाहर वाला अंदर वाले को कभी नहीं देख पाता.

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वास्तुकला का अद्भुत नमूना

बड़ा इमामबाड़ा से एक किलोमीटर आगे छोटा इमामबाड़ा बना हुआ है. मुगल स्थापत्य कला के इस बेजोड़ नमूने का निर्माण अवध के तीसरे नवाब मोहम्मद अली शाह द्वारा 1840 में कराया गया था. दूर से यह इमामबाड़ा ताजमहल जैसा दिखता है. यहां नहाने के लिए एक खास किस्म का हौज बनाया गया था, जिस में गरम और ठंडा पानी एकसाथ आता था. इस इमारत में शीशे के लगे हुए झाड़फानूस बहुत ही खूबसूरत हैं.

छोटे व बड़े इमामबाड़े के बीच के रास्ते में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं. इन को पिक्चर गैलरी, घड़ी मीनार और रूमी दरवाजा के नाम से जाना जाता है. इन सब जगहों पर जाने के लिए टिकट बड़े इमामबाड़ा से एकसाथ मिल जाता है. बड़े इमामबाड़े के बाहर बने 60 फुट ऊंचे दरवाजे को रूमी दरवाजा कहा जाता है. इस के नीचे से सड़क निकलती है. इस दरवाजे के निर्माण की खास बात यह है कि इस को बनाने में किसी तरह के लोहे या लकड़ी का प्रयोग नहीं किया गया है. रूमी दरवाजे से थोड़ा आगे चलने पर घड़ी मीनार बनी है. 221 फुट ऊंची इस मीनार का निर्माण 1881 में हुआ था. इस में लगी घड़ी का पेंडुलम 14 फुट लंबा है. 12 पंखुडि़यों वाला डायल खिले फूल की तरह दिखता है. इस के पास ही बनी पिक्चर गैलरी में अवध के नवाबों के तैलचित्र लगे हुए हैं.

पोशाक का विवाद

कुछ लोग यह मानते हैं कि बड़ा और छोटा इमामबाड़ा पर्यटन स्थल से पहले धार्मिक स्थल हैं. ऐसे में यहां घूमने आने वालों को धर्म के नियम मान कर उस के अनुसार ही कपडे़ पहन कर यहां आना चाहिए. इस के तहत सिर को ढकने के साथ ही ऐसे कपडे़ हों जिन में शरीर खुला न दिख रहा हो. ऐसे में लखनऊ जिला प्रशासन ने एक ड्रैसकोड बना दिया, जिस की हर तरफ आलोचना शुरू हो गई. जिला प्रशासन ने तो ऐसे कानून को वापस ले लिया, इस के बाद भी भूलभुलैया में घूमते समय सिर को ढक कर जाने के लिए कहा जाता है. इस के साथ ही पतिपत्नी या लड़केलड़की के जोडे़ को अंदर अकेले जाने नहीं दिया जाता है.

भूलभुलैया प्रबंधन से जुडे़ लोग यह मानते हैं कि कपल यानी जोड़े में घूमने आने वाले एकांत का लाभ उठा कर अश्लील हरकतें कर सकते हैं. ऐसे में जरूरी यह होता है कि वे अपने साथ गाइड ले कर जाएं. जानकार लोग कहते हैं कि इस तरह के नियमों के सहारे गाइड के कारोबार को आगे बढ़ाया जा रहा है. इसलिए इन नियमों का विरोध हो रहा है.

ऐसे नियमों से सब से अधिक परेशान नए शादीशुदा जोड़े होते हैं. कई जोडे़ इन नियमों से परेशान हो जाते हैं. कई लोगों को इस की आदत पड़ जाती है क्योंकि कई मंदिरों में भी पहनावे को ले कर नियमकानून हैं. इस के बाद भी भूलभुलैया घूमने आने वाले ड्रैसकोड से परेशान हैं. यहां आ कर उन्हें पर्यटन की अनुभूति नहीं हो रही है.

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