लगातार 3 बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं और राजधानी को आधुनिक रूप देने वाली वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शीला दीक्षित की पहचान निडर महिला व कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में होता था. अंतिम समय तक राजनीति में सक्रिय रहीं शीला की मौत की खबर मीडिया में आया तो लोगों को सहसा यकीन ही नहीं हुआ कि वे अब नहीं रहीं.
उन के निधन के बाद जब उन का पार्थिव शरीर निजामुद्दीन स्थित उन के आवास से पार्टी मुख्यालय लाया गया तो उन की आखिरी झलक पाने के लिए लोग बेताब हो उठे.
कांच के ताबूत में उन का पार्थिव शरीर ले कर आ रहा ट्रक सड़क पर धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था और ‘जब तक सूरज चांद रहेगा शीला जी का नाम रहेगा’ के नारों से आसमान गूंज उठा था.
क्या पक्ष और क्या विपक्ष, शीला की मौत पर हर राजनीतिक पार्टी के नेताओं की आंखें नम थीं.
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, अहमद पटेल और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा कमलनाथ समेत कई शीर्ष कांग्रेस नेता, भाजपा के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित कई लोगों ने शीला दीक्षित को श्रद्धांजलि दी तो यह महज एक औपचारिकता नहीं थी, दरअसल शीला आम से खास लोगों के दिलों में रहती थीं.
निधन की खबर सुन कर दुख हुआ- सुषमा स्वराज
भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने कहा, “शीला दीक्षित जी के अचानक निधन की खबर सुन कर दुख हुआ. हम राजनीति में प्रतिद्वंद्वी थे लेकिन निजी जिंदगी में हम दोस्त थे. वह बेहतर इंसान थीं.”
भाजपा के 1998 में सत्ता से बाहर होने के बाद स्वराज की जगह दीक्षित ने ली थी.
काम करने और करवाने में माहिर थीं शीला
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता पुष्पेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं,”शीलाजी खानेपीने की शौकीन थीं, हालांकि हार्ट की बीमारी के बाद वे डाक्टर के निर्देशानुसार खातीपीती थीं. मगर जब भी मिलती थीं उन के चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास दिखता था.”
एक वाकेआ का जिक्र करते हुए पुष्पेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि कैसे वे बङेबङे नेताओं से अपना काम निकलवा कर दिल्ली की भलाई में आगे रहती थीं.
एक संस्मरण बताते हुए वे कहते हैं,”बात तब की है जब एनडीए की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी तत्कालीन प्रधानमंत्री थे. एक बार दिल्ली की किसी बङे प्रोजेक्ट को ले कर काम की शुरूआत करानी थी. इस के लिए केंद्र की मंजूरी चाहिए थी. तब शीला दीक्षित ने तत्कालीन दिल्ली सरकार में मंत्री हारून युसुफ के साथ बाजपेयी से मिलने का प्रोग्राम बनाया. वे प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचे तो वाजपेयी को प्रोजेक्ट के बारे में बताया.
“बाजपेयी ने कहा कि प्रोजेक्ट तो अच्छा है लेकिन…
“उन के इतना कहते ही शीला ने छूटते ही कहा कि बाजपेयीजी, आप भी तो दिल्ली में रहते हैं. क्या आप नहीं चाहेंगे कि दिल्ली में यह काम हो?
“इस पर बाजपेयीजी जोर से हंसे और बोले कि शीला, आप कितनी सादगी से अपना काम निकलवाना जानती हो. हम जनता के कामों के लिए ही यहां हैं और कोई भी काम कभी रूकने नहीं पाएगा.”
कांग्रेस कार्यकर्ता मोहित सैनी ने बताया कि कैसे वे एक बार बुराङी आई थीं और उन्हें जब पता चला था कि यहां गरीब बच्चों को आगे की पढाई करने में दिक्कत होती है तो उन्होंने नई स्कूल खुलवाने की घोषणा की थी.
शीला चाहती थीं कि दिल्ली का हर बच्चा उच्च शिक्षा हासिल करे और यहां तक पढाई करने में कभी किसी तरह की दिक्कत न आए.
शीला मीठा खाने की भी शौकीन थीं और इसी वजह से उन्होंने नैनीताल से एक होटल के शेफ जोगाराम को स्वीट डिश बनाने दिल्ली और गुरूग्राम बुलाया था. शीला की मृत्यु की खबर सुन कर जोगाराम मीडिया के सामने आ कर रो पङे और कहा कि वे हम सब को बेहद प्यार करती थीं.
जब शीला को बस में प्रपोज किया था
शीला की शादी एक ही साथ पढने वाले विनोद दीक्षित से हुई थी. शीला ने अपनी जीवनी को याद करते हुए शादी की दिलचस्प बातें भी बताई थीं.
तब शीला पढने के लिए रोज बस से आतीजाती थीं. साथ पढने वाले विनोद शीला को देखते ही दिल दे बैठे और एक दिन तो रूट नंबर 10 की बस पर साथ बैठते हुए ही उन्होंने शीला को शादी के लिए प्रपोज कर डाला.
शीला ने बताया था कि किस तरह विनोद ने जब उन्हें कहा कि मुझे एक लङकी पसंद है और उसी से शादी करना चाहता हूं तो तब उन्होंने पूछा था कि कौन है वह लङकी? इस पर विनोद ने कहा कि मेरे साथ बैठी लङकी जिस के साथ मैं बस पर हूं तो शीला यह सुन कर दंग रह गई थीं.
शीला और विनोद तब साथ ही आतेजाते और जब भी मौका मिलता ढेर सारी बातें करते.
शीला उन्हें खत लिखा करती थीं क्योंकि तब के जमाने में न मोबाइल था और न ही कोई ऐसा फोन जिस से वे आपस में ढेर सारी बातें कर पाएं.
शादी नहीं थी आसान
विनोद से शीला की शादी तब आसान नहीं थी. विनोद तब के कद्दावर नेता उमा शंकर दीक्षित के बेटे थे जो इंदिरा गांधी सरकार में कैबिनेट में गृहमंत्री भी रहे.
शीला ब्राह्मण नहीं थीं और विनोद उच्च कुलीन ब्राह्मण परिवार से थे. पर विनोद की जिद के आगे परिवार वाले को झुकना पङा और फिर दोनों की शादी हुई. कहते हैं कि शीला ने राजनीति के गुर अपने ससुर उमा शंकर दीक्षित से ही सीखे थे.
उच्च शिक्षित थीं शीला
शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में हुआ था. उन्होंने दिल्ली के कौन्वेंट औफ जीसस ऐंड मैरी स्कूल से पढ़ाई की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कालेज से उच्च शिक्षा हासिल की.
वह पहली बार साल 1984 में उत्तर प्रदेश के कन्नौज से सांसद चुनी गईं. बाद में वह दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हुईं.
शीला के पुत्र संदीप दीक्षित भी राजनीति में हैं. वह पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से 2004 से 2014 बीच 2 बार सांसद रहे हैं .
शीला दीक्षित ने हाल में उत्तर पूर्वी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन वह जीत नहीं पाई थीं.
निधन पर गहरा शोक
शीला के निधन पर तमाम लोगों ने संवेदना व्यक्त की है.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दीक्षित के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा है,”उन के कार्यकाल में राष्ट्रीय राजधानी में प्रभावी बदलाव हुआ .दिल्ली की मुख्यमंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान राजधानी में प्रभावी बदलाव हुआ जिस के लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीक्षित के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने दिल्ली के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, ‘‘मैं शीला दीक्षित जी के निधन के बारे में सुन कर बहुत दुखी हूं. वह कांग्रेस पार्टी की प्रिय बेटी थीं जिन के साथ मेरा नजदीकी रिश्ता रहा. दुख की इस घड़ी में उन के परिवार और दिल्ली के निवासियों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं.’’
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निधन पर शोक जताया. केजरीवाल ने ट्वीट किया, ‘‘शीला दीक्षितजी का निधन अत्यंत दुखद है. यह दिल्ली के लिए भारी क्षति है.”
वाकई शीला दीक्षित राजनीति की एकमात्र ऐसी सितारा थीं जिन्हें पक्ष ही नहीं विपक्ष के नेता भी बेहद प्यार और सम्मान देते थे.
अपने मुख्यमंत्रीत्व काल में दिल्ली में कराए विकास के कार्यों के लिए उन्हें सदैव याद रखा जाएगा.
Edited By- Neelesh Singh Sisodia