कर्नाटक में सियासी घमासान के बीच कांग्रेस और जेडीएस की सरकार गिर तो गई पर इस से पहले इतना नाटक होगा और इस के नायक और खलनायक इतने जल्दी जल्दी बदलेंगे इस का अनुमान उन्हें ही था जिन्हें राजनीतिक नाटक के रंगमंच को पलपल बदलते रंगों से रंगने में महारत हासिल हो.
बहरहाल, इस राजनीतिक उठापठक में सरकार के पक्ष में 99 जबकि भाजपा के पक्ष में 105 विधायक रहे. इस हार के साथ जहां पूर्ववत सरकार के नेताओं के चेहरे बुझे हुए थे, वहीं भाजपा नेताओं के चेहरे पर खुशी साफ दिखाई दे रही थी.
नहीं मिला विधायकों का साथ
मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को संख्या बल का साथ नहीं मिला और उन्हें विश्वास मत प्रस्ताव पर 4 दिन की चर्चा के खत्म होने के बाद हार का मुंह देखना पड़ा. विधानसभा में पिछले बृहस्पतिवार को उन्होंने विश्वास मत का प्रस्ताव पेश किया था.
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विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार ने ऐलान किया कि 99 विधायकों ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया है जबकि 105 सदस्यों ने इस के खिलाफ मत दिया है. इस प्रकार यह प्रस्ताव गिर गया.
कुरसी क्या राजनीति छोड़ सकता हूं: कुमारस्वामी
नतीजों से उदास हो कर मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने मीडिया से बातचीत में कहा,”विश्वास मत की कार्यवाही को लंबा खींचने की मेरी कोई मंशा नहीं थी. मैं विधानसभा अध्यक्ष और राज्य की जनता से माफी मांगता हूं. चर्चा चल रही है कि मैं ने इस्तीफा क्यों नहीं दिया और कुरसी पर क्यों बना हुआ हूं? जब विधानसभा चुनाव का परिणाम आया था, मैं राजनीति छोड़ने की सोच रहा था.”
कुमारस्वामी ने कहा कि मुझे कुरसी की चिंता नहीं है और न ही लालच. मैं तो आज भी कुरसी क्या राजनीति तक छो़ड़ सकता हूं.
राहुल गांधी का तंज
कर्नाटक में राजनीतिक घटनाक्रम पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तंज कसते हुए कहा,”उन के लालच की आज जीत हो गई. लोकतंत्र, ईमानदारी और कर्नाटक की जनता हार गई…”
इस बीच बेंगलुरु में धारा 144 लगा दिया गया है. पब, शराब की दुकानें 25 तारीख तक बंद कर दी गई हैं. इस बात की पुष्टि करते हुए बेंगलुरू के पुलिस आयुक्त आलोक कुमार ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा,”अगर कोई भी नियमों का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है, तो सख्त कार्रवाई की जाएगी.”
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अगली सरकार किस की
सरकार गिरने के बाद अब भाजपा सरकार बनाने का दावा पेश करेगी. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कुमारस्वामी ने कहा है कि देखते हैं यदुरप्पा कितने दिनों तक सरकार बचा कर रख पाते हैं.
बहरहाल, यह तय है कि सरकार भाजपा की ही बनेगी पर जिस तरीके से वहां की सरकार को अस्थिर किया गया, सियासी पासे से राजनीति की बिसात बिछा कर शहमात का खेल खेला गया उस से यह तय जरूर हो गया कि नेताओं के लिए जनता नहीं कुरसी प्यारी है. तो क्या अब मध्य प्रदेश की बारी है?