पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था:
काजल और सुंदर स्कूल के दिनों से ही एकदूसरे से प्यार करते थे. सुंदर चूंकि ऊंची जाति का था और काजल दलित थी इसलिए सुंदर के पिता ने उसे मामा के पास भेज दिया. वहां सुंदर का खूब शोषण हुआ. इधर काजल पढ़ाई में तेज होने के चलते आगे बढ़ती गई. इसी बीच सुंदर की जिंदगी में मीनाक्षी आई जिस के पिता उन दोनों का रिश्ता कराना चाहते थे.
अब पढ़िए आगे…
‘‘तेरी भलाई इसी में है कि तू मीनाक्षी के संग जोड़ी जमा और पढ़लिख. मैट्रिक पास करा दिया न? सैकंड डिवीजन ही सही.
‘‘कल कालेज चलना मेरे साथ. दाखिला करा दूंगा,’’ कह कर आंखें तरेरते हुए मिश्राजी वहां से चले गए.
उस दिन भी सुंदर ने खाना नहीं खाया. सब ने लाख कोशिश की, पर बेकार गया.
मीनाक्षी सुंदर को समझाती, ‘‘घोड़े हो गए हो पूरे 6 फुट के. मन के मुताबिक नतीजा नहीं लाया तू?’’
‘‘नहीं मीनाक्षी, इस बार या तो फर्स्ट आऊंगा या फिर जान दे दूंगा,’’ सुंदर ने पूरे भरोसे के साथ कहा.
‘‘बाप रे…’’ मीनाक्षी ने मुंह पर हाथ रख लिया, ‘‘तू इतना बुजदिल है… जब मैं साथ रहूंगी तो जान कैसे देगा? मैं क्या तमाशा देखूंगी? मैं भी…’’ सुंदर ने अपने हाथों से उस के मुंह को बंद कर दिया.
‘‘तुम्हारा तो सबकुछ है. तुम ऐसा क्यों करोगी?’’
‘‘जब तुम नहीं तो कौन है मेरा?’’ मीनाक्षी की आंखों में आंसू आ गए.
‘‘मीनाक्षी, ऐसे सपने मत पालो. रास्ते का ठीकरा किसी का भविष्य नहीं हो सकता. मैं गरीब पूजापाठ कराने वाले बाबूजी का बेटा हूं. तेरी जैसी अमीरी मेरे पास नहीं है. तेरे लिए तो शहजादों की कतार लगी है.’’
मिश्राइन दूसरे कमरे से दोनों की बातें सुन रही थीं. वे बाहर निकल आईं, ‘‘तू ही तो एक सूरमा बचा है काजल के लिए? अरे पोथीपतरे वाले, तेरे मन में यह सब कैसे घुस गया है? दलित अछूत होते हैं, इतना भी नहीं पता?’’
‘‘पता है, लेकिन आप को भी पता होगा कि ये सब दीवारें कब की गिर चुकी हैं. पूरे देश में उदाहरण भरे पड़े हैं कि अच्छेअच्छों व बड़ेबड़ों ने भी इसे स्वीकारा है और दूसरी जाति में शादी कर इसे साबित भी कर दिया है.
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‘‘मांजी, वह दिन दूर नहीं जब जातिवाद भूल कर सब आपस में मिल कर एक हो जाएंगे. समाज में बढ़ती गरीबी, बेरोजगारी, दहेज प्रथा के खात्मे के लिए यह जरूरी हो गया है कि
2 परिवार मिलें, शादी करें और एकदूसरे के बोझ को हलका करें. मास्टरजी तो जानते ही होंगे…’’ सुंदर बोला.
‘‘बस, भाषण बंद कर. मुझे तुम से बहस नहीं करनी,’’ मांजी पैर पटकते हुए वहां से चली गईं.
मीनाक्षी ने जोर से ताली बजाई, ‘‘मां को हरा दिया सुंदर, शाबाश. इस बार तू इम्तिहान को भी हरा दे.’’
‘‘ऐसा ही होगा मीनाक्षी, ऐसा ही होगा इस बार,’’ और सुंदर एकदम चुप हो गया.
मिश्राइन ने मिश्राजी को सारी बातें बताईं.
‘‘बोलो, मैं क्या करूं?’’ मिश्राजी ने पूछा.
‘‘करना क्या है… दोनों के पैरों में जल्दी ही बेडि़यां डाल दो.’’
‘‘यह मुमकिन है क्या? मीनाक्षी और सुंदर अभी नाबालिग हैं. सब्र करो. सब्र का फल मीठा होता है.’’
‘‘अगर चिडि़या पिंजरे से फुर्र हो गई तो?’’ मिश्राइन ने सवाल किया.
मिश्राजी कुछ नहीं बोले. वे कमरे में सोने चले गए. मिश्राराइन झुंझला गईं और पैर पटक कर बोलीं, ‘‘ऐसा ही होगा एक दिन. तुम ख्वाब देखते रह जाओगे.’’
इधर काजल का मानना था कि सुंदर क्लास में उस से पीछे है. उसे पता नहीं था कि सुंदर ने भी मैट्रिक का इम्तिहान दिया था और सैकंड क्लास से पास भी हुआ था. बड़ी मुश्किल से मास्टरजी ने उस का दाखिला गांव के निकट के कालेज में करा दिया था और उस ने काजल के नतीजे के बराबर तो नहीं, उस के पास आने की कसम खाई थी.
काजल ने मुख्यमंत्री से 25 हजार रुपए का चैक ले तो लिया, लेकिन सुंदर से आगे रहना उसे गवारा नहीं था इसलिए उस ने कहीं दाखिला नहीं लिया.
खुद डीईओ साहब ने कोशिश की, तो काजल की मां ने कहा, ‘‘मैं अकेली रह लूंगी लेकिन साहब, शहर की कहानियां सुनसुन कर तो मेरा कलेजा मुंह को आ जाता है. वहां गुंडे सरेआम लड़कियों को उठा लेते हैं. 5 साल की बच्ची से भी बलात्कार कर हत्या करने से नहीं हिचकते भेडि़ए. साहब, मेरी फूल सी बेटी इन सब का शिकार होने नहीं जाएगी शहर.’’
‘‘देखिए, माना कि शहर में यह सब होता है लेकिन जरूरी तो नहीं कि काजल के साथ भी हो. उस पर भी कलक्टर की देखरेख रहेगी. ऊपर से मुख्यमंत्री का दबाव पड़ रहा है. दाखिला तो कराना ही होगा.
‘‘रही बात सिक्योरिटी की तो एसपी से कह कर इसे सिक्योरिटी दी जाएगी. वहां रहने को होस्टल है. इस के लिए सबकुछ मुफ्त रहेगा. चाहे तो आप भी साथ में रह सकती हैं. मेरा भी घर बहुत बड़ा है.
‘‘मेरा एकलौता बेटा अंजन कुमार ट्रेनी डीएसपी है. उस की भी निगरानी रहेगी. काजल मेरे पास बेटी बन कर रहेगी. हम भी आप की ही बिरादरी के हैं.’’
‘‘आप का बेटा… कुंआरा है क्या अभी?’’ काजल की मां की उत्सुकता जागी.
‘‘हां, है तो… लेकिन अभी ट्रेनी है.
2 महीने बाद उस की पोस्टिंग कहीं भी डीएसपी की पोस्ट पर हो जाएगी.’’
‘‘तो ऐसा कीजिए न साहब, आप काजल को बेटी बना ही लीजिए.’’
मां का मकसद ट्रेनी डीएसपी से काजल की शादी कराना था.
‘‘देखिए, जमाना एडवांस चल रहा है. आजकल शहरों में पहले दोस्ती, फिर सगाई और फिर… समझ रही हैं न आप. मेरा भी लालच इतना ही है कि ऐसी सुघड़, सुंदर व मेधावी लड़की अपनी बिरादरी में खोजे नहीं मिलेगी.’’
‘‘मां…’’ यह सुन कर काजल चीख उठी, ‘‘कहा न कि मैं दाखिला नहीं लूंगी और न ही शादी ही करूंगी, बस.’’
‘‘मैं कैसे समझूं कि गांव की लड़कियां शहर की लड़कियों से कम होती हैं? सोच लीजिएगा. एक मौका तो दूंगा ही.
‘‘और हां, दाखिला तो लेना ही पड़ेगा. यह सरकारी आदेश है,’’ इतना कह कर वे चले गए.
उस रात काजल ने सपना देखा कि सुंदर की दूसरी जगह शादी हो गई है और वह सुहागरात में उस का नाम ले कर फूटफूट कर रो रहा है.
सपने में ही काजल की चीख निकल गई और नींद टूट गई. मां ने उसे बांहों में भर लिया.
काजल ने फफकते हुए कहा, ‘‘मां, सुंदर ने शादी कर ली है.’’
‘‘पगली, सपने भी कहीं सच होते हैं भला. सो जा. शादी होगी तो तेरा क्या? हम दलित हैं और वे लोग ऊंची जाति के हैं. वे लोग हमें अछूत मानते हैं.’’
इसी तरह 2 महीने बीत गए. डीएसपी अंजन कुमार की पोस्टिंग भी राजकीय महाविद्यालय गेट के पास बने थाने में थाना इंचार्ज के रूप में हुई.
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डीएम की चिट्ठी का हवाला देते हुए डीईओ ने डीएसपी अंजन कुमार को लिखा कि नंदीग्राम की एकमात्र छात्रा काजल का दाखिला कल तक करा दिया जाए, क्योंकि उसी के लिए कालेज में सीट रिजर्व रखी गई है. उस के रहने, आनेजाने पर सिक्योरिटी गार्ड की तैनाती का भी आदेश दिया गया.
डीएसपी ने अपने डीईओ पिता से भी काजल की चर्चा सुनी थी, इसलिए वे खुद को रोक नहीं सके और शाम को तकरीबन 4 बजे फोर्स ले कर नंदीग्राम पहुंच गए.
2 घरों के बाद ही काजल का घर था. अंजन कुमार ने सांकल बजाई. काजल ने दरवाजा खोला. अंजन कुमार समझ गए कि यही काजल है.
‘‘आप की मां कहां हैं?
‘‘पड़ोस में गई हैं. वे अभी आ जाएंगी,’’ इतना कह कर काजल ने एक कुरसी निकाली और अंजन कुमार को बिठा दिया.
अंजन कुमार ने पूछा, ‘‘क्या तुम्हीं काजल हो?’’
काजल ने हां में सिर हिलाया और जेब पर लगी नेमप्लेट से समझ गई कि यही डीईओ साहब के बेटे हैं जिन से उस की शादी की बात उन्होंने मां से छेड़ी थी.
तभी काजल की मां भी आ गईं और हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं.
‘‘देखिए, काजल के दाखिले के लिए राजकीय महाविद्यालय में सीट खाली छोड़ी गई है. डीएम ने डीईओ को और डीईओ ने यह काम थाना इंचार्ज डीएसपी अंजन कुमार यानी मुझे सौंप दिया है.
‘‘कल हम सुबह साढ़े 9 बजे गाड़ी ले कर आएंगे और आप दोनों को महाविद्यालय चलना होगा. इस में आनाकानी की कोई गुंजाइश नहीं है. बस, मैं यही कहने आया था,’’ कह कर वे उठ खड़े हुए.
‘‘अगर मैं दाखिला न लूं तो?’’ काजल ने कहा.
‘‘तो कल मैं वारंट भी साथ ही ले कर आऊंगा. और… आप सोच लेना,’’ डीएसपी अंजन कुमार ने कहा.
डीएसपी अंजन कुमार की छाती को बेधते हुए काजल ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘थैंक यू सर.’’
डीएसपी अंजन कुमार दिल पर पड़े जख्म को सहलाते हुए अपने थाने लौट गए. दूसरे दिन काजल का दाखिला हो गया और चल पड़ा नया सैशन. सभी प्रोफैसरों को गाइड किया गया था कि वे काजल पर खास नजर रखें.
काजल भी हर सब्जैक्ट को आसानी से समझ लेती थी. उस ने भी ठान लिया था कि सुंदर मास्टर मिश्राजी की बेटी के साथ मगन है तो वह क्यों उस के नाम की माला जपे? अगर वह दलित है तो ठीक है, कुदरत ने उसे किसी से कम भी नहीं बनाया है.
देखभाल के लिए सिक्योरिटी गार्ड मिलने से काजल को घर से कालेज आनेजाने में कोई डर नहीं था. उस की मां भी खुश थीं.
चूंकि काजल होस्टल में रहती थी, वह भूल गई अपने गांव को. उसे क्या पता था कि उस का पुराना घर तोड़ कर सरकार वहां नई इमारत बना रही है. पूरे गांव का कायाकल्प हो रहा है.
(क्रमश:)
क्या सुंदर गांव में जा कर काजल से मिल पाया? क्या मिश्राजी सुंदर को अपना दामाद बनाना चाहते थे? पढ़िए अगले अंक में…