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गुजरात में अहमद पटेल के बहाने इमरजेंसी की रिहर्सल

गुजरात राज्यसभा चुनाव वाकई बड़ा दिलचस्प था,  रात 2 बजे के कुछ पहले घोषणा हो पाई कि दिग्गज कांग्रेसी, सोनिया गांधी के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल आखिरकार आधे वोट से विजयी हो गए. दिन भर अस्सी के दशक के जासूसी उपन्यासों की तर्ज पर न्यूज चेनल्स पर सिर्फ रोमांस नाम के अनिवार्य तत्व को छोडकर रहस्य, रोमांच, कानून, दलीलें और शाकाहारी हिंसा वगेरह सब अनवरत प्रवाहित होता रहा, जिसका लुत्फ भी टीवी से चिपके लोगों ने खूब उठाया और ड्रामा खत्म होने के बाद अंगड़ाई और जम्हाई लेते, इस आत्म आश्वासन यानि बेफिक्री के साथ सो गए कि अभी 26/6/1975 जैसा आपात काल नहीं लगा है.

बात या कथानक बड़ा मामूली राजनीति के लिहाज से था, जिसके तहत भाजपा ने कुछ कांग्रेसी विधायक खरीदते उसी की पार्टी का एक बागी उम्मीदवार खड़ा करते अहमद पटेल को राज्य सभा में पहुचने से रोकने की कोशिश की थी. विधायकों का ईमान और स्वाभिमान कायम रखने की गरज से कांग्रेस अपने 44 विधायकों को बेंगलुरु तरफ एक फाइव स्टार रिसोर्ट में ले गई थी और एन वोटिंग के वक्त लाकर मूछों पर ताव दिया था. अब उनसे बड़ी मूछ तो अमित शाह की है जिन्होने आंखो ही आंखो में 2 कांग्रेसी विधायकों को अपना ईमान बेचने राजी कर लिया. पर ये नौसिखिये एमएलए कथित भुगतान के प्रति आश्वस्त होने मत पत्र अमित शाह को खुले आम दिखा बैठे.

बस गड़बड़ यहीं से शुरू हुई. कुछ कांग्रेसियों को याद आया कि यह कृत्य तो नियम विरुद्ध है और एक वक्त में ऐसे वोट कोर्ट तक रद्द कर चुकी है तो वे सीधे निर्वाचन आयोग जा पहुंचे, जिससे बिके ईमान बाले ये वोट खारिज हो जाएं और अहमद पटेल एक दफा फिर राज्य सभा पहुंच जाएं. ग्रहण के चलते इस बार का रक्षा बंधन बड़ा नीरस सा रहा था, जिससे दुखी टीवी रिपोर्टर्स ने कैमरे गांधीनगर से लेकर दिल्ली तक में फिट कर रखे थे. इस फिटनेस में चुनाव आयोग के इस फैसले ने नई जान फूंक दी कि 2 ईमान रहित विधायकों के वोट गिनती में नहीं लिए जाएंगे. बस फिर शुरू हुआ असल ड्रामा जो खरीद फरोख्त की हदें पार करते लोकतन्त्र नाम की व्यवस्था पर बार बार आया.

दोनों दलों के प्रवक्ताओं और नेताओं के अलावा एंकरनुमा पत्रकारों ने भी अभी तक का संचित ज्ञान स्क्रीन पर उड़ेल दिया. खूब बहसें हुईं, सवाल जवाब हुये, आरोप प्रत्यारोप लगे और सभी एक दूसरे को अपनी गिरहवान में झांकने का सनातनी मशवरा देते रहे.  अल्प मात्रा में अशिष्टता भी हुई, जिससे दर्शकों का मनोरंजन ही हुआ. इधर अमित शाह के मतगणना स्थल पर धूनी रमा कर बैठे रहने से कइयों की बाईं आंख फड़कने लगी थी, जिसे अपशगुन का संकेत माना जाता है.

दिल्ली में देर रात अपना सुख और डिनर छोडकर दफ्तर आए चुनाव आयोग के तीन कमिश्नरों ने मतगणना के आदेश दिये, तो भाजपा को अपनी नाक कटती लगी, जिसे कम से कम कटाने उसने मतगणना मे अड़ंगा डाला कि उसकी शिकायत पर भी कारवाई हो, पर तब तक कमिश्नरों के कारिंदे साहबों की फाइलें वगेरह उनकी गाड़ियों में रखते उन्हे जाने हरी झंडी दे चुके थे.

गांधीनगर मे वन डे क्रिकेट मेच सरीखा रोमांच दिखने लगा था. इधर एंकरों ने भी हल्ला मचाना शुरू कर दिया था कि क्या भाजपा के चाणक्य अमित शाह यह बाजी जीत पाएंगे या इस बार पार्टी का असली चेहरा सामने आएगा. यहां तक बात चिंता की नहीं थी, पर मतगणना के आदेश की अवहेलना पर भाजपाई उतारू हो आए तो चेनल्स पर चर्चा यह होने लगी कि क्या अब फैसला सुबह अदालत खुलने पर होगा. तमाम हंसी ठिठोली से परे यह वक्त वाकई भयभीत कर देने वाला था कि अगर भाजपाइयों ने मतगणना नहीं होने दी तो इसका अर्थ और अंजाम क्या होगा. गांधीनगर का रिटर्निंग आफ़ीसर भाजपा के इशारे पर नाच रहा है, यह बात तो वोटिंग के तुरंत बाद सभी को समझ आ गई थी, पर अमित शाह का लगातार बजता डमरू उसे सांस वाली हवा न तो उगलने दे रहा था और न ही ढंग से निगलने दे रहा था.

अब तक इस टीवी नोवल के पन्ने पलटते लोग भी घबराने लगे थे कि यह क्लाइमेक्स तो उम्मीद से परे है. केंद्र के दर्जन भर मंत्री भागा दौड़ी करते  जीत का रास्ता तलाश रहे थे और स्क्रीन पर बैठे भाजपा प्रवक्ताओं की टीम इसे अपना हक बता रही थी. कहीं यह हक सुबह होते होते इन्दिरा गांधी के 1975 के हक जैसा न हो जाये, इस बात से डरे लोग बेमन से टीवी का खटका बंद करने ही जा रहे थे कि एंकर्स ने सुखद सूचना यह दी की मतगणना शुरू होने वाली है और जल्द ही नतीजे स्क्रीन पर होंगे, तब तक आप हमारे साथ बने रहिए. इस पर  लोगों ने नींद का लोभ और मोह छोडते अमित शाह और स्मृति ईरानी की जीत की खबर के साथ अहमद पटेल की आधे वोट से जीत का एलान भी सुना.

फिर शुरू हुआ कांग्रेसी जश्न और ये दावे कि 2017 के चुनाव में वे भाजपा को इसी तरह  गुजरात से पूरी तरह उखाड़ फेंकेगे. अब जो भी हो लेकिन आधा घंटे की मतगणना न होने देने की भाजपाई जिद जो कानून, नियमों और एक संवैधानिक व्यवस्था को ठेंगा बताती हुई थी हल्के में नहीं ली जा सकती और न ही इसे नजरंदाज किया जा सकता. सत्तारूढ़ दल की मनमानी और बेलगाम होने का खामियाजा देश एक बार भुगत चुका है, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौके बेमौके कर ही देते हैं पर गुजरात राज्यसभा का चुनाव और मतगणना तात्कालिक ही सही किसी इमरजेंसी से कमतर तो नहीं कहे जा सकते.

धर्म के नाम पर यौन दुराचार कब तक चलता रहेगा

धर्म अगर सदाचार सिखाता तो कैथोलिक ईसाई चर्च के मुखिया पोप को पादरियों द्वारा यौन दुराचार किए जाने के उन 2,000 मामलों को सुनना न पड़ता जो लोगों ने दक्षिण अमेरिका और यूरोप से वैटिकन के पलड़े में डाले हुए हैं. हजारों शिकायतें चर्चों में और पड़ी हैं, उन में से कुछ को वर्षों दबाए रखा जाता है तो कुछ पर लेदे कर फैसला किया जाता है.

अविवाहित रहने का संकल्प लेने वाले पादरी और अन्य कैथोलिक चर्चों के पुजारियों द्वारा यौन दुराचार किए जाने की लाखों पीडि़ताएं हैं पर ज्यादातर चुप ही रहती हैं क्योंकि पीडि़ताएं समझती हैं कि यह उन के पापों की सजा है. हिंदू धर्म की तरह ईसाई धर्म में भी पाप और पुण्य की मजेदार कहानियां होती हैं जिन का असल अर्थ यह है कि हर भक्त पापी है. इसलिए वह जम कर पुजारियों की सेवा करे, मन और धन से ही नहीं, तन से भी.

धर्म की खासीयत यही रही है कि हर प्रकार के दुराचार के बावजूद यह न केवल पिछले 4,000 वर्षों से किसी न किसी रूप में हर समाज में मौजूद है, बल्कि फलफूल भी रहा है. मानव समाज की सभ्यता की देन धर्म नहीं है. पर उस सभ्यता का लाभ कुछ जम कर उठा सकें, इस में धर्म की कोशिश सफल रही है.

तकरीबन दुनियाभर में यौन दुराचार की पीडि़त औरतें आमतौर पर पादरियों, मुल्लाओं और पंडों के खिलाफ नहीं बोलतीं क्योंकि उन्हें तो धर्म के नाम पर बेपैसे का गुलाम बना रखा गया है. शरीर के माध्यम से वे कुछ राहत पा जाती हैं. चाहे चर्च या मंदिर में रहने वाली हों या घरों में. औरतों पर धर्म का मानसिक शिकंजा इतना ज्यादा है कि वे यौन संबंधों के बदले जरा सा भी सुख पाने पर अपने को धन्य समझती हैं.

आजकल विश्वभर में कैथोलिक व प्रौटैस्टैंटी चर्चों की ही नहीं, अन्य ईसाई संप्रदायों की सताई औरतें एक बड़ी मुसीबत बन गई हैं क्योंकि हर देश में धर्मरहित कानून व्यवस्था भी बन गई है जहां धर्म के कानून के ऊपर न्यायालय हैं, जिन में शिकायतें की जा सकती हैं.

हाल के वर्षों में धर्म की पुनर्स्थापना के नाम पर हर देश में कानूनों को धर्म के नीचे रखने की कोशिश की जा रही है. इसलामिक स्टेट पश्चिम एशिया में चला और वहां नागरिक कानून व्यवस्था को हटा कर खलीफा का कानून लागू कर दिया गया, जिस के तहत धार्मिक फौज को पैसे, औरतें और मनमानी करने के सुख मिलने लगे. भारत में गौरक्षकों और रोमियो भक्षकों को मिले अनैतिक अधिकार आज सरकार के लिए ऐसे कर्मठ सिपाही मुहैया करा रहे हैं जिन की वजह से सरकार मनमानी कर पा रही है. यही पोपों के युग में सदियों तक होता रहा है.

पिछले 200 वर्षों में जो सवाल खड़े करने के अधिकार जनता को मिले हैं उन्हीं का नतीजा है कि पोप को रोम के वैटिकन में सुप्रीम कोर्ट की तरह पूरा एक कार्यालय चर्च के पादरियों के खिलाफ आई दुराचार की शिकायतें सुनने के लिए बनाना पड़ा है.

कट्टर डोनाल्ड ट्रंप, व्लादिमीर पुतिन और नरेंद्र मोदी इसलिए चुनाव जीते हैं क्योंकि धार्मिक शक्तियों ने अपने प्राचीन अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए और मेहनत करनी शुरू कर दी है. वे रंग, जाति, नस्ल, भाषा किसी का भी प्रयोग कर भक्तों पर होने वाले खुद के अत्याचारों व अपराधों को दबा कर रखना चाहते हैं.

लैपटाप खरीदने से पहले जरूर पढ़ें ये खबर

मौजूदा समय में बाजार में कई लोकप्रिय और क्वालिटी ब्रैंड्स के लैपटाप उपलब्ध है. सभी कंपनियों के लैपटाप की अपनी एक अलग खासियत होती है. यूजर्स के लिए लैपटाप खरीदने के भी कई कारण हो सकते है. हर यूजर्स की अपनी-अपनी जरूरत होती है जिसके हिसाब से वह लैपटाप खरीदता है. अगर आप भी लैपटाप खरीदने जा रहे हैं तो इन टिप्स को दिमाग में रख कर ही लैपटाप खरीदें.
जरूरत जानें

अगर आप एक लैपटाप खरीदने की योजना बना रहे हैं तो हमारा सुझाव है कि सबसे पहले अपनी जरूरत को जान लें. सभी लैपटाप की कीमत उनके फीचर्स को ध्यान में रख कर रखी जाती है. यानि कि जितने हाई फीचर्स उतनी ज्यादा कीमत.

जानकारी

लैपटाप खरीदते समय यूजर्स कई कंपनियों के ब्रैंड को देखकर कनफ्यूज हो जाते है. ऐसे में जरूरी हैं कि यूजर्स लैपटाप खरीदने से पहले सभी कंपनियों के लैपटाप की अच्छे से सारी जानकारी ले लें.

इंटरनेट का सहारा

इस समस्या का समाधान आप आसानी से इंटरनेट से पा सकते हैं. यूजर्स अब नेट पर आसानी से विभिन्न ब्रैंड्स की तुलना कर सकते हैं. जिसके बाद यह खरीदार पर है कि वह अपनी जरूरत के हिसाब से किस लैपटाप को खरीदता है.

फीचर्स को समझें

लैपटाप खरीदते समय हर यूजर्स के दिमाग में उस डिवाइस के प्रोसेसर, डीवीडी प्लेयर, हार्ड डिस्क ड्राइव से लेकर चिपसेट, वायरलेस इंटरफेस आदि के बारे में सवाल रहते हैं. इसके अलावा लैपटाप के स्टैंडर्ड फीचर्स जैसे यूएसबी पोर्ट, सीरियल पोर्ट, और नेटवर्क पोर्ट्स के बारे में जानकारी लेना चाहते हैं.

नए माडल

बाजार में हर रोज नए-नए फीचर्स के साथ नए माडल उतारे जा रहे हैं. यूजर्स उन लैपटाप को खरीदना ज्यादा पसंद करते हैं जो वजन में काफी हल्के होते हैं. जिसे वे आसानी से कहीं भी ले जा सकते हैं. लैपटाप के निर्माताओं द्वारा किए गए नए इनोवेटिव उपायों ने पिछले माडलों की तुलना में ज्यादा हाई माडलों की शुरुआत की है जो अधिक हाई-टेक फीचर्स के साथ आते हैं.

इन विदेशी खिलाड़ियों ने की भारतीय लड़कियों से शादी

अकसर विदेशी खिलाड़ी भारतीय लड़कियों के दीवाने हो जाते हैं. कुछ खिलाड़ी तो ऐसे हैं जिन्होंने भारतीय लड़कियों के साथ अपना घर बसा लिया. आज हम कुछ ऐसे ही खिलाड़ियों के बारे में आपको बता रहे हैं जिन्होंने विदेशी होते भी भारतीय लड़कियों के साथ शादी की.

इस फेहरिस्त में पाकिस्तान ही नहीं श्रीलंका, इंग्लैंड यहां तक की ऑस्ट्रेलिया तक के खिलाड़ी भी शामिल हैं.

शोएब मलिक-सानिया मिर्जा

पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक ने भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्जा से शादी की. अप्रैल 2010 में शोएब और सानिया शादी के बंधन में बंध गए. उनकी शादी हैदराबाद के एक होटल में हुई. इसे लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह की बातें भी हुई थी.

जहीर अब्बास-रीता लूथरा

पाकिस्तानी क्रिकेट के फेमस क्रिकेटर सैयद जहीर अब्बास ने भारतीय महिला रीता लूथरा से शादी की. पाकिस्‍तान के इस बेहतरीन बल्‍लेबाज और रीता की मुलाकात इंग्‍लैंड में हुई. रीता वहां पर पढ़ाई कर रही थीं. जहीर वहां पर काउंटी क्रिकेट खेलने आते थे. यही दोनों के बीच प्यार हुआ.

मुथैया मुरलीधर-नमधीमलार राममूर्ति

श्रीलंका के सफल फिरकी गेंदबाज मुथैया मुरलीधरन ने चेन्नई की मधीमलार राममूर्ति से वर्ष 2005 में शादी की. मधीमलार, मलार हास्पिटल्स के स्वर्गीय डा. एस राममूर्ति और उनकी पत्नी डा. नित्या राममूर्ति की बेटी हैं. मुथैया और मधीमलार का एक बेटा भी है, जिसका नाम है नरेन.

शान टेट-माशूम सिंघा

आस्ट्रेलिया के पूर्व गेंदबाज शान टेट ने भारतीय महिला माशूम सिंघा से शादी की. उन्होंने 2014 में मुंबई में एक हफ्ते तक चले ग्रैंड वेडिंग वीक में शादी कर ली. शादी में जहीर खान और युवराज सिंह ने भाग लिया था.

मोहसिन खान-रीना राय

पाकिस्तान क्रिकेटर मोहसिन खान ने भारतीय अभिनेत्री रीना राय से शादी की. वो मुंबई आ गए थे. हालांकि फिर दोनों के बीच तलाक हो गया. मोहसिन वापस लौट गए.

ग्लेन टर्नर-सुखविंदर कौर गिल

न्यूजीलैंड के शानदार बल्लेबाज रह चुके ग्लेन टर्नर ने पंजाबी सुखविंदर कौर गिल से शादी की. ग्लेन जहां वर्तमान में न्यूजीलैंड क्रिकेट सिलेक्शन कमेटी के हेड हैं वहीं सुखविंदर न्यूजीलैंड में फेमस नेता हैं.

माइक बेअर्ली-माना साराभाई

भारत के मशहूर बिजनेसमैन गौतम साराभाई की बेटी माना साराभाई और इंग्‍लैंड टीम के कप्‍तान माइक बेअर्ली को एक-दूसरे से प्रेम हो गया था. मगर कई कोशिशों के बाद दोनों की शादी हुई. फिलहाल दोनों इंग्लैंड में रहते हैं.

हर लड़की कहे कि मैं खुले में शौच नहीं जाउंगी : अक्षय कुमार

आज जहां बौलीवुड में सफल माने जाने वाले खान कलाकार वर्ष में महज एक फिल्म करने लगे हैं, वह अपनी सफलता को बरकरार नहीं रख पा रहे हैं. वहीं आज भी अक्षय कुमार हर वर्ष कम से कम तीन से चार फिल्में कर रहे हैं. उनकी फिल्में बाक्स आफिस पर सफलता के झंडे भी गाड़ रही है. अक्षय कुमार के साथ फिल्में कर चुकी कुछ हीरोइनें मानती हैं कि अक्षय कुमार का हाथ लगते ही मिट्टी भी सोना बन जाती है. ऐसे ही सफल कलाकार से जुहू स्थिति उनके घर की इमारत में ही बने आफिस में मुलाकात हुई. हम जिस कमरे मैं बैठे हुए थे, उसके सामने समुद्री लहरें आ जा रही थी. मानों वह समुद्री लहरें भी इस सफल इंसान तक पहुंचना चाहती हो. अक्षय कुमार अब महज एक कलाकार नहीं हैं बल्कि कुछ लोग तो उन्हें संदेश वाहक और समाज सेवक भी मानते हैं.

अब सफलता के साथ आपका चोली दामन का साथ हो गया है?

ऐसा कुछ नही है. यहां सिर्फ किस्मत चलती है. मुझे खुद याद है कि अतीत में मेरी कई फिल्मों को लेकर कईयों ने कहा कि यह फिल्म अच्छी नहीं है, यह नहीं चलेगी, मगर वह फिल्म सुपर डुपर हिट रही. मैंने कई फिल्मों के बारे में सुना कि क्या धांसूं फिल्म बनायी है. यह फिल्म तो बाक्स आफिस पर रिकार्ड तोड़ेगी, पर पता चलता है कि वही फिल्म बाक्स आफिस पर पूरी तरह से असफल होती है. निर्माता को तोड़कर रख देती है. मेरी राय में फिल्म की सफलता का कोई फार्मूला नहीं है. कौन सी फिल्म कैसे सफल होती है, कोई नहीं जानता. यह बात मैंने अपने अनुभव से सीखा. जहां तक मेरे हाथ डालने से फिल्म के हिट होने या मिट्टी के सोने बनने की बात है, तो मैं ऐसा नहीं मानता. मेरे करियर में आठ से बारह फिल्में हिट हो जाती है. फिर ऐसा दौर आया, जब एक साथ 14 फिल्में असफल हुई. फिर ऐसा दौर आता है कि फिल्में चल जाती हैं. तो बौलीवुड में कुछ भी संभव है.

आपकी एक्शन, खिलाड़ी, रोमांटिक व हास्य ईमेज बनी. इन दिनों गंभीर विषय वाली फिल्में करने की है?

पहली बात तो मेरी नई फिल्म ‘‘ट्वायलेट : एक प्रेम कथा’’ गंभीर फिल्म नहीं है, इसका मुद्दा गंभीर है. यह भी सच है कि मैं एक सोच के साथ ‘रूस्तम’, ‘एअरलिफ्ट’, ट्वायलेट : एक प्रेम कथा’ जैसी फिल्में कर रहा हूं. ऐसी फिल्में करना मुझे अच्छा लगता है. दूसरी बात जब मैं इस तरह के किरदारों को असलियत में देखता हूं, इन किरदारों से मिलता हूं, तो बहुत अच्छा लगता है. मैं जब ऐसे किरदारों से मिलता हूं, तो उनकी आंखों में आंखे डालकर देखता हूं कि यह कहानी इनके साथ गुजरी है. तो मजा आता है.

फिल्म ‘ट्वायलेट : एक प्रेम कथा’ करने की वजह क्या रही?

यह फिल्म करीबन सात आठ सत्य कथाओं पर आधारित है. जब हमें बताया गया कि कुछ पत्नियों ने अपने पति का घर छोड़ दिया या अपने पति से तलाक ले लिया या अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती हैं, क्योंकि ससुराल यानी कि पति के घर में शौचालय नहीं है, तो मेरी उत्सुकता जगी. पहले तो मुझे गांव की इन औरतों का यह बहुत बड़ा कदम लगा. ऐसा कदम उठाने का साहस तो शहरी औरतें भी नहीं कर सकती. पर जब मैंने इनमें से एक दो से मिला और शोधकार्य किया, तो पाया कि घर के अंदर शौचालय न होना कितनी बड़ी समस्या है. इससे औरतों को ऐसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, जिसका सामना कोई भी पुरूष नहीं कर सकता.

दूसरी बात खुले में शौच जाने पर ही कितनी लड़कियों का बलात्कार हो जाता है. उनके घर में शौचालय नहीं है. मगर वाईफाई है, मोबाइल है, सेल्फी खींचते रहेंगे. तो मुझे लगा कि यह फिल्म करनी चाहिए.

यानी कि आपने इस फिल्म को करने से पहले कुछ लोगों से मुलाकात की?

जी हां! ‘ट्वायलेट..’ की जो समस्या है, उस पर करीबन नौ पुरुषों के साथ ऐसा हुआ है. पर हम सभी से नहीं मिल पाए. पर एक पति पत्नी से मिला. मैं यह चाहता हूं कि हमारे देश की हर औरत, हर बेटी विवाह करने से पहले लड़के से सवाल करे कि आपके घर में शौचालय है. हर लड़की यह कहे कि मैं खुले में शौच नहीं जाउंगी. फिर उससे पढ़ाई या उसके काम धंधे आदि के बारे में पूछे. जिस दिन से हर लड़की ने इस तरह का सवाल करना शुरू किया, उसी दिन देश में 54 प्रतिशत की बजाय 5 प्रतिशत घरों में शौचालय की कमी रह जाएगी.

क्या शौचालय समस्या महज गांवो की है?

यह समस्या महज गांवों की नहीं है. यह समस्या शहरों की भी है. शहरों में लोग रेल पटरियों पर या समुद्र के किनारे शौच करते नजर आ ही जाते हैं. देखिए, जिनकी औकात नहीं है या जिनके पास शौचालय बनाने के लिए पैसे नहीं हैं, तो वह खुले में शौच कर रहे हैं, तो बात समझ में आती है. लेकिन उनका क्या किया जाए, जिनकी नीयत नहीं है. यह कहानी ऐसे लोगों के लिए है.
फिल्म की कहानी को गांव या छोटे शहर ले जाने की वजह क्या रही?
हमें कहानी गांव की मिली. यह कहानी असली घटनाक्रम पर है. पूरी फिल्म हास्य कथा है. हमने शौचालय बनाने का संदेश हास्य के माध्यम से दिया है. अंत में सिर्फ पांच मिनट फिल्म गंभीर है. अन्यथा पूरी फिल्म हास्य है.

इस तरह की फिल्म को दर्शक देखना पसंद करेगा?

इसका जवाब खुद मुझे भी नहीं पता. मैं कभी भी बाक्स आफिस की चिंता नहीं करता. मैं अपनी तरफ से अच्छा काम करने का प्रयास करता हूं. मगर यह डाक्युमेंट्री फिल्म नहीं है. यह एक मनोरंजन प्रधान प्रेम कहानी है. इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद यदि कुछ प्रतिशत लोगों ने भी अपने घर में ट्वायलेट बनवा लिए, तो वही मेरी सफलता होगी. मैं चाहता हूं कि लोगों का माइंड सेट बदले, सोच बदले, नीयत बदले. मुझे उम्मीद है कि हमारे देश की युवा पीढ़ी जरुर शौचालय की जरुरत को समझेगी.

आप खुद फिल्म निर्माण भी कर रहे हैं और आपकी फिल्में सफलता भी पा रही हैं. यह कैसे संभव हो पा रहा है?

पहली बात तो फिल्म की सफलता का कोई फार्मूला नहीं है. पर मैंने अपने मित्र से लाभ व हानी के बीच सामंजस्य बैठाना और काम करने का तरीका सीखा है. मैं कहानी पसंद आने के बाद एक प्रोडक्शन कंपनी से बात करता हूं कि वह इस कहानी पर कितनी लागत से फिल्म बना सकता हैं. फिर उसे उससे थोड़ी सी ज्यादा रकम देकर कहता हूं कि वह एक तय समय पर अच्छी फिल्म बनाए. यदि फिल्म के निर्माण में देरी हुई, तो उसकी रकम कम होती जाएगी. इसलिए मेरे आफिस में महज पांच छह लोग ही काम करते हैं. मैं वर्ष में सिर्फ 180 दिन काम करता हूं. पूरे एक माह के लिए परिवार के साथ छुट्टी मनाने चला जाता हूं. शनिवार व रविवार को काम नहीं करता.

किस फिल्म के किरदार ने आपकी निजी जिंदगी पर असर पड़ा?

पिछले कुछ वर्षों से मैं जितनी फिल्में की हैं, यह सभी फिल्में कुछ न कुछ असर मुझ पर डालकर गयी है. इतना ही नहीं फिल्म ‘खिलाड़ी’ भी कुछ तो छोड़कर गयी थी. ‘ट्वायलेट : एक प्रेम कथा’, ‘रूस्तम’ और ‘एअरलिफ्ट’ ने भी असर किया.
इसके बाद कौन सी फिल्में आएंगी?
पैडमैन और गोल्ड. इसके अलावा रजनीकांत के साथ साइंस फिक्शन फिल्म ‘‘रोबोट 2.0’’ की है.

अब मेधा के आंदोलन ने किया शिवराज सिंह चौहान की नाक में दम

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक परेशानी या झंझट से मुक्त होकर चैन की सांस और नींद भी नहीं ले पाते कि तुरंत दूसरी आफत आ खड़ी होती है. उनकी नई परेशानी का नाम मेधा पाटकर जो किसी पहचान का मोहताज नहीं जिनके मोहताज अब शिवराज सिंह होते नजर आ रहे हैं. नर्मदा बचाओ आंदोलन की मुखिया मशहूर समाज सेविका मेधा पाटकर निमाड अंचल के बड़बानी जिले के गांव चिखल्दा में अब से 12 दिन पहले आमरण अनशन पर बैठी थीं पर लगातार गिरते सेहत से वे अब बैठ भी नहीं पा रहीं थीं इसलिए लगभग अचेतावस्था में जमीन पर दरी बिछाकर लेटी रहीं. उन्हें ऐसी ही हालत में पुलिस गिरफ्तार कर ले गई.

मुख्य मुद्दा विस्थापितों के पुनर्वास का है जिसे सरकार बेहद हल्के में लेकर टरकाने की नाकाम कोशिश कर रही है. मेधा के साथ अनशन पर नर्मदा बचाओ आंदोलन के 11 और कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों ग्रामीण सरकार की तरफ से किसी अच्छी खबर की आस लिए बैठे हैं. जिद्दी मेधा अब कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं तो नर्मदा घाटी के हालात भी विस्फोटक होते नजर आ रहे हैं. लड़ाई आंकड़ो के अलावा सरकार की मनमानी की भी है.

नर्मदा विवाद किसी गोरखधंधे से कम नहीं, नर्मदा किनारे सरदार सरोवर बांध साल 2006 में बनकर तैयार हुआ था जिसकी ऊंचाई तब 125.92 मीटर थी. इस बांध के बनने से कोई 3 लाख 20 हजार लोग बेघर और विस्थापित हो गए थे इनमें से 95 फीसदी आदिवासी समुदाय के थे. सरदार सरोवर बांध का उदघाटन गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 दिसंबर 2006 में किया था. मेधा पाटकर और दूसरे कई समाजसेवी और बाबा आमटे सरीखे पर्यावरणविद इस बांध का विरोध करते रहे हैं. यह लड़ाई असाधारण इस लिहाज से रही कि आंदोलनकारियों के अदालत में जाने से एक वक्त में वर्ल्ड बेंक ने भी इस से हाथ खींच लिए थे.

मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में है लेकिन विवाद नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद और बढ़ा जिन्होंने इस मानव भक्षी बांध की ऊंचाई 17 मीटर और बढ़ाए जाने की इजाजत दे दी. पहले ही लाखों लोग बेघर होकर दर दर की ठोकरें खा रहे थे पर अपने गृह प्रदेश को फायदा पहुंचाने की गरज से नरेंद्र मोदी ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की अनदेखी की तो मेधा पाटकर फिर उग्र हो उठीं और अनशन की चेतावनी भी उन्होंने दी जिस पर पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकारों की तरह भाजपा सरकारों ने भी कभी तटस्थ तो कभी दमन कारी रवैया अपनाया.

इस बार मेधा के अनशन पर बैठते ही प्रशासन ने बड़ी मासूमियत से गिनाया और बताया कि अब सिर्फ 1700 परिवारों का ही पुनर्वास होना बाकी है जबकि मेधा पाटकर के दावे के मुताबिक प्रभवितों की संख्या अभी भी हजारों में है. एनबीए यानि नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुसार सरकार लगातार झूठ बोलकर गुमराह करती रही है. इसके पहले के पुनर्वासों में जमकर हुई धांधली, भ्रष्टाचार और दलाली किसी सबूत के मोहताज नहीं लेकिन ताजा संकट मेधा पाटकर के बिगड़ती सेहत और बढ़ते समर्थन का था. एक ट्वीट के जरिये शिवराज सिंह ने मेधा से अनशन खत्म करने की अपील की थी पर इस बार आर पार की लड़ाई के मूड में आ गई मेधा ने उन्हें झिड़क दिया था. इस पर सियासत का नया टोटका अपनाते शिवराज सिंह ने एक नामी संत भय्यू जी महाराज को मध्यस्थता की जिम्मेदारी सौंपते हुए एक सरकारी प्रतिनिधि मण्डल उनके साथ मेधा पाटकर को मनाने भेजा.

विस्थापन और पुनर्वास की समस्या एक हद तक राजनैतिक भी है और सामाजिक भी है जिसका हल धार्मिक तौर पर निकालने की शिवराज सिंह की कोशिश भी काम नहीं आई उल्टे आंदोलनकारियों सहित ग्रामीण और गुस्से से भर उठे तो शिवराज सिंह को नहीं सूझा कि अब क्या करें. मेधा की गिरफ्तारी उन्हें सहूलियत भरा रास्ता लगा पर यह हल नहीं है. केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भी जज्बाती होकर मेधा को घेरने की कोशिश की थी परंतु बात बनी नहीं. अब सरकार की चिंता विस्थापित कम मेधा का बिगड़ता स्वास्थ ज्यादा था जो किसी भी तरह की चिकित्सीय सहायता नहीं ले रहीं थी इस पर आखिर सरकार ने वही किया जो आमतौर पर ऐसे हालातों में किया जाता है.

7 अगस्त को भारी पुलिस बल तैनात कर मेधा पाटकर को धरना स्थल से जबरन हटा दिया गया. इस पर गुस्साये आंदोलनकारियों ने एतराज जताया तो पुलिस ने उन पर डंडे भी बरसाए. अब एनबीए के कार्यकर्ता आगे की रणनीति बना रहे हैं लेकिन सरकार का दमनकारी चेहरा एक बार फिर उजागर हो गया है जो ऐसे आंदोलनो का मर्म न समझते उन्हें लाठी से दबाने की गलती कर उन्हें और हिंसक बनाने उकसाती है. मुख्य मंत्री शिवराज सिंह खुद चिखल्दा जाकर मेधा पाटकर से बात करते तो शायद कोई रास्ता निकलता लेकिन नर्मदा प्रेमी शिवराज सिंह ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है तो इसके नतीजे उनके और भाजपा के हक में तो कतई निकलने बाले नहीं.

क्रिकेट के ये 10 अनोखे रिकार्ड हैं भारतीय खिलाड़ियों के नाम

आज क्रिकेट की लोकप्रियता से हर कोई वाकिफ है. दुनिया में जो स्थान क्रिकेट को प्रापत है वह किसी और खेल को नहीं मिला है. और बात अगर अपने देश भारत की हो तो क्या कहने. भारत में क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं धर्म है. यहां क्रिकेट की पूजा की जाती है.

अनिश्चिताओं से भरे इस खेल क्रिकेट में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता. कोई हारी हुई बाजी जीत जाता है तो कोई जीती हुई बाजी हार. यह एक ऐसा खेल है जिसमें आए दिन रिकार्ड बनते हैं और टूटते हैं.

बात रिकार्ड की हो और भारतीय खिलाड़ी का नाम ना आए ऐसा तो हो ही नहीं सकता. भारत ने क्रिकेट को कई ऐसे दिग्गज खिलाड़ी दिए हैं जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ढ़ेरों रिकार्ड्स बनाए हैं. ये रिकार्ड्स ऐसे हैं कि इन्हें भूल पाना नामुमकिन है. आईए नजर डालते हैं भारतीय खिलाड़ियों द्वारा बनाए गए कुछ ऐसे ही रिकार्ड्स पर.

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में सौ शतक

बात जब क्रिकेट के रिकार्ड्स की हो और सचिन तेंदुलकर का उसमें नाम न आए, ये शायद मुम्किन नहीं. जब भी हम क्रिकेट के रिकार्ड्स की बात करेंगे उसमें सचिन के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में सौ शतकों का ज्रिक जरूर होगा. इसके अलावा सचिन अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी भी हैं. इतना ही नहीं 200 टेस्ट मैच खेलने वाले वो एकलौते खिलाड़ी हैं.

कप्तान के तौर पर धोनी का आईसीसी खिताब जीतना

महेंद्र सिंह धोनी का नाम क्रिकेट इतिहास के सबसे सफल कप्तानों में शुमार किया जाता है. वह धोनी ही हैं जिनकी कप्तानी में भारत ने आईसीसी की सभी प्रमुख ट्राफियों पर अपना कब्जा जमाया. फिर बात चाहे 2007 टी-20 विश्व कप की हो, 2011 विश्व कप या फिर 2013 चैंपियंस ट्राफी की. ऐसा करने वाले दुनिया के एकलौते कप्तान हैं धोनी.

एक पारी में 10 विकेट लेने का रिकार्ड

भारत के लेग स्पिनर अनिल कुंबले ने टेस्ट क्रिकेट में एक पारी के पूरे के पूरे 10 विकेट लेने का रिकार्ड अपने नाम किया हुआ है. उन्होंने ये कारनामा 7 फरवरी 1999 को पाकिस्तान के खिलाफ दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर खेले गए टेस्ट मैच में किया था. उस मैच में पाकिस्तान की दूसरी पारी के 10 विकेट चटकाकर कुंबले ने अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करवा लिया. इससे पहले एक पारी में 10 विकेट झटकने का रिकार्ड सिर्फ जिम लेकर के नाम था.

लगातार सबसे ज्यादा मेडन ओवर फेंकने का रिकार्ड

भारत के बाएं हाथ के स्पिनर बापू नादकर्णी को क्रिकेट इतिहास के सबसे कंजूस गेंदबाजों में गिना जाता है. नादकर्णी ने इंग्लैंड के खिलाफ 1963 में लगातार 21 मेडन ओवर डाले थे. उन्होंने अपने इस स्पेल में लगातार 131 डाट बाल फेंकी थी. उन्होंने 32 ओवर में 27 मेडन सहित सिर्फ 5 रन खर्च किए थे.

वनडे क्रिकेट में दो दोहरा शतक

एकदिवसीय क्रिकेट में जहां कई दिग्गज बल्लेबाजों के नाम एक भी दोहरा शतक नहीं होता वहीं भारत के सलामी बल्लेबाज रोहित शर्मा दुनिया के ऐसे बल्लेबाज हैं जिन्होंने वनडे में दो दोहरे शतक लगाए हैं. इनका नाम सबसे पहले दो डबल सेंचुरी लगाने का रिकार्ड है. उन्होंने अपना पहला दोहरा शतक साल 2013 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ बेंगलुरू के मैदान पर जड़ा था जबकि उनके बल्ले से दूसरा दोहरा शतक साल 2014 में श्रीलंका टीम के खिलाफ कोलकाता के ईडेन गार्डन्स के मैदान पर निकला. उस मैच में उन्होंने 264 रनों की विशाल पारी खेली थी जो किसी भी बल्लेबाज द्वारा वनडे क्रिकेट का सर्वाधिक स्कोर भी है.

फास्टेस्ट फिफ्टी का रिकार्ड

2007 टी-20 विश्व कप के एक ओवर में युवराज सिंह द्वारा जड़ा गया एक ओवर में 6 छक्का किस क्रिकेट फैन के जहन में नहीं होगा. इस मैच में युवराज ने टी20 क्रिकेट का सबसे तेज अर्धशतक बनाया था. युवराज ने मात्र 12 गेंदों पर अपना अर्धशतक पूरा किया था जो अंतर्राष्ट्रीय टी-20 क्रिकेट में आज भी सबसे तेज अर्धशतक है.

पदार्पण खिलाड़ी के रूप में अजहरूद्दीन के 3 टेस्ट में 3 शतक

टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करते हुए शतक जड़ना किसी भी बल्लेबाज के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होती है. मगर अपने पहले तीन टेस्ट मैचों में शतक लगाने की कल्पना तो शायद बल्लेबाज सपने में भी नहीं कर सकता. लेकिन भारत के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरूद्दीन ने ये कारनामा कर दिखाया है. अजहर ने 1984 में इंग्लैंड के खिलाफ अपने पहले तीन टेस्ट मैचों में तीन शतक लगाकर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में शानदार आगाज किया था.

टेस्ट क्रिकेट में सबसे तेज तिहरा शतक

वीरेंद्र सहवाग भारत के पहले बल्लेबाज हैं जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में तिहरा शतक जड़ा है. उन्होंने ये कारनामा एक बार नहीं बल्कि दो बार किया है. लेकिन यहां हम बात कर रहे हैं टेस्ट क्रिकेट में सबसे तेज तिहरे शतक की. इस मामले में इस विस्फोटक बल्लेबाज का नाम सबसे ऊपर आता है. सहवाग के नाम टेस्ट क्रिकेट में सबसे तेज तिहरा शतक बनाने का रिकार्ड दर्ज है. साल 2008 में सहवाग ने चेन्नई में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ केवल 278 गेंदों पर तिहरा शतक लगाकर टेस्ट इतिहास का सबसे तेज तिहरा शतक बनाया था.

रहाणे द्वारा एक टेस्ट में सबसे ज्यादा कैच लपकने का रिकार्ड

किसी एक टेस्ट मैच में सबसे ज्यादा कैच लपकने का रिकार्ड भारत के अजिंक्य रहाणे के नाम है. साल 2015 में श्रीलंका के खिलाफ गाले में हुए टेस्ट मैच में रहाणे ने कुल 8 कैच लपके थे जो कि एक विश्व रिकार्ड है.

टेस्ट क्रिकेट में द्रविड़ ने खेली है सबसे ज्यादा गेंद

भारत की दीवार के नाम से मशहूर दिग्गज बल्लेबाज राहुल द्रविड़ टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा गेंद खेलने वाले बल्लेबाज हैं. अपने टेस्ट करियर के दौरान उन्होंने 164 टेस्ट मैचों में कुल 31258 गेंदें खेलीं हैं जो एक विश्व रिकार्ड है.

मैं 26 साल की हूं. शादी नहीं हुई है पर सुरक्षित यौन संबंध बनाएं हैं. मुझे मासिकस्राव समय से नहीं होता. क्या करूं.

सवाल
26 साल की अविवाहिता हूं. मेरी लंबाई 5 फुट 3 इंच है और वजन 70 किलोग्राम. 5 माह पहले मुझे मासिकस्राव नहीं हुआ था. लेकिन अगले महीने हुआ था. उस के 10 दिन बाद मैं ने सुरक्षित यौन संबंध स्थापित किए. उस महीने मुझे मासिकस्राव समय से हुआ. लेकिन अब देर से हो रहा है. इस के क्या कारण हो सकते हैं? कुछ लोगों ने बताया कि मुझे थायराइड की जांच करानी चाहिए. कृपया बताएं क्या करूं?
जवाब
अनियमित या देरी से मासिकस्राव होने के कई कारण हैं. अगर आप यौन सक्रिय हैं, तो पहली बात यह कि आप को गर्भावस्था के बारे में निश्चित करना चाहिए. इस के अलावा पैल्विक अल्ट्रासाउंड जांच होनी चाहिए ताकि अंडाशय में सिस्ट या पौलिसिस्टिक ओवरीज की जांच हो सके. ये मासिकस्राव में देरी के कारण हो सकते हैं. अधिक वजन का भी मासिकस्राव पर प्रभाव पड़ता है. आप की लंबाई के हिसाब से आप का वजन 60 किलोग्राम होना चाहिए. आप को अपने आहार नियंत्रण एवं जीवनशैली में परिवर्तन के जरीए वजन कम करना चाहिए. इस से आप के मासिकस्राव के नियमित होने में मदद मिलेगी.

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

जानिए कहां छुपा है आपके एंड्रायड डिवाइस में वाईफाई का पासवर्ड

पिछले कुछ सालों से, स्मार्टफोन यूजर्स इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं. इसके साथ ही टेलिकौम कंपनियां भी सस्ते इंटरनेट के नाम पर फ्री इंटरनेट के औफर्स देने लगी हैं.

इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए लोगों के लिए पब्लिक वाई-फाई उपलब्ध कराया गया है. ऐसे में अगर आप कहीं किसी पब्लिक वाई-फाई का इस्तेमाल करते हैं जिसका पासवर्ड आपके स्मार्टफोन में एक बार डालने पर सेव हो जाता है, लेकिन आप देख नहीं पाते हैं, तो आज हम आपको वाई-फाई नेटवर्क के पासवर्ड को जानने का तरीका बताने जा रहे हैं.

यहां शुरू करने से पहले आपको बता दें कि यह प्रोसेस सिर्फ एंड्रायड डिवाइस पर काम करता है. इसके अलावा, आप एडमिन का एक्सेस बिना प्राप्त किए वाई-फाई का पासवर्ड नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि यह जानकारी डिवाइस के सिस्टम फोल्डर में स्टोर होता है.

1. सबसे पहले आपको गूगल प्ले स्टोर से वाईफाई पासवर्ड व्यूअर (रूट) इंस्टौल करना होगा.

2. एक बार एप इंस्टौल होने के बाद, आपको उन सभी चीजों की अनुमति दे दें जो एप आपसे मांग रहा है. इससे एप उस सेव फाइल को पढ़ सकेगा, जहां आपके वाई-फाई पासवर्ड स्टोर हैं.

3. आपकी ओर से परमिशन दिये जाने के बाद, एप आपके द्वारा पहले से कनेक्ट किए गए सभी नेटवर्क के पासवर्ड की एक लिस्ट जारी करेगा.

4. अगर आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना चाहते हैं, तो लिस्ट में एक एंट्री टैप करें, जहां आप पासवर्ड की कॉपी क्लिपबोर्ड पर कौपी कर सकते हैं या किसी भी एप के जरिए इसे शेयर कर सकते हैं. साथ ही, आप एक QR कोड भी बना सकते हैं.

बिग बौस 11 में होगी भाभी जी की एंट्री!

टीवी का सबसे पौपुलर रिएलिटी शो ‘बिग बौस’ एक बार फिर चर्चा में है. सितंबर में शुरू होने वाले इस शो के लिए प्रतियोगियों की खोज शुरू हो गई है. ऐसे में सूत्रों की मानें तो ‘भाभी जी घर पर हैं’ में अंगूरी भाभी का किरदार निभाने वालीं शिल्पा शिंदे का नाम भी इस शो से जुड़ सकता है.

इस रिएलिटी शो के अगले सीजन के अन्य प्रतियोगी अचिंत कौर, नंदिश सिंधू, रिया सेन, नवप्रीत बंगा, अभिषेक मलिक, मिश्ती चक्रवर्ती, मोहित मल्होत्रा, नवनीत कौर ढिल्लन, और जोया अफरोज हो सकते हैं.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शिल्पा शिंदे ने एंड टीवी के मशहूर शो ‘भाभी जी घर पर हैं’ के किरदार अंगूरी भाभी से घर-घर में अपनी एक खास पहचान बनाई थी, लेकिन शो के प्रोड्यूसर से विवाद होने के चलते पिछले साल शो को अलविदा कह दिया था.

हाल ही में शिल्पा शिंदे तब सुर्खियों में आ गईं जब उन्होंने शो के मेकर्स मानसिक तौर पर परेशान किए जाने का आरोप लगाया था. जिसके बाद शिल्पा ने शो के प्रोड्यूसर समेत सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन पर भी मानहानि का मुकदमा ठोक दिया था. साथ ही उन्होंने सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन पर छोटे पर्दे के कलाकारों के हक में आवाज नहीं उठाने का आरोप भी लगाया था.

आपको बता दें कि शिल्पा ने छोटे पर्दे पर अपने करियर की शुरुआत साल 1999 में की थी. अब देखना यह है कि क्या रिऐलिटी शो ‘बिग बौस’ के घर आकर भी शिल्पा अपना जलवा बरकरार रख पाती हैं या नहीं. खैर, ये तो वक्त ही बताएगा.

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