धर्म अगर सदाचार सिखाता तो कैथोलिक ईसाई चर्च के मुखिया पोप को पादरियों द्वारा यौन दुराचार किए जाने के उन 2,000 मामलों को सुनना न पड़ता जो लोगों ने दक्षिण अमेरिका और यूरोप से वैटिकन के पलड़े में डाले हुए हैं. हजारों शिकायतें चर्चों में और पड़ी हैं, उन में से कुछ को वर्षों दबाए रखा जाता है तो कुछ पर लेदे कर फैसला किया जाता है.
अविवाहित रहने का संकल्प लेने वाले पादरी और अन्य कैथोलिक चर्चों के पुजारियों द्वारा यौन दुराचार किए जाने की लाखों पीडि़ताएं हैं पर ज्यादातर चुप ही रहती हैं क्योंकि पीडि़ताएं समझती हैं कि यह उन के पापों की सजा है. हिंदू धर्म की तरह ईसाई धर्म में भी पाप और पुण्य की मजेदार कहानियां होती हैं जिन का असल अर्थ यह है कि हर भक्त पापी है. इसलिए वह जम कर पुजारियों की सेवा करे, मन और धन से ही नहीं, तन से भी.
धर्म की खासीयत यही रही है कि हर प्रकार के दुराचार के बावजूद यह न केवल पिछले 4,000 वर्षों से किसी न किसी रूप में हर समाज में मौजूद है, बल्कि फलफूल भी रहा है. मानव समाज की सभ्यता की देन धर्म नहीं है. पर उस सभ्यता का लाभ कुछ जम कर उठा सकें, इस में धर्म की कोशिश सफल रही है.
तकरीबन दुनियाभर में यौन दुराचार की पीडि़त औरतें आमतौर पर पादरियों, मुल्लाओं और पंडों के खिलाफ नहीं बोलतीं क्योंकि उन्हें तो धर्म के नाम पर बेपैसे का गुलाम बना रखा गया है. शरीर के माध्यम से वे कुछ राहत पा जाती हैं. चाहे चर्च या मंदिर में रहने वाली हों या घरों में. औरतों पर धर्म का मानसिक शिकंजा इतना ज्यादा है कि वे यौन संबंधों के बदले जरा सा भी सुख पाने पर अपने को धन्य समझती हैं.
आजकल विश्वभर में कैथोलिक व प्रौटैस्टैंटी चर्चों की ही नहीं, अन्य ईसाई संप्रदायों की सताई औरतें एक बड़ी मुसीबत बन गई हैं क्योंकि हर देश में धर्मरहित कानून व्यवस्था भी बन गई है जहां धर्म के कानून के ऊपर न्यायालय हैं, जिन में शिकायतें की जा सकती हैं.
हाल के वर्षों में धर्म की पुनर्स्थापना के नाम पर हर देश में कानूनों को धर्म के नीचे रखने की कोशिश की जा रही है. इसलामिक स्टेट पश्चिम एशिया में चला और वहां नागरिक कानून व्यवस्था को हटा कर खलीफा का कानून लागू कर दिया गया, जिस के तहत धार्मिक फौज को पैसे, औरतें और मनमानी करने के सुख मिलने लगे. भारत में गौरक्षकों और रोमियो भक्षकों को मिले अनैतिक अधिकार आज सरकार के लिए ऐसे कर्मठ सिपाही मुहैया करा रहे हैं जिन की वजह से सरकार मनमानी कर पा रही है. यही पोपों के युग में सदियों तक होता रहा है.
पिछले 200 वर्षों में जो सवाल खड़े करने के अधिकार जनता को मिले हैं उन्हीं का नतीजा है कि पोप को रोम के वैटिकन में सुप्रीम कोर्ट की तरह पूरा एक कार्यालय चर्च के पादरियों के खिलाफ आई दुराचार की शिकायतें सुनने के लिए बनाना पड़ा है.
कट्टर डोनाल्ड ट्रंप, व्लादिमीर पुतिन और नरेंद्र मोदी इसलिए चुनाव जीते हैं क्योंकि धार्मिक शक्तियों ने अपने प्राचीन अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए और मेहनत करनी शुरू कर दी है. वे रंग, जाति, नस्ल, भाषा किसी का भी प्रयोग कर भक्तों पर होने वाले खुद के अत्याचारों व अपराधों को दबा कर रखना चाहते हैं.