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राजनीतिक खरीदफरोख्त

उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में अपने बलबूते पर सरकार बना कर भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष को बड़ा झटका दिया है. लेकिन गोआ और मणिपुर में खरीदफरोख्त कर सरकारें बना कर उस ने अपनी प्रतिष्ठा पर नाहक दाग लगवाया है. रातोंरात विधायकों या छोटे दलों को फुसलाया न जाता तो भी वहां भाजपा की ही सरकारें बनतीं और मामला लोकतांत्रिक ही लगता. जब एक पार्टी की नदी बड़ी बन रही होती है तो छोटे नालों और नदियों से पार्टियां या इक्केदुक्के विधायक अपनेआप उस में आ मिलते हैं. कांग्रेस में टूट का इंतजार कर भाजपा आराम से सरकार बना सकती थी. उत्तराखंड में भाजपा एक बार ऐसी गलती कर चुकी है जिस से उस की किरकिरी हुई थी. पर उस ने बाद में समझौता कर लिया था. अब, उस का अच्छा परिणाम मिला.

भारतीय जनता पार्टी की आंधी अब उस तेजी से बढ़ रही है कि दूसरे दल उस के साथ बहने को ही सही समझेंगे. देश में कुछ साल एक ही पार्टी का राज रहेगा, यह पक्का है. 60, 70 व 80 के दशकों में जो बुद्धिजीवी गैरकांग्रेसवाद का झंडा उठाते थे, उन्हें अब गैरभाजपावाद के झंडे को उठाने का मौका मिल रहा है. राजनीति में यह चलता है और दुनिया के सब देशों में ऐसा होता रहता है.

छोटे राज्यों को हड़पने की कोशिश में भाजपा ने संदेश दिया है कि वह किसी भी कीमत पर एकछत्र राज चाहती है. हालांकि, यह नीति बहुत कामयाब नहीं रहती क्योंकि एकछत्र राज में दंभ और निरंकुशता दिमाग पर हावी हो जाती है. फिर गुस्सा कहीं, किसी और रूप में फूटता है, तब उसे संभालना कठिन हो जाता है जैसा इंदिरा गांधी के साथ 1973-1974 में होने लगा था.

सेक्स की चाहत में पत्नी बनी पति की दुश्मन

भागदौड़ भरी जिंदगी में सड़कों पर बढ़ती वाहनों की भीड़, उन से होने वाली दुर्घटनाएं और आए दिन होने वाले अपराधों को देखते हुए अगर घर से निकला कोई आदमी वापस न आए तो घर वाले परेशान हो उठते हैं. नेकीराम का परिवार भी बेटे को ले कर कुछ इसी तरह परेशान था. अध्यापक नेकीराम का परिवार उत्तर प्रदेश के जनपद सहारनपुर के मोहल्ला आनंद विहार में रहता था. उन का एकलौता बेटा अमन परिवार से अलग रहता था. उस के परिवार में पत्नी अनुराधा के अलावा 5 साल का एक बेटा कृष और 4 साल की बेटी अनन्या थी.

नेकीराम को बेटे के लापता होने का उस समय पता चला, जब 28 दिसंबर, 2016 की रात करीब साढ़े 9 बजे उन की बहू अनुराधा का फोन आया. उस ने जो कुछ बताया था, उस के अनुसार रात में उस की तबीयत खराब हो गई तो उस ने अमन से दवा लाने को कहा. वह मोटरसाइकिल से दवा लेने गया तो लौट कर नहीं आया.

अनुराधा ने अमन को फोन किया तो उस का मोबाइल स्विच औफ बता रहा था. इस से वह परेशान हो उठी थी और उस ने सभी को इस बारे में बता दिया था. जब अमन का कुछ पता नहीं चला तो नेकीराम और उन के भतीजे रात में ही स्थानीय थाना सदर बाजार पहुंचे और पुलिस को सूचना दे दी थी.

पुलिस ने उन्हें सुबह तक इंतजार करने को कहा था. पुलिस का अनुमान था कि अमन कहीं अपने यारदोस्तों के पास न चला गया हो. पुलिस ने भले ही सुबह तक इंतजार करने को कहा था, लेकिन घर वाले अपने स्तर से उस की तलाश करते रहे.

इसी का नतीजा था कि आधी रात को शहर के रेलवे स्टेशन परिसर में रेलिंग के पास उस की मोटरसाइकिल खड़ी मिल गई थी. लेकिन अमन का कुछ अतापता नहीं था. घर वालों की रात चिंता में बीती. सुबह शहर से लगे गांव फतेहपुर वालों ने नजर की पुलिया के नीचे किसी युवक का शव पड़ा देखा तो इस की सूचना थाना पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी मुनेंद्र सिंह मौके पर पहुंच गए. सूचना पा कर सीओ अब्दुल कादिर भी घटनास्थल पर आ गए. मृतक की गरदन पर चोट के निशान थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. मौके पर मौजूद लोग उस की शिनाख्त नहीं कर सके. शव लापता युवक अमन का हो सकता है, यह सोच कर पुलिस ने उस के घर वालों को वहां बुलवा लिया.

घर वालों ने शव की पहचान अमन की लाश के रूप में कर दी. मामला हत्या का था, इसलिए पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. साफ था, अमन की हत्या सुनियोजित तरीके से की गई थी, क्योंकि उस की मोटरसाइकिल रेलवे स्टेशन पर खड़ी मिली थी. घटनास्थल और रेलवे स्टेशन के बीच 4 किलोमीटर का फासला था. अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे हत्या करने के बाद रेलवे स्टेशन पर पहुंचे होंगे और मोटरसाइकिल खड़ी कर के फरार हो गए होंगे. पुलिस ने अमन के ताऊ के बेटे मुकेश कुमार की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ अपराध संख्या 549/2016 पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

पुलिस ने अमन के घर वालों से पूछताछ की तो उन्होंने किसी से भी अपनी रंजिश होने से इनकार कर दिया. उस के घर कोहराम मचा था. उस की पत्नी अनुराधा का रोरो कर बुरा हाल था. वह बदहवाश सी हो चुकी थी. वह इतनी दुखी थी कि बारबार बेहोश हो पा रही थी. पुलिस के सामने बड़ा सवाल यह था कि अमन की हत्या क्यों और किस ने की? इस से भी बड़ा सवाल यह था कि हत्यारों को उस के घर से निकलने की जानकारी किस तरह हुई?

एसएसपी उमेश कुमार श्रीवास्तव ने हत्याकांड का जल्द खुलासा करने का आदेश दिया. एसपी सिटी संजय सिंह ने इस मामले की जांच में अभिसूचना विंग के इंचार्ज पवन शर्मा को भी लगा दिया. उन्हें लगा कि हत्यारों ने अमन से तब संपर्क किया होगा, जब वह घर से निकला होगा. पुलिस ने अमन, उस की पत्नी अनुराधा और अन्य घर वालों के मोबाइल नंबर ले कर सभी नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. एसपी सिटी के निर्देशन में हत्याकांड के खुलासे के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया गया, जिस में क्राइम ब्रांच के अलावा थानाप्रभारी मुनेंद्र सिंह, एसआई मनीष बिष्ट, जर्रार हुसैन, हैडकांस्टेबल विकास शर्मा, कांस्टेबल नेत्रपाल, अरुण राणा और मोहित को शामिल किया गया था.

सभी नंबरों की काल डिटेल्स की जांच की गई तो पता चला कि अनुराधा की एक नंबर पर बहुत ज्यादा बातें होती थीं. घटना वाली रात भी उस की उस नंबर पर बातें हुई थीं. उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर अंकित का निकला. उस के मोबाइल की लोकेशन पता की गई तो अमन के घर और घटनास्थल की पाई गई.

पुलिस को मामला प्रेम संबंधों का लगा और साथ ही अमन की पत्नी अनुराधा संदेह के दायरे में आ गई. 31 दिसंबर को अनुराधा को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई तो जो सच्चाई समने आई, जान कर पुलिस हैरान रह गई, क्योंकि अमन की असली दुश्मन कोई और नहीं, उस की अपनी पत्नी ही थी. प्रेमी से अवैधसंबंधों को बनाए रखने के लिए प्रेमी के साथ मिल कर उसी ने पति की हत्या की योजना बनाई थी. पुलिस ने अनुराधा के प्रेमी अंकित और उस के दोस्त टीनू को गिरफ्तार कर लिया. तीनों से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन के चरित्र और गुनाह की सारी परतें खुल गईं, जो इस प्रकार थीं—

दरअसल, अनुराधा ने जैसे ही जवानी की दहलीज पर कदम रखा, तभी उस के प्रेमसंबंध कस्बा नागल के रहने वाले विजयपाल के बेटे अंकित से बन गए थे. जवानी के जोश में दोनों ने मर्यादा की दीवार भी गिराई और हमेशा साथ रहने का फैसला भी किया. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. अनुराधा के घर वालों ने उस का विवाह अमन के साथ कर दिया. इस का न तो अनुराधा विरोध कर सकी थी और न ही अंकित. यह बात अलग थी कि अनुराधा अंकित को भूल नहीं सकी. विवाह के कुछ दिनों बाद ही अनुराधा ने अंकित से संपर्क कर लिया था. अंकित इस बात से खुश था कि प्रेमिका अभी भी उसे प्यार करती थी.

दोनों के संबंध गुपचुप चलते रहे. यही नहीं, अंकित अनुराधा से मिलने उस के घर भी आने लगा था. अमन चूंकि ट्रक चलाता था, इसलिए अनुराधा को अपने संबंधों को जारी रखने में परेशानी नहीं हो रही थी. अमन कभी शहर में होता था तो कभी शहर से बाहर. अनुराधा 2 बच्चों की मां बन चुकी थी, इस के बाद भी उस के अंकित से संबंध बने रहे. शायद अंकित उस की धड़कनों का हिस्सा था. शादी के 4 साल बाद तक अमन अंधेरे में रहा. पति की आड़ में अनुराधा अपने प्यार को गुलजार रखना चाहती थी. इस तरह के संबंध कभी छिपे नहीं रहते. अनुराधा अकसर फोन पर बिजी रहती थी, जिस से अमन को शक तो होता था, लेकिन वह कोई न कोई बहाना बना कर उसे बेवकूफ बना देती थी.

किसी के मन में अगर शक घर कर जाए तो उस का निकलना आसान नहीं होता. अमन भी इस का शिकार हो गया था. आसपास के लोगों ने भी उसे बता दिया था कि उस की गैरमौजूदगी में कोई युवक अनुराधा से मिलने आता है. पत्नी की करतूतों के बारे में पता चला तो उस ने उसे न सिर्फ जम कर फटकारा, बल्कि उस की पिटाई भी कर दी. करीब 4 महीने पहले एक दिन अमन ट्रक ले कर दूर जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन दोपहर में ही वापस आ गया. उस समय अनुराधा अंकित की बांहों में समाई थी. अमन को अचानक सामने पा कर दोनों के होश उड़ गए. अंकित चला गया और अनुराधा ने गलती मान ली. इस के बावजूद उस ने अपनी आदतें नहीं बदलीं.

कुछ दिनों बाद वह फिर अंकित से मिलने लगी. अमन को इस की जानकारी हो गई. इस के बाद अंकित को ले कर घर में आए दिन विवाद होने लगा. एक दिन हद तब हो गई, जब अनुराधा बगावत पर उतर आई. उस ने साफ कर दिया कि वह अंकित से संबंध नहीं तोड़ सकती. पत्नी की बेहयाई से अमन गुस्से में आ गया और उस ने उस की जम कर पिटाई कर दी. अपने साथ होने वाली मारपीट से तंग अनुराधा ने प्रेमी अंकित से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार की खातिर कब तक जुल्म सहती रहूंगी. अगर तुम मेरे लिए कुछ नहीं कर सकते तो मुझे हमेशा के लिए छोड़ क्यों नहीं देते?’’

‘‘ऐसा क्या हुआ?’’

‘‘आज फिर उस ने मेरे साथ मारपीट की. क्या मेरी किस्मत में इसी तरह पिटना ही लिखा है? तुम कुछ करो वरना मैं जान दे दूंगी.’’

‘‘क्या चाहती हो तुम?’’

‘‘हमेशा के लिए तुम्हारी होना चाहती हूं.’’

‘‘चाहता तो मैं भी यही हूं.’’

‘‘सिर्फ चाहने से नहीं होगा, इस के लिए कुछ करना होगा. क्योंकि अमन के रहते यह कभी नहीं हो सकेगा. तुम उसे हमेशा के लिए रास्ते से हटा दो, वरना मुझे भूल जाओ.’’ अनुराधा ने यह बात निर्णायक अंदाज में कही तो गलत संबंधों के जाल में उलझा अंकित सोचने को मजबूर हो गया. उस ने उस से थोड़ा इंतजार करने को कहा.

अंकित का एक आपराधिक प्रवृत्ति का दोस्त था टीनू, जो नजदीक के गांव पंडौली निवासी छोटेलाल का बेटा था. अंकित ने उसे सारी बात बताई और दोस्ती का वास्ता दे कर उस से साथ देने को कहा तो वह तैयार हो गया. इस के बाद दोनों अनुराधा से मिलने उस के घर आए तो तीनों ने मिल कर अमन को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. यह दिसंबर, 2016 के दूसरे सप्ताह की बात थी.

28 दिसंबर की शाम अनुराधा ने अंकित को फोन किया, ‘‘आज तुम आ कर अपना काम कर सकते हो.’’

‘‘ठीक है, मैं समय पर पहुंच जाऊंगा.’’ कह कर अंकित ने फोन काट दिया. इस के बाद वह अपने दोस्त टीनू को ले कर तकरीबन 9 बजे अनुराधा के घर पहुंचा. अनुराधा ने वादे की मुताबिक घर का दरवाजा खुला रखा था. अमन उस वक्त अपने कमरे में था और सोने की तैयारी कर रहा था. तीनों कमरे में दाखिल हुए तो अंकित को वहां देख कर अमन का खून खौल उठा. वह चिल्लाया, ‘‘तुम यहां क्यों आए हो?’’

‘‘अनुराधा से मिलने और तुम्हें जिंदगी से छुटकारा दिलाने.’’ अंकित ने घूरते हुए कहा.

‘‘तेरी इतनी हिम्मत?’’ अमन गुस्से में खड़ा हो गया. वह कुछ कर पाता, उस के पहले ही तीनों उस पर बाज की तरह झपट पड़े. अमन जमीन पर गिर पड़ा. अंकित उस के सीने पर सवार हो गया तो अनुराधा ने उस के हाथों को पकड़ लिया. टीनू ने पैर पकड़ लिए. अमन ने बचाव के लिए संघर्ष करते हुए चिल्लाने की कोशिश की तो अनुराधा ने उस के मुंह को तकिए से दबा दिया, जिस से उस की आवाज दब कर रह गई, साथ ही दम भी घुटने लगा.

तभी अंकित ने वहां पड़ा डंडा उठा कर उस के गले पर रख कर पूरी ताकत से दबा दिया. अमन छटपटाया, लेकिन उस पर किसी को दया नहीं आई. कुछ देर में अमन की सांसों की डोर टूट गई. अपने ही सिंदूर को मिटाने में अनुराधा को जरा भी हिचक नहीं हुई. हत्या के बाद उन्होंने शव ठिकाने लगाने की सोची. अंकित और टीनू ने अमन की ही मोटरसाइकिल ली और कंबल ओढ़ा कर लाश को मोटरसाइकिल से ले जा कर पुलिया के नीचे डाल दिया. इस के बाद मोटरसाइकिल स्टेशन पर लावारिस खड़ी कर के दोनों ट्रेन से नागल तक और फिर वहां से अपने अपने घर चले गए. इस के बाद अनुराधा ने अमन के लापता होने की बात उस के घर वालों को बताई और लाश मिलने पर खूब नौटंकी भी की, लेकिन आखिर उस की पोल खुल ही गई. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त डंडा भी बरामद कर लिया था.

एसपी संजय सिंह ने प्रेसवार्ता कर के हत्याकांड का खुलासा किया. इस के बाद सभी को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

अनुराधा ने अपने बहकते कदमों को संभाल कर घरगृहस्थी पर ध्यान दिया होता तो ऐसी नौबत कभी न आती. उस की करतूत से मासूम बच्चे भी मां बाप के प्यार से महरूम हो गए. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कहता है जोकर सारा जमाना…

सरकस में जोकर तो आप ने खूब देखे होंगे जिन्हें सारा जमाना जोकर कहता है और उस की अजबगजब हरकतों पर ठहाके लगा कर हंसता है. वास्तव में जोकर होते ही बड़े मजेदार हैं, क्योंकि उन में अपने गमों को भीतर छिपा कर लोगों को हंसाने का टैलेंट होता है और लोग भी उन के नौटी चेहरे और हरकतों को देख कर अपने भीतर के दर्द को पलभर के लिए भूल जाते हैं, तभी तो जहां कहीं भी जोकर शो का आयोजन होता है, लोग हजारों की संख्या में उन्हें देखने के लिए उमड़ते हैं और कुछ पल के लिए उसी माहौल में रम जाते हैं.

यहां तक कि बहुत सी ऐसी फिल्में आईं जैसे ‘मेरा नाम जोकर’ जिस में जोकर के किरदार से लोग प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए और यहां से भी जोकर शो के प्रति क्रेज बढ़ा. आज तो आलम यह है कि देशविदेश में जोकर शो व इवैंट्स आयोजित होने लगे हैं और हों भी क्यों न, क्योंकि जब टैलेंट यूनीक है तो आयोजन भी खास होना चाहिए. ऐसा ही एक आयोजन होता है ब्रिटेन में जिस का नाम है, ‘क्लाउन डे.’

क्लाउन डे कैसे आया ट्रैंड में

करीब 4 हजार साल पहले प्राचीन चीन में शिन हुंग टि च्यू के शासन में मसखरी के लिए एक दिन तय किया गया, जिस में लोग खूब हंसीमजाक करते थे और यहीं से इस दिन की शुरुआत हुई. देखादेखी बाकी देशों ने भी इसे अपनाया, क्योंकि उन्हें इस दिन को सैलिबे्रट करने में ज्यादा मजा जो आता था.

जोकरों के अंदाज निराले

सिर्फ इक्कादुक्का जगह ही नहीं बल्कि दुनियाभर में क्लाउन फैस्टिवल का आयोजन किया जाता है जिस में जोकरों के अंदाज निराले होते हैं. वे फंकी कपड़ों के साथ, नाक पर लाल टमाटर की तरह छोटी बौल लगा कर, सब को हंसाने वाला मेकअप कर, पैरों में बड़ेबड़े जूते पहन कर कभी सड़कों पर अपनी फौज के साथ घूमते हैं तो कभी स्टेज पर गुदगुदाने वाली परफौर्मैंस से लोगों को ‘वाट अ टैलेंट यार’ कहने पर मजबूर कर देते हैं.

हर दर्शक उन की आखिरी परफौर्मैंस तक अपनी सीट पर जमा रहता है. इसी तरह का फैस्टिवल लंदन, ब्रिटेन, मैक्सिको, ब्राजील, नीदरलैंड्स, इटली व नौर्वे आदि देशों में भी आयोजित किया जाता है, जिस का कोई जवाब नहीं. देखने वाले उसे बस देखते ही रह जाते हैं.

वन डे नहीं, पूरा सप्ताह जोकरों के नाम

कभी वैलेंटाइन डे, कभी पिलो डे तो कभी टीचर्स डे. इस तरह के न जाने विश्वभर में कितने डे मनाए जाते हैं, लेकिन ये सिर्फ एक दिन मनाए जाते हैं, लेकिन क्लाउन डे तो सप्ताहभर मनाया जाता है जिस का आयोजन अगस्त फर्स्ट वीक में किया जाता है. हो भी क्यों न, क्योंकि जोकर्स सब को स्ट्रैस से बाहर निकालने का काम जो करते हैं और इस के लिए सिर्फ एक दिन ही काफी नहीं. तो हुए न दुनिया के लिए जोकर खास.

दिल में दर्द फिर भी हंसाने की कला

भले ही उन के दिल में दर्द क्यों न हो, लेकिन फिर भी उन के चेहरे पर हरदम मुसकान रहती है, यही तो कला होती है जोकर में. ऐसा ही फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ में हुआ. उस में जोकर का किरदार निभाने वाले राज कपूर के दिल में कितना दुख छिपा था यह सिर्फ वही जानता था, लेकिन इन सब के बावजूद वह अपने काम से पीछे नहीं हटा और अपनी परफौर्मैंस से सब को लोटपोट करता रहा.

ऐसा सिर्फ फिल्म में राज कपूर ने ही नहीं किया बल्कि सभी जोकर अपने काम की खातिर अपने दर्द को अपने तक सीमित रख कर सब को हंसाने का काम करते हैं और इनसान वही है, जो दूसरे को खुश रखने के लिए खुद का गम भुला दे.

जोकरों के प्रकार

व्हाइटफेस जोकर

इस जोकर के फैशियल फीचर्स को कलर्स से उभारने पर जोर दिया जाता है. इस के फेस पर व्हाइट बेस अप्लाई किया जाता है, जबकि बौडी के कुछ खास पार्ट्स को रैड और ब्लैक कलर से उभारा जाता है. ये या तो बहुत बड़े या फिर छोटे सूट पहनते हैं साथ ही बड़ेबड़े जूते और आमतौर पर टोपी पहने हुए होते हैं.

अगस्टे

अगस्टे जोकर के फेस पर पिंक टोन का मेकअप किया जाता है. इस में आंखों और मुंह को व्हाइट कलर से हाईलाइट किया जाता है, जबकि चिक्स व आईब्रोज के लिए रैड और ब्लैक कलर का इस्तेमाल किया जाता है और यहां तक कि विग का भी इस में इस्तेमाल किया जाता है.

करैक्टर क्लाउन

इस में व्हाइटफेस और अगस्टे दोनों का या फिर किसी एक का कौंबिनेशन होता है, क्योंकि इस में मुख्य फोकस करैक्टर पर होता है कि क्या बनाया जाना है और उसी पर ही कौस्ट्यूम्स भी निर्भर करते हैं.

हर किसी में नहीं जोकर बनने का दम

जब जोकरों पर कोई जोक डैडिकेट होता है या फिर वे रैस्टोरैंट्स के बाहर हमारे वैल्कम के लिए खड़े होते हैं तो उन्हें देख कर हम हंस उठते हैं और कभी उन के फंकी चेहरे का मजाक बनाते हैं तो कभी उन की हरकतों को देख कर उन के मुंह पर ही कह उठते हैं कि जोकर जो है तभी तो ऐसी ऊटपटांग हरकतें कर रहा है. ऐसा कहते वक्त हम एक बार भी यह नहीं सोचते कि  उन्हें यह सुन कर कितना बुरा लगता होगा.

कभी आप ने सोचा है कि यह भी हर किसी के बस में नहीं. अगर आप को ही कहा जाए कि किसी रोते हुए इनसान को हंसाना है तो आप भी यह नहीं कर पाएंगे जो जोकर मिनटों में कर देता है. इसलिए जो दम आप में नहीं, उस के लिए किसी पर हंसने का भी हक आप को नहीं.

भारत में बर्थडे या इवैंट पार्टीज तक सीमित

आज से कुछ साल पहले लोगों में सर्कस वगैरा के लिए काफी ऐक्साइटमैंट रहती थी और इस के लिए लोग शो शुरू होने से काफी पहले ही वहां जा कर बैठ जाते थे, लेकिन आज नहीं. आज टैक्नोलौजी ने युवाओं को इतना बिजी कर रखा है कि उन्हें सर्कस वगैरा देखने की फुरसत ही नहीं है. अब तो यहां ऐंटरटेनमैंट के लिए सिर्फ बर्थडे या फिर इवैंट पार्टीज में ही इन्हें बुलाया जाता है, जो इन के प्रति घटती रुचि को दर्शाता है जबकि आप को बता दें कि इस में लो कौस्ट पर ज्यादा ऐंटरटेनमैंट मिलता है. इसलिए जब भी आप के शहर में क्लाउन शो आयोजित हो तो मिस करने की भूल कभी न करें, क्योंकि ऐसे शोज आप को रीफ्रैश करने के साथसाथ नयापन देते हैं.

क्लाउन में भी कैरियर

जब भी कोई आप से पूछता है कि बड़े हो कर आप क्या बनोगे तो आप की जबान पर सिर्फ डाक्टर या इंजीनियर बनना ही रहता है. अरे भई, कौन मना कर रहा है डाक्टर, इंजीनियर बनने के लिए. अगर आप में हंसाने की कला है तो आप साइड में क्लाउन कालेज जौइन कर के खुद को मल्टीटास्किंग बनाइए. इस से आप का हुनर भी निखरेगा और लोग आप के कायल भी हो जाएंगे, क्योंकि यह कला है ही इतनी मस्त.

जोकर में खास क्या

जोकर बनने के लिए कलाबाजी करना, हवा में करतब दिखाना, घुड़सवारी, डांस, म्यूजिक वगैरा के साथसाथ जरूरी है कि आप का मेकअप ऐसा हो कि आप लोगों को हंसा सकें. सब से जरूरी यह है कि आप को बिना बोले संकेतों के आधार पर अभिनय करना आना चाहिए. साथ ही आप को यह भी ध्यान रखना है कि करतब दिखाते समय सावधानी भी बरतें वरना दुर्घटना घटित होने में देर नहीं लगेगी.

हर किसी की जबान पर इन का नाम

चार्ली चैप्लिन और मिस्टर बीन तो अपनी एक्टिंग से लोगों की जबान पर हमेशा ही रहे हैं, लेकिन इन के साथ रोनाल्ड मैकडोनाल्ड भी खास है, जिन्हें आप मैक्डी के बाहर कुरसी पर आराम फरमाते देखते हैं. असल में ये आप के वैलकम के लिए वहां बैठाए गए हैं, तो हुए न जोकर खास. अगर आप भी लोगों को हंसाने, नाटक, कलाबाजी वगैरा का दमखम रखते हैं तो जोकर शो में खुद के टैलेंट को और निखारिए व लोगों में भी इन शोज के प्रति उत्साह पैदा कीजिए.                    

गुरमेहर : कट्टरपंथियों का बनी निशाना

‘जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ लगाए गए राजद्रोह के आरोप को साबित करने में दिल्ली पुलिस नाकाम रही है.’ पिछली 3 मार्च को अखबारों में छपा यह समाचार गुरमेहर कौर को राष्ट्रद्रोही और बेइज्जत करने के बवाल में भले ही दब गया हो, पर कई बातें एकसाथ उजागर कर गया. मसलन, यह इस बार एक 20 वर्षीय छात्रा गुरमेहर कौर कथित राष्ट्रप्रेमियों के निशाने पर है और देश के शिक्षण संस्थानों में बोलने पर तो पता नहीं, लेकिन सच बोलने पर लगी पाबंदी बरकरार है.

जो आवाज तथाकथित भक्तों को पसंद नहीं आती उसे दबाने हेतु पुलिस, कानून और मीडिया के अलावा कारगर हथियार हैं हल्ला, हिंसा, मारपीट, धरना, प्रदर्शन. यदि यह आवाज एक युवती की हो तो बलात्कार तक की धमकी देने से कट्टरवादी चूक नहीं रहे. अभिव्यक्ति की आजादी का ढिंढोरा बीते 3 साल से खूब पीटा जा रहा है, लेकिन यह आजादी दरअसल किसे है और कैसे है यह गुरमेहर के मामले से एक बार फिर उजागर हुआ.

आज देश के विश्वविद्यालय राजनीति के अड्डे बने हैं, वहां खुलेआम छात्र शराब पीते हैं, ड्रग्स लेते हैं, सैक्स कर संस्कृति और धर्म को विकृत करते हैं, जैसी बातें अब चौंकाना तो दूर की बात है कुछ सोचने पर भी विवश नहीं करतीं. इस की खास वजह यह है कि किसी भी दौर में युवाओं को मनमानी करने से न तो पहले रोका जा सका था और न आज रोक पा रहे हैं. युवा खूब ऐश और मौजमस्ती करें, यह हर्ज की बात नहीं लेकिन वे कहीं सोचने न लगें यह जरूर चिंता की बात है, क्योंकि युवापीढ़ी का सोचना राजनीति के साथसाथ धर्म को भी एक बहुत बड़ा खतरा लगता है. ये लोग हिप्पी पीढ़ी चाहते हैं जो दिमागी तौर पर अपाहिज और ऐयाश हो, लेकिन बदकिस्मती से कई युवा गंभीरतापूर्वक सोचते हैं और कहते भी हैं तो तकलीफ होना स्वाभाविक है.

तकलीफ का इलाज बेइज्जती

फरवरी के तीसरे सप्ताह में राजधानी दिल्ली के रामजस कालेज में हुई हिंसा की खबर दब कर रह जाती, यदि यह हिंसा 2 छात्र संगठनों आईसा और एबीवीपी के बीच न हुई होती.

कौन है गुरमेहर और कैसे वह रातोंरात कन्हैया की तरह चमकी, इसे जानने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि आरएसएस और भाजपा समर्थक एबीवीपी की इमेज लगातार बिगड़ रही है. पहली मार्च को ही दिल्ली पुलिस ने उस के 2 सदस्यों को गिरफ्तार किया था. इस पर तुरंत ऐक्शन लेते एबीवीपी के राष्ट्रीय मीडिया संयोजक साकेत बहुगुणा ने 2 सदस्यों प्रशांत मिश्रा और विनायक शर्मा को निलंबित कर दिया था. इन दोनों पर आईसा के सदस्यों को मारनेपीटने का आरोप था, जिस की पुलिस ने एफआईआर भी दर्ज की थी. यह बात आम नहीं थी बल्कि इस के पीछे गुरमेहर नाम की एक छात्रा थी जिसे ले कर कन्हैया जितना ही बवाल मचा था.

पंजाब के जालंधर में जन्मी गुरमेहर के पिता कैप्टन मंदीप सिंह 1999 में चर्चित कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे तब उस की उम्र महज 2 साल थी. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद गुरमेहर दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कालेज से साहित्य से एमए कर रही थी. गुरमेहर आम लड़कियों जैसी ही है पर एक बात उसे हमेशा कचोटती रही कि उस के पिता नहीं हैं. वे शहीद हुए थे. यह गर्व की बात उस के लिए थी पर शहादत की नौबत किन वजहों के चलते आई यह बात गंभीरता से उस ने दिल्ली आ कर सोचनी शुरू की. हालांकि उस के सोचने पर कोई बंदिश पहले भी नहीं थी. उस की मां राजविंदर कौर ने उस की परवरिश लड़कों की तरह और बेहतर तरीके से की थी. 20 वर्षीय युवती से कोई गहरी सोच की उम्मीद नहीं करता, लेकिन गुरमेहर ने पिता की कमी महसूस की और लगातार सोचने के बाद उस ने एक निष्कर्ष निकाला कि उस के पिता की मौत की वजह पाकिस्तान नहीं था बल्कि युद्ध था.

यह निष्कर्ष एकदम दार्शनिकों जैसा था जिस में बुद्ध की करुणा और महावीर की अहिंसा दोनों थी. जिस युवती से पिता की बांहों में झूलने जैसे सैकड़ों सुख 2 देशों की हिंसा ने छीने थे, उस ने अगर उन की वजह युद्ध बता दिया तो देखते ही देखते देश भर में खासा बवाल मच गया. गुरमेहर उत्साहित थी कि उस ने एक विश्वव्यापी गुत्थी सुलझा ली है और इसे पुष्टि के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों खासतौर से दोस्तों और छात्रों के साथ शेयर करना चाहिए. उस ने ऐसा किया भी. यही उस का गुनाह था जिस के चलते वह अपमान और दुख के उस दौर से गुजरी जिसे कोई सामान्य युवती बरदाश्त ही नहीं कर सकती.

राजनीति और लैफ्टराइट के चिंतन से अनजान गुरमेहर जब इन चीजों से टकराई तो उसे एहसास हुआ कि उस ने कोई भारी गलती कर दी है, जिस से देशभर में हंगामा बरपा हुआ है. हुआ यों कि उस ने अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहने के लिए सोशल मीडिया को जरिया बनाया और फेसबुक पर सिलसिलेवार 34 प्ले कार्ड्स पर अपने निष्कर्ष को पोस्ट करते हुए मन की बात कही थी. इन कार्ड्स के जरिए उस ने बताया था कि मैं बचपन में मुसलमानों से नफरत करती थी और हर मुसलमान को पाकिस्तानी समझती थी, पर मां के बारबार समझाने पर मेरे दिल से नफरत निकल पाई. देखा जाए तो बात साधारण होते हुए भी असाधारण थी यह एक युवती की आपबीती, पर उस के अपने मौलिक विचार थे जो एबीवीपी को नागवार गुजरे. पूर्वार्द्ध में कहे गए गुरमेहर के वाक्य ‘पाकिस्तान ने मेरे पिता को नहीं मारा’ के माने एबीवीपी ने अपने हिसाब से राष्ट्रद्रोह के निकाले और उसे प्रताडि़त करना शुरू कर दिया. 18 साल पहले जिस के पिता की शहादत के चर्चे देश भर में थे, उन की बेटी पलभर में राष्ट्रद्रोही करार दे दी गई. गुरमेहर हैरत और सकते में थी कि आखिरकार ये सब हो क्या रहा है.

इसी बवंडर में यह बात भी उभर कर सामने आई कि दिल्ली के रामजस कालेज में आयोजित एक संगोष्ठी में 2 छात्र नेताओं उमर खालिद और शेहला राशिद को भी न्योता दिया गया था. इस पर एबीवीपी बिफर उठी और उसे ये सब राष्ट्रद्रोह की साजिश लगा. उस ने इस संगोष्ठी का खुल कर विरोध किया और संगोष्ठी नहीं होने दी. गुरमेहर एबीवीपी की इस हरकत से आहत हुई और उस ने सोशल मीडिया पर उस का विरोध किया. जल्द ही लोग उस से सहमत हो कर जुड़ने लगे और उस का वीडियो शेयरिंग के साथ हैशटेग भी करने लगे. विवाद बढ़ा तो वामपंथी छात्र संगठन ने एक मार्च निकालने का फैसला ले लिया. यह मार्च पहली मार्च को ही निकाला जाना था. छात्र संघों की ताकत और पहुंच की बात करें तो हर कोई जानता है कि वामपंथी, हिंदूवादियों पर भारी पड़ते हैं क्योंकि वे किसी दायरे या फिर धार्मिकसांस्कृतिक बंधनों में जकड़े नहीं हैं और खुले दिमाग वाले हैं.

दिखाया संस्कृति का सच

2 अलगअलग विचारधाराओं में टकराव स्वाभाविक बात है, पर एबीवीपी के कार्यकताओं ने अपने धार्मिक संस्कार जल्द ही दिखा दिए और गुरमेहर के साथ खुलेआम अभद्रता की, गुरमेहर को गालियां दी गईं और उस की कुरती की एक बांह भी फाड़ दी गई. इस सब का मकसद एक युवती की बेइज्जती कर उस का मनोबल तोड़ना था. इस पर भी बात नहीं बनी थी तो उस को बलात्कार की भी धमकी दी गई. इतने घिनौने और घटिया स्तर पर बात आ जाएगी यह बात इस लिहाज से उम्मीद के बाहर नहीं थी कि हिंदूवादियों का यह पुराना हथियार है कि औरतों से जीत न पाओ तो उन को बेइज्जत करने में हिचको मत. कोई खूबसूरत महिला प्रणय निवेदन करे तो उस की नाक काट डालो, मामला जायदाद का हो तो विरोधी पक्ष की महिला को भरी सभा में नग्न कर दो और तो और चारित्रिक शक जाहिर करते सीता जैसी पत्नी भी त्याग दो.

गुरमेहर के मामले में भी ये पौराणिक दांव खेले गए हालांकि वह जानतीसमझती थी कि उस का समर्थन कर रहे लोग कहीं ज्यादा सशक्त हैं, पर वह हिंसा की हिमायती नहीं थी. इसलिए पलायन कर गई, लेकिन बलात्कार की धमकी की रिपोर्ट उस ने लिखाई जिस पर दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने संज्ञान लिया और उसे सुरक्षा भी मुहैया कराई. निश्चित रूप से गुरमेहर को आभास था कि एबीवीपी के संस्कार ही युद्ध के हैं, जिस धर्म और संस्कृति का वह पालन करती है वह मारकाट चीरहरण, अंगभंग और छलकपट से भरी पड़ी है. इसलिए इन से नारी सम्मान  या दूसरे किसी लिहाज की उम्मीद न करने की उस ने समझदारी दिखाई और वापस जालंधर चली गई. जातेजाते उस ने कहा कि वह मार्च में शामिल नहीं होगी और शांति से रहना चाहती है.

उस ने दोहराया कि वह किसी से डरती नहीं है, लेकिन तय है कि एक शहीद देशभक्त की बेटी कभी यह बरदाश्त नहीं कर सकती कि वे लोग उसे राष्ट्रद्रोही का खिताब दें जिन्हें धर्म और राष्ट्र में फर्क करने की भी तमीज नहीं है. जालंधर जा कर उस ने सहयोगियों का शुक्रिया अदा किया और खुद को फसाद से दूर कर लिया.

मचता रहा बवाल

यह महज इत्तफाक नहीं है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही वैचारिक टकराव छात्रों के बीच हिंसा की हद तक बढ़ा है. हिंदूवादियों के हौसले बुलंद हैं और वे किसी भी विरोधी का मुंह बंद करने को उसे राष्ट्रोही और गद्दार करार दे देते हैं. गुरमेहर ने एबीवीपी की छीछालेदार करा दी थी इसलिए जल्द ही भगवा खेमा शीर्ष स्तर पर सक्रिय हो गया. मैसूर से भाजपा सांसद प्रताप सिन्हा ने गुरमेहर की तुलना अंडरवर्ल्ड सरगना दाउद इब्राहिम से करते हुए कहा कि 1993 के बम धमाकों के मास्टरमाइंड दाउद ने देश विरोधी काम के बाद यह नहीं कहा था कि वह पुलिस वाले का बेटा है. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने भी गुरमेहर को देशद्रोही कह डाला. वीरेंद्र सहवाग जैसे क्रिकेटर भी जबानी जंग में कूदे और रेसलर फोगाट बहनें गीता और बबीता भी बगैर सोचेसमझे बोलीं. बकौल सहवाग 300 रन उस ने नहीं, उस के बल्ले ने बनाए थे जैसी बात गुरमेहर ने कही है. इसे सहवाग की नादानी ही कहा जाएगा जो वह यह नहीं समझ पाया कि गुरमेहर कर्म और क्रिया का संबंध नहीं बता रही बल्कि एक विश्वव्यापी समस्या की बात करते अहिंसा के पक्ष में उदाहरण भी दे रही है.

हालांकि गुरमेहर के पक्ष में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी आगे आए और भाजपा नेता शत्रुघ्न  सिन्हा ने भी उस का समर्थन किया. बातबात पर भाजपा और नरेंद्र मोदी का समर्थन करें वाले गीतकार जावेद अख्तर को भी पहली दफा ज्ञान प्राप्त हुआ कि गुरमेहर के साथ गलत हो रहा है, इस के बाद बहस और आरोपप्रत्यारोप राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रद्रोह की नई परिभाषाओं के इर्दगिर्द सिमट कर रह गए. शायद गुरमेहर को निशाने पर लेने का मकसद भी यही था. उधर, गुरमेहर की मां राजविंदर कौर कहती ही रह गईं कि मेरी बेटी पर राजनीति मत करो वह एक बच्ची है, जिस की भावनाएं सच्ची हैं लेकिन गुरमेहर पर राजनीति बहुत जरूरी भी हो गई थी हालांकि इस से इस पूरे मामले का धार्मिक पहलू ढक गया. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का यह कहना बेवजह नहीं था कि देश विरोधी नारे भाजपा और एबीवीपी वाले खुद लगाते हैं.

यह बात कितनी सच कितनी झूठ है, यह तो वही जानें, पर यह जरूर सच है कि आरएसएस की छत्रछाया में पलेबढ़े एबीवीपी की नजर में छात्रशक्ति का इकलौता मतलब हिंदुत्व होता है. इस पर बोलने वाले को चुप कराने के लिए किया गया हर काम वे जायज मानते हैं. यहां तक कि एक युवती की इज्जत लूटने या बलात्कार की धमकी देना भी हर्ज की या पाप की बात नहीं समझते.

हिंदू या भारतीय

गुरमेहर तो हमेशा की तरह बहाना थी, एबीवीपी का असल मकसद तो कुछ और था जिसे 28 फरवरी को दिल्ली में निकाले गए वामपंथी शिक्षक छात्र संगठनों के मार्च में माकपा महासचिव सीताराम येचुरी और माकपा नेता डी राजा ने खुल कर बताया. इन के मुताबिक हमारा राष्ट्रवाद ‘हम भारतीय हैं’ पर आधारित है न कि हिंदू कौन है, पर आधारित है. एबीवीपी के गुंडे तर्क से नहीं जीत पा रहे हैं, इसलिए हिंसा का रास्ता अपना रहे हैं. पर आम लोगों की बड़ी चिंता जो गुरमेहर के पूरे सच से नावाकिफ थे, यह थी कि शिक्षण संस्थाओं में राष्ट्रवाद पर चर्चा नहीं होनी चाहिए और कहीं भी राष्ट्रविरोधी नारे नहीं लगाए जाने चाहिए. युवाओं को सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए और इस तरह की नेतागीरी से दूर रहना चाहिए.

कालेजों या यूनिवर्सिटी में इस पर एतराज क्यों, क्या युवाओं को अपने विचार रखने का हक नहीं? क्या यह अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ षड्यंत्र नहीं? युवा आक्रोश ही देश का भविष्य बनता है. साल 1975 में जयप्रकाश नारायण ने युवाओं को इकट्ठा करना शुरू किया था और इंदिरा गांधी को सत्ता से उखाड़ फेंकने में कामयाबी हासिल की थी. एबीवीपी की बातें समझ से परे हैं. यह लोकतंत्र है जो सभी को अपनी बात कहने की आजादी देता है पर कोई गुरमेहर बोले तो उसे बजाय सीधे धर्म विरोधी करने के राष्ट्रद्रोही कह कर बहिष्कृत करने का षड्यंत्र, मुंह बंद करने जैसी बात नहीं तो क्या है. इस संवेदनशील मुद्दे का दिलचस्प ऐतिहासिक सच यह है कि न तो एबीवीपी को मालूम है कि हिंदू कौन हैं न ही भाजपा और आरएसएस को मालूम है और मालूम भी है तो वे इस सच से डरते और कतराते रहते हैं कि दरअसल, आदिवासी ही इस देश का मूल निवासी हैं बाकी सब बाहरी लोग हैं जिन्हें आर्य कहा जाता है शायद यही डर सत्ता पर काबिज रहने को उन्हें और हिंसक व आक्रामक बनाता है.

हमेशा अलग-अलग काम करना चाहती हूं : सोनाक्षी सिन्हा

‘दबंग’ फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा शत्रुघ्न सिन्हा और पूनम सिन्हा की बेटी हैं. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया. कुछ फिल्मों में उन्होंने कॉस्टयूम डिजाइनर का भी काम किया, उन्हें लगा नहीं था कि वह कभी भी अभिनेत्री बन पाएंगी. लेकिन सलमान खान के प्रोत्साहन ने उन्हें फिल्मों में आने के लिए प्रेरित किया और आज उसका नाम शीर्ष अभिनेत्रियों में जुड़ चुका है. वह उस पल को लकी मानती हैं, जब उन्होंने ‘दबंग’ के लिए हां कही थी. इस फिल्म की सफलता और दर्शकों की चहेती सोनाक्षी के पास इसके बाद से तो फिल्मों की झड़ी लग गयी. सन ऑफ सरदार, लुटेरा, एक्शन जैक्सन, लिंगा, तेवर, अकीरा आदि कई फिल्में आई. जिसमें कुछ सफल तो कुछ असफल रहीं. फिल्मों के अलावा सोनाक्षी विज्ञापनों को एंडोर्स भी करती हैं, इतना ही नहीं उन्हें छोटे पर्दे पर भी काम करना पसंद है. इन दिनों वह स्टार प्लस की रियलिटी शो ‘नच बलिये 8’ में जज बनी हैं, उनसे मिलकर बात करना रोचक था, पेश है अंश.

प्र. इस शो से जुड़ना कैसे हुआ? आप कितनी खुश हैं?

इस जुड़ना इत्तफाक नहीं था. इससे पहले भी मैंने एक रियलिटी शो किया था उसके खत्म होने के बाद ये मिला. मुझे टीवी पर काम करना बहुत पसंद है, क्योंकि इसकी पहुंच हर घर में होती है. लोग मुझे पसंद भी कर रहे हैं. ये एक डांस शो है और मुझे भी डांस बहुत पसन्द है. मैं इसे मेरे लिए परफेक्ट काम मानती हूं.

प्र. क्या अभी आप कुछ नया डांस फॉर्म इस शो के दौरान सीख रही हैं?

मैं हर फिल्म के साथ एक नई तरह की डांस फॉर्म सीखती हूं. अभी मेरी फिल्म ‘नूर’ आ रही है, उसमें मुझे नया डांस फॉर्म ‘हिप हॉप’ सीखने को मिला. अगर व्यक्ति कुछ पसंद करता है, तो उसे करने में उसे आनंद आता है. मुझे सिंगिंग और डांसिंग पसंद है. इसलिए उसे समझना और करना आसान होता है. मुझे व्यायाम पसंद नहीं है, लेकिन डांस पसंद है. इसलिए मैं डांस क्लासेज जाना पसंद करती हूं, क्योंकि यह फिट रहने का भी एक अच्छा जरिया है. मुझे याद आता है, जब मेरे स्कूल की छुट्टियां शुरू होती थी तो मैं शामक डावर और टेरेंस लुईस की डांस क्लासेस ज्वाइन कर लिया करती थी.

प्र. इस शो में आप किस बात पर अधिक विचार करेंगी?

मैं एक ईमानदार लड़की हूं, किसी और की तरह मैं नहीं बन सकती. कोई भी बात अगर मुझे पसंद नहीं तो मैं धडल्ले से उसे कह देती हूं. इसमें मैं कपल्स के डांस को देखना चाहूंगी, जो अलग-अलग है.

प्र. आप कपल्स के रूप में माता-पिता से कितनी प्रभावित हैं?

उन्हें मैं आदर्श कपल्स मानती हूं. दोनों ने अपने जीवन के करीब 36 साल तक, हर मोड़पर एक दूसरे का उतार-चढ़ाव में साथ दिया है. मैंने बचपन से देखा है कि पिता के साथ उनका सम्बन्ध बहुत गहरा है. पति-पत्नी के रिश्ते को उन्होंने बहुत जिम्मेदारी के साथ निभाया है. मेरी मां को डांस का बहुत शौक है. लेकिन मेरे पिता नॉन डांसर है.

प्र. आपने डांसिंग, सिंगिंग और एक्टिंग सब कुछ कर लिया है अब आगे क्या रह गया है?

मैं एक क्रिएटिव लड़की हूं और हमेशा कुछ न कुछ नया करने की सोचती हूं. अभी मैं एक ऐसे मुकाम पर भी पहुंच चुकी हूं ,जहां से मैं अपने सपने को पूरा कर सकती हूं. ऐसे में मेरे पास अगर कुछ भी नया करने का मौका मिले तो अवश्य करना चाहूंगी. मेरे हिसाब से लाइफ केवल एक ही काम करने के लिए नहीं है, आप उन सभी काम को कर सकते हैं, जिसे करने में आपको खुशी मिलती है.

प्र. आजकल रिश्तों के माईने बदल गए हैं, हर कोई अपने तरह से रिश्तों को निभाता है, इसमें बहुत कम कपल्स ऐसे हैं जो सालों-साल साथ निभाते हैं, कहां समस्या है? इसे कैसे ठीक किया जा सकता है?

हर किसी के लिए ये अलग होती है, क्योंकि हर इंसान की सोच अलग है. मेरे हिसाब से मैंने एक रिलेशनशिप जिसे अपने बारे में सोचा है, वह है लव, एफ्फेक्शन, केयरिंग, शेयरिंग, सपोर्ट जो हर काम में होना चाहिए. इसे ही जरुरी समझती हूं. इसमें से कुछ भी कम हो जाये, तो रिश्तों का रूप बदल जाता है.

प्र. इंडियन टीवी को आप दर्शक के रूप में कितना एन्जॉय करती हैं?

फिक्शन से अधिक मैं रियलिटी शो को एन्जॉय करती हूं. उसमें मुझे एक नयापन दिखता है. लेकिन अच्छे शो और अधिक होने की आवश्यकता हमारे टीवी जगत को है, ताकि यूथ भी इसे देखें. मैं फिक्शन शो अधिकतर वेस्ट की देखती हूं. जो फिल्मों की तरह ही बने होते हैं. उसमें हमारे यहां बदलाव की जरुरत है और वैसी ही फिल्मों की तर्ज पर फिक्शन शो भी बनायीं जानी चाहिए.

प्र. क्या आप टीवी पर एक्टिंग करना चाहती हैं? वेब के लिए आपकी सोच क्या है?

टीवी एक बड़ी माध्यम है और करोड़ों लोग इसको देखते हैं, इसके शो हर घर में पहुंचते हैं. ऐसे में कोई अच्छी और रुचिपूर्वक एक्टिंग मुझे मिले तो अवश्य करना चाहूंगी. कई बड़े-बड़े कलाकार भी टीवी पर आ चुके हैं. वेब तो हमारा भविष्य है, हर किसी के पास स्मार्ट मोबाइल फोन है, वे कुछ न कुछ उसपर देखना पसंद करते हैं. ऐसे में वेब पर काम करने का मौका मिले तो अवश्य करुंगी.

प्र. तनाव में आप क्या करती हैं?

तनाव होने पर मैं अधिकतर डांस करती हूं. ऐसा देखा गया है कि कई बार लोग तनाव में वर्कआउट भी करते हैं. मैं तनाव से मुक्ति पाने के लिए डांस करना ही बेहतर समझती हूं.

प्र. आपने अपनी अगली फिल्म में एक पत्रकार की भूमिका निभाई है, क्या आपको लगता है कि पत्रकार के लिए भी कुछ बंदिशे होनी चाहिएं?

सभी काम के लिए एक सीमा अवश्य होनी चाहिए, फिर चाहे वह डाक्टर, लेखक, पत्रकार, एक्टर, फिल्म निर्माता आदि कोई भी काम करते हो. कुछ सीमा रेखा अवश्य होनी चाहिए और उसे वह व्यक्ति कभी क्रॉस न करें. अगर आप किसी बात से अपमानित बोध करते हैं, तो वह बात आपको किसी के लिए नहीं कहनी चाहिए.

प्र. आगे आपकी फिल्म ‘नूर’ आ रही है, उसे लेकर कितनी उत्साहित हैं?

‘नूर’ फिल्म की स्क्रिप्ट मुझे बहुत पसंद आई और मैंने तुरंत हां कर दी. इस फिल्म से मैं अपने आपको रिलेट कर सकती थी. यह एक रियल स्टोरी है, जिसमें मैंने रियल लोकेशन, सीमेंट फैक्ट्री में जाकर शूट किया है. वहां मैंने देखा कि कैसे लोग धूल-मिट्टी में काम करते हैं, कैसे उनकी जिंदगी गुजरती है, उनका भविष्य क्या होता होगा, आदि सभी मेरे लिए नए हैं और उस परिवेश में एक महिला पत्रकार की सोच क्या होती है. मेरे लिए ये खास फिल्म है.

अब इण्डिया में आएगा हैण्ड फ्री टॉयलेट

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानि कि ‘आईआईटी मद्रास’ के पांच छात्रों ने मिलकर एक ऐसे यांत्रिक उपकरण का विकास किया है, जिससे कि सार्वजनिक शौचालयों का सुरक्षित इस्तेमाल किया जा सकेगा. इस उपकरण के जरिए शौचालय की सीट को उठाया जा सकेगा. यह शौचालय सीट को स्वच्छ करने और पोंछने का काम करेगी और यह पूरी तरह हैण्ड फ्री है.

वर्तमान में भारत में, सार्वजनिक शौचालयों के अनुभव को अभिव्यक्त करना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि यहां सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति भयावह है. भारत में लगभग सारे सार्वजनिक शौचालय इतनी गंदी हालत में हैं कि ये जाने कितने प्रकार के रोगाणुओं को पनपने और बढ़ने के लिए घर होता है.

इन छात्रों ने एक ऐसे प्रोटोटाइप का विस्तार किया है जिससे कि शौचालय की सीट या कमोड के नीचे एक आसान सा पैर-पेडल लगाया गया है जो कि सीट को उठाने, उसे सैनेटाइज या साफ करने और पोंछते का काम करता है. इन छात्रों का मानना ​​है कि यदि इस उपकरण का अच्छे से उत्पाद और निर्माण किया जाए तो इसे 750 रुपये प्रति नग के हिसाब से बाजार में लाया जा सकता है, हालांकि अभी इसे बनाने की लागत 5000 रुपये है.

छात्रों को इस उपकरण को विकसित करने में पांच महीने को समय लगा है. इसे मौजूदा शौचालय ढांचे में एक ऐड-ऑन के रूप में लगाया जा सकता है, जो कि लोगों की स्वास्थ्य दृष्टी से सर्वथा उपयुक्त है. विश्वभर में प्रति वर्ष अनुमानित 15 करोड़ लोग मूत्र पथ संक्रमण (urinary tract infections) के शिकार होते हैं.

हम आपको बता देना चाहते हैं कि इंटरनेशनल जर्नल ऑफ सेल साइंस और बायोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित एक हालिया शोध के मुताबिक मूत्र पथ के संक्रमण (यूटीआई) दुनिया का "दूसरा सबसे बड़ा औऱ आम संक्रमण" है. सफाई की कमी के चलते लगभग 40% से 50% महिलाएं कम से कम एक बार अपने जीवनकाल में इसका शिकार होती हैं. यूटीआई से पीड़ित एक व्यक्ति से मिलने के बाद, जो कि सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल करता है, छात्रों की इस टीम ने सामाजिक रूप से एक ऐसी प्रासंगिक प्रौद्योगिकी विकसित करने की योजना बनाई और इन समस्याओं के समाधान पर काम करने का फैसला लिया.

जैसे कि हम आपको बता चुके हैं कि इस उपकरण की मदद से आप टॉयलेट सीट को उठा सकते हैं, स्प्रे करने के साथ, पोंछ भी सकते हैं. और इसमें हाथों का उपयोग नहीं करना पड़ता है. यह अविष्कार इस माह की शुरुआत में भारत के राष्ट्रपति द्वारा गांधीवादी युवा प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तन में दिए गए 40 पुरस्कारों में से एक था.

हवाईसेवा के लिए तैयार होंगे 50 छोटे शहर और कसबे

रेल पटरियों और सड़कों पर यातायात का दबाव अब काफी बढ़ गया है. चौड़ीचौड़ी सड़कों पर जाम लगा रहता है और गाडि़यों की संख्या बढ़ने के दबाव में रेलें भी समय पर नहीं चल पा रही हैं. इस स्थिति में यातायात की व्यवस्था में बदलाव आवश्यक है, इसलिए सरकार हवाईर् यातायात को बढ़ावा देने पर तेजी से काम कर रही है.

सस्ती दर की हवाईसेवा देने वाली एयरलाइंस कम दाम पर लोगों को उन के लक्ष्य स्थल पर पहुंचा रही हैं. इस में लोगों की रुचि को देखते हुए सरकार ने देश के बेकार पड़े 50 हवाईअड्डों का पुनरुद्धार करने का फैसला किया है. इन हवाई पट्टियों पर विमानन सेवा को शुरू कर के छोटे शहरों को यातायात से जोड़ना है. बेकार पड़े इन हवाईअड्डों को वित्तवर्ष 2017-18 तथा 2018-19 में 15-15 और वित्तवर्ष 2019-20 में शेष 20 पट्टियों को सेवा के लिए उपयोगी बनाया जाना है.

मतलब कि छोटे शहरों में हवाई यातायात शुरू करने के लिए उठाए गए इन प्रयासों के तहत जल्द ही छोटे शहरों और कसबों के लोग भी हवाईसेवा का लाभ ले सकेंगे. इस कदम से न सिर्फ छोटे शहरों का विकास होगा बल्कि वहां आर्थिक गतिविधियों को ज्यादा प्रभावी तरीके से संचालित किया जा सकेगा और लोगों को सड़कों की भीड़ तथा रेलों की थकाऊ यात्रा से बचाया भी जा सकेगा.

सफर अनजाना

हम सूरत से इलाहाबाद जा रहे थे. साथ में, मेरी बेटी और दामाद भी थे. ट्रेन के एसी कोच में हमारा रिजर्वेशन था. कंपार्टमैंट में पहुंच कर हम ने पाया कि भीड़ काफी थी. मेरे दामाद बात करने में तेज हैं, उन्होंने सभी बैठे यात्रियों से पूछा, ‘‘आप सब का टिकट कन्फर्म है?’’

सब ने ‘हां’ कहा, मात्र एक सज्जन ने कहा, ‘‘मैं अपनी फैमिली के साथ हूं, पर मेरा टिकट वेटिंग में है.’’

मेरे दामाद ने कुछ कड़क आवाज में कहा, ‘‘आप का टिकट वेटिंग में है, फिर आप बैठे कैसे हैं? आप को तो खड़े हो कर सफर करना चाहिए.’’ उन सज्जन ने समझाया कि उन के परिवार के 3 सदस्यों का टिकट कन्फर्म है. वे आपस में ऐडजस्ट कर लेंगे. लेकिन मेरे दामादजी ने फिलहाल उन को खड़े हो कर चलने को बाध्य कर दिया. शेष सभी यात्री बातचीत सुन रहे थे. थोड़ी देर बाद मैं ने अपनी बेटी से कहा, ‘‘मेरी बीच की बर्थ है. मुझे चढ़नेउतरने में परेशानी होगी. क्या करूं, समझ में नहीं आ रहा है.’’

मेरी बेटी कुछ जवाब देती, उस से पहले ही उन सज्जन ने, जिन को मेरे दामाद ने खड़े होने को विवश कर दिया था और अभी भी वे खड़े थे, शायद मेरी बेटी से हुई बात सुन ली थी. बेटी के कुछ बोलने से पहले वे बोले, ‘‘आंटी, आप चिंतित न हों. मेरी पत्नी और बेटी दोनों की लोअर बर्थ हैं. आप बेटी की बर्थ ले लीजिए, वह आप की बीच की बर्थ ले लेगी.’’ मैं ने उन सज्जन की तरफ कृतज्ञ नेत्रों से देखा. मुझे लगा, वे कितने सज्जन इंसान हैं. मैं ने उन को धन्यवाद कहा. उन की शराफत और सज्जनता के कारण मेरा 24 घंटों का सफर बहुत आराम से कट गया.    

साधना श्रीवास्तव

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मैं दुर्गीयाना ऐक्सप्रैस से मुरादाबाद से धनबाद जा रहा था. जब मैं स्लीपर क्लास में अपनी सीट पर पहुंचा तो वहां एक व्यक्ति को लेटा हुआ पाया. मेरे द्वारा बारबार उस से आग्रह करने के बावजूद वह सीट छोड़ने को तैयार नहीं हुआ. वह इसे अपनी ही सीट बताता रहा. इस पर हम दोनों में जोरदार बहस होने लगी. इसी दौरान टीटी के आने पर मैं ने अब सारी बात बताई. टीटी ने हम दोनों के टिकट देखने के बाद मुसकरा कर मुझ से कहा, ‘‘भाईसाहब बधाई, आप का टिकट अपग्रेड हो गया है, अब आप एसी में यात्रा कीजिए. आप की सीट नंबर यह है.’’ टीटी की बात सुन मैं खुश हो गया और इस तरह से यह मेरी पहली एसी ट्रेन यात्रा बनी.   

राकेश घनशाला

भाजपा की चुनावी जीत से शेयर बाजार में धूम

5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर जिस तरह से विश्वास किया और भारतीय जनता पार्टी को जबरदस्त जनादेश दिया उस का सीधा असर बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई में देखने को मिला. 11 मार्च के बाद से ही बाजार में उछाल है और शेयर सूचकांक आसमान छूने की तमन्ना लिए नजर आ रहे हैं.

वैसे तो चुनावी सर्वेक्षणों में भाजपा की जीत की खबरें आने के बाद से ही बाजार में रौनक बढ़ गई थी लेकिन परिणाम आने के बाद बाजार ने सीधे छलांग लगानी शुरू कर दी और बीएसई का सूचकांक 29,000 अंक के मनोवैज्ञानिक स्तर से आगे निकल कर 30,000 अंक के रिकौर्ड स्तर की तरफ तेजी से बढ़ रहा है. 30 शेयरों वाला नैशनल स्टौक एक्सचेंज भी रिकौर्ड स्तर की तरफ बढ़ रहा है. उस का सूचकांक 16 मार्च को 16 माह के उच्चतम स्तर को पार कर चुका है.

विदित हो कि शेयर बाजार का मोदी के नेतृत्व पर आम चुनाव के समय से ही विश्वास बढ़ गया था. उन्होंने जिस तरह से चुनाव प्रचार में आक्रामकता दिखाई और देश को बदलने के लिए नई शुरुआत के सपने दिखाए उस को देखते हुए निवेशकों में उस समय से ही उन के प्रति जबरदस्त विश्वास पैदा हो गया था और अब उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में उन के नेतृत्व में जो करिश्मा हुआ है उस ने अटल विश्वास पैदा किया है और उसी को देखते हुए बाजार में तेजी है.

निवेशकों को लग रहा है कि देश में मोदी सरकार उत्साहवर्द्धक कारोबारी माहौल तैयार करेगी जिस से देश में आर्थिक तेजी आएगी. बीएसई का सूचकांक 29,728 को पार कर चुका है और निफ्टी 9,180 पर पहुंच चुका है. जानकारों का कहना है कि बाजार में तेजी का यह रुख आने वाले दिनों में भी बना रहेगा.

अमेरिकी फैडरल रिजर्व की समीक्षा के बाद नैशनल स्टौक एक्सचेंज का सूचकांक पहली बार 9,200 अंक के पार, जबकि बंबई शेयर बाजार का सूचकांक 239 अंक चढ़ कर 30 हजार अंक के मनौवैज्ञानिक स्तर को छूने की ओर अग्रसर है.

तो इसलिए एक्शन फिल्में करना चाहते हैं राजकुमार राव

राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले अभिनेता राजकुमार राव ने कई अलग-अलग तरह की फिल्में कर काफी शोहरत बटोरी है. पर उनकी दिली तमन्ना एक एक्शन फिल्म करने की है, क्योंकि यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि राजकुमार मार्शल आर्ट में गोल्ड मैडलिस्ट हैं. जी हां! एक खास बातचीत के दौरान खुद राजकुमार राव ने कहा कि- ‘‘मेरी तमन्ना एक्शन फिल्म करने की है, क्योंकि मार्शल आर्ट से मेरा पुराना संबंध है. जब मैं कक्षा सातवीं में पढ़ता था, उस वक्त मैं मार्शल आर्ट प्रतियोगिता में हिस्सा लेने लखनउ गया था. मैं आज भी मार्शल आर्ट की प्रैक्टिस करता रहता हूं. भले ही अब मैं मार्शल आर्ट की प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पाता, मगर मैं मार्शल आर्ट में गोल्ड मेडलिस्ट हूं.’’

भविष्य की योजना की चर्चा करते हुए राजकुमार राव ने कहा ‘‘फिलहाल तो अभिनेता के रूप में वे काफी व्यस्त हैं, पर भविष्य में वे खुद फिल्में निर्देशित करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि- “मैं अपनी पसंद की कहानियां दर्शकों को सुनाना चाहता हूं. यदि संभव हुआ तो अपनी कहानी सुनाने के लिए निर्माता भी बन सकता हूं.’’

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