हम सूरत से इलाहाबाद जा रहे थे. साथ में, मेरी बेटी और दामाद भी थे. ट्रेन के एसी कोच में हमारा रिजर्वेशन था. कंपार्टमैंट में पहुंच कर हम ने पाया कि भीड़ काफी थी. मेरे दामाद बात करने में तेज हैं, उन्होंने सभी बैठे यात्रियों से पूछा, ‘‘आप सब का टिकट कन्फर्म है?’’

सब ने ‘हां’ कहा, मात्र एक सज्जन ने कहा, ‘‘मैं अपनी फैमिली के साथ हूं, पर मेरा टिकट वेटिंग में है.’’

मेरे दामाद ने कुछ कड़क आवाज में कहा, ‘‘आप का टिकट वेटिंग में है, फिर आप बैठे कैसे हैं? आप को तो खड़े हो कर सफर करना चाहिए.’’ उन सज्जन ने समझाया कि उन के परिवार के 3 सदस्यों का टिकट कन्फर्म है. वे आपस में ऐडजस्ट कर लेंगे. लेकिन मेरे दामादजी ने फिलहाल उन को खड़े हो कर चलने को बाध्य कर दिया. शेष सभी यात्री बातचीत सुन रहे थे. थोड़ी देर बाद मैं ने अपनी बेटी से कहा, ‘‘मेरी बीच की बर्थ है. मुझे चढ़नेउतरने में परेशानी होगी. क्या करूं, समझ में नहीं आ रहा है.’’

मेरी बेटी कुछ जवाब देती, उस से पहले ही उन सज्जन ने, जिन को मेरे दामाद ने खड़े होने को विवश कर दिया था और अभी भी वे खड़े थे, शायद मेरी बेटी से हुई बात सुन ली थी. बेटी के कुछ बोलने से पहले वे बोले, ‘‘आंटी, आप चिंतित न हों. मेरी पत्नी और बेटी दोनों की लोअर बर्थ हैं. आप बेटी की बर्थ ले लीजिए, वह आप की बीच की बर्थ ले लेगी.’’ मैं ने उन सज्जन की तरफ कृतज्ञ नेत्रों से देखा. मुझे लगा, वे कितने सज्जन इंसान हैं. मैं ने उन को धन्यवाद कहा. उन की शराफत और सज्जनता के कारण मेरा 24 घंटों का सफर बहुत आराम से कट गया.    

साधना श्रीवास्तव

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मैं दुर्गीयाना ऐक्सप्रैस से मुरादाबाद से धनबाद जा रहा था. जब मैं स्लीपर क्लास में अपनी सीट पर पहुंचा तो वहां एक व्यक्ति को लेटा हुआ पाया. मेरे द्वारा बारबार उस से आग्रह करने के बावजूद वह सीट छोड़ने को तैयार नहीं हुआ. वह इसे अपनी ही सीट बताता रहा. इस पर हम दोनों में जोरदार बहस होने लगी. इसी दौरान टीटी के आने पर मैं ने अब सारी बात बताई. टीटी ने हम दोनों के टिकट देखने के बाद मुसकरा कर मुझ से कहा, ‘‘भाईसाहब बधाई, आप का टिकट अपग्रेड हो गया है, अब आप एसी में यात्रा कीजिए. आप की सीट नंबर यह है.’’ टीटी की बात सुन मैं खुश हो गया और इस तरह से यह मेरी पहली एसी ट्रेन यात्रा बनी.   

राकेश घनशाला

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