भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानि कि ‘आईआईटी मद्रास’ के पांच छात्रों ने मिलकर एक ऐसे यांत्रिक उपकरण का विकास किया है, जिससे कि सार्वजनिक शौचालयों का सुरक्षित इस्तेमाल किया जा सकेगा. इस उपकरण के जरिए शौचालय की सीट को उठाया जा सकेगा. यह शौचालय सीट को स्वच्छ करने और पोंछने का काम करेगी और यह पूरी तरह हैण्ड फ्री है.
वर्तमान में भारत में, सार्वजनिक शौचालयों के अनुभव को अभिव्यक्त करना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि यहां सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति भयावह है. भारत में लगभग सारे सार्वजनिक शौचालय इतनी गंदी हालत में हैं कि ये जाने कितने प्रकार के रोगाणुओं को पनपने और बढ़ने के लिए घर होता है.
इन छात्रों ने एक ऐसे प्रोटोटाइप का विस्तार किया है जिससे कि शौचालय की सीट या कमोड के नीचे एक आसान सा पैर-पेडल लगाया गया है जो कि सीट को उठाने, उसे सैनेटाइज या साफ करने और पोंछते का काम करता है. इन छात्रों का मानना है कि यदि इस उपकरण का अच्छे से उत्पाद और निर्माण किया जाए तो इसे 750 रुपये प्रति नग के हिसाब से बाजार में लाया जा सकता है, हालांकि अभी इसे बनाने की लागत 5000 रुपये है.
छात्रों को इस उपकरण को विकसित करने में पांच महीने को समय लगा है. इसे मौजूदा शौचालय ढांचे में एक ऐड-ऑन के रूप में लगाया जा सकता है, जो कि लोगों की स्वास्थ्य दृष्टी से सर्वथा उपयुक्त है. विश्वभर में प्रति वर्ष अनुमानित 15 करोड़ लोग मूत्र पथ संक्रमण (urinary tract infections) के शिकार होते हैं.
हम आपको बता देना चाहते हैं कि इंटरनेशनल जर्नल ऑफ सेल साइंस और बायोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित एक हालिया शोध के मुताबिक मूत्र पथ के संक्रमण (यूटीआई) दुनिया का "दूसरा सबसे बड़ा औऱ आम संक्रमण" है. सफाई की कमी के चलते लगभग 40% से 50% महिलाएं कम से कम एक बार अपने जीवनकाल में इसका शिकार होती हैं. यूटीआई से पीड़ित एक व्यक्ति से मिलने के बाद, जो कि सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल करता है, छात्रों की इस टीम ने सामाजिक रूप से एक ऐसी प्रासंगिक प्रौद्योगिकी विकसित करने की योजना बनाई और इन समस्याओं के समाधान पर काम करने का फैसला लिया.