‘‘अरे, उस पागल को पकड़ो… भागने न पाए,’’ एक सिक्योरिटी गार्ड दौड़ते हुए बोला. तब तक चारों ओर से सभी उसे दौड़ कर पकड़ चुके थे.
‘‘उसे छोड़ दो और मेरे पास लाओ,’’ मुख्यमंत्री का आदेश सुन कर सभी उसे उन के पास ले आए.
‘‘आओ, यहां आ कर बैठो,’’ मुख्यमंत्री ने थोड़ा गंभीर आवाज में कहा.
वह सिक्योरिटी गार्डों के घेरे में आ कर बैठ गया.
‘‘बताओ, तुम ने मुझे क्यों मारा? मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?’’ मुख्यमंत्री ने सीधे सवाल पूछा.
‘‘आप ने शराबबंदी क्यों लागू की?’’ यह उस का पहला सवाल था, जो सवाल के जवाब में पूछा गया.
‘‘शराबबंदी लागू करने की वजह से मुझे क्यों मारा?’’ मुख्यमंत्री ने फिर सवाल किया.
‘‘इसलिए कि लाखों लोगों की रोजीरोटी इसी शराब से चलती थी. इसलिए कि बिना पहले कोई सूचना दिए शराबबंदी लागू कर देने से लाखों रुपए का घाटा हो गया,’’ उस ने जवाब दिया.
‘‘देखो भाई, शराब पीने से हजारों लोग मरते थे. अनेकों घर उजड़ जाते थे,’’ मुख्यमंत्री ने सरल भाव से उसे समझाया.
‘‘मगर, कितने लोगों की रोजीरोटी इस से चलती थी… कितने लोग इस के कारोबार से पलते थे… रही बात शराबबंदी की, तो शराब आज भी धड़ल्ले से बिक रही है. बस, पड़ोसी राज्य कमा रहे हैं,’’ उस ने मुख्यमंत्री को आईना दिखा दिया.
‘‘मगर मुझे मारने से तुम्हें क्या मिला?’’ मुख्यमंत्री का सवाल था.
‘‘दिल को सुकून. मैं आप को थप्पड़ नहीं मार सकता. आप अच्छे आदमी हैं, इसलिए जान से नहीं मारना चाहता था. बस, सबक सिखाने के लिए मैं ने अपना हाथ चला दिया.’’
इस जवाब ने मुख्यमंत्री को चौंका दिया. वे बोले, ‘‘देखो, तुम बहुत गरीब हो. इस तरह की हरकत से तुम अपना नुकसान कर रहे हो.’’
मुख्यमंत्री ने उस से इतना कह कर सिक्योरिटी गार्ड से उसे ले जाने को कहा. बाद में एसपी को बुला कर सच्ची बात उगलवाने की सलाह दी.
‘‘यह झूठ बोल रहा है. चप्पल मार कर यह मुझे मानसिक आघात पहुंचाना चाहता था, इसलिए पता करो कि सच क्या है?’’
मुख्यमंत्री की इस बात को सुनते ही एसपी झट से बोल उठा, ‘‘आप चिंता न करें सर. इस से सच उगलवा कर रहेंगे.’’
उसे सचिवालय थाने में लाया गया.
‘‘देख बे, हम सब आराम से पूछ रहे हैं. सच बता दे, वरना हमें दूसरा रास्ता भी अपनाना आता है,’’ एसपी उस के पास जा कर बोला.
‘‘क्या कर लेगा? हाईप्रोफाइल केस है. हाथ लगा कर तो दिखा, वरदी न उतरवा दूं, तो कहना,’’ वह अकड़ कर बोला.
अब तो एसपी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. वह 8-10 बेंत जमा कर बोला, ‘‘वरदी उतरवाएगा… चल उतरवा… तेरा एनकाउंटर यहीं कर देते हैं.’’
डंडे की चोट अच्छेअच्छों को ठीक कर देती है. वह चिल्लाया, ‘‘मत मारो, मैं बताता हूं.’’
एसपी रुकते हुए बोला, ‘‘सच बता दे, वरना तेरा यहीं काम तमाम कर देंगे.’’
‘‘बिलकुल सच बोलूंगा. मेरी मां बहुत बीमार हैं. उन के इलाज पर काफी पैसा खर्च होना है. मुझे इस काम के लिए 50 हजार रुपए मिले थे. मनोहर लाल ने मुझे पैसा दिया, तो मैं ने अपना काम कर दिया,’’ उस ने कहा.
‘‘तेरी बात गलत निकली, तो काट कर रख देंगे,’’ एसपी इतना कहता हुआ वहां से चला गया. मुख्यमंत्री को जैसे ही पता चला, तो वे झट से मीडिया को बुला कर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘मेरे ऊपर चप्पल फेंकने वाला राजनीति से प्रेरित था. उसे ऐसा करने के लिए लोगों ने खासकर एक नेता ने मजबूर किया था.’’
‘‘आप को इन बातों का पता कैसे चला?’’ एक पत्रकार के सवाल पर उन्होंने एसपी को आगे कर दिया, जिस ने सभी को उचित जवाब दिया.
‘‘अब आप क्या करेंगे?’’ एक पत्रकार के इस सवाल पर मुख्यमंत्री झट से बोल उठे, ‘‘मैं उस की मां का इलाज कराऊंगा, क्योंकि जनता की देखरेख करना मेरा फर्ज है.’’
मुख्यमंत्री के इस बयान की सब ने तारीफ की. इधर मनोहर लाल नफरत की आग में जलने लगा था, ‘‘उस ने पैसा ले कर गद्दारी की है. मैं उसे कभी माफ नहीं करूंगा. मैं उस की मां को अस्पताल में ही मरवा दूंगा,’’ वह बड़बड़ाता हुआ बाहर आया, मगर बाहर खड़ी पत्रकारों की टीम ने उस के होश उड़ा दिए.
‘‘मनोहर लाल साहब, आप ने मुख्यमंत्री को चप्पल क्यों मरवाई?’’ एक पत्रकार का सीधा सवाल था.
‘‘मैं ऐसा क्यों करने लगा? जनता जनार्दन ही बुरे कामों के चलते चप्पल मारती है,’’ उस ने जवाब दिया.
‘‘आप गलत बोल रहे हैं. मुख्यमंत्री को चप्पल मारने वाला इस बात को कबूल कर चुका है कि आप ने चप्पल मारने के लिए उसे 50 हजार रुपए दिए थे,’’ यह दूसरे पत्रकार का कहना था.
‘‘पुलिसिया डंडे से तो आप भी उन का मनचाहा बयान दे देंगे. सच तो यह है कि मैं ने इस काम के लिए किसी को कोई पैसा नहीं दिया,’’ मनोहर लाल लीपापोती में लगा था.
‘‘आप का पैसा पकड़ा जा चुका है. वह आदमी न सिर्फ कबूल कर चुका है, बल्कि अस्पताल में फीस के 50 हजार रुपए आप का आदमी दीनदयाल जमा करा चुका है,’’ यह तीसरे पत्रकार की आवाज थी.
‘‘दीनदयाल ने किसी की मदद की तो यह अच्छी बात है, मगर चप्पल मारने का सौदा मैं ने किसी के साथ नहीं किया,’’ मनोहर लाल ने बात को संभालने की कोशिश की. इधर मुख्यमंत्री खुद अस्पताल जा कर उस की मां के इलाज का पूरा पैसा जमा करा चुके थे. मनोहर लाल वाली बात वह अपराधी भी कबूल चुका था. वह पास आते ही उन के पैरों पर गिर कर बोला, ‘‘हुजूर, मुझ से गुनाह हो गया. आप मुझे चाहे फांसी पर लटकवा दें, मगर मेरी मां को…’’
‘‘कुछ नहीं होगा तुम्हारी मां को. वह पूरी तरह ठीक है. रही बात तुम्हारी, तो तुम ने सच कबूला है, इसलिए तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा,’’ मुख्यमंत्री के इस बयान से वह रोने लगा.
‘‘अच्छा जाओ,’’ कह कर मुख्यमंत्री ने उसे विदा किया, तो वह बाहर आ गया. मनोहर लाल का बयान बेतुका हो गया. जब पुलिस के डंडे दीनदयाल पर बजे, तो उस ने भी इस सच को कबूला कि उसे मनोहर लाल ने 50 हजार रुपए अस्पताल में जमा कराने के लिए भेजा था. साथ ही, चप्पल मारने का ठेका भी दिया था. अब तो आलाकमान ने मनोहर लाल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. जेल की हवा खानी पड़ी, सो अलग. मुख्यमंत्री मनोहर लाल से जेल में मिलने गए और मिलने के बाद पत्रकारों से मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘मेरा मनोहर लाल से कोई वैर नहीं है. उस ने मुझे नीचा दिखाने के लिए ऐसी ओछी हरकत की. जो आदमी 50 हजार रुपए दे कर मुझ पर चप्पल फिंकवा सकता है, वह लाख 2 लाख रुपए दे कर मुझे मरवा भी सकता है.’’
‘‘मगर सर, क्या आप इस घटना से दुखी नहीं हैं,’’ एक पत्रकार के इस सवाल के जवाब में वे बोले, ‘‘जनता की सेवा करना, गलत काम को रोकना मेरा फर्ज है. सुशासन देने के लिए जनता ने मुझे मुख्यमंत्री बनाया है. मैं ने शराबबंदी की, तो शराबियों की दुकानें बंद हो गईं. मनोहर लाल भी इन्हीं में से एक है. वह मौत का सौदागर है.’’ अब तो मुख्यमंत्री की जयजयकार होने लगी, वहीं मनोहर लाल कोर्टकचहरी में उलझता चला गया. उस के घर से एक पेटी शराब पकड़ी गई और सरकार ने उस का घर सील कर दिया. इस से मनोहर लाल टूट गया और झट से पैतरा बदलते हुए बोला, ‘‘मुख्यमंत्री मेरे दोस्त हैं. मुझे उन से कोई वैर नहीं है और न ही मैं ने ऐसा कराया है. चप्पल मारने वाले उस आदमी और दीनदयाल को सद्बुद्धि मिले. मैं ने उन दोनों को माफ कर दिया है.