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मोदी कैबिनेट में विधानसभा चुनाव फैक्टर

उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव अगले साल 2017 में है. मोदी सरकार इन प्रदेशों के सांसदों को केन्द्र में मंत्री बनाकर चुनावी चाल चलने जा रही है. मोदी सरकार का कैबिनेट विस्तार होने जा रहा है. इसमें उत्तर प्रदेश और पंजाब के सबसे अधिक मंत्री बनाये जा सकते हैं. मोदी सरकार में इस समय 66 मंत्री हैं. नियम पूर्वक 83 मंत्री रखे जा सकते हैं. ऐसे में मोदी सरकार के पास 17 और मंत्री बनाने की अच्छी खासी गुंजाइश बची हुई है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किफायत में काम चलाने के लिये जाने जाते हैं, ऐसे में वह 17 मंत्री नहीं बनाने जा रहे. यह बात है कि उत्तर प्रदेश और पंजाब के कुछ सांसदों को मंत्री बनाकर और कुछ मंत्रियों के विभागों में फेरबदल करके नया दिखाने का प्रयास जरूर करेंगे. मोदी कैबिनेट में उत्तर प्रदेश से 12 मंत्री शामिल हैं. इनके पदों में भी फेरबदल हो सकता है.

दरअसल उत्तर प्रदेश भाजपा के लिये सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है. भाजपा यहां पर साम दाम दंड भेद की रणनीति से चुनाव जीतना चाहती है. ऐसे में चुनाव करीब आता देख मोदी सरकार उत्तर प्रदेश को निशाने पर ले रही है. उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिये सबसे सरल दलित और अति पिछडा वोट बैंक दिख रहा है. परेशानी वाली बात यह है कि इस वोटबैंक को महत्व देने से भाजपा का अगडा वोट बैंक टूट सकता है. उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी में मची टूट की बहती गंगा में भाजपा हाथ धोना चाह रही है. वह बसपा से टूटे नेताओं को भले ही पार्टी में शामिल न करे, पर चुनाव बाद वह उनको साथ ले सकती है. भाजपा बसपा से टूटे नेताओं को शह देकर बसपा को कमजोर करना चाह रही है. जिससे दलित और अतिपिछडा वर्ग उनको वोट देने के लिये मजबूर हो जाये.

उत्तर प्रदेश के जातीय समीकरण और वोट बैंक में पिछडों और दलितों के बीच बनी खाई बहुत चौडी हो चुकी है. दलितऔर पिछडे एक पार्टी के साथ खडे नहीं हो सकते. ऐसे में एक तरफ पिछडों की अगुवाई करने वाली समाजवादी पार्टी है तो दूसरी ओर दलितों की अगुवाई करने वाली बसपा है. दलित और पिछडों के बीच एक वर्ग अति पिछडी जातियों का है, जो पिछडों से अर्थिक और सामाजिक रूप से पीछे और दलितो से आगे है. भाजपा इस वर्ग को अपने साथ लेने का प्रयास कर रही है. ऐसे में इस जाति में प्रभाव रखने वाले नेताओं को केन्द्र में मंत्री बनाया जा सकता है. उत्तर प्रदेश में दलित-अगडा और पिछडा समीकरण ठीक करने के लिये केन्द्र में मंत्री बना कर प्रदेश के पावर सेटंर को संतुलित किया जायेगा, जिससे प्रदेश में पिछडे नेताओ बढते प्रभाव के अगडी जातियां नाराज न हो.

उत्तर प्रदेश की ही तरह पंजाब भी भाजपा के लिये अगला बिहार न बन जाये, इससे बचने के लिये केन्द्र में पंजाब के मंत्रियों की संख्या बढ सकती है. पंजाब में कांग्रेस के अलावा आप पार्टी भाजपा-अकाली गठबंधन के लिये कडी चुनौती बन रही है. भाजपा कांग्रेस से ज्यादा आप पार्टी से भयभीत हो रही है. उत्तर प्रदेश और पंजाब से ज्यादा से ज्यादा मंत्री बनाकर केवल जनता को ही खुश नहीं रखना है. यहां के भाजपा नेताओं को भी मजबूत करना है. इस मंत्रिमंडल विस्तार से भाजपा इन राज्यों में फैली गुटबाजी को खत्म करना चाहती है. भाजपा जानती है कि गुटबाजी का घुन पार्टी अंदर अंदर खोखला कर देगा. पार्टी का इसके नुकसान का अंदाजा तब होगा जब वोटिंग मशीन से परिणाम निकलेगे. ऐसे में भाजपा पहले ही अपने को मतबूत करना चाहती है. मंत्रीमंडल विस्तार इसका सबसे बडा अस्त्र बनेगा.       

फेरबदल या फरेब

भोपाल के राजभवन में नए 9 मंत्रियों की शपथ के दौरान सब कुछ ठीक ठाक नहीं था, हर कोई यहां तक कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी सहमे हुये से दिख रहे थे, जो आम तौर ऐसे किसी भी समारोह में खुश दिखने का अभिनय ही सही कर तो लेते थे, लेकिन इस अहम दिन वे चाहकर भी मुस्कुरा भी नहीं सके तो सहज लगा कि इस बहुचर्चित और बहुप्रतीक्षित फेरबदल, जो अंततः फरेब साबित हुआ उन पर थोपा गया था और अगर ऐसा नहीं था तो यह मानने में किसी को कोई परहेज नहीं करना चाहिए कि उनसे ज्यादा चतुर नेता मिलना मुश्किल काम है.

3 साल से मंत्रीमंडल विस्तार को किसी न किसी बहाने से टरकाते आ रहे शिवराज सिंह चीन यात्रा से लौट कर भोपाल आए और उल्टे पांव दिल्ली और वहां भी सबसे पहले संघ कार्यालय केशव कुंज गए, तो मानसून से ज्यादा आशंकाओं और अटकलों के बादल उमड़ने घुमड़ने लगे थे. आखिरकार बिजली गिरी तो बाबूलाल गौर और सरताज सिंह पर, जो क्रमश 86 और 76 साल के हैं. इनसे दिल्ली से खासतौर से आए विनय सहस्त्र्वुद्धे और नंद कुमार सिंह चौहान ने कहा आप लोग इस्तीफा दे दें, क्योकि पार्टी की नई गाइड लाइंस के मुताबिक 75 से ज्यादा का कोई नेता संगठन या सत्ता में नहीं रहेगा. सरताज सिंह ने कहा, ठीक है मैं  पार्टी की यह बात भी मानूँगा पर हटाने का पैमाना उम्र नहीं पर्फार्मेंस होना चाहिए , मैं स्वस्थ हूँ सक्रिय हूँ और सबसे से ज्यादा दौरे करता हूँ आप मेरी बात उन लोगों तक पहुंचाइए जिनहोने यह नया नियम बनाया. बात वहाँ तक पहुंची या नहीं यह सुनिश्चित करने से पहले उन्होने इस्तीफा दे दिया, पर बाबूलाल गौर अड़ गए और बोले मैं इस्तीफा नहीं दूंगा, मैंने पार्टी को खून से सींचा है, पहले मेरी गलती बताइये. भले ही मुझे मंत्रिमंडल से बाहर कर दीजिये, मैं इस्तीफा नहीं दूंगा और न ही यह सामाजिक अपमान बर्दाश्त करूंगा.

जब बेहद तनाव भरे माहौल मे नए मंत्री अर्चना चिटनीस, ओम प्रकाश धुर्वे, रुस्तम सिंह , जयभान सिंह पवैया, हर्ष सिंह , ललिता यादव, सूरज प्रकाश मीणा, संजय पाठक और विश्वास सारंग शपथ ले रहे थे, तब अपने बंगले पर अकेले बैठे बाबूलाल गौर की मनोदशा पर गौर करने की किसी को जरूरत नहीं पड़ी. यह राजनीति है, जिसमे कोई किसी का सगा सौतेला नहीं होता. ये वही बाबूलाल गौर हैं जिन्होंने 44 साल विधायक रहने का रिकार्ड बनाया और जब उमा भारती ने कुर्सी छोड़ी तो अस्थायी सीएम बनने को तैयार हो गए और जब ऊपर से कहा गया, तब उनके सामने कल के लड़के की सी हैसियत रखने बाले शिवराज के लिए कुर्सी न केवल छोड़ दी, बल्कि उनके नीचे काम करने भी तैयार हो गए.

मामूली मजदूर से सीएम बन जाने के सफर में गौर ने कभी पार्टी पर आंखे नहीं तरेरीं, लेकिन अब वे हार गए हैं, यह बात तब उजागर हुई जब शपथ ग्रहण के बाद खबर आई कि उन्होने भी इस्तीफा राज्यपाल को भेज दिया है. साफ है उन्हे समझ आ गया था कि अब कोई फायदा नहीं, इस्तीफा नहीं दिया तो और ज्यादा फजीहत होगी, क्योकि यह वही भाजपा है जिसने आडवाणी, जोशी और जसवंत सिंह जैसों को भी नहीं बख्शा था. लिहाजा अब नैतिकता, सेवाओं का मूल्यांकन और वफादारी जैसी बातों की दुहाई देना वीराने में चिल्लाने जैसी बात है जहां सुनने बाला कोई नहीं. यह फेरबदल जिसमे कई बातें अप्रत्याशित थीं फरेब इस लिहाज से भी है कि गौर और सरताज सिंह को अपने यूं बेआबरू होकर हटाये जाने का इल्म तक नहीं था. यह जरूर कहा जा रहा था कि इनका कद घटाया जा सकता है, पर कद खत्म ही कर दिया, तब वास्तविकता सामने आई कि उम्र का निर्णय आरएसएस का था, वही संघ जो पूरे आत्मविश्वास से कहता रहता हैं कि उसे सत्ता से कोई सरोकार नहीं और भाजपा के अंदरूनी मामलों में वह दखल नहीं देता.

हिन्दुत्व का गढ़ रहा मध्य प्रदेश संघ के लिए एक प्रयोगशाला भर है और शिवराज सिंह उसके मोहरे भर हैं, जिन्हें सीएम की हैसियत से नए मंत्रियों की लिस्ट राज्यपाल को सौंपना थी और प्रैस नोट की शक्ल में मीडिया को जारी करनी थी.  ये काम भी इस दफा उन्होने अनिच्छा पूर्वक ही सही किए और खामोशी से संघ कोटे से आए जयभान सिंह और अर्चना चिटनीस को मंत्री बना दिया. एवज मे अपने क्षेत्र के सूरज प्रकाश मीणा को राज्य मंत्री बना दिया, अगर यह सौदा था तो बहुत घाटे का कहा जाएगा. कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए कटनी के खरबपति कारोबारी संजय पाठक के बारे में किसी ने नहीं सोचा था कि उन्हे मंत्री बनाया जाएगा. इसी तरह हर्ष सिंह को भी दलबदल का इनाम दिया गया.

सब कुछ निर्विध्न सम्पन्न हो गया. कुछ नेता मसलन विक्रम वर्मा और कैलाश विजयवर्गीय नाराज हुये, क्योंकि उनके दिये नामों पर तवज्जों नहीं दी गई, तो ये बातें आने बाले बक्त मे शिवराज सिंह को काफी मंहगी पड़ने वाली हैं, जो नाराज लोगों के सामने बहाना बना रहे हैं कि आप देख तो रहे हो, मैंने कुछ नहीं किया, सब कुछ दिल्ली से हुआ है, तो अब आम लोग पूछ रहे हैं कि फिर आप के होने के माने क्या.

इधर उम्र के मुद्दे पर लोग सहमत नजर होते नजर आ रहे हैं कि हां नेताओं को रिटायर होना चाहिए, लेकिन रिटायरमेंट के नाम पर उन्हे यूं जलील नहीं किया जाना चाहिए और नियम बना है तो केंद्र में कलराज मिश्र और नजमा हेपतुल्ला जैसे बूढ़े मंत्रियों पर भी लागू होना चाहिए. अब बाबूलाल गौर और सरताज सिंह चुप बैठेंगे या कोई खुराफात करेंगे, इसमे भी सभी की दिलचस्पी है, खासतौर से बाबूलाल गौर में जो आए दिन शिवराज की खिंचाई किया करते थे.   

अंतरिक्ष की यात्रा कराएंगे संजय पूरण सिंह चौहाण

2010 में स्पोर्ट्स ड्रामा प्रधान फिल्म ‘‘लाहौर’’ निर्देशित कर पहली ही फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार के अलावा कई अन्य पुरस्कार हासिल कर चुके फिल्मकार संजय पूरण सिंह चौहाण को लेकर गाहे बगाहे कई तरह की अटकलें लगती रहती हैं. संजय पूरण सिंह चौहाण को लेकर बौलीवुड में आम चर्चा यह भी होती रहती है कि वह पिछले छह वर्षों से कुछ नया लेकर क्यों नहीं आ रहे हैं.     

मगर सूत्रों की माने तो संजय पूरण सिंह पिछले छह वर्षों से लगातार काम करते आ रहे हैं. सूत्रों की माने तो संजय की दो फिल्में लगभग तैयार हैं. जिनमें से एक फिल्म में तो वीएफएक्स और स्पेशल इफेक्ट्स की ही भरमार है. इस फिल्म का तीन वर्षों से स्पेशल इफेक्ट्स व वीएफएक्स का काम हो रहा है.

बहरहाल, पिछले दो दिन से ट्विटर पर संजय पूरण सिंह चौहाण ही छाए हुए हैं. जिसकी वजह उनके निर्देशन में बनने वाली फिल्म ‘‘चंदामामा दूर के’’ है.जी हां! अब संजय पूरण सिंह भारत की पहली अंतरिक्ष एंडवेंचर पर फिल्म ‘‘चंदामामा दूर के’’ का लेखन व निर्देशन करने जा रहे हैं, जिसका निर्माण ‘नेक्स्ट जनरेशन फिल्मस’ के बैनर तले विक्की रजानी कर रहे हैं.

इस साइंस फिक्शन फिल्म में अंतरिक्ष यात्री का किरदार सुशांत सिंह राजपूत निभाने वाले हैं. यह भारत के अति बहादुर व अति महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष यात्री की दास्तान है, जो कि चंद्रमा पर भारतीय अंतरिक्ष यात्री के रूप में पहुंचता है. सूत्रों के अनुसार इस फिल्म के साथ कई विदेशी तकनीशियन भी काम करने वाले हैं.

फिल्म ‘‘चंदामामा दूर के’’ की चर्चा चलने पर फिल्म के निर्देशक संजय पूरण सिंह चौहाण कहते हैं-‘‘यह फिल्म भारत के चांद पर पहुंचने के सपने के साहस, उम्मीद और महत्वाकांक्षा की गाथा है. यह एक ऐसी कथा है, जो कही जानी चाहिए थी.’’ सूत्रों के अनुसार फिल्म ‘‘चंदामामा दूर के’’ की शूटिंग 2017 की शुरूआत में होगी और इसे 26 जनवरी 2018 को रिलीज करने की योजना है.

सूत्रों के अनुसार फिल्म ‘‘चंदामामा दूर के’’, संजय पूरण सिंह चौहाण की वह अति महत्वाकांक्षी फिल्म है, जिस पर उन्होने ‘‘लाहौर’’ के प्रदर्शन के बाद ही काम करना शुरू कर दिया था. सूत्रों की माने तो संजय पूरण सिंह चौहाण इस साइंस फिक्शन फिल्म को अमेरिका के नासा में जाकर फिल्माने वाले हैं. सूत्रों का दावा है कि उन्हे ‘नासा’ के अंदर फिल्म को फिल्माने की इजाजत भी मिल चुकी हैं. इस फिल्म की पटकथा तैयार है. सूत्रों का दावा है कि संजय ने इस फिल्म के लिए सुशांत सिंह राजपूत व कुछ अन्य भारतीय कलाकारों के अलावा कई अन्य देशों के कलाकारों को भी साइन कर चुके हैं. सूत्र दावा कर रहे हैं कि इस फिल्म का बजट हजार करोड़ रूपए से भी ज्यादा का है, लेकिन इस बारे में फिलहाल संजय पूरण सिंह व निर्माता विक्की रजानी ने चुप्पी साध रखी है.

सेलिब्रिटीज की जिंदगी आसान बना देगी ये तकनीक

हॉलीवुड हो या बॉलीवुड आजकल दोनों जगहों की सेलिब्रिटीज के बीच दिल्ली का एक लड़का चर्चा का विषय बना हुआ है. सभी सेलिब्रिटीज इसे मिलना चाहते हैं और कई तो मिल भी चुके हैं और कुछ ने फोन पर बात की है. इस लड़के का नाम है सैफ सिद्दकी और इसने एक ऐसा आविष्कार  कर दिया है जिससे अब सेलब्रिटीज की लाइफ आसान हो जाने वाली है.

क्या है मामला

सेलब्रिटीज को अक्सर पैपराजी यानी दिनभर पीछा करते फोटोग्राफर्स से निपटना पड़ता है. उन्हें अपनी जिंदगी में एक प्राइवेट मूवमेंट के लिए भी कई बार सोचना पड़ता है. कितनी बार तो ऐसे पलों में खींची गईं उनकी तस्वीरों से उन्हें पब्लिक लाइफ में काफी बदनामी भी झेलनी पड़ जाती है. दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से पढ़े सैफ ने एक ऐसा स्कार्फ इन्वेंट किया है जो आपको पैपराजी से बचाता है.

कैसे करता है काम

अगर किसी ने इस स्कार्फ को गले में पहना है तो फोटो क्लिक करने पर ये स्कार्फ उसके चेहरे पर अंधेरा बना देता है. इससे फोटो में सेलिब्रिटी का चेहरा नहीं आता. दरअसल ये स्कार्फ कैमरे के फ्लैश से निकलने वाली रौशनी को रिफ्लेक्ट कर देता है जिससे फोटो खराब हो जाती है. सैफ इसे मशहूर हॉलीवुड फिल्म हैरी पॉटर का 'अदृश्य चोगा' कहकर बुलाते हैं. खबरों के मुताबिक पेरिस हिल्टन, मडोना और लेडी गागा जैसे लोगों ने इस स्कार्फ को खरीदने की इच्छा जाहिर की है. बॉलीवुड से भी कई लोगों ने इसे खरीदने के लिए इंटरेस्ट दिखाया है.

तो इन दोनों में से कोई लेंगे राजन की जगह

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के संभावित उत्तराधिकारी की लिस्ट और छोटी हो कर दो नामों तक पहुंच गई है. एक रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ बातचीत के बाद आरबीआई के नए गवर्नर के नाम पर मुहर लगाएंगे.

पिछले हफ्ते शॉर्टलिस्ट हुए चार नामों से आरबीआई के पूर्व डेप्युटी गवर्नर सुबीर गोकर्ण और राकेश मोहन गवर्नर पद के प्रबल दावेदार हैं. इनके अलावा आरबीआई के डेप्युटी गवर्नर उर्जित पटेल और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य भी गवर्नर पद की दावेदार हैं.

सरकार में कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने पिछले हफ्ते यह जानकारी दी कि सरकार एसबीआई चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य का कार्यकाल कम से कम एक साल बढ़ाने का सोच रही है. अगर अरुंधति का कार्यकाल बढ़ता है तो यह साफ हो जाएगा की वह आरबीआई के गवर्नर की रेस में नहीं हैं.

इस वर्ष 4 सितंबर को गवर्नर रघुराम राजन का कार्यकाल पूरा हो रहा है. राजन की जगह कौन लेगा इसका फैसला 15 जुलाई तक होगा.

सामने आया अक्षय कुमार का झूठ

बौलीवुड में अपने आपको सबसे ज्यादा चर्चित, सबसे ज्यादा सफल अदाकार साबित करने के लिए हाथ पांव मार रहे अक्षय कुमार नित नई गलत खबरें फैलाते रहते हैं. जबकि सूत्रों की माने तो हकीकत यह है कि फिल्म निर्माण में उनके पुराने साथी धीरे धीर उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं. जबकि पिछले कुछ वर्षों में ‘फुगली’, ‘इंटरटेनमेंट’, ‘द शोकीन्स’, ‘हे ब्रो’, ‘गब्बर इज बैक’, ‘सिंह इज ब्लिंग’ सहित उनकी कई फिल्में बाक्स आफिस पर मुंह की खा चुकी हैं. उनकी नई फिल्म ‘‘रूस्तम’’ बहुत जल्द रिलीज होने वाली है. इसके अलावा उनकी किसी फिल्म की शूटिंग नहीं चल रही है. मगर वह हर सप्ताह किसी न किसी फिल्म की खबर फैलाते हुए खुद को सुर्खियों में बनाए रखते हैं.

जब आधी फिल्म इंडस्ट्री ‘आइफा अवार्ड’ के लिए स्पेन में थी, तब अक्षय कुमार की तरफ से खबर फैलायी गयी कि अक्षय कुमार ने दिव्या कुमार खोसला की नई फिल्म के लिए 56 करोड़ रूपए मेहनताना लिया है. इस खबर के बाजार में आते ही हर किसी को आश्चर्य हुआ था. सूत्रों की माने तो टीसीरीज को जानने व समझने वालों को पता है कि टीसीरीज इतनी बड़ी रकम किसी को नहीं दे सकता.

मगर अब यह खबर गलत साबित हो चुकी है. दिव्या खोसला कुमार का संबंध टीसीरीज कंपनी से है. टीसीरीज के भूषण कुमार की पत्नी हैं दिव्या खोसला कुमार. वह टीसीरीज की एक निदेशक भी हैं. अब तक दिव्या खोसला कुमार ने ‘यारियां’ और ‘सनम रे’ जैसी फिल्में निर्देशित की हैं, जिन्हे टीरीज ने ही निर्मित किया था. अब सूत्रों से बातें सामने आ रही हैं, उसके अनुसार अक्षय कुमार और टीसीरीज के काफी अच्छे संबंध है. ‘बेबी’ सहित कुछ फिल्मे अक्षय कुमार टीसीरीज के साथ कर चुके हैं. इसलिए अक्षय कुमार को यकीन था कि वह जो भी खबर फैलाएंगे उसका टीसीरीज या दिव्या खोसला कुमार की तरफ से विरोध नहीं होगा.

लेकिन ‘आइफा अवार्ड’ से यानी कि स्पेन से वापस लौटते ही दिव्या खोसला कुमार ने स्पष्ट कर दिया है कि उन्होने बालीवुड के किसी भी स्टार को इतनी बड़ी रकम देकर साइन नहीं किया है. उन्होने यह भी कहा है कि इतनी बड़ी रकम देने की पेशकश भी नहीं की है. दिव्या खोसला कुमार का दावा है कि अभी तक उन्होने अपनी नई फिल्म की पटकथा ही तैयार नहीं की हैं. जब वह पटकथा लिख लेंगी, उसके बाद कलाकारों के चयन पर विचार करना शुरू करेंगी. दिव्या खोसला कुमार के इस स्पष्टीकरण से 56 करोड़ का सच सामने आ गया है.

रवि का आईसीसी की क्रिकेट समिति से इस्तीफा!

सुर्खियों में बने हुए टीम इंडिया के पूर्व निदेशक रवि शास्त्री ने अब आईसीसी की क्रिकेट समिति से इस्तीफा दे दिया है. मीडिया प्रतिनिधि के रूप में पिछले छह साल से इस समिति के सदस्य शास्त्री ने अपना इस्तीफा भेज दिया है.

अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि क्या बीसीसीआई द्वारा उन्हें नजरअंदाज कर अनिल कुंबले को टीम इंडिया का चीफ कोच नियुक्त किए जाने की वजह से उन्होंने ऐसा कदम उठाया है.

शास्त्री पिछले काफी समय से यह पद छोड़ने के बारे में सोच रहे थे और उन्होंने आइसीसी चेयरमैन शशांक मनोहर को अपनी इच्छा से पहले ही अवगत करा दिया था.

आइसीसी और बीसीसीआई के अधिकांश अधिकारी इस समय इडिनबर्ग में आइसीसी की वार्षिक कॉन्फ्रेंस में व्यस्त हैं. इस वजह से शास्त्री द्वारा किस वजह से यह पद छोड़ा गया इसका पता नहीं चल पाया है.

बताया जाता है कि शास्त्री ने शशांक मनोहर को बता दिया है कि उन्होंने इस कमेटी में काफी समय बिता लिया है, इसलिए अब किसी और को उनकी जगह लिया जाना चाहिए.

इस समिति की आमतौर पर बैठक गर्मियों में होती है और पिछले कुछ समय से आइपीएल की समाप्ति के बाद इसकी बैठक होती रही है. आइपीएल के कमेंट्री अनुबंध की वजह से शास्त्री का इस बैठक में शामिल हो पाना मुश्किल होता है. इस वर्ष 2 और 3 जून को हुई बैठक में वे शामिल नहीं हो पाए थे.

बीसीसीआई ने पिछले दिनों पूर्व निदेशक शास्त्री की दावेदारी को दरकिनार कर अनिल कुंबले को टीम इंडिया का चीफ कोच नियुक्त किया था. इसके बाद शास्त्री ने यह बात कहकर क्रिकेट सलाहकार समिति के सदस्य सौरव गांगुली पर निशाना साधा था कि जब उनका इंटरव्यू हुआ था तो गांगुली उस वक्त वहां मौजूद नहीं थे.

इसके बाद गांगुली ने भी उन पर पलटवार किया था और कई पूर्व क्रिकेटरों ने भी शास्त्री की आलोचना की थी.

क्या सचमुच हकीकत बन जायेगी टाइम मशीन?

टाइम मशीन यानी वो मशीन जिसमें बैठकर इंसान अपने अतीत और भविष्य का सफर कर सकता है. इस ख्याल को सुनकर ही आप चौंक जाएंगे. क्या वाकई ऐसा करना मुमकिन है. अमेरिकी प्रोफेसर रोनाल्ड मैले की बात मानें तो ये दूर की बात नहीं है.

एक ऐसी मशीन जिसमें बैठकर आप अपने वक्त को दगा दे सकेंगे और यही नहीं, ये मशीन अभी तक की साइंस और लोगों की सोच को एकदम बदल डालेगी. फिजिक्स के प्रोफेसर रोनाल्ड मैले का दावा है कि जल्द ही उसकी टाइम मशीन दुनिया के सामने होगी.

प्रोफेसर मैले टाइम मशीन के लिए रिंग लेजर टैक्नीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसमें लेजर किरणों का इस्तेमाल करके भूत, वर्तमान और भविष्य को मौजूदा स्थान और समय के जरिए बदलने की कोशिश की जा रही है.

प्रोफेसर मैले के महंगे प्रयोग को अंजाम तक पहुंचाने के लिए लाखों पौंड चाहिए और इतना पैसा कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी के पास नहीं हैं, इसलिए यूनिवर्सिटी ने शोध में मदद देने के लिए एक अकाउंट खोल दिया है. ताकि दुनिया भर के लोग उसमें इतना पैसा इकट्ठा कर दें कि टाइम मशीन बनाई जा सके. इस प्रोग्राम का नाम है स्पेस-टाइम ट्विस्टिंग बाय लाइट प्रोजेक्ट.

टाइम मशीन देखने में कैसी लगेगी. जिसमें बैठकर आप अपने समय के बाहर यात्रा करेंगे. इसकी एक तस्वीर एचजी वैल्स ने अपनी किताब में खींची है. जिसे बाद में हॉलीवुड की कई फिल्मों ने पर्दे पर उतारा.

डिजायनरों और वैज्ञानिकों ने इसके कई प्रोटोटाइप तैयार किए हैं और लगातार उन्हें बेहतर बनाने की कोशिशें चल रही हैं. टाइम मशीन को थ्रीडी ज्योमेट्री की मदद से तैयार किया जा रहा है.

इंसान के बैठने के लिए इसमें जरूरी आरामदायक जगह होगी. समय को आगे-पीछे करने के लिए किस तरह इसके पहिए काम करेंगे. इस पर पूरा ध्यान दिया गया है.

कंप्यूटर से तैयार किए गए सैकड़ों ऐसे मॉडलों को वैज्ञानिक परख रहे हैं, ताकि उनकी क्षमता का अंदाज लगाया जा सके. टाइम मशीन के जिन मॉडल्स को पहले तैयार किया गया था, उनमें लकड़ी का इस्तेमाल ज्यादा हुआ था. इसके बाद इनमें ग्लास का इस्तेमाल हुआ. अब जो मॉडल बन रहे हैं, वो बेहतरीन फाइबर और ग्लास का मिला-जुला रूप होंगे.

मशीन को ज्यादा से ज्यादा हल्का बनाने की कोशिश की जा रही है.हालांकि मशीन अंतरिक्ष में नहीं बल्कि समय में यात्रा करेगी. इसके चलने के तरीके पर खास ध्यान रखा गया है.

ये टाइम मशीन हमारे मौजूदा अंतरिक्ष यानों की तरह नहीं होगी.इसमें पहिए होंगे, लेकिन वो समय को आगे-पीछे करेंगे न कि मशीन को. इसे खड़ा करने के लिए इसके पैर होंगे जो किसी भी तरह की सतह पर मशीन को खड़ा करने में मददगार होंगे.  

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