मेरा 5 वर्षीय बेटा अपार्टमैंट के सामने अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खेल रहा था. हम पतिपत्नी कुछ दूर से बच्चों के खेल का आनंद ले रहे थे. अचानक मेरे बेटे की तेज आवाज सुन, हम दोनों चौंक गए. वह कह रहा था, ‘‘जानते हो न, तुम सब, मैं जगन का बेटा हूं. जगन न सुनना नहीं जानता, तुम सब को मेरी बात माननी ही पड़ेगी.’’ दरअसल, मेरे पति गुस्से में हमेशा इसी तरह बोलते थे. खैर, हम ने प्यार से समझाते हुए, बच्चों में सुलह करवा दी और वे सभी पूर्ववत खेल में मस्त हो गए. मेरे पति ने शर्मिंदा होते हुए कहा, ‘‘मैं वादा करता हूं, आज से ही अपनी इस तरह बोलने की गंदी आदत छोड़ दूंगा.’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘यह भी खूब रही, बेटे ने आप को सिखा ही दिया.’’

संध्या, बेंगलुरु (कर्नाटक)

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एक बार हमारे धनाढ्य मित्र सिसोदियाजी ने सर्दी के मौसम में गरीब बेघरों के लिए रात में कंबल बांटने का कार्यक्रम बनाने के लिए कहा और कहा कि कंबल जयपुर से ले आते हैं, वहां सस्ते मिलेंगे. कंबल लाने के बाद उन के एक मित्र ने पूछा कि सिसोदियाजी, कंबल किस जगह पर बांटने हैं, यह तो तय कर लो ताकि रात में परेशानी न हो. सिसोदियाजी बहुत हाजिर- जवाब हैं, उन्होंने तपाक से कहा कि यह मैं अभी नहीं बताऊंगा, कहीं तुम ने पहले से अपने आदमी वहां पर सुला दिए तो. इस बात पर सभी बिना हंसे नहीं रह सके.

आशा शर्मा, बूंदी (राज.)

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मेरी कामवाली, जिन्हें मैं बूआ कहती थी, बहुत अच्छी थीं. मुझे चाय पीने का बहुत शौक था. दिन भर में 6-7 कप चाय पी जाती थी. बूआ अकसर इस बात पर मुझे टोकतीं, नाराज भी होतीं, ‘‘बिटिया, इत्ती चाह (चाय) न पिया करो, रंग काला पड़ जाएगा, कलेजा अलग जल जाएगा,’’ मैं उन्हें हंस कर टाल देती या प्यार से मना लेती. उस दिन छुट्टी थी. मैं टीवी पर गाने सुन रही थी कि फिर चाय पीने का मन हुआ. मैं ने बूआ को चाय बनाने को कहा. वे बड़बड़ाती हुई चाय बनाने चली गईं. जब वे चाय ले कर आईं तो एक गाना आ रहा था, ‘चाह बरबाद करेगी हमें मालूम न था...’ बूआ जल्दी से बोलीं, ‘‘हम कहत हैं तो मानती नहीं हो. अब इत्ता बड़ा आदमी कह रहा है ‘चाह बरबाद करेगी’ यही तो हम भी कहत हैं कि ‘चाह’ नुकसान करती है पर तुम सुनतीं नहीं.’’ उन की बात सुन कर मैं हंस पड़ी. उन्हें क्या समझाती कि यह उन की चाह (चाय) नहीं, यह मुहब्बत है जो आबाद भी करती है, बरबाद भी करती है.     

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