भारतीय राजनीति में इस समय अगर कोई सब से विवादित विषय है तो वह है पार्टी फंड. राजनीतिक पार्टियां इस पर चर्चा करने से बचती हैं. यही कारण है कि पार्टी चंदे को ये सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर रखने के पक्ष में हैं. तृणमूल के पार्टी चंदे को ले कर चर्चा का बाजार गरम है. इस से पहले इसी दौर से गुजर चुकी है आम आदमी पार्टी. उस का चुनाव आयोग को चुनाव खर्च का ब्योरा देने में टालमटोल रवैया चर्चा का विषय रहा है. वैसे पार्टी चंदे के मामले में आम आदमी पार्टी को केंद्र से क्लीनचिट मिल चुकी है और अब मामला ठंडा पड़ चुका है. तृणमूल पार्टी में चंदे और पार्टी की आय को ले कर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. चुनाव आयोग को पार्टी ने आयव्यय का जो हिसाब दिया वह सारदा चिटफंड कांड मामले की जांच कर रही सीबीआई को दिए गए हिसाब से न केवल अलग है बल्कि उस में जमीनआसमान का फर्क है. ऐसे में सवाल उठता है कि किस हिसाब को सही माना जाए. गौरतलब है कि सारदा चिटफंड मामले की जांच में जो तथ्य निकल कर आए हैं उन से सीबीआई को शक है कि आम लोगों की गाढ़ी कमाई का पैसा पार्टी फंड में गया है.
चुनाव आयोग व आयकर में छूट
आयकर में छूट पाने के मकसद से राजनीतिक पार्टियां चुनाव आयोग को अपने आयव्यय का हिसाब देती हैं. एसोसिएशन फौर डैमोक्रेटिक रिफौर्म यानी एडीआर की एक रिपोर्ट से साफ है कि तमाम राजनीतिक पार्टियों के 75 प्रतिशत चंदे का स्रोत अज्ञात होता है. 2004-05 से ले कर 2011-12 यानी 8 सालों में राजनीतिक पार्टियों को 4,895 करोड़ रुपए का चंदा मिला, जिस में से 3,674 करोड़ रुपए का चंदा अज्ञात स्रोत से मिला है. एडीआर की रिपोर्ट में कांगे्रस, भाजपा, माकपा, भाकपा, बसपा और एनसीपी जैसी पार्टियों से मिले आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है.
सारदा का पैसा पार्टी में
सारदा चिटफंड कांड के बाद सीबीआई की जांच में पाया गया कि सारदा के पैसे के बल पर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांगे्रस ने 2012 में विधानसभा चुनाव लड़ा है. सारदा मीडिया, जिस में पिं्रट और इलैक्ट्रौनिक दोनों मीडिया शामिल हैं, की भूमिका इस जीत में बड़ा फैक्टर रही है. वहीं तृणमूल सरकार बनने के बाद जितने भी उपचुनाव हुए, सब में सारदा ने पानी की तरह पैसा बहाया है. माना जा रहा है कि 2010 में सिंगूर और नंदीग्राम में कृषि जमीन के अधिग्रहण के बाद आंदोलन की जो पृष्ठभूमि तैयार हुई उस में सारदा मीडिया का बड़ा हाथ रहा है.
पेंटिंग्स की बिक्री से आय
सीबीआई ने तृणमूल से 2010 से ले कर 2014 तक पार्टी के आयव्यय का हिसाब भी मांगा. चूंकि तृणमूल की ओर से जो हिसाब दिया गया है उस में दावा किया गया है कि पार्टी फंड का एक बड़ा हिस्सा पार्टी आलाकमान की पेंटिंग्स की बिक्री से मिली रकम का है. इसीलिए अब सीबीआई की ओर से पेंटिंग्स की बिक्री का भी विस्तृत हिसाब मांगा गया है. लेकिन अब तक उस का जो भी हिसाब सामने आ रहा है, वह बहुत ही भ्रामक है.ममता की पेंटिंग्स की बिक्री का जो हिसाब पार्टी के पूर्व महासचिव मुकुल राय ने चुनाव आयोग को दिया है उस में पेंटिंग्स की बिक्री से 2011-12 में 3.94 करोड़ रुपए और 2012-13 में 2.53 करोड़ रुपए की आय की घोषणा की गई थी. सारदा कांड की जांच के दौरान पार्टी फंड का मामला जब तक गरमाया तब तक मुकुल राय की पार्टी के तमाम बड़े पदों से छुट्टी की जा चुकी थी. लेकिन पार्टी के अलगअलग स्तरों पर सार्वजनिक तौर पर जो हिसाब बताए जा रहे हैं उन से एक तरफ और अधिक भ्रम फैल रहा है तो दूसरी तरफ राज्य की जनता भी पार्टी को शक की नजर से देख रही है.
गौरतलब है कि सीबीआई को पेंटिंग्स की बिक्री का विस्तृत हिसाब भेजे जाने से पहले खुद ममता ने ही निगम चुनाव के दौरान आयोजित 2 जनसभाओं में अलगअलग हिसाब दिया. पहली बार ममता ने कहा कि 2 या 3 प्रदर्शनियों में 250-300 पेंटिंग्स ही प्रदर्शित की गई थीं, जिन में एक पेंटिंग 20 लाख रुपए में बिकी. बाकी अन्य 1 लाख से 5 लाख रुपए में बिकीं. बहुत सारी पेंटिंग्स उन्होंने अपने प्रशंसकों को ऐसे ही बांट दी हैं. उन्होंने यह भी साफतौर पर कहा कि कोई भी पेंटिंग 2 करोड़ रुपए में नहीं बिकी. लेकिन इस के ठीक 2 दिनों बाद एक दूसरी जनसभा में उन्होंने 2-3 चरणों में 300 पेंटिंग्स की प्रदर्शनी में कुल 9 करोड़ रुपए की बिक्री की बात कही. इस तरह उन्होंने 300 पेंटिंग्स की बिक्री से पार्टी फंड में 9 करोड़ रुपए आने की बात की. mउधर, सीबीआई के पास तृणमूल से निष्कासित सांसद व पत्रकार कुणाल घोष का वह पत्र है जिस में उन्होंने दावा किया है कि सारदा प्रमुख सुदीप्त सेन ने 1 करोड़ 86 लाख रुपए में ममता बनर्जी की पेंटिंग खरीदी थी. वहीं, सुदीप्त सेन ने भी स्वीकार किया है कि उन्होंने ममता बनर्जी की एक पेंटिंग 1.86 करोड़ रुपए में खरीदी थी. तृणमूल कांगे्रस के पार्टी फंड और आयव्यय का मामला ममता बनर्जी व उन की पार्टी के लिए गले की फांस बन चुका है. इस सिलसिले में ममता बनर्जी से ले कर पार्टी के छोटेबड़े नेता अलगअलग बयान दे रहे हैं. जितने बयान आ रहे हैं, कड़ी और भी अधिक उलझती जा रही है. सीबीआई यह भी जानना चाहती है कि जिन पेंटिंग्स की बिक्री हुई है वे किसी दबाव में या किसी को खुश करने के लिए तो नहीं खरीदी गई हैं.