स्मार्टफोन निसंदेह एक अद्भुत आविष्कार है जो दुनियाभर की जानकारी एक छोटे से डब्बे में पैक कर देता है और इसे रखने वाला हर तरह की जानकारी जब मरजी हासिल कर सकता है. समस्या इस ‘हर तरह’ से आने लगी है. नाबालिगों और विशेषतौर पर बच्चों के हाथों में वह जानकारी, जो उन के काम की नहीं है, खतरनाक साबित हो सकती है. बच्चे आमतौर पर स्मार्टफोन की तकनीक और गुणों को वयस्क लोगों से जल्दी समझ लेते हैं क्योंकि उन के दिमाग में लैंडलाइन वाला काला फोन होता ही नहीं है. उन्हें बचपन से बटनों की उपयोगिता का एहसास होने लगता है. वे उस जगह पर पहुंच जाते हैं जहां वयस्क नहीं जाते क्योंकि न तो उन के पास समय होता है न जरूरत. बस, यही विवाद का कारण बन रहा है.
स्मार्टफोन जब तक मातापिता और इक्केदुक्के दोस्तों से मिलने के संपर्क सूत्र हों तो ठीक है. इस फोन से छोटे बच्चे भी दुनियाभर में चैटिंग कर सकते हैं, अपने बारे में चाहीअनचाही जानकारी दे सकते हैं. वे पौर्न, अश्लील और आपराधिक जानकारी पा सकते हैं. वे अनजानों से दोस्ती कर सकते हैं. इसलिए स्मार्टफोन बच्चों के हाथों में ऐसा है मानो उन्हें चौराहे पर अकेला छोड़ दिया गया हो. बच्चों में अगर लड़की है तो यह फोन समझो, आफत का निमंत्रण है. बच्चों की स्मार्टफोन की मांग को रोकना मातापिता के लिए लगभग असंभव है. चूंकि हर हाथ में मोबाइल है और हर समय जरूरत होती है, इसे खरीदना तो पड़ेगा ही. कुछ निर्माताओं ने छोटे बच्चों के लिए सुरक्षित स्मार्टफोन बनाए हैं जिन का सौफ्टवेयर ऐसा है कि बहुत सी साइटों पर बच्चे जा ही नहीं सकते. ऐसे में यह पक्का है कि बच्चे इसे खरीदेंगे ही नहीं. उन्हें यह जबरन दिलाया गया तो वे उसे 2-4 दिन में तोड़ डालेंगे. कामकाजी मातापिताओं के लिए छोटे बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन देना अनिवार्य सा है पर यह उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए छुरा पकड़ाने के समान है जिस से वे किसी निर्दोष को नुकसान पहुंचा सकते हैं और खुद को भी. असल में स्मार्टफोन में सुविधाएं होने के बावजूद यह इतना लाभदायक नहीं जितना समझा जा रहा है. इसे एक तरह से ऐसे समझें कि घर के बाहर ही दीवार से सटी पटरी पर आटे, दाल, सब्जियों की दुकानें, कच्चे ढाबे तरहतरह की सुविधाएं तो देते हैं लेकिन वे घर और माहौल में बदबू फैलाए रखते हैं, गंदगी फैलाते हैं, अनचाहों को घर के सामने ला खड़ा कर देते हैं, पटरी पर चलना नामुमकिन कर देते हैं और बच्चों से खेलने की जगह छीन लेते हैं. सो, फैसला आप को करना है--जीवन सुविधाजनक चाहिए या सुव्यवस्थित.
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