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फ़िल्मी जगत

टीवी वाला थप्पड़

चुइंगम की तरह खींचे जा रहे धारावाहिकों में सासबहू और साजिश के दौरान बनावटी थप्पड़ों की गूंज तो आप ने कई बार सुनी होगी लेकिन सीरियल के सैट पर कलाकार अपनी खुन्नस निकालने के लिए सहयोगी कलाकार को तमाचे रसीदने लगे तो थोड़ा अजीब सा लगता है. मामला भले ही अजीब लगे लेकिन टीवी धारावाहिक ‘दीया और बाती हम’ की अभिनेत्री दीपिका यानी संध्या ने अपने कोऐक्टर अनस यानी सूरज को पूरी यूनिट के सामने तमाचा जड़ दिया. चूंकि दोनों के बीच मनमुटाव चल रहा था. लिहाजा, इसे उसी का नतीजा माना जा रहा है जबकि संध्या के मुताबिक, सूरज ने उन्हें गलत तरीके से छुआ, सो उन्हें थप्पड़ मिला. बहरहाल, आपसी संबंधों की कड़वाहट को यों सरेआम इस तरह इजहार करना तर्कसंगत कतई नहीं कहा जा सकता.

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टूरिज्म का फिल्मी बाजार

आमिर खान का इंडियन टूरिज्म कैंपेन ‘अतिथि देवो भव:’ काफी चर्चित हुआ था. अमिताभ बच्चन तो बाकायदा गुजरात राज्य के पर्यटन ब्रैंड ऐंबैसेडर भी बने. अब अभिनेता सैफ अली खान भी टूरिज्म को बढ़ावा देते नजर आएंगे. यह बात अलग है कि छोटे नवाब भारतीय पर्यटन का प्रचार नहीं बल्कि इंगलैंड नैशनल टूरिज्म से जुड़े हैं और उन्हें इंगलैंड नैशनल टूरिज्म एजेंसी ने अपना ब्रैंड ऐंबैसेडर नियुक्त किया है. सैफ विजिट ब्रिटेन का प्रचार करेंगे और बौलीवुड ब्रिटेन कैंपेन चलाएंगे. एजेंसी को उम्मीद है इस से ज्यादा भारतीय पर्यटक इंगलैंड आएंगे वैसे, पर्यटकों का तो पता नहीं लेकिन इतना तो तय है कि फिल्म स्टार्स ऐसे कैंपेन की बदौलत फिल्मों से ज्यादा कमाई कर डालते हैं.

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गोरेपन का हौवा

टीवी पर आने वाले हर दूसरे, तीसरे विज्ञापन में महिलाओं को गोरा करने वाली फैयरनैस क्रीम का प्रचार किया जाना आम बात है. और तो और, अब मरदों वाली क्रीम के विज्ञापन में पुरुषों को भी गोरा बनाने के लुभावने औफर्स दिए जा रहे हैं.फिल्म क्वीन और 5 शौकीन्स से चर्चा में आईं अभिनेत्री लीना हेडन इस विचार के खिलाफ हैं. चूकि वे खुद सांवली हैं लिहाजा गोरेपन को ले कर महिलाओं के पूर्वाग्रह से वाकिफ हैं. लीजा के मुताबिक, महिलाओं को गोरे रंग का हौवा नहीं बनाना चाहिए. वे अपनी पढ़ाईलिखाई, कैरियर और अंदरूनी अच्छाइयों को निखारें तो गोरेपन की अनिवार्यता ही नहीं रहेगी. सुनने में ये बातें जरूर शिक्षाप्रद लग सकती हैं लेकिन सच यह भी है कि फिल्मों में ही सांवली रंगत की हीरोइनों को मुश्किलें पेश आती हैं, ऐसे में सामान्य जीवन में इस हौवे से बचना मुश्किल ही लगता है.

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बैन की सनक

निर्भया कांड पर बनी डौक्यूमैंट्री फिल्म को बैन करने के फैसले पर फजीहत झेल रही सरकार से लगता है सैंसर बोर्ड कोई खास सबक नहीं ले रहा. शायद इसीलिए ‘बदलापुर’, ‘एनएच 10’ और ‘दम लगा के हईशा’ के कई संवादों पर कैंची चलाने के बाद सैंसर बोर्ड ने अब एक हौलीवुड फिल्म गेट हार्ड को एडल्ट कंटेंट के चलते भारत में बैन करने की भूमिका बना दी है. हालांकि खबर यह भी है कि सैंसर बोर्ड से परेशान निर्माता ने खुद ही फिल्म को रिलीज न करने का फैसला किया. वहीं, बोर्ड फिल्म को इंटरनैट पर रिलीज करने से भला कैसे रोकेगा, कहीं इंडियाज डौटर जैसा मामला न हो जाए.

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गीता कपूर फंसी

हाल में शाहरुख खान के घर के बाहर बने अवैध चबूतरे को ले कर देशव्यापी हल्ला हुआ. हालांकि ऐसे अवैध निर्माण हर दूसरी गली या महल्ले में आम हैं. शायद फिल्मी सितारा होना मामले को तूल मिलने की बड़ी वजह है. कोरियोग्राफर गीता कपूर को 12 मार्च की सुबह पुलिस ने हिरासत में ले लिया. दरअसल, मुंबई के ओशीवाड़ा इलाके में गीता की कार से एक बाइक सवार टकरा गया. बताते हैं कि उस शख्स के पैर में फ्रैक्चर हुआ है. चूंकि कार गीता कपूर की थी सो उन से पूछताछ हो रही है.  कानून सब के लिए बराबर है और होना भी चाहिए लेकिन सैलिब्रिटीज के मामले में अकसर बातें बढ़ाचढ़ा कर गढ़ी जाने से बचना जरूरी है.

जीवन की मुसकान

मैं एक विद्यालय में गणित शिक्षक के रूप में कार्यरत हूं. विज्ञान शिक्षक नहीं रहने के कारण प्राचार्य बारबार मुझे विज्ञान पढ़ाने के लिए बाध्य कर रहे थे. मैं हमेशा नकारात्मक जवाब दे रहा था. एक दिन उन्होंने रजिस्टर में विज्ञान पढ़ाने के लिए मुझे लिखित रूप में आदेश दे दिया. बाध्य हो कर मुझे स्वीकार करना पड़ा. मैं ने कड़ी मेहनत और लगन से विज्ञान पढ़ाना शुरू कर दिया. शुरूशुरू में मुझे परेशानी के साथसाथ भय भी लग रहा था लेकिन लिखित आदेश का पालन करना मेरा कर्तव्य था. लेकिन विज्ञान के दूसरे शिक्षक आने के बावजूद बच्चे अभी भी मुझे ही विज्ञानशिक्षक के रूप में देखना चाहते हैं. इतना ही नहीं, जब बच्चों का परीक्षाफल निकला तो विज्ञान में बच्चों का प्रदर्शन बहुत ही बेहतर था और मुझे गणित शिक्षक के रूप में तो नहीं पर, विज्ञान शिक्षक के रूप में प्रशस्ति प्रमाणपत्र अवश्य मिला. अपने पूर्वाग्रह पर आज मुझे दुख ही नहीं, शर्मिंदगी महसूस हो रही है.

अशोक कुमार महतो, सुंदरगढ़ (ओडिशा)

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मैं और मेरी देवरानी एकसाथ रहते हैं. मेरे पति और देवर रिश्तेदारी में दिल्ली गए हुए थे. मेरे पोते को रात से हलका बुखार था. हम दोनों के बेटेबहुएं जौब पर गए हुए थे. दिन में डेढ़ बजे बच्चे को काफी तेज बुखार हो गया. उस की आंखें पलटने लगीं. हम दोनों बहुत घबरा गए. हमारे पास 1200 रुपए ही थे. एटीएम कार्ड नहीं था. पास में एक रिकशा वाला रहता था, उसे बुलाया. हमें घबराया देख कर वह बोला, ‘‘आंटीजी, आप डाक्टर को दिखाइए, मैं पैसे बाद में ले लूंगा.’’ नजदीक के डाक्टर को दिखाया. उन्होंने बच्चे को 2 घंटे अस्पताल में रखा. बच्चे को कुछ फर्क पड़ा तब हम घर आए. हमारे पास जो रुपए थे वे डाक्टर को दे दिए, दवा कैसे लाएं. तुरंत दवा भी देनी थी. कालोनी में ज्यादा जानपहचान न थी. अचानक दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो एक अपरिचित चेहरा था. (जब मेरे देवर लखनऊ में रह कर पढ़ते थे वे तब उन के दोस्त व रूमपार्टनर थे.) वे लंदन में रहते थे. उस वक्त भारत आए हुए थे. सरप्राइज देने के विचार से देवर से मिलने आए थे. जब उन्होंने हमारी समस्या सुनी तो तुरंत जा कर दवा ले कर आए. साथ ही 10 हजार रुपए हमें दे गए. जब तक बेटेबहू आए तब तक बच्चे की हालत संभल गई थी.

देवर ने फोन पर मित्र से बात की तो पता चला कि वे वापस चले गए हैं. जब उन्हें धन्यवाद दिया तो कहने लगे कि पोते से बढ़ कर रुपए नहीं होते. मैं तुम्हारे काम आ पाया, मुझे बहुत खुशी है. तुम से नहीं मिल पाया, यह दुख है. 

माला वाही, लखनऊ (उ.प्र.)

स्मार्ट टिप्स

  1.  एक कटोरे में गरम पानी लें. उस में थोड़ा साबुन मिला दें. उस में अपने आई ग्लास को डुबोएंगे तो सारी गंदगी दूर हो जाएगी. बाद में नरम सूखे कपड़े से पोंछ लें, आई ग्लास चमकने लगेगा. ऐसा हफ्ते में 1 बार अवश्य करें.
  2.  घर में पेंट करवाने से पहले देख लें कि वह रंग फर्नीचर के रंगों के साथ मेल करेगा या नहीं, साथ ही हमेशा चटख रंगों का प्रयोग करें क्योंकि इस से मूड अच्छा बना रहता है.
  3.  कौंटैक्ट लैंस साफ करने से पहले अपने हाथ ऐंटी बैक्टीरियल साबुन या सैनिटाइजर से साफ करें. वरना आप के हाथ में मौजूद बैक्टीरिया आंख में प्रवेश कर जाएगा.
  4.  ऐसा वार्डरोब लें जिस में छोटेछोटे अनेक ड्रौअर्स बने हों जिस से आप ज्वैलरी या फिर छोटेमोटे कपड़े आराम से रख सकें.
  5.  घर में कालीन बिछाने के बजाय हार्ड फ्लोरिंग करवा सकते हैं. यह मेंटेन करने में आसान होती है और देखने में काफी अच्छी लगती है.
  6.  सफेद सिरके को गरम पानी के साथ मिलाएं और इस से फर्श साफ करें. सारे कीटाणुओं का सफाया हो जाएगा और फर्श चमक उठेगा.
  7.  अपने लैपटौप को साल में एक बार किसी कंप्यूटर प्रोफैशनल से जरूर साफ करवाएं, जिस से अंदर की धूलमिट्टी साफ हो सके.

सूक्तियां

पूर्णता

आप किसी चीज को बिलकुल पूर्ण समझते हैं तो इस का मतलब यह है कि आप ऐसी चीज में विश्वास करते हैं जो न है, न कभी थी और न कभी होगी.

लाभ

यह जानने के बाद कि एक अच्छे मौके का लाभ कैसे उठाया जाए, यह सीखना भी जरूरी है कि आसानी से मिलने वाले लाभ को कैसे छोड़ा जाए.

धर्म

लोग धर्म के लिए लड़ेंगे, झगड़ा करेंगे, धर्म पर लिखेंगे, भाषण देंगे और उस पर मर भी जाएंगे, लेकिन जीवन में उस के अनुकूल रहेंगे नहीं.

सफलता

कभी न गिरना शान की बात नहीं है, शान की बात तो यह है कि जब भी हम गिरें, उठ कर खड़े हो जाएं.

यश

दूसरों द्वारा प्रशंसा पाने की अपेक्षा अपने कामों द्वारा यश पाना अधिक अच्छा है.

विकार

विकार आग की तरह है, वह मनुष्य को घास की तरह जलाता है.

व्यवहार

व्यवहार वह आईना है जिस में हर किसी का प्रतिबिंब देखा जा सकता है.

प्यार का बादल

प्रियतम की बांहों में सपने संजोता

होंठों को सहला गया प्यार का बादल

मौसम की कलियों ने चटख दिखलाई

आंखों ने आंखों की भाषा समझाई

सांसों की ताल पर गुनगुनाता हुआ

सात रंग जगा गया प्यार का बादल

तारों ने खेली खूब आंखमिचौली

सुहानी सी रात बनी रही सहेली

पांखुरी गुलाब सा मंद मुसकराता

भीतर तक लहरा गया प्यार का बादल

धीरे से टपकते शबनम के मोती

संदली हवा जागती न सोती

रेशम की तार सा तन को गुदगुदाता

इतिहास इक रचा गया प्यार का बादल.

                 – राजेंद्र निशेश

सैलानियों को मुग्ध करता साउथ इंडियन पैकेज

भारत के दक्षिणी भाग को दक्षिण भारत भी कहते हैं. अपनी संस्कृति, इतिहास तथा प्रजातीय मूल की भिन्नता के कारण यह शेष भारत से अलग पहचान बना चुका है. इतना भिन्न हो कर भी यह भारत की विविधता का एक अंगमात्र है. लिहाजा, यहां पर्यटन के इतने अनोखे ठिकाने हैं कि सैलानी एक बार में दक्षिण भारत के सभी टूरिज्म स्पौट्स कवर कर ही नहीं पाते. आइए, इस साउथ इंडियन पैकेज के जरिए करें दक्षिण भारत के कुछ चुनिंदा पर्यटन स्थलों की मजेदार सैर.

मुन्नार

मुन्नार का स्थान केरल की प्रसिद्धि में बड़ा योगदान देने वाले पर्यटन स्थलों में अव्वल है. यह हिल स्टेशन एक समय दक्षिण भारत के पूर्व ब्रिटिश प्रशासन का ग्रीष्मकालीन रिजौर्ट हुआ करता था. खूबसूरत चाय के बागान, हरीभरी घाटियां, सुहाना मौसम, ऊंचीऊंची चोटियां, अभयारण्य, प्राकृतिक खुशबू से भरी हवा के अलावा वह सबकुछ है जो सैलानियों को यहां खींच लाने के लिए काफी है. यहां की कलकल करती झीलें और घने जंगल देख कर प्रकृति के सर्वोत्तम रूप का नजारा हो जाता है. यहां नीलकुरंजी नामक दुर्लभ फूल  पाया जाता है जो पूरी पहाड़ी को नीला कर देता है. यह 12 वर्षो में केवल एक बार ही खिलता है.  ऐसे ही खूबसूरत नजारों और चौंकाने वाले प्राकृतिक उपहारों से लबरेज मुन्नार आना हर सैलानी का सपना होता है.

दिलचस्प माट्टूपेट्टी

समुद्रतल से लगभग 1,700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित माट्टूपेट्टी मुन्नार से करीब 13 किलोमीटर दूर स्थित है. इस जगह की खासीयतों में स्टोरेज मेसनरी बांध और खूबसूरत झील सब से ज्यादा चर्चित हैं. नीले पानी से लहलहाती इस झील में पर्यटकों के लिए जहां आनंददायक नौकाविहार की सुविधा है वहीं बांध में ठहरा विशाल जल देख कर प्रकृति और तकनीक के अनोखे संगम के दीदार होते हैं. इस जगह की पौपुलैरिटी का क्रैडिट इंडोस्विस लाइवस्टौक परियोजना द्वारा संचालित डेयरी फार्म को भी जाता है. हरेभरे चाय के बागान, ऊंचेनीचे घास के मैदान और शोला वन के साथसाथ माट्टूपेट्टी ट्रैकिंग के लिए आदर्श स्थल है. यहां आ कर सैलानी केरल के हरभरे मिजाज को दिल में सहेज कर लौटते?हैं.

पल्लिवासल, चिन्नकनाल और अनरियरंगल

मुन्नार में प्रवेश करते ही कई पर्यटक उत्सुकतावश पल्लिवासल, चिन्नकनाल और अनरियरंगल की तिकड़ी का जिक्र कर ही देते हैं. वजह, ये तीनों ही ठिकाने सब के पसंदीदा जो हैं. पल्लिवासल मुन्नार के चितिरपुरम से लगभग 13 किलोमीटर दूर स्थित है. यह केरल का पहला हाइड्रोइलैक्ट्रिक परियोजना स्थल है. टूरिस्टों का फेवरेट पिकनिक स्पौट बन चुका यह स्थल व्यापक प्राकृतिक नजारों से भरा पड़ा है. वहीं चिन्नकनाल के झरने, जिसे आमतौर पर पावर हाउस वाटरफौल कहा जाता है, खड़ी चट्टान पर समुद्रतल से 2 हजार मीटर की ऊंचाई से गिरते हैं तो पर्यटकों की आंखें एकटक देखती रह जाती हैं. चिन्नकनाल से लगभग 7 किलोमीटर आगे बढ़ने पर आप अनरियरंगल पहुंच जाएंगे. यह जगह चाय के हरेभरे पौधों का गलीचा है. शानदार जलाशय की सैर एक अविस्मरणीय अनुभव है. अनरियंगल बांध चारों ओर से चाय के बगीचों व सदाबहार वन से घिरा है.

चाय बागान और राष्ट्रीय उद्यान

मुन्नार की अन्य खूबियों में चाय बागान और राष्ट्रीय उद्यान का जिक्र न हो, ऐसा कैसे हो सकता है. ये दोनों ही नेमतें प्रकृति से उपहारस्वरूप मिलती हैं. चाय बागानों को तो मुन्नार की अपनी अलग विरासत माना  जाता है. इस विरासत को सब तक पहुंचाने के लिए केरल की ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं में चाय बागानों की उत्पत्ति और विकास के कुछ सूक्ष्म और दिलचस्प पहलुओं को सुरक्षित रखने व प्रदर्शनीय बनाने के लिए मुन्नार में टाटा टी द्वारा कुछ वर्ष पहले एक संग्रहालय की स्थापना की गई. यहां आ कर चाय बागान के विविध आयामों से गहराई से वाबस्ता होने का मौका मिलता है.

इस चाय संग्रहालय में दुर्लभ कलाकृतियां, चित्र और मशीनें रखी गई हैं. यह संग्रहालय टाटा टी के नल्लथन्नी एस्टेट का एक दर्शनीय स्थल है. इसी तरह मुन्नार से 15 किलोमीटर दूर स्थित इरविकुलम राष्ट्रीय उद्यान भी मुन्नार के प्रमुख आकर्षणों में पहली कतार पर आता है. 197 वर्ग किलोमीटर में फैला यह उद्यान तितलियों, जानवरों और पक्षियों की अनेक दुर्लभ प्रजातियों का ठिकाना है. यहां ट्रैकिंग का भी माकूल इंतजाम है. लहरदार पर्वतों पर धुंध की चादर का नजारा देख कर आप को एकबारगी अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं आएगा. 

रोमांच की सौगात : मुन्नार शहर के नजदीक झरने, झील और पहाड़ी सैलानियों को कभी न भूलने वाले रोमांच की नई दुनिया में ले जाते हैं. पावरहाउस वाटरफौल्स तो रोमांच के शौकीन पर्यटकों का पसंदीदा ठौर है. इस के अलावा मुन्नार के प्रमुख आकर्षणों में पोत्त नमेड, आट्टुकल, राजामाला, ईकोपौइंट, मीनूली और नादूकानी हैं जो अपने अंदर पर्यटन का एक अलहदा संसार समेटे हैं.

कब जाएं

मुन्नार की पर्वतमालाएं सुखद मौसम वाली हैं जहां पर्यटक सालभर भ्रमण के लिए आ सकते हैं.

कैसे पहुंचें

मुन्नार पहुंचने के लिए आप हवाईमार्ग, रेलमार्ग या सड़कमार्ग तीनों का इस्तेमाल कर सकते हैं. कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा मुन्नार के लिए सब से नजदीकी हवाई अड्डा है. नजदीकी रेलवे स्टेशन तमिलनाडु का थेनी है जो मुन्नार से 60 किलोमीटर की दूरी पर है.

ऊटी

दक्षिण भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में ऊटी का नाम सब से ऊपर आता है. यहां की मनोहारी सीनरी आप ने ज्यादातर हिंदी फिल्मों के दृश्यांकन में देखी होगी. यही वजह है कि नवविवाहितों के घूमने के लिए ऊटी पहला विकल्प होता है. नीलगिरि की सुंदर पहाडि़यों में स्थित यह शहर आधिकारिक तौर पर उटकमंड कहा जाता है लेकिन संक्षिप्त तौर पर इसे ऊटी कहते हैं. कहा जाता है कि इस का नाम यहां की घाटियों में 12 वर्ष में एक बार फूलने वाले कुरुंजी फूलों के कारण पड़ा. ये फूल नीले रंग के होते हैं तथा जब ये फूल खिलते हैं तो घाटियों को नीले रंग में रंग देते हैं. विशेष यह है कि औफ सीजन में भी यहां का प्राकृतिक सौंदर्य अलग ही सुरम्यता व आकर्षण बिखेरता है. ऊटी से बहुत सी ऐतिहासिक कथाएं भी जुड़ी हैं. चारों ओर फैली हरियाली, देशीविदेशी पेड़पौधे सैलानियों को मुग्ध कर देते हैं.

ऐतिहासिक महत्त्व : इस शहर में ब्रिटिश संस्कृति तथा वास्तुकला का प्रभाव दिखता है. कहते हैं कि अंगरेज यहां की आबोहवा से इतने प्रभावित हुए कि वे ऊटी को टी क्वीन औफ हिल स्टेशंस कहते थे. उन्होंने ऊटी के निकट स्थित वेलिंगटन शहर में मद्रास रेजीमैंट की स्थापना की. उस दिन से वेलिंगटन मद्रास रेजीमैंट का केंद्र बना हुआ है. कला और इमारतों की वास्तुकला, घरों के डिजाइन और निर्माण की शैली सभीकुछ ब्रिटिशकाल से मिलतीजुलती है.

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने ऊटी का विकास भी किया तथा यहां नीलगिरि में चाय, सागौन और सिनकोना का उत्पादन प्रारंभ किया. ऊटी में तथा इस के आसपास चाय और कौफी के अनेक बागान हैं. ऊटी भारत का एकमात्र मीटर गेज पहाड़ीरेलमार्ग है. मद्रास के तत्कालीन राज्यपाल लौर्ड वैनलौक की देखरेख में स्विस तकनीक द्वारा इस रेलमार्ग का निर्माण कराया गया था. दक्कन में दोड्डाबेट्टा सब से ऊंची चोटी है जिस की ऊंचाई 8 हजार फुट है. दोड्डाबेट्टा ऊटी से 10 किलोमीटर दूर है.

ऊटी झील

ऊटी झील को देखना अनोखा और सुखद अनुभव है. झील को घेरे रंगबिरंगे फूल इस की खूबसूरती को नया रंग देते हैं. मनोरम दृश्य के अलावा यहां और भी कई विकल्प हैं जो पर्यटक को यहीं का हो जाने को मजबूर कर देते हैं. मसलन, झील में मोटरबोट, पैडलबोट और रोबोट्स में बोटिंग का लुत्फ भी उठाया जा सकता है. 2.5 किलोमीटर लंबी इस झील में फिशिंग का आनंद भी उठा सकते हैं.

बोटैनिकल गार्डन

22 एकड़ में फैले इस गार्डन में प्रकृति से स्नेह रखने वालों के लिए बहुतकुछ है. 650 दुर्लभ किस्म के पेड़पौधों के साथसाथ अद्भुत और्किड, रंगबिरंगे लिली, खूबसूरत झाडि़यां व 2 हजार साल पुराने पेड़ का अवशेष यहां की विशेषता है. इस की स्थापना 1847 में की गई थी. इस खूबसूरत बाग में एक पेड़ के जीवाश्म संभाल कर रखे गए हैं जिस के बारे में माना जाता है कि यह 20 मिलियन वर्ष पुराना है.

कालहट्टी जलप्रपात

झील की तरह कालहट्टी जलप्रपात भी ऊटी आने का खूबसूरत बहाना है. लगभग 100 फुट ऊंचा यह प्रपात सौंदर्य से भरा पड़ा है. यहां विभिन्न प्रकार के पर्वतीय पक्षियों को देख कर मन उल्लास से भर जाता है. प्रपात पहुंचने के लिए ऊटी से केवल 13 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है. झरने के अलावा कालहट्टीमसिनागुडी की ढलानों पर जानवरों की अनेक प्रजातियां भी देखी जा सकती हैं, जिन में चीते, सांभर और जंगली भैंसा शामिल हैं.

रोज गार्डन

ऊटी का रोज गार्डन बहुत खूबसूरत है. इस गार्डन की स्थापना 1995 में की गई थी. यह उद्यान 10 एकड़ में फैला हुआ है. रोज गार्डन में लगभग 200 प्रकार के गुलाब के फूलों का संग्रह है. इस गार्डन को दक्षिण एशिया का सब से उत्कृष्ट गार्डन का पुरस्कार मिला है.

डौल्फिंस नोज और डोड्डाबेट्टा

डोड्डाबेट्टा ऊटी से मात्र 8 किलोमीटर दूर स्थित है. वहीं डौल्फिंस नोज ऊटी से बेहद नजदीक है. दोनों ही जगह प्रकृति  के दिलचस्प नजारे पेश करते हैं. डोड्डाबेट्टा नीलगिरि का सब से ऊंचा पर्वत है. यहां से पूरे इलाके की खूबसूरती के दीदार बड़े आराम से हो जाते हैं. जब मौसम साफ होता है तब यहां से दूर के इलाके भी दिखाई देते हैं जिन में कोयंबटूर के मैदानी इलाके भी शामिल हैं. इस के अलावा डौल्फिंस नोज एक खूबसूरत पिकनिक स्पौट है. यहां से कोटागिरी के कैथरज फौल्स का नजारा भी देखा जा सकता है. यहां बच्चों के साथ पिकनिक का अपना ही मजा है.

वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी

एक तरफ ऊटी में जहां झील और हिल्स जैसे शांत व रमणीय इलाके हैं वहीं वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी के भी मजेदार विकल्प हैं. ऊटी से 67 किलोमीटर दूर स्थित वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी में वनस्पति और जंतुओं की कुछ दुर्लभ प्रजातियां और  हाथी, सांभर, चीतल, हिरन आसानी से देखे जा सकते हैं. यहां उड़ते रंगबिरंगे पक्षी और थेप्पाक्कडु हाथी कैंप सैलानियों का दिल जीत लेते हैं.

जायका खाने का : ऊटी में चाइनीज रेस्टोरैंट काफी हैं. सब से मशहूर है नीलगिरि पुस्तकालय के पास स्थित शिंकोज. वहीं दक्षिण भारतीय भोजन के लिए पर्यटक कुरिंजी का रुख करते हैं. यह शहर चाय, हाथ से बनी चौकलेट, खुशबूदार तेल और मसालों के लिए प्रसिद्ध है. कमर्शियल रोड पर हाथ से बनी चौकलेट कई तरह के स्वादों में मिल जाएगी.

खरीदारी : हौस्पिटल रोड की किंगस्टार कन्फैक्शनरी हाथ से बनी चौकलेट के लिए प्रसिद्ध है. कमर्शियल रोड की बिग शौप से विभिन्न आकार और डिजाइन के गहने खरीदे जा सकते हैं. यहां के कारीगर पारंपरिक तोड़ा शैली के चांदी के गहनों को सोने में बना देते हैं. तमिलनाडु सरकार के हस्तशिल्प केंद्र पुंपुहार में बड़ी संख्या में लोग हस्तशिल्प से बने सामान की खरीदारी करने आते हैं.

कैसे पहुंचें

ऊटी आने के लिए निकटतम हवाई अड्डा कोयंबटूर है. यहां से बस, रेल और कार द्वारा ऊटी पहुंचा जा सकता है. ऊटी रेलमार्ग से भी जाया जा सकता है. यदि यहां बस से आना चाहें तो कोयंबटूर, मैसूर, बेंगलुरु और आसपास के दूसरे शहरों से बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं.

कब जाएं

यहां का मौसम पूरे वर्ष खुशनुमा रहता है, हालांकि ठंड में दक्षिण भारत के अन्य भागों की तुलना में यहां का मौसम अधिक ठंडा होता है.

पुडुचेरी

अगर आप सोचते हैं कि बीच के नाम पर भारत में सिर्फ गोआ ही अच्छी जगह है तो आप गलतफहमी में हैं और आप की गलतफहमी पुडुचेरी आते ही दूर हो जाएगी. इसलिए अगर आप भी सैरसपाटे के लिए समुद्रतट जाने की योजना बना रहे हों तो पुडुचेरी जरूर आ कर देखिए. सांस्कृतिक विविधता के दिलकश नजारे तो हैं ही, साथ में विदेशी शासन के समय की जीवनशैली का प्रभाव देखना भी विंटेज इफैक्ट देता है. शांत और सुकून भरे पर्यटन स्थलों की चाह रखने वालों के लिए यह जगह अद्भुत है. पूर्वी तट पर तमिलनाडु से मिला हुआ पुडुचेरी आप को पर्यटन का हर वह सुखांत अनुभव देगा जो आप जीवनभर अपनी यादों में सहेज कर रख सकते हैं. तो चलिए सागर तट का और साथ में विभिन्न सांस्कृतिक धरोहरों का आनंद लेने के लिए बनाइए पुडुचेरी जाने की योजना.

ऐतिहासिक महत्त्व : पुडुचेरी पहले फ्रांसीसी शासन के अधीन था. सितंबर 2006 से इस का नाम पांडिचेरी से बदल कर पुडुचेरी कर दिया गया है जिस का तमिल भाषा में अर्थ है नया गांव. इस की सब से ज्यादा चर्चा लंबे समय तक फ्रांसीसी कालोनी के रूप में रहने और महर्षि अरविंद द्वारा स्थापित आश्रम के कारण है. स्थापत्य कला और संस्कृति की दृष्टि से यह बेहद धनी जगह है. पुडुचेरी पर पुर्तगाल, नीदरलैंड और रोमन शासन भी रहा. वर्ष 1670 में यहां फ्रांसीसी आ गए थे और 1816 में पुडुचेरी पर फ्रांस का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हुआ. फ्रांसीसी शासन में डुप्ले पहला गवर्नर था. आज भी पुडुचेरी में डुप्ले की मूर्ति फ्रांसीसी शासन की याद दिलाती है, हालांकि फ्रांस का असर केवल डुप्ले की प्रतिमा से नहीं, बल्कि पुडुचेरी के समूचे रहनसहन पर नजर आता है. उस की संरचना ही फ्रांसीसी स्थापत्य कला के आधार पर की गई थी.

सड़कें और गलियां समानांतर हैं और सारी गलियां 90 डिगरी के कोण पर मिलती हैं. भारत 1947 में आजाद हुआ पर पुडुचेरी को 1 नवंबर, 1954 को आजादी मिली. लगभग 300 वर्ष तक फ्रांसीसी शासन के अधीन रहने के कारण यहां तमिल, तेलुगू व मलयालम के साथसाथ फ्रांसीसी भाषा न केवल प्रचलन में है बल्कि इसे सरकारी भाषा के रूप में मान्यता भी मिली हुई है.

फ्रैंच परंपरा आरोविले

हर सैलानी को जो जगह सब से ज्यादा भाती है वह है आरोविले. फ्रैंच क्वाटर्स, भोजन, परंपरा और फ्रैंच कालोनी यहां के प्रमुख आकर्षण हैं. आप यहां विश्व स्तर के कई समुद्रतटों का आनंद उठा सकते हैं. अगर आप को धूप व पानी पसंद हैं तो आप यहां जी भर मस्ती कर सकते हैं. यहां के समुद्रतट बहुत शांत और खूबसूरत हैं. यहां के बीच पर कई पेड़ एक लाइन में हैं. इस के अलावा यहां कई स्मारक हैं जो आप देख सकते हैं, जैसे चर्च, औपनिवेशिक इमारतें और प्राचीनकाल के मंदिर, बोटैनिकल गार्डन,  संग्रहालय आदि.

पुडुचेरी बीच

कहते हैं कि पुडुचेरी बीच किसी समय में यहां का प्रमुख आकर्षण था. लेकिन अरियानकुप्पम सागर में एक नए बंदरगाह के निर्माण के कारण होने वाली सामुद्रिक हलचल इस सुंदर बीच के विनाश का कारण बनी. फिलहाल बीच के अवशेष के रूप में सिर्फ रिपरैप शिलाखंड की समुद्री दीवार बची है जो ऐतिहासिक तौर पर देखने वाली जगह है.

बहरहाल, इस के ऊपर एक लाफोक्स प्लेस नाम का आर्टिफिशियल तट बनाया गया है. इस का शाब्दिक अर्थ है नकली बीच. शाम के समय तट पर ट्रैफिक की आवाजाही बंद कर दी जाती है जिस से समुद्र के किनारे टहलने के लिए यह एक आदर्श जगह बन जाती है.

और भी है बहुतकुछ : यहां आ कर लगता है मानो देश के बाहर किसी सुनियोजित, सुव्यवस्थित और साफसुथरे शहर में आ गए हैं. सैंट लुई स्ट्रीट, फैंकोसमार्टिन स्ट्रीट, रोमा रोलां स्ट्रीट, विक्टर सिमोनेल स्ट्रीट आदि खाने और खरीदारी के लिए पर्यटकों को खासे भाते हैं. बीच रोड के अंतिम छोर पर गांधी मंडपम है जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा है, जो नक्काशी वाली छतरी और स्तंभों से घिरी है. 1826 में स्थापित पुराना बोटैनिकल गार्डन भी खूबसूरत स्थान है. इस का मुख्यगेट नक्काशीदार फ्रांसीसी शैली में है. इस में 1,500 पौधों की प्रजातियां हैं. गार्डन में म्यूजिकल फाउंटेन का आनंद लेना न भूलें.

कैसे पहुंचें

सब से आसान रास्ता ट्रेन या हवाई जहाज से चेन्नई पहुंच कर वहां से बस या टैक्सी से पुडुचेरी पहुंचने का है. आप बेंगलुरु या मदुरै होते हुए भी पुडुचेरी आ सकते हैं. पुडुचेरी के लिए चैन्नई से सीधी और नियमित ट्रेनें हैं.

कब जाएं

यहां दिन गरम होते हैं लेकिन शाम व रातें खुशनुमा होती हैं. ज्यादातर लोग यहां आने के लिए गरमी खत्म होने का इंतजार करते.

सच का डर

‘जो बोलेगा उस का मुंह हम तोड़ेंगे’, यह नारा उन सरकारों का होता है जो तानाशाही होती हैं. यह नारा हर धर्म का होता है जो सत्य, त्याग, धैर्य, संतोष, शांति की बात करता है. यह नारा हर उस पार्टी का होता है जो लोकतंत्र की बात करती है. यह नारा हर खाप का होता है जो अपने समाज को एकजुट रखना चाहती है. यह नारा हर उस बड़े कौर्पोरेट घराने का होता है जो व्यवसाय चलाने के लिए स्वतंत्रता की मांग रातदिन करता है. यह कैसा समाज है जो केवल बोलने से डर जाता है और आम घर ही नहीं, ताकतवर सरकार, धर्म, व्यापार, पार्टी भी डर के मारे कांपने लगते हैं कि कहीं बोलने वाला सच न बोल दे, कहीं पोलपट्टी न खुल जाए. बोलने का हक संविधान ने ही नहीं दिया, यह तो नैसर्गिक है, सदियों का है. तभी तो मानव ने उन्नति की है. बोल कर ही दरिंदों को काबू में लाया गया है. सच बोल कर ही समाज ने अपनी सुरक्षा की है, सभ्यता का विकास किया है. सच का अर्थ ही है जो असल में हो रहा है या हुआ है उसे स्वीकारो, चाहे वह सही था या गलत.

यदि सच बोलने पर पाबंदी लगने लगे तो अदालतें निरर्थक हो जाएंगी. गवाहों से यह उम्मीद क्यों की जाती है कि वे सच बोलें जबकि सरकार, धर्म, समाज, व्यापार और खाप कहते रहते हैं, खबरदार सच बोला तो. सरकारी पाठ्यपुस्तकों में सच की महिमा पढ़ाई जाती है, प्रवचनों में सच का महत्त्व बताया जाता है, स्वर्ग या भगवान के पास जाने का रास्ता बताया जाता है, व्यापार कहते हैं कि सच में उन का माल सब से बढि़या है. फिर सच से डर क्या? लैसली उडविन से डर लगता है कि उस का सच कहीं कालिख न पोत दे. प्रिया पिल्लै  से डर था कि कहीं वह इंगलैंड जा कर भारत के पर्यावरण की दुर्दशा का सच न बोल दे. योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण से डर था कि कहीं वे आम आदमी पार्टी का सच न बोल दें. दलित लेखकों पर मुकदमे दायर करे गए कि उन्होंने सच लिखा. 

सच असल में सब से बड़ा हथियार है. महात्मा गांधी ने सच का हथियार अपनाया, हालांकि उन के बारे में असल सच आज भी छिपा है और पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काट्जू जैसे कुछ बोल देते हैं तो संसद विरोध प्रस्ताव पास करने दौड़ती है. सच से लगभग हर कोई डरता है क्योंकि हर कोई अपने द्वारा किए गए गलत कामों से घिरा है और उन्हें छिपाता है. साधारण घर का पति सच से डरता है कि उस की मौज पत्नी द्वारा पकड़ी न जाए. एक लड़की प्रेमी से डरती है कि उस के दूसरे प्रेमी का सच खुल न जाए. हम आखिर ऐसे समाज में रहते क्यों हैं जहां सच छिपाने की लगी रहती है जबकि कोई गलत काम अपने निशान छोड़े बिना नहीं रहता. यह सभ्यता का कैसा विकास है कि इसे झूठों की बुनियाद पर किया जा रहा है और इसीलिए हर जगह तनाव है, विवाद है, युद्ध है, लूट है, हत्याएं हैं, बलात्कार हैं. प्रकृति तो सच पर जीती है. मानव ने प्रकृति पर विजय पाई है और लगता है उस विजय के तोहफे के रूप में उस ने सच को दफना दिया है.

परिपक्वता की ओर ‘आप’

आम आदमी पार्टी के अंदरूनी झगड़े यह साफ करते हैं कि पार्टी अब परिपक्वता की ओर बढ़ रही है और उस के सदस्यों को राजनीति की पथरीली व दलदली जमीन का एहसास होने लगा है. अब तक पार्टी आदर्शवाद से जुड़ी थी जो न व्यावहारिक होता है न उपयोगी. आदर्श की बातें केवल मंचों पर कही जाती हैं जबकि राजनीति ठोस धरातल पर चलती है, हवा में नहीं. अरविंद केजरीवाल ने यह बात समझ ली थी कि पार्टी को चलाने के लिए व्यावहारिक फैसले लेने पड़ते हैं. उन को साथ ले कर चलना होता है जो किसी स्वार्थ के कारण पार्टी में आए हैं और उन पर अगर कुछ काले छींटे पड़े हों तो चिंता नहीं करनी चाहिए. दूसरी तरफ शांति भूषण, प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव महा संतों की तरह शुद्ध सफेद चोले को महत्त्व दे रहे थे क्योंकि उन के वश का गंदी गलियों में घूमना, साधारण घरों में घुसना, जमीन पर कड़कड़ाती ठंड में सोना, धरने देना आदि नहीं. वे एअरकंडीशंड माहौल के स्टूडियो नेता हैं, उन्हें जमीनी लोगों की बू पसंद नहीं. ये दोनों 2 छोरों पर बैठे लोग थे, सो उन को अलग होना ही था. सिद्धांतों की बात ठीक है पर आम व्यक्ति चाहता है कि कैसे भी हो, उसे सुख मिले. कार्यकर्ता चाहता है कि उस को वोट देने वालों का भला हो. प्रशांत भूषण व योगेंद्र यादव जैसे चाहे जितने भी योग्य लोग हों, उन की वाक्पटुता वोटों को जमा नहीं कर सकती. वोट लेने के लिए तो सब का दिल भी और सब का स्वार्थ भी ध्यान में रखना होगा. आम आदमी पार्टी का प्रयोग उस के ताजा विवाद के बावजूद जिंदा रहेगा क्योंकि यह एक तरफ पुश्तैनी नेतृत्व वाली कांग्रेस और दूसरी तरफ कट्टर विघटनकारी, अंधविश्वासी भारतीय जनता पार्टी का पर्याय है. दोनों मुख्य पार्टियां सब को साथ ले चलने में असमर्थ हैं. आम आदमी पार्टी का स्वरूप पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस व ओडिशा की बीजू जनता दल की तरह है जो किसी खास वाद से नहीं बंधी हैं. दोनों व्यक्तिविशेष पर चल रही हैं. दोनों में तथाकथित आंतरिक लोकतंत्र भी नहीं है पर दोनों सफल हैं.

ऊपर से आम आदमी पार्टी अपेक्षाकृत युवा नेताओं की पार्टी है जिस में उत्साही, कर्मठ लोग हैं. अरविंद केजरीवाल को कुछ बुरा प्रैस कवरेज मिलेगा, भाजपा और कांग्रेस को भड़ास निकालने का मौका मिला लेकिन उन का राजनीतिक सफर अभी समाप्त नहीं हुआ है.

अश्क

आंसू को आंखों से गिरने न दीजिएगा
जितना संभालोगे इन्हें उतने ही ये गिरते रहेंगे
मेहमाननवाजी इन की अब बंद भी कीजिए
दूजे मेहमान को भी अब तो आने दीजिए

अश्कों से अपना नाता अब तो तोड़ दीजिए
चंद कसमों की तरह इन्हें भी भुला दीजिए
मेलमिलाप अब इन से जरा रोक लीजिए
और कुछ न सही सपनों का पहरा ही लगा दीजिए

मोतियों को अब भले आसरा न आंखों में दीजिए
और कुछ न सही इन्हें खुश्क ही रहने दीजिए.

– जोनाली कर्मकार

 

बात ऐसे बनी

मैं जिस हिंदी पुस्तकालय में रोज जाता हूं वहां हिंदी को बढ़ावा देने के लिए हाल ही में नियम बनाया गया कि पाठकों को काउंटर पर रखे रजिस्टर में अपना नाम, पता व समय केवल हिंदी में ही दर्ज करना होगा. मगर वहां आने वाले अधिकांश पाठक इसे सुन कर भी अनसुना कर अंगरेजी का ही प्रयोग कर रहे थे. मैं ने प्रबंधक को सुझाव दिया कि वहां एक तख्ती पर सूचना लिखवा कर रख दें तो शायद पाठकों पर इस का कुछ असर पड़ जाए. अगले दिन जब मैं पुस्तकालय में गया तो वहां एक तख्ती पर सूचना लिखी थी, ‘अपना नाम व पता केवल हिंदी में ही दर्ज करें,’ वाह, ऐसे बनी न बात.

मुकेश जैन ‘पारस’, बंगाली मार्केट (न.दि.)

*

रक्षाबंधन का दिन था. मेरी ननद राखी के त्योहार के लिए दिल्ली स्थित हमारे घर आई हुई थीं. खाना खाने के बाद ननद ने कहा, ‘‘चलो भाभी, कनौट प्लेस चलते हैं शौपिंग के लिए.’’ हम लोग गाड़ी से कनौट प्लेस गए. गाड़ी पार्क कर के आगे बढ़े ही थे कि गलत पार्किंग के कारण ट्रैफिक पुलिस वाले चालान काटने को आ गए. मेरे वापस वहां पहुंचने पर वे 200 रुपए का चालान काटने लगे. एक बार तो मैं सोच में पड़ गई फिर एकाएक मैं ने कहा, ‘‘भैया, रक्षाबंधन वाले दिन तो ऐसा मत करो.’’ मेरे बोल सुन कर वे निरुत्तर हो गए और बिना चालान काटे ही वापस चले गए.   

मधू गोयल, गाजियाबाद (उ.प्र.)

*

एक दिन शाम को जब चाय की चुस्कियों के साथ मैं अपने दिनभर की थकान दूर कर रही थी तभी पति हंस कर चिढ़ाते हुए बोले, ‘‘तुम दिनभर करती क्या हो जो थक जाती हो? बस, 2 रोटी बनाईं और काम समाप्त.’’ इन की बातें सुन कर मैं स्तब्ध रह गई. मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. रात के भोजन के समय जब ये डाइनिंग टेबल पर आए तब भोजन के नाम पर एक तश्तरी में 2 रोटी देखकर बोले, ‘‘यह क्या है?’’ ‘‘ये मेरे दिनभर का काम है पर इसे मैं ही खाऊंगी क्योंकि मुझे बच्चे को दूध पिलाना है,’’ यह कह कर मैं ने रोटियां ले लीं. ये मुझे कुछ देर देखते रहे. पहले तो कुछ समझ नहीं पाए परंतु जब समझ में आया तब चुपचाप कमरे में चले गए. हंसी में कही बात किसी के दिल को कितना चोट पहुंचा सकती है, इस बात का एहसास उन्हें उस दिन हुआ. उस दिन के बाद इन्होंने कभी हंसी में भी मेरे दिल को दुख नहीं पहुंचाया.

रेणुका श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)

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