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बिना सब्सिडी की रसोई

हम लोगों की जिंदगी बिना सब्सिडी के सालों चली. पहले सब्सिडी होती कहां थी? यों कहीं होती भी रही हो तो सरकारें जतलाती नहीं थीं. वे चुपचाप दे देती थीं, ले रख स्टाइल में, जैसे सास, बेटी की विदाई के वक्त दामाद के खीसे में जबरदस्ती नोट डाल रही हो. आजकल एकदम उलट हो रहा है. सरकारें डंके बजाए जा रही हैं. सब्सिडी का बोझ न उठाया जाएगा? कम करना हमारी मजबूरी है. कम कर के रहेंगे. हायरमिडिल क्लास के लिए अच्छे दिनों की गिनती शुरू भी न हो पाई थी कि उलटी गिनती शुरू होने के दिन आ गए. लोग कहते हुए याद करेंगे, वे भी दिन थे, सरकार हर थाली में ‘सब्सिडी कृपालु’ के रूप में पसरी हुई थी. बैगन के भुर्ते में, सब्सिडी की खुशबू हुआ करती थी. दाल के तड़के में, सब्सिडी समाई हुई थी. कुकर जब सीटी बजाता था तो लगता था सब्सिडी का शंखनाद हो रहा है.

क्या सस्ते का जमाना था.

एक सिलेंडर में महीनेभर की फैमिली मौज हो जाया करती थी. मिडिल, हायरमिडिल क्लास के ये छोटेछोटे मजे छीन के कोई चैन से भला कैसे रह सकता है? अब पड़ोसिन से मिलने पर बातें यों होने की नौबत है, तुम्हारे ‘वे’ बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर अब कहां से जुगाड़ करते हैं, बहनजी? हमें भी बताओ न, बहुत दिनों से गाजर का हलवा नहीं बनाया. टोमैटो का सीजन निकला जा रहा है सौस बनाने की कौन कहे, सिलेंडर चुक जाएगा? इस से अच्छा तो बाजार से खरीद के इस्तेमाल करने में अक्लमंदी है. आप क्या कहती हैं, मिसेज कविता? आप के यहां सिलेंडर के अकाल तो पड़ते नहीं होंगे, भाई साहब फूड विभाग वाले हैं. एक मंगाओ चार आ जाते होंगे. अरे मिसेज शीला, वे दिन अब लद गए. ये कह रहे थे, अब संभाल कर गैस खर्च करो. आधार कार्ड के जरिए सिलेंडर एकएक को गिनगिन कर मिलेंगे. इफरात में जलानेउड़ाने का जमाना अब रहा नहीं, समझ लो.

पहले बिना किसी झिझक के एकदूसरे के घर से सिलेंडर उठा लाते थे. अचानक दालमखनी बनातेबनाते सिलेंडर बोल गया, किसी को तनिक भी परेशान होने की नौबत ही न आत थी. पड़ोसी को अधपकी दालमखनी दो, वे तड़का लगा कर दे जाती थीं, बता देती थीं कि अपने हिस्से की रख ली है. अरी रमीला, जानती है, कल से आप के भाईसाहब के घर से फौज आने को है. वे बोलेंगे जानबूझ कर हम बहाना बना रही हैं. आज ही सिलेंडर को खत्म होना था, ब्लैक वाला लगवाना ही पड़ेगा. तेरे पास कौंटैक्ट नंबर है, तो देना जरा.

एक जमाने में जब कोई यह कहती, दीदी, अब इज्जत आप के हाथ में है, बचा लो. सुनने वाली महिला बड़ी दीदी का रोल बखूबी निभा लेती, अरे घबराने की जरूरत नहीं, सिलेंडर की ही क्या बात और कुछ चाहिए तो ले जाओ. यही सीन अब बदले रूप में बहानेबाजी की शक्ल अख्तियार करने को है. क्या बताएं बहन, हम ने महीनेभर पहले लगाया है, आजकल में यह खत्म होने को है. सिलेंडर की कहो ही मत. वैसे, साफ मना करने में हमें बुरा तो लग रहा है पर क्या करें? अपने समय में कोई मदद को सामने न आएगा, तब हम कहां भटकेंगे. कहते हैं जब प्रकृति देती है, तो छप्पर फाड़ कर देती है. 60-70 के दशक में आकाश के बादल अतिप्रसन्न हुआ करते थे. छप्परफाड़ू थे वे. पानी बरसता तो छप्पर में छेद करता नीचे रसोई में आता. गृहिणियों को आग लगाने का समय ही न मिलता, वे आग जलाने में ही इतना व्यस्त रहतीं कि बेकार के दूसरे काम देख न पातीं.

रेल की पटरी के किनारे घर होते, ढेर सा कोयला ट्रैक पर पड़ा मिल जाता, जिसे जितना उठाना हो उठा ले जाए. तब भी ईमानदारी से लोग सिर्फ सुबह या शाम के लायक उठा लाते. घर में जमा रखने का झंझट कौन पाले? जंगल में लकडि़यां बेहिसाब काटो, गठरियां ले जाओ, पूछने वाला कोई महकमा न था. बिजली की चोरी से हीटर में खाना बना लो, किसी सब्सिडी का सवाल न था. उन दिनों के खाने से सोंधी सी महक, आज की बेस्वाद सब्सिडी वाले खाने से कहीं ज्यादा उड़ा करती थी.

ब्राजील की रंगीनियां

ब्राजील के नगर साओ पाओलो का नाम लेते ही महानगरों की एक मिलीजुली तसवीर आंखों के सामने उभर आती है. अमेरिका के महानगरों की तरह वहां भी आधुनिकता के प्रभावस्वरूप गगनचुंबी अट्टालिकाओं का जंगल तो जरूर उभर आया है, लेकिन इस जंगल के पीछे छिपे सहृदय, भावुक, अलमस्त तथा सदैव आप की सहायता के लिए तत्पर ऐसे लोग भी हैं जो अमेरिकी नगरों में कम ही देखने को मिलते हैं. अगर कहीं आप भाषा की दीवार लांघ कर उन के करीब पहुंचने में सफल हो गए तो फिर तो ये अपना सारा कामधाम छोड़ कर आप की हरेक प्रकार की सहायता करने के लिए तत्पर हो जाएंगे. इस बात का अनुभव हमें साओ पाओलो पहुंचने के अगले दिन ही हो गया था.

एक अच्छी बात यह हुई कि पहले दिन ही हमारी मुलाकात एक भारतीय से हो गई, जो थोड़ीबहुत पुर्तगाली जानता था. उस के आग्रह पर हम अगले दिन उस के साथ ही शहर का जायजा लेने निकले. पहली नजर में हमें 2 करोड़ जनसंख्या वाला यह महानगर, जो न सिर्फ ब्राजील का बल्कि पूरे दक्षिण अमेरिका का सब से बड़ा शहर है, बहुत भीड़भड़क्के वाला तथा कुछकुछ अस्तव्यस्त सा लगा. लेकिन फिर एक सप्ताह तक शहर के विभिन्न स्थानों पर अपने भ्रमण के दौरान हम ने महसूस किया कि बड़ेबड़े बिल्डरों ने अपनी गगनचुंबी अट्टालिकाओं से जहां दूरदूर तक नगर को विस्तार दे दिया है, वहीं दूसरी ओर इस महानगर के कुछ नई पीढ़ी के उद्यमियों ने पुराने ऐसे इलाकों को भी नया आकार देना शुरू कर दिया है, जहां कभी संभ्रांत लोगों का जाना भी वर्जित था. रुआ औगस्ता, जो कभी शहर का मशहूर रैडलाइट एरिया हुआ करता था, ऐसे ही स्थानों में से एक है. आज यहां बड़ेबड़े मौल, आकर्षक शोरूम तथा बुटीक तो उभर ही आए हैं, साथ ही यहां शहर के कुछ प्रसिद्ध रेस्तरां, क्लब तथा बार भी बन गए हैं, जहां हर रात पर्यटकों तथा स्थानीय लोगों के दिल धड़कते हैं.

आप को साओ पाओलो का वाकई दर्शन करना हो तो रुआ औगस्ता जाना पड़ेगा. इस का एक सिरा एवेनीदा यूरोपा कहलाता है, जहां कारों के बड़ेबड़े शोरूम हैं. यहां आप को फरारी तथा मर्सिडीज जैसी महंगी से महंगी कारें बिकती नजर आएंगी. वहीं उस से थोड़ा आगे आप को बड़ेबड़े बुटीक भी दिखाई देंगे, जिन में आधुनिकतम फैशन से सजीधजी सुंदरियां अपनी मनपसंद पोशाक खरीदती नजर आएंगी. जाहिर है कि ये दुकानें भी ऊंची हैं और इन की चीजें भी दुकान जितनी ही ऊंची कीमतों की हैं, दुनिया के हर बड़े से बड़े ब्रैंड की पोशाकें. इन बुटीक से आगे आप को कलात्मक फिल्मों का प्रदर्शन करने वाला एक सिनेमाघर, एक चर्च तथा कुछ छोटीछोटी दुकानें दिखाई देंगी. दूसरे सिरे पर रुआ औगस्ता एवेनीदा पौलिस्ता से मिलता है, जहां पहुंच कर इस सड़क की पहचान एकदम से बदल जाती है. यहां आप को लोग पुर्तगाली के अलावा चीनी, अरबी तथा स्पेनिश जैसी अनेक भाषाओं में बात करते हुए दिखाई देंगे.

उल्लेखनीय है कि जापान, चीन, अफ्रीका, बोलीविया, कोलंबिया, स्पेन, पुर्तगाल आदि दुनिया के अनेक देशों से लोग काम की तलाश में यहां आते रहे हैं और कालांतर में वे यहीं के हो कर रह गए हैं. इन विभिन्न देशों के मिलेजुले रंगों से ब्राजील का एक अपना ही अनोखा रंग उभरा है, जो दुनिया के सभी देशों से एकदम अलग है और जिस ने ब्राजील को अपनी एक विशिष्ट पहचान दे दी है. हां, तो हम रुआ औगस्ता के दूसरे सिरे की बात कर रहे थे जिस पर आगे बढ़ने पर आप लोअर औगस्ता क्षेत्र में पहुंच जाएंगे. यहां अभी भी कुछ पुराने वेश्यालय मौजूद हैं जो कभी इस पूरे क्षेत्र की पहचान हुआ करते थे.

इस पूरे क्षेत्र का भरपूर आनंद लूटना हो तो आप किसी दिन रात को यहां आइए. यहां के नाइट क्लब तथा बार (मदिरालय) आप को न सिर्फ सांभा नृत्यों तथा जैज म्यूजिक में डूबे मिलेंगे बल्कि दुनियाभर के संगीत तथा नृत्य शैलियों का आनंद भी आप यहां लूट सकेंगे. स्टूडियो एसपी यहां का ऐसा ही क्लब है, जहां ब्राजील की बारबरा यूजीनिया जैसे सुप्रसिद्ध संगीतकार अपनी अनोखी संगीतकला का प्रदर्शन करते रहते हैं. बारबरा पहले रिओ द जैनेरो में रहती थीं और जब एक बार इस क्लब ने उन्हें साओ पाओलो में अपने संगीत का प्रदर्शन करने के लिए बुलाया तो वे हमेशा के लिए यहीं की हो गईं. रिओ की खास बात यह है कि यहां आप को ज्यादातर जैज म्यूजिक ही सुनने को मिलेगा, इस के विपरीत इस महानगर के संगीतकार अपने शो में संगीत की विभिन्न शैलियों का प्रयोग करते रहते हैं.

इस पूरे क्षेत्र की एक खास विशेषता यह भी है कि शनिवार तथा रविवार को यहां नौजवान लड़केलड़कियां अपनीअपनी मोटरसाइकिल पर अंधेरा होते ही आने लगते हैं और फिर वे गली के नुक्कड़, क्लबों के डांसफ्लोर पर या फिर मदिरालयों में अपने लिए मित्र ढूंढ़ने लगते हैं. इस काम में उन्हें ज्यादा देर नहीं लगती क्योंकि ऐसा नहीं है कि केवल लड़के ही पहल करते हैं, बल्कि अगर किसी लड़की को कोई लड़का अच्छा लगता है तो वह भी पहल कर सकती है. इस मामले में लड़के तथा लड़कियां, दोनों ही हर प्रकार की वर्जनाओं से मुक्त होते हैं. कई बार यह दोस्ती केवल उस एक रात को ही समाप्त हो जाती है और कई बार वह कई सप्ताह, कई साल या फिर पूरी जिंदगी भी चल सकती है.

रुआ औगस्ता के जैसा ही एक अन्य बोहेमियन स्थान है विला मैडेलीना, जहां अनेक बार, रेस्तरां तथा कला दीर्घाएं हैं और जहां आप मौजमस्ती की एक शाम गुजार सकते हैं. इस के एकदम विपरीत है शहर के अमीरजादों की बस्ती में स्थित मौल सिदादे जार्डिम, जिस के मुख्यगेट को पदचारियों के लिए बंद रखा जाता है और जिस के भीतर केवल वे अमीरजादे ही प्रवेश कर सकते हैं जो अपनी करोड़ों की कीमत वाली लंबीलंबी कारों में आते हैं. ये लोग यहां दुनिया की बड़े से बड़े ब्रैंड की महंगी से महंगी नायाब चीजें खरीदने आते हैं. जाहिर है कि हम और आप जैसे पर्यटकों को केवल बाहर से ही इस मौल पर नजर डाल कर संतोष करना पड़़ता है. केवल 2-3 साल पहले तक साओ पाओलो में अपराधों तथा अपराधियों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि लोगों को अंधेरे के बाद घर से निकलने के लिए कई बार सोचना पड़ता था. लेकिन पुलिस तथा सरकार के कड़े कदमों के कारण अब आप आधी रात को बिना किसी भय अथवा खतरे के इस महानगर की अधिकांश सड़कों पर घूम सकते हैं.

इन भीड़भाड़ वाले इलाकों से अगर आप का मन भर गया हो तो आप किसी दिन ईस्टाकाओ द लुज नामक एक पुराने गुफानुमा रेलवे स्टेशन को देखने जा सकते हैं, जिस का निर्माण 20वीं शताब्दी के शुरुआती दिनों में कुछ अंगरेज निवेशकों ने किया था. अब इस स्थान को पुर्तगाली भाषा का संग्रहालय बना दिया गया है. इस संग्रहालय में ब्राजील में पुर्तगालियों के आने तथा उन की भाषा के विकास की पूरी कहानी देखने को मिल जाएगी. आज पुर्तगाली ही इस देश की आधिकारिक भाषा है. इस के निकट ही इस शहर का मशहूर पब्लिक आर्ट म्यूजियम है, जिस का जीर्णोद्धार 1990 में ब्राजील के मशहूर आर्किटैक्ट पाओलो मेंडेस द रोशा ने किया था. कांच तथा कंक्रीट की यह आधुनिकतम इमारत बरबस ही आप का ध्यान अपनी ओर खींच लेगी.

ब्राजील तथा लेटिन अमेरिका के अन्य देशों की कला तथा संस्कृति की एक झलक देखने के लिए आप कुछ समय इस संग्रहालय में बिता सकते हैं. यहां आप को इस क्षेत्र के चित्रकारों के साथसाथ पिछले 500 साल पुराने दुनिया के कुछ महानतम कलाकारों की कृतियां देखने को मिल जाएंगी. ब्राजील पहुंच कर आप को पेले की याद न आए, ऐसा तो मुमकिन ही नहीं है. यह एक हकीकत है कि पेले तथा फुटबाल के खेल के कारण ही आज ब्राजील को दुनियाभर के लोग जानने लगे हैं और शायद इसीलिए ब्राजील ने इस महानगर में एक फुटबाल म्यूजियम ही बना दिया है. 3-4 साल पुराने इस संग्रहालय में आप को ब्राजील के पेले जैसे फुटबाल से जुड़े खिलाडि़यों के अलावा इस खेल में देश की विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय जीतों से जुड़े स्मृति चिह्न संजो कर रखे गए हैं.

एक शनिवार को हम साओ पाओलो का सुप्रसिद्ध खुले मैदान में लगा एक साप्ताहिक बाजार प्राका बेनीसितो कैलिक्तो देखने भी गए, जो एवेन्यू हेनरिक शौमैन के पास ही स्थित है. यह बाजार हर शनिवार को सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है और यहां के 3 दर्जन स्टौल पर सस्ते कपड़े, बरतन तथा खानेपीने की चीजों के अलावा ऐसे पुराने सोवेनियर भी मिल जाएंगे, जो उस पुरातन ब्राजील की याद दिलाते हैं, जहां कभी गन्ने तथा कौफी की खेती बहुतायत से होती थी. आज भी ब्राजील में एक बड़े पैमाने पर इन दोनों चीजों की खेती होती है और कुछ भारतीय कंपनियों ने यहां अपनी शुगर मिलें भी लगा रखी हैं.

इस महानगर में दुनिया के कुछ मशहूर रेस्तरां मिल जाएंगे, जो अपने भोजन तथा सर्विस, दोनों के लिए मशहूर हैं और जिन में लगभग हरेक देश के व्यंजन उपलब्ध हैं. अगर आप की दिलचस्पी आर्किटैक्चर में है तो आप एवेनीदा पौलिस्ता जा सकते हैं, जहां ऊंचीऊंची इमारतों में लगभग सभी बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के दफ्तर मौजूद हैं. इस इलाके का उल्लेख हम पहले भी कर चुके हैं. यह ब्राजील का प्रमुख बिजनैस सैंटर है. यह शहर पुराने गिरजाघरों के लिए भी मशहूर है. अगर आप की दिलचस्पी कोई पुराना गिरजाघर देखने में हो तो आप यहां का भव्य मैट्रोपोलिटन कैथेड्रल देखने भी जा सकते हैं. साओ पाओलो से हमें न्यूयौर्क जाना था. हमारे भारतीय मित्र ने हमें सलाह दी कि हम सीधे न्यूयौर्क जाने के बजाय एक दिन के लिए ब्राजील के सब से मशहूर पर्यटन स्थल रिओ द जैनेरो रुकते हुए जाएं, जो साओ पाओलो से हवाई जहाज द्वारा कुल 1 घंटे की दूरी पर है.

जाहिर है कि अपने देश से इतनी दूर स्थित इन देशों की यात्रा का अवसर बहुत कम ही मिल पाता है, अत: वापसी में हम एक दिन के लिए रिओ में भी रुक गए. साओ पाओलो के मुकाबले रिओ एक छोटा शहर है और अपने समुद्र तटों तथा चारों ओर से इस नगर को घेरे मनमोहक पहाडि़यों के लिए जाना जाता है. दिन में इस के पर्यटकों से घिरे कुछ विश्वस्तरीय बीचों का लुत्फ उठाने के बाद हम केबल कार में बैठ कर छोटीछोटी पहाडि़यों पर बिखरी प्राकृतिक छटा का आनंद लेने चले गए. हमारे पास केवल एक ही दिन था, जिस का हम अधिकतम उपयोग करने के लिए उत्सुक थे. इस के बाद हम कारकोवाडो पर्वत पर दुनियाभर में मशहूर क्राइस्ट-द रिडीमर की प्रतिमा देखने गए. क्राइस्ट के अलावा यहां पर अमेरिका की स्टैच्यू औफ लिबर्टी, पेरिस का ऐफिल टावर तथा वाशिंगटन के व्हाइट हाउस के अलावा आप को ‘आर्ट डको स्टैच्यू’ भी देखने को मिलेगी, जिस का निर्माण 1931 में पूरा हुआ था.

यहां का रिओ सिनैरियम क्लब दुनिया के 10 सर्वश्रेष्ठ क्लबों में से एक है. यहां बैठ कर हम बैंड पर बजती धुनों का आनंद लेते रहे. यहां सुस्ता कर हमारी सारी थकान उतर गई थी और हम अपनी अगले दिन की न्यूयौर्क की लंबी उड़ान के लिए अपनेआप को तरोताजा महसूस कर रहे थे.

भारत भूमि युगे युगे

नोबेल में तिनका

हमारे देश में समाजसेवियों की छवि एक ऐसे आदमी की है जिस के कंधे पर टैगोर छाप झोला हो, बड़ी खिचड़ी दाढ़ी हो और जो खादी का मैला कुरतापजामा पहनता हो. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने इस छवि को तोड़ते हुए साबित किया कि समाजसेवा एक पूर्णकालिक व्यवसाय है जिस में तमाम तरह के त्याग करने में समाजसेवी हिचकता नहीं, वह भी सूटबूट और चमकदमक का हकदार होता है. इसे समाजसेवा में भी पसरी गिरोहबाजी कह लें या षड्यंत्र, कैलाश का चैरिटेबल ट्रस्ट मुक्ति प्रतिष्ठान शक के दायरे में है, 1997 से एक मुकदमा अदालत में चल रहा है जिस में नोबेल विजेता पर आरोप है कि उन्होंने व्यक्तिगत सुविधाओं व जरूरतों के लिए ट्रस्ट के पैसों का हेरफेर किया जिस के रिकौर्ड गायब हैं. आरोप गंभीर है और इस पर आज नहीं तो कल कैलाश सत्यार्थी को सफाई देनी ही पड़ेगी, वरना खामोशी हमेशा से ही स्वीकारोक्ति समझी जाती रही है.

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राजनीति का खेल

आर्य लड़ने की अपेक्षा लड़ाने में बड़े पारंगत थे. बालिसुग्रीव, रावणविभीषण, युद्ध कौशल और युद्ध कला के उदाहरण हैं, जिन्हें अपनों से दगाबाजी करने के एवज में रामचंद्र ने राजपाट दिया. यही बिहार में हुआ, चूंकि यह लोकतंत्र है इसलिए यहां यह खेल लोकतांत्रिक तरीके से हुआ. फर्क बस इतना था कि भाजपा ने जीतनराम मांझी का साथ देने से इनकार कर दिया क्योंकि उस के पास पहले से ही रामविलास पासवान जैसे राजा मौजूद हैं. नीतीश के दोबारा सीएम बनने से पासवान कुछ तो दुखी और शर्मिंदा हुए होंगे जिसे आधुनिक सामाजिक भाषा में ‘गिल्ट’ कहा जाता है. राजनीति में जाति का तड़का न हो तो वह मूंग की दाल जैसी बेस्वाद लगती है जिसे मजबूरी में पासवान ने निगला.

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मुफ्त की सलाह

मुफ्त सलाह देने के मामले में छोटेबड़े सब एक समान हैं. खांसी तक में निशुल्क परामर्श मिल जाते हैं. जो लोग घरेलू नुस्खों के जानकार नहीं होते वे झट से कहते हैं, फलां डाक्टर से मिल लो, बड़ा काबिल है, एकाध दो खुराक में ठीक कर देगा. कुछ दिन पहले मुझे भी ऐसा ही मुफ्त का परामर्श मिला था. दूसरे की परेशानी और बीमारी का मजा उठाने हेतु सलाह दे कर अपनापन हथियाने का मजा ही अलग है. दिल्ली पुलिस कमिश्नर बी एस बस्सी के ‘ऐट होम’ रिसैप्शन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से ज्यादा उन की अनवरत खांसी में रुचि लेते उन्हें बेंगलुरु के क्रौनिक खांसी विशेषज्ञ डा. नागेंद्र के यहां जाने की सलाह दे डाली तो लगा कि मफलर के बाद अब केजरीवाल की खांसी भी ब्रैंड बनती जा रही है.

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उड़ती रंगत

बहुचर्चित व्यापमं महाघोटाले को ले कर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे की रंगत उड़ी हुई है. फर्जी तरीके से मैडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश और घूस ले कर सरकारी नौकरियां दिलाने का विवाद खत्म होता नहीं दिखाई दे रहा है. कांगे्रस महासचिव दिग्विजय सिंह ने शिवराज सिंह को इस बार तकनीकी तरीके से घेरते हुए आरोप लगाया है कि जांच एजेसियों ने कागजों में लालपीला किया है. जहांजहां सीएम का नाम लिखा था, उसे काट कर उमा भारती का नाम लिख दिया गया है. साफ है इस घोटाले का समापन जब भी होगा धमाकेदार होगा लेकिन शिवराज सिंह चौहान की नई दिक्कत यह है कि इसी घोटाले के चलते रामनरेश यादव को राज्यपाल पद छोड़ना पड़ा है और विपक्ष उन से पद छोड़ने की जिद पर अड़ा हुआ है. इस बीच, उन के मंत्रिमंडल में शामिल एक वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय उन्हें सांकेतिक तौर पर कमजोर जाहिर करते हुए उन पर भरोसा जता रहे हैं.

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