मैं जिस हिंदी पुस्तकालय में रोज जाता हूं वहां हिंदी को बढ़ावा देने के लिए हाल ही में नियम बनाया गया कि पाठकों को काउंटर पर रखे रजिस्टर में अपना नाम, पता व समय केवल हिंदी में ही दर्ज करना होगा. मगर वहां आने वाले अधिकांश पाठक इसे सुन कर भी अनसुना कर अंगरेजी का ही प्रयोग कर रहे थे. मैं ने प्रबंधक को सुझाव दिया कि वहां एक तख्ती पर सूचना लिखवा कर रख दें तो शायद पाठकों पर इस का कुछ असर पड़ जाए. अगले दिन जब मैं पुस्तकालय में गया तो वहां एक तख्ती पर सूचना लिखी थी, ‘अपना नाम व पता केवल हिंदी में ही दर्ज करें,’ वाह, ऐसे बनी न बात.

मुकेश जैन ‘पारस’, बंगाली मार्केट (न.दि.)

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रक्षाबंधन का दिन था. मेरी ननद राखी के त्योहार के लिए दिल्ली स्थित हमारे घर आई हुई थीं. खाना खाने के बाद ननद ने कहा, ‘‘चलो भाभी, कनौट प्लेस चलते हैं शौपिंग के लिए.’’ हम लोग गाड़ी से कनौट प्लेस गए. गाड़ी पार्क कर के आगे बढ़े ही थे कि गलत पार्किंग के कारण ट्रैफिक पुलिस वाले चालान काटने को आ गए. मेरे वापस वहां पहुंचने पर वे 200 रुपए का चालान काटने लगे. एक बार तो मैं सोच में पड़ गई फिर एकाएक मैं ने कहा, ‘‘भैया, रक्षाबंधन वाले दिन तो ऐसा मत करो.’’ मेरे बोल सुन कर वे निरुत्तर हो गए और बिना चालान काटे ही वापस चले गए.   

मधू गोयल, गाजियाबाद (उ.प्र.)

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एक दिन शाम को जब चाय की चुस्कियों के साथ मैं अपने दिनभर की थकान दूर कर रही थी तभी पति हंस कर चिढ़ाते हुए बोले, ‘‘तुम दिनभर करती क्या हो जो थक जाती हो? बस, 2 रोटी बनाईं और काम समाप्त.’’ इन की बातें सुन कर मैं स्तब्ध रह गई. मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. रात के भोजन के समय जब ये डाइनिंग टेबल पर आए तब भोजन के नाम पर एक तश्तरी में 2 रोटी देखकर बोले, ‘‘यह क्या है?’’ ‘‘ये मेरे दिनभर का काम है पर इसे मैं ही खाऊंगी क्योंकि मुझे बच्चे को दूध पिलाना है,’’ यह कह कर मैं ने रोटियां ले लीं. ये मुझे कुछ देर देखते रहे. पहले तो कुछ समझ नहीं पाए परंतु जब समझ में आया तब चुपचाप कमरे में चले गए. हंसी में कही बात किसी के दिल को कितना चोट पहुंचा सकती है, इस बात का एहसास उन्हें उस दिन हुआ. उस दिन के बाद इन्होंने कभी हंसी में भी मेरे दिल को दुख नहीं पहुंचाया.

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